Monday, May 18, 2015

लॉन में पिकनिक


नववर्ष की सुबह भी सुहानी थी, दोपहर भी पर शाम होते-होते बादल छा गये और वर्षा शुरू हो गयी. उनकी पिकनिक समाप्त हो गयी थी, सब अपने-अपने घर चले गये थे. ऐसे ही एक दिन इस जगत से उन सभी को चले जाना है. दीदी का फोन आया, कल यानि वर्ष के अंतिम दिन चाचाजी का उठाला भी इस संसार से हो गया. नये वर्ष की शुभकामना का फोन और कहीं से नहीं आया. ससुराल से अवश्य सुबह जब वे सो रहे थे पिताजी ने फोन किया था. नन्हे का स्कूल कल खुल रहा है, आज उसने पहली बार शेव की, जून ने उसकी सहायता की. आजकल नूना ने भी उसे गणित पढ़ाने में सहायता करना शुरू किया है. अच्छा लगता है अपना विषय पढ़ना. सुबह वे लगभग साढ़े पांच बजे उठे, ‘क्रिया’ आदि करके सात बजे सुबह की चाय ली. ग्यारह बजे से पिकनिक की तैयारी शुरू की जो उनके लॉन में ही होने वाली थी. शाम होने से पहले साढ़े तीन बजे सभी वापस गये और उन्होंने थोड़ा आराम किया. सुबह गुरूजी ने कहा था कि राम विश्राम में ही है, काम में नहीं. सो नींद की जगह उसने शवासन किया. देह में उठने वाली छोटी से छोटी संवेदना को भी महसूस करना एक सुखद अनुभव है. प्राण को विचरते हुए भी देखा जा सकता है और सुबह-सुबह स्टील के गिलास में पानी पीते समय उसके किनारों को कई परतों में बंटे देखा और उस पर प्रकाश के सातों रंगों की चमक भी एक अच्छा अनुभव है. त्राटक में फर्श की अथवा दीवार की सतह का आकर्षक रूप धरना, प्रकाश के एक बिंदु का विस्तृत होते जाना और कानों में एक मधुर ध्वनि का निरंतर गुंजन...ये सरे अनुभव उसे इस जगत में होते हुए भी इस जगत से परे रखते हैं. स्नानघर में वस्त्रों से भरे टब का हिलना तथा आँखें बंद करके भी टीवी स्क्रीन का दिखाई देना भी सुखद अनुभव हैं. यह जगत उन्हें जैसा दिखाई देता है वैसा ही नहीं भी हो सकता. यह उनकी नजर पर ही निर्भर करता है, उनका मन ही इस जगत की उत्पत्ति का कारण है !
आज उसने नैनी के बेटे पर ट्रांजिस्टर तेज बजाने के लिए क्रोध किया, क्रोध करते समय या पहले इसका भान ही नहीं था, बाद में इसकी व्यर्थता का अनुभव हुआ, उसे यही बात धीरे से भी कही जा सकती थी. स्वीपर समय पर नहीं आया तो सेनिटेशन दफ्तर में फोन किया, धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करने के बजाय आधा घंटा बाद पुनः फोन कर दिया, अर्थात उस पूरे समय मन में वही बात घूम रही थी. साधक के लिए जरूरी है कि मन को खाली रखे. धर्म को धारण करना होगा, इस जगत के सागर को पार करने के लिए तैरना सीखना पड़ेगा. स्वयं में परिवर्तन लाना है और स्वयं में आया सुधार ही आस-पास के वातावरण को शुद्ध करेगा. सद्गुरु कहते हैं जीवन को उत्सव बनाना है. समर्पण जब जीवन की रीत बनती है तभी ऐसा सम्भव है.
अज सुबह ‘क्रिया’ के बाद अनोखा अनुभव हुआ, सम्भवतः योग वशिष्ठ में पढ़े हुए वचनों का असर हो पर ऐसा लगा जैसे समस्त ब्रह्मांड उसके सम्मुख है, घूम रहा है और वह उससे पृथक है परमपद को प्राप्त ! मन तब से फूल सा खिला है. वास्तविक जीवन भी यही है जब कोई भीतर के आनंद को पाले, बाहरी किसी व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति का मोहताज न रहे. आज उनके विवाह की वर्षगाँठ है, जून ने कहा, नूना का कार्ड तो वही है और उसने कहा जब स्वयं को ही दे दिया तो उपहार में और क्या दे ? जून और वह गुरुकृपा से से ही इस प्रेम को पा सके हैं जो वस्तुओं का अथवा सामीप्य का भी मोहताज नहीं है. जून दोपहर को दिल्ली जा रहे हैं. वे प्रेम में हैं उसी तरह जैसे विवाह से पहले थे. ईश्वर को पा लेने के बाद हृदय से यूँ ही प्रेम छलकता है, और जून भी अब प्रभु की ओर कदम बढ़ा चुके हैं. आज सुबह पिताजी का फोन आया, फिर फूफाजी, बुआ जी का भी. सभी सखियों के भी फोन आ चुके हैं. कल रात छोटी बहन का फोन आया, वह थोड़ी सी उदास थी, ईश्वर से उसके लिए भी प्रार्थना है ! मौसम आज भी खुशनुमा है. सुबह नन्हे ने भी शुभकामना दी और उससे भी पूर्व कान्हा ने भी...वह प्रेममय ईश्वर सदा उनके साथ है, हर क्षण वह उनके निकटतम है...सब कुछ वही तो है !  


2 comments:

  1. जीवन एक पिकनिक है और शाम ढले सबको चले जाना है। सही कहा। योग से वृत्ति निरोध करना एक बडी उपलब्धि है।

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  2. स्वागत व आभार आशा जी !

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