वाणी मधुमंडित, सुवासित हो जिसमें अहंकार
की गंध न हो, स्वार्थ की महक न हो. ऐसी वाणी निर्वासनिक मन से ही उपजती है.
निष्कपट भक्ति भी ऐसे ही मन में जगती है. प्रार्थना भी ऐसी ही भावदशा में की जा सकती है. ऐसा मन सभी तरह के विक्षेपों को
पचाने योग्य बनता है. कल रात वह प्रार्थना करते-करते सोई. स्वप्न में कन्याकुमारी
के दृश्य देखे. सुबह उठी तो मन शांत था. बाबाजी कहते हैं देर सबेर ईश्वर सबके
हृदयों में अवश्य प्रकट होगा, उसके स्वागत के लिए मन का दरवाजा हमेशा खुला रखना
होगा, मन को निष्कपट, स्वच्छ और कोरा रखना होगा. कामना हर पल नीचे गिराने का
प्रयत्न करती है और प्रार्थना ऊपर उठाने का. कल शाम कुछ पुरानी कविताओं को पूर्ण
किया. कादम्बिनी को भी दो कविताएँ भेजी हैं, उसके अंतर में कई कविता संग्रह अभी भी
दबे हुए पड़े हैं. थोड़ा सा प्रोत्साहन मिले तो बाहर आ जायेंगे, न भी मिले तो कोई
हर्ज नहीं, अपने सुख के लिए कविता रचना तो सदा ही जारी रहेगा !
कल अंततः उसकी इच्छा फलवती
हुई जून और वह मार्किट गये, उसके जन्मदिवस पर पहनने के लिए हल्के हरे रंग की एक
ड्रेस लाये, थोड़ी लम्बी है उसे ठीक किया जा सकता है. आभी आज और कल दो दिन का वक्त
शेष है. कल उसने अपना इमेल अकाउंट खोला. आज सुबह हरिद्वार मामीजी के लिए पहले इमेल
लिखा, अभी भेजा नहीं है. नन्हे का आज टेस्ट है. गर्मी पूर्ववत है. सुबह नींद खुली
तो स्वप्न में कम्प्यूटर, इमेल यही सब देख रही थी, उसके चेतन मन से ज्यादा अवचेतन
मन पर इसका प्रभाव पड़ा दीखता है. आज बाबाजी और गोयनका जी दोनों को कपड़े प्रेस
करते-करते सुना, एक जो कहता है दूसरा उसका विपरीत कहता हुआ सा लगता है पर दोनों का
लक्ष्य एक है. गोयनका जी का मार्ग ज्यादा कठिन है, बाबाजी का बिलकुल सहज ! सहज भाव
से अपने भीतर के आत्मदेव पर भरोसा करना है. सुख में ललक पैदा न हो बल्कि सुख
बांटने की प्रवृत्ति हो और दुःख में सिकुड़े नहीं, सम भाव रहे यही उनकी शिक्षा का
सार है. जैसे-जैसे व्यवहार में समता आती जाएगी, ममता छूटती जाएगी और एक दिन मन
सुख-दुःख से ऊपर उठ जायेगा. देह या मन में कोई पीड़ा हो तो यह याद रखना होगा कि यह
अनित्य है, सदा रहने वाली नहीं है. परसों उसके जन्मदिन के दिन ही लेडीज क्लब की
मीटिंग है, एक सीनियर सदस्या का विदाई दिन भी है. पर वह नहीं जा पायेगी, दो साल
पूर्व जब वह जाते-जाते रह गयी थीं, उनके लिए जो लेख लिखा था वह ऐसे ही रखा रह
जायेगा. जून और नन्हे को मनाना आसान नहीं होगा, सो जो हो रहा है उसे होने देना
चाहिए, वैसे भी इतने वर्षों में कुल मिलाकर दस-पन्द्रह बार से ज्यादा नहीं मिली
होगी उनसे, उनके लिए शुभकामनायें घर से ही भेज सकती है.
जो हमारे पास है उसका
महत्व जानें और जो नहीं है उसके पीछे न भागें तो जीवन में सुख ही सुख है. लेकिन जो
भी है वह सदा के लिए नहीं रहेगा यह भी याद रखना है. लक्ष्मी सदा खड़ी रहती है और
सरस्वती सदा बैठी रहती है. ज्ञान कभी साथ नहीं छोड़ता लेकिन धन-दौलत व वस्तुएं साथ
छोड़ भी सकती हैं. सत्संग को सुनकर गुनने से ही उसका लाभ मिलता है. “एक बुढ़िया थी
वह बचपन में ही मर गयी”. यह कहानी बताती है कि सारी उम्र लोग नादान ही बने रहते
हैं. ईश्वर स्मरण बना रहे तो यही नादानी समझदारी में बदल जाती है. कल वह ध्यान में
ज्यादा देर तक नहीं बैठी, इतर कार्यों में लग गयी सो रात को मन अशांत था, नींद
नहीं आ रही थी, कोई कारण नजर नहीं आ रहा था. आज बाबाजी के संगम तट पर दिए गये
प्रवचन की रिकार्डिंग सुनाई गयी. हजारों लोगों को पल में हँसा व रुला सकने की
सामर्थ्य है. वह लोगों के मन में स्थित ईश्वर को जगा देते हैं. मन उच्च केन्द्रों
की ओर चला जाता है, दुनियावी बातें सारहीन लगती हैं. सभी के प्रति मन प्रेम से भर
जाता है. आज सुबह उसने बगीचे में काम करने की इच्छा व्यक्त की पर धूप तेज थी, न
जाने कहाँ से बादल का एक टुकड़ा आ गया. हवा भी बहने लगी. आधा घंटा वह काम कर सकी.
कल उसके जन्मदिन पर भी मौसम अच्छा हो जायेगा, ऐसा उसका पूर्ण विश्वास है.
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