Thursday, December 18, 2014

योग के आसन


God is with her always, it was before when she was young so is now and so will be in future. When one gives her life in his hand everything becomes crystal clear, mind is calm and heart is full of love, no past regret or no future planning. When he is always there to help why should she think of herself, she will think of Him only and whatever he wishes will be good for her. Krishna preached gita five thousand years back but man has not got anything higher than this knowledge, it is the ultimate. He says that जो जिस भाव से ईश्वर की शरण में जाता है उसी के अनुरूप ईश्वर उसे वर देते हैं. जो अनन्य भाव से उसकी शरण में जाता है ईश्वर पूर्णरूप से उसके कुशल-क्षेम का निर्वाह करते हैं. कल शाम विवेकानन्द साहित्य माला में राजयोग पर पढ़ा. मार्ग दर्शन प्राप्त हुआ. वह एक गुरू की तरह कदम-कदम पर सहायता करते हैं. आज दोपहर को नये म्यूजिक सिस्टम के लिए कवर सिलने हैं. जीवात्मा के लिए ईश्वर की सहायता लेना उतना ही जरूरी है जितना मछली के लिए जलवास. ईश्वर ने उन्हें पूर्ण स्वतन्त्रता दी है पर वह चाहते हैं कि वे उनकी ओर जाएँ. वह प्रतीक्षा कर रहे हैं. वे प्रेम, ज्ञान, शांति और आनंद का अतुल भंडार हैं. वह प्रियदर्शन हैं !

गुरूजी कहते हैं, प्रेम में डूबे रहो, मस्त होकर गाओ, गुनगुनाओ और मन को उद्ग्विन न होने दो. जब भी कोई खुश होता है और शांत होता है ईश्वर के निकट होता है और उसके निकट जितने क्षण जीवन के बीतें वही सार्थक हैं ! कल एक सखी से ईश्वर संबंधी चर्चा की, वह भी इस पथ की यात्री है, अंततः हर एक को इसी पथ का यात्री बनना है, क्योंकि भौतिक रूप से कोई कितना भी सफल हो, आध्यात्मिक रूप से सम्पन्न नहीं हुआ तो शांति का अनुभव नहीं कर पायेगा. आज सुबह ध्यान में दो-तीन बार तेज रौशनी का आभास हुआ. क्रिया करने के बाद मन कितना शांत था. गुरूजी के प्रति मन पुनः पुनः कृतज्ञता से भर जाता है. गुरुमाँ भजन गा रही हैं, मोको तू न बिसार, तू न बिसार, तू न बिसारे रामय्या !  लेबनान के दार्शनिक, शायर, चिंतक खलील जिब्रान की एक कथा भी सुनाई. सत्संग की महत्ता अपार है. सत्यस्वरूप परमात्मा में प्रीति, अमरता का बोध, आत्मा का ज्ञान, सभी कुछ मिलता है. आठ बजने को हैं, एक और दिन का आरम्भ हो चुका है, समय कितनी शीघ्रता से बीतता जा रहा है. पत्रों के जवाब देने का कार्य शेष है. समय के हर पल का उपयोग करना होगा. नन्हे के स्कूल में टेस्ट शुरू हो गये हैं. जून भी अपने कार्य में व्यस्त हैं, इतवार को उन्हें बॉस के यहाँ योगासन सिखाने जाना है. कल क्लब में ‘बोध’ नाटक था, वे नहीं गये.

आज भी ‘जागरण’ में प्रेरणास्पद विचार सुने. विचार अंगरक्षक की तरह हैं, वे रक्षा भी कर सकते हैं और बंदी भी बना सकते हैं. सोच कभी हल्की न हो, सदा उच्च विचारों को ही प्रश्रय देना होगा. लक्ष्य ऊंचे हों और शक्तियाँ उसकी तरफ केन्द्रित हों. भीतर अनमोल खजाना है, मस्तिष्क की ऊर्जा और तन की स्फूर्ति के रूप में ! आधे-अधूरे मन के साथ या निराश होकर और संशय के साथ कभी कोई काम नहीं करना है. निज पुरुषार्थ पर सदा भरोसा रखना है. गुरू की शक्ति कर्त्तव्य पथ पर सदा आगे बढ़ने को प्रेरित करती है. अभी कुछ देर पूर्व उसने नैनी को सफाई के लिए कहा, सदा की तरह उसने ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया तो एक क्षण के लिए उसका मन भी थोड़ा सा विचलित हुआ पर अगले ही क्षण उसे लगा, वह उस पर निर्भर ही क्यों रहे, उसके पास असीम सम्भावनाओं का भंडार है, उसका दस प्रतिशत भी अभी तक इस्तेमाल नहीं किया है. वह स्वयं ही जब काम में जुट गयी तो वह भी हाथ बंटाने लगी.



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