Thursday, May 28, 2015

चैती चाँद


सुबह–सवेरे उठी और टीवी ऑन किया तो सद्गुरु की शीतल वाणी कानों में पड़ी, हृदय पवित्र करने वाली..उन्हें इस भौतिकता से दूर परम आनंद का भास कराने वाली गुरुवाणी की जितनी स्तुति की जाये कम है, गुरू का हर शब्द ज्ञान से परिपूर्ण है. उनके हित में है. परमात्मा की कृपा तो सब पर समान रूप से है, वह अब भी अपनी कृपा बरसा रहे हैं, उनकी ही झोली फटी है जो बार-बार पाकर भी वे खाली ही रह जाते हैं. “ दीवाना उन्होंने कर दिया इक बार देखकर, हम कुछ न कर सके बार-बार देखकर” वे उन्हें बार-बार सुनते हैं, देखते हैं, उन्हें प्रेम भी करते हैं पर फिर भी हर बार कुछ न कुछ मन में ऐसा रह जाता है जो कचोटता है. कुछ क्षण ऐसे अवश्य होते हैं जब लगता है यही पूर्णता है, एक ऐसी अनुभूति होती है जिसे व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं मिलते, पर उस स्थिति से फिर लौटना होता है और कोई घटना, कोई इतर घटना उसकी स्मृति को भुला देती है लेकिन उसका भूलना मन को सहन भी नहीं होता. “जैसे उड़ी जहाज को पंछी, पुनि-पुनि वापस आवे” वे अहम् के कारण पूर्ण समर्पण करने से डरते हैं, लेकिन उनके पास उनका है क्या ? यह तन भी उसी का दिया है और मन भी, आत्मा परमात्मा का अंश है, यह सब कुछ तो उसी जगद्गुरु का खेल है, फिर वे क्यों न निश्चिंत होकर उसके सखा बन जाएँ उसके खेल में !

आज जून दिल्ली से वापस आ रहे हैं, परसों वे एक पेपर प्रस्तुत करने गये थे. मौसम सुहावना है, संगीत की कक्षा हुई. अगले महीने लिखित परीक्षा है. दीदी ने कल रात उसके इमेल का जवाब दिया, वह उन्हें एडवांस कोर्स के बारे में लिखेगी जो अगले हफ्ते से शुरू हो रहा है. आजकल उसके जीवन में जो सर्वाधिक वांछनीय वस्तु है वह है गुरू कृपा, ध्यान करते समय कितनी बार उसे लगता है कोई बाधा है, कभी तनाव या घुटन सी भी महसूस होती है. ध्यान के बाद सब कुछ पूर्ववत सहज और सुंदर हो जाता है.  उसका दिल हल्का है और विचार सकारात्मक, वह देह में होने वाले हर स्पंदन पर ध्यान देती है और मन में उठने वाले हर भाव पर भी. दोनों उसकी नजर में हैं, वह आत्मा इस देह रथ की सारथी है. जिस वक्त जो कार्य सही हो, करने योग्य हो, जिस वक्त जो विचार सही हो, सोचने योग्य हो, जिस वक्त जो निर्णय उचित हो और सात्विकता को बढ़ावा दे, वही उस कान्हा की प्रसन्नता के लिए उसे करना है. उसी की ख़ुशी में नूना की ख़ुशी है. वह उससे जुड़ कर ही सहज है ! जून के जीवन में भी उजाला छा रहा है, वह आजकल अपने कार्य में बहुत रूचि लेने लगे हैं, शायद वह सदा से ही लेते आये हैं, आजकल वह ऐसा कार्य कर रहे हैं जो कम्पनी के ज्यादा हित में है. नन्हे का रिजल्ट भी अच्छा रहा है, और उनकी नई वाशिंग मशीन आने से पहले उसके लिए प्रबंध भी सुचारू रूप से हो गया है. कृपा उन पर बरस रही है. सद्गुरु के वे ऋणी हैं, कोटिशः नमन करते हैं, उनके इतने सारे उपकार हैं ! अंधकार में रास्ता टटोलते व्यक्ति को जैसे कोई हाथ पकड़ कर प्रकाश में ले आये, स्वर्णिम उजाला चहुँ ओर फैला है, ज्ञान का उजाला है यह. इस ज्ञान की ओर चलने की बात ऋषि कहते हैं. ज्ञान जीवन में हो वही जीवन, जीवन है, मुक्त करता है ज्ञान, फूल सा हल्का बना देता है, सारी जंजीरें काट कर प्रभु के समक्ष पहुंचा देता है !

आज चैत्र की पहली तिथि है, सिन्धी लोग इसे ‘चैती चाँद’ के रूप में मनाते हैं. कल से बल्कि पिछले तीन-चार दिनों से वर्षा की झड़ी लगी है. कल रात गर्जन-तर्जन भी हुआ, मौसम फिर ठंडा हो गया है. सुबह वे चार बजे उठे, नन्हे को अब सप्ताह में तीन दिन सुबह पढ़ने जाना है, सो उसे भी उठाया, वर्षा तब भी हो रही थी. क्रिया की, एडवांस कोर्स के बाद थोड़ा अधिक समय बैठना होता है. कुछ नई साधनाएं सीखीं, जो काफी लाभप्रद होंगी, इसका पता तो धीरे-धीरे ही चलेगा. फिर सत्संग सुना, आसन किये, एक घंटा ध्यान किया. ध्यान के बाद मन कितना शांत है, कोई विचार आता ही नहीं, सोचने से आता है. भीतर अद्भुत सन्नाटा भर गया हो जैसे. देह स्वस्थ हो, मन प्रसन्न रहे, बुद्धि का विकास हो, परमार्थ की भावना हो तो समझना चाहिए कि आचरण का परिमार्जन हो रहा है. कल विवेकानन्द का जीवन चरित पढ़ा, अद्भुत थे वे, योग के सभी अंगों में निष्णात, ज्ञानी... और संतों में भी शिरोमणि उनके गुरू थे, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, जिनकी छोटी-छोटी कहानियों के द्वारा गूढ़ ज्ञान देने की शैली अद्भुत थी, जैसी जीसस की. बाइबिल की कई कहानियाँ भी बहूत गूढ़ अर्थ रखती हैं. ईश्वर जितने सरल हैं उतने ही गूढ़ भी, उन्हें पाना जितना सरल है उतना ही कठिन भी ! वह जितने निकट हैं उतने ही दूर भी ! प्रेम ही उन्हें पाने का मन्त्र है !

No comments:

Post a Comment