Friday, May 1, 2015

पुस्तक मेला


आज दीपावली का अवकाश है. जून डिब्रूगढ़ गये हैं. एक मित्र की नई कार आ रही है सेंट्रो. नन्हा सुबह कोचिंग गया वापसी में ‘बुक फेयर’ भी गया, दो बजे लौटा, उसे किताबें बहुत पसंद हैं. उन्हें देखते-देखते वह भोजन भी भूल गया. नूना का आज अमावस के कारण फलाहार था, तन और मन दोनों हल्के-हल्के हैं. सुबह छह बजे से थोड़ा पहले वे उठे. क्रिया के बाद ध्यान में आज कृष्ण की झलक दिखाई दी..नीला तन...और... जैसे कोई पर्दे के पीछे से झांककर लुप्त हो जाये. उसकी आत्मा पर पड़ा आवरण झीना होता जा रहा है. प्रकाश स्पष्ट दिखाई देता है, आँखें बंद करते ही और कभी तो आँखें खुली रखकर भी. वस्तुएं अपना ठोसपना खोने लगती हैं यदि उन्हें एकटक कुछ क्षण के लिए देखे. पहले जिस पर क्रोध आता था अब वैसी ही घटना होने पर मन शांत रहता है. तेजपुर से aol की साधिका का कार्ड आया है, वह भी उन्हें नये वर्ष पर भेजेगी. कल सभी से बात हुई सिवाय छोटी बहन के, आज रात वे उसे फोन करेंगे. इस वर्ष नन्हे ने बिजली की चार नई लड़ियाँ घर को जगमगाने के लिए दीवाली पर लगाई हैं. कल उन्होंने दीपकों व प्रकाश की कई तस्वीरें भी उतारीं.

रस के बिना हृदय की तृष्णा नहीं मिटती, भक्ति स्वाभाविक गुण है, उससे च्युत होकर वे निस्सार संसार में आसक्त होते हैं. जैसे धरती में सभी फल-फूल व वनस्पतियों का रस, गंध व रूप छिपा है, वैसे ही उस परमात्मा में सभी सद्गुण ! महापुरुषों की महानता, माधुरी, ओज और ज्ञान सब उसी में है. संसार में जो कुछ भी शुभ है वह उसमें है, तो यदि कोई उससे अपना संबंध जोड़े तो वह उसे मालामाल कर देता है. विकार स्वयं ही दूर भागते हैं, मन स्थिर होता है. धीरे-धीरे हृदय समाधिस्थ होता है. उसके रहते संसार का कोई दुःख उन्हें छू भी नहीं सकता. जब इस जगत से कुछ लेना ही नहीं हो, जो भी चाहिए भीतर मिलता हो तो व्यवहार रखने हेतु ही जगत के साथ संबंध रहता है. उसमें फंसने का भय नहीं होता..वहाँ तो बच के निकल जाने की कला आ जाती है. एक बार उसकी ओर यात्रा शुरू कर दी हो तो पीछे लौटना नहीं होता..दिव्य आनंद साथ होता है और तब यह जीवन एक सुखद अनुभव बन जाता है.

टीवी पर ‘रामायण धारावाहिक’ में हनुमान ने जब राम से कहा कि आपके हाथ से पानी में छोड़े गये पत्थर डूब गये तो क्या हुआ, आप जिसे त्याग देंगे वह तो डूबने ही वाला है न ! ..और उसका मन भर आया, ईश्वर को वे भुला दें या ईश्वर उन्हें भुला दें दोनों ही स्थितियों में उनका कोई आश्रय नहीं. कल वह बहुत देर तक निराकार का ध्यान करने का असफल प्रयास करती रही पर मन कहीं का कहीं पहुंच जाता था, फिर कृष्ण के चरण कमलों का ध्यान किया तो जैसे सब स्थिर हो गया. उसकी स्मृति ही मन को उल्लास से भर देती है, सिर्फ एक शांति बच रहती है या फिर एक पुलक, जो नृत्य करने के जैसी है, ‘नारद भक्ति सूत्र’ पढ़ते समय भी अच्छा अनुभव होता है. संतों, महात्माओं का अनुभव कितना सच्चा लगता है तब...मानव प्रेम किये बिना नहीं रह सकता और भौतिक जगत में ऐसा कुछ भी नहीं जो उसके प्रेम का प्रतिदान दे सके. उसका प्रेम अनंत है. उन्हें सीमित नहीं अपरिमित प्रेम चाहिए और उन्हें ऐसा प्रतिदान ईश्वर के सिवाय और कोई नहीं दे सकता. वह कितना स्पष्ट हो उठता है कभी-कभी कि विश्वास ही नहीं होता. लगता है जैसे कोई स्वप्न है...पर वह सदा उसके साथ है...सद्गुरु का ज्ञान रंग ला रहा है ! जय गुरुदेव !







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