Wednesday, December 3, 2014

चित्रकला का संसार


आज सुबह से ही अपने–आप में नहीं है, एक के बाद एक मूर्खतापूर्ण कार्य और वाणी का प्रयोग उसे असमंजस में डाले जा रहा है. सुबह जून देर से उठे उसकी वजह भी वही थी. कल उसके सामने ही घड़ी reset हो गयी पर न तो उसे ठीक ही किया न ही जून को बताया. सुबह नन्हे को डांटा. जून से असत्य कहा, संगीत कक्षा भी है, फिर शीघ्रता में ही स्वीपर के न आने की खबर सफाई दफ्तर में कर दी जबकि बाद में वह आ गया है, उन्हें कितनी असुविधा हुई होगी उसकी वजह से दूसरा व्यक्ति परेशान हुआ जिसे काम मिल गया था. नैनी को तो उसकी गलती के लिए टोकना आवश्यक था. ...और अब उसका मन उसे ही कोस रहा है या फिर वह मन को...उसे स्वयं पर संयम नहीं था इसी का परिणाम था यह सब. शायद वह संगीत सीखने नहीं जा पायी इसकी वजह से..बाबाजी कहते हैं..छड्डो परे....और ईश्वर से सच्चे दिल से क्षमा मांग लो. परम शांति तो स्वयं की ही है..हर क्षण ..हर पल !

पिछले कई दिनों से अधर्म की वृद्धि हो रही थी और ईश्वर अपने वायदे के अनुसार मन के द्वार पर दस्तक देने आया है. उसके साथ सदा ऐसा ही होता है. जब कभी संसार उसे घेर लेता है एक बेचैनी उसे वहाँ से भागने पर विवश कर देती है. कुछ दिन या कुछ पल यदि ईश्वर के स्मरण के बिना गुजरे हों तो एक छटपटाहट सी होने लगती है जो कहती है कि यह मार्ग उसका नहीं है. आज सुबह गुरुमाँ ने सत्य कहा था कि यदि कोई सुख चाहता है तो उसे याद करे वरना न करे. उसे याद करते रहें तो अपने कर्त्तव्यों का बोध भी बना रहता है. कर्त्तव्य अपने देह, मन, आत्मा के प्रति, अपने परिवार, संबंधियों, पड़ोसियों के प्रति, अपने समाज, शहर व देश के प्रति तथा मानवता के प्रति अपने मातहत काम करने वालों के प्रति. जीवन एक उपहार है जो ईश्वर ने दिया है. हर श्वास पर उसी का अधिकार है, अभिमान करने योग्य यदि कुछ है तो यही कि मानव जन्म पाया है. इसे सार्थक करना या इसका अपमान करना उसके वश में है. आज कैलेंडर देखा तो पता चला कि कल अमावस्या थी, उसके व्रत का दिन पर उसे याद नहीं रहा, इतवार का दिन जो था. अब आने वाले कल रखेगी. कल एक पुराने परिचित आये, उन्हें भोजन कराया वह मिठाई लाये थे अपने शहर की. यह प्रेम का संबंध ही तो है जो उन्हें उनके पास लाता है. ईश्वर के प्रति प्रेम हो तो वही प्रेम अन्यों के प्रति झलकता है. उसका हृदय प्रेमयुक्त हो !


आज गयी थी संगीत सीखने, सो ‘जागरण’ नहीं सुना. लौटी तो ध्यान आदि किया, भोजन बनाया. पत्र अधूरे ही पड़े हैं, कुछ नया लिखा भी नहीं, पत्रिकाएँ पढने का भी समय नहीं मिला. चित्रकला का अभ्यास भी उसने कुछ दिन पहले शुरू किया था, बीच में ही छूट गया है, पर कल नन्हे ने बहुत दिनों के बाद एक चित्र बनाया अपने स्कूल में होने वाली एक प्रदर्शनी के लिए  आज सुबह वह अपने आप ही उठा, फिर बस स्टैंड तक उसे छोड़ने जून गये. अभी-अभी उनका फोन भी आया. कल कहा कि उन सभी को घर पर भी अच्छी वेशभूषा में ही रहना चाहिए, अस्त-व्यस्त सा नहीं. क्लब की मीटिंग का बुलेटिन भी आया है, जाने का अभी तो ज्यादा उत्साह नहीं है लेकिन सदस्या बनी है तो मीटिंग में जाना कर्त्तव्य भी तो है जब तक कि बेहद आवश्यक कार्य न हो अनुपस्थित नहीं होना चाहिए. कल माली ने तीन क्यारियों में खाद डाल दी है, इस बार वे सर्दियों की सब्जियां शीघ्र लगा सकते हैं. अभी एक सखी से बात हुई, उसने घर आने का निमन्त्रण दिया है, वे अवश्य जायेंगे.

2 comments:

  1. क्रिकेट के खेल में एक मुहावरा बहुत ही लोकप्रिय है - आज मेरा दिन नहीं था! इसलिये उसकी तमाम गड़बड़ियों को एक लाइन में कहा जाए तो बस यही कहा जा सकता है कि आज उसका दिन नहीं था.
    सूफ़ी सम्प्रदाय में ईश्वर स्मरण की एक पद्धति यह भी है कि उसका नाम अंतर्मन में उच्चारित किया जाए और कमाल का अभ्यास यह है कि सारी दुनिया से वार्तालाप करते हुये भी परमात्मा के साथ वार्तालाप अन्दर ही अन्दर चलता रहता है!!
    कहानी, कविता, संगीत, नृत्य, आध्यात्म और अब चित्रांकन... अपने हाथ जोड़कर उसके समक्ष नत हूँ!!

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  2. यह सब तो तो हर कोई स्कूल के दिनों से करता ही आया है...चित्रकला आदि...ईश्वर स्मरण की सूफी पद्धति जानकर अच्छा लगा...आभार !

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