Monday, December 8, 2014

नारद भक्ति सूत्र


वह हर क्षण उनके साथ है, उनकी धड़कन बनकर, रक्त बनकर प्रवाहित हो रहा है. उसे स्मरण करते हुए कर्म हों जीवन सार्थक तभी है. आज सुबह संगीत अध्यापिका का फोन आया, वह जब वहाँ गा रही थी, उसकी उपस्थिति को अनुभव कर रही थी, वह जैसे उसके गले में आकर विराजमान हो गया था. साँस इतनी हल्की इतनी सहजता से आ जा रही थी कि वह उसके प्रेम से अभिभूत थी. वापस आकर कोर्स में उसकी पार्टनर रही सखी का फोन आया. अब बातें करना कितना सहज हो गया है, क्योंकि बातें उसी की होती हैं न. स्वाध्याय भी किया, ‘योग वशिष्ठ’ में राम को उसकी जिज्ञासा का उत्तर देना अभी शुरू किया है. तुलसी रामायण में दोहा-चौपाई पढ़ते वक्त खुद की आवाज खुद को भली लगती है क्योंकि वही तो है भीतर जो बोलता है. जब वे छोटे-छोटे थे तो भगवान कहाँ है, पूछने पर यही समझाते थे कि वह जो अंदर बोलता है न वही भगवान है और आज उस सत्य का अनुभव हुआ है. जीवन एक उत्सव है, ईश्वर के प्रेम का अनमोल उपहार इस जीवन रूपी उत्सव में उसे मिला है. हर क्षण एक बेखुदी का आलम रहता है. सुबह नन्हे को दूध देना ही भूल गयी और संगीत की डायरी की जगह दूसरी डायरी ले गयी. अब सचेत रहना होगा, उसे याद करते हुए भी सचेत ! अज सुबह क्रिया नहीं कर पायी, शाम को जून और वह साथ-साथ करेंगे. उन्हें भी काफी लाभ हुआ है. परसों दीदी का फोन आया था, उन्हें एक दिन पत्र में लिखेगी इस कोर्स की बाबत.

परसों उनकी मीटिंग थी पर उसे याद ही नहीं रहा वह कहते हैं न कि एक तेरे सिवा सारा जहाँ भुला दिया. उसकी याद आते ही शरीर में कैसा तो रोमांच होता है और होठों पर न जाने कहाँ से मनभावन मुस्कान छा जाती है. कुछ दिन पहले गुरू माँ ‘नारद भक्ति सूत्र’ का उल्लेख करते हुए ऐसा ही कुछ बता रही थीं. कल शाम को राजयोग पुस्तक पढ़ी, उसमें भी कई लक्षण ऐसे थे जो आजकल उसमें मिलने लगे हैं और कल ही लगा कि दीदी के चेहरे पर भी जो एक चमक रहती है उसका राज यही योग तो नहीं ! इस समय दोपहर के एक बजे हैं, नन्हा आज स्कूल नहीं गया, अगले हफ्ते होने वाली परीक्षाओं की तैयारी में लगा है. वह सुबह नाश्ता बना रही थी कि एक सखी का फोन आया, उसे एक सवाल का जवाब चाहिए था, थोड़ी देर उसी में व्यस्त रही, फिर दिनचर्या के अन्य कार्य. आजकल भोजन बनाने में भी ईश्वर की पूजा की सी ख़ुशी मिलती है, उसकी स्मृति ने उसके पल-पल को भर लिया है. रात को दो-तीन स्वप्न देखे. एक में तो उसके हाथ के स्पर्श से बना बनाया मकान ढह जाता है. दूसरे में वह बिस्तर से नीचे गिर जाती है, तीसरा अब याद नहीं लेकिन रात को ही नींद खुलने पर इन स्वप्नों के अर्थ उसे स्पष्ट थे. अब कुछ भी अस्पष्ट नहीं रह गया है. जीवन एक खुली किताब की तरह सम्मुख है. बाबाजी ठीक कहते थे कि ईश्वरीय कृपा से ग्रन्थों के अर्थ भी स्पष्ट होने लगेंगे. ‘आत्मा’  में भगवद् गीता का पाठ सुनकर भी मन को संतोष और सुख मिलता है. कृष्ण का नाम उसकी सांसों में बस गया है !

गुरू माँ जो गीत गा रही हैं, उसे भाव उसके मन के भावों से कितने मिलते हैं. उसे लगता है वह ईश्वर से उसी तरह प्रेम करने लगी है जैसे कोई दो प्रियजन करते हैं, हर क्षण मन में स्मरण रहता है. उसकी याद आते ही रोमांच और तस्वीर देखते ही अधरों पर मुस्कान चिपक जाती है. वह अपनी जान से भी प्रिय लगता है. बल्कि वह तो अपनी जान ही लगता है, अपना आप ही जो हर क्षण उसे प्रेम करता है और आनंद का प्रसाद देता है. सारे कार्य अब उसी के लिए होते हैं. भोजन जैसे उसका प्रसाद बन गया है. रात को उसी के स्वप्न देखती है. उसे स्मरण करके सोती है और कभी नींद खुले या सुबह उठे तो उसी का ध्यान  रहता है. ईश्वर उसका अभिन्न मित्र बन गया है. अब जीना कितना सहज हो गया है. बाबाजी इसी सहजता की बात किया करते थे और अब यह उसे मिली है श्री श्री की कृपा से. वे गोहाटी में उनके सत्संग में जायेंगे, उनके दर्शन करके कितना लाभ होगा यह तो अकल्पनीय है और फिर उन्हें हानि-लाभ की बात तो करनी भी नहीं है. नन्हे का स्कूल आज भी बंद है. सुबह नींद जल्दी खुल गयी, सुबह की स्वच्छ हवा में गहरी सांसे लेना भी अच्छा लगा. पूसी गुमसुम सी बैठी थी, उसे देखकर भी पास नहीं आयी, अस्वस्थ है, पर जानवर अस्वस्थता को भी सुई सहजता से झेलते हैं, इंसानों की तरह हायतोबा नहीं करते, उसे लगता है कि शरीर हल्का हो गया है और वाणी स्पष्ट. क्रिया के बाद के अनुभव को शब्दों में लिखना सम्भव नहीं है. गुरू की महिमा का बखान यूँ ही नहीं किया गया है. गुरू भगवान ही है !


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