Sunday, August 31, 2014

डाक विभाग की हड़ताल


‘कर्म कामना प्रधान न हो बल्कि भावना प्रधान हो तो कर्म बंधन नहीं होता’. आज सुबह जल्दी उठी तो उपरोक्त वचन सुनने का सौभाग्य मिला. पिछले कुछ दिनों से ‘जागरण’ ठीक से सुन नहीं पायी, घर-गृहस्थी के कार्यों में व्यस्त रही. कुछ दिन तो स्वेटर बिनने में ही गुजरे, जल्दी पूरा करना था. कल सुबह मन अस्त-व्यस्त हो गया जिसका कारण नैनी की कठोर भाषा थी, वह अपने बेटे को बुरी तरह से डांट रही थी. इतने वर्षों उनके घर काम करने के बाद भी वह मीठा बोलना नहीं सीख पायी है, आदत को बदलना असम्भव कार्य है.  

बाबाजी कहते हैं “जिसे भवसागर से तरना है, उसे छोड़ खुदी, खुद मरना है”, भवसागर से तरने की कीमत बहुत ज्यादा है. हर क्षण सचेत रहकर प्रेय और श्रेय का ध्यान रखकर चुनना होता है. मन यदि कामना से मुक्त नहीं कर सकते तो भक्ति का ढोंग रचने से कोई लाभ नहीं होगा. एक ओर तो वह संसार के सारे सुख चाहती है और दूसरी ओर ईश्वर का प्रेम भी पाना चाहती है. परमात्मा से प्रेम का संबंध इतनी आसानी से नहीं बनता और जब बन जाता है तो उसे तोड़ना भी उतना ही मुश्किल है. मन का स्वाभाविक संबंध संसार से है आत्मा का स्वाभाविक संबंध परमात्मा से है. यदि अपने भीतर के सच्चे स्वरूप की स्मृति हो तो सुख की चाह में संसार की गुलामी नहीं करनी पड़ेगी.

आज नन्हे को स्कूल में वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेना है, उसने अभ्यास भी किया है. अगले हफ्ते उन्हें घर जाना है लेकिन दो दिन ‘असम बंद’ और एक दिन ‘पश्चिम बंगाल बंद’ के कारण उनकी यात्रा लंबी खिंच सकती है. पिछले दिनों यहाँ का माहौल भी तनावग्रस्त था, कई स्थानों पर हिंदी भाषी लोगों की नृशंस हत्या हुई. संसद में कल एक हफ्ते बाद कार्य शुरू हुआ. डाक विभाग की हड़ताल को भी एक हफ्ता हो चुका है. अयोध्या में राम मन्दिर बने इस पर बयान देकर वाजपेयी जी ने खुद के लिए परेशानी मोल ले ली है. अमेरिका के नये राष्ट्रपति जार्ज बुश होंगे अंततः यह निर्णय ले लिए गया है.

‘ईश्वर से मानव का संबंध सनातन है, वे उसी के अंश हैं, उसका प्रेम ही उनके हृदयों में छलकता है. अज्ञानवश वे इस बात को भूल जाते हैं और स्वार्थपूर्ण संबंधों में प्रेम पाने का प्रयास करते हैं, तभी दुःख को प्राप्त होते हैं’. उपरोक्त वचन सुबह सुने और लिख लिए, सचमुच संबंध जब तक स्वार्थहीन नहीं होंगे तब तक बंधन बना ही रहेगा. स्वार्थ की भावना कामना की पूर्ति हेतु है, कामना अभाव की पूर्ति के लिए है और अभाव का कारण अज्ञान है, अभाव मानव का स्वभाव नहीं है क्यों कि वह वास्तव में पूर्ण है, अपूर्णता ऊपर से ओढ़ी हुई है और चाहे कितनी भी कामना पूर्ति क्यों न हो जाये यह अपूर्णता इन संबंधों से, वस्तुओं से भरने वाली नहीं क्यों कि पूर्ण तो मात्र ईश्वर है वही इसे भर सकता है. इसी तरह, वे मुक्त होना चाहते हैं जबकि मुक्त तो वे हैं ही, बंधंन खुद के बनाये हुए हैं, प्रतीत मात्र होते हैं. जब किसी कामना पूर्ति की अपेक्षा नहीं रहेगी चाह नहीं रहेगी तो मुक्तता स्वयं ही अनुभव में आ जाएगी. उसे लिखते-लिखते ही मुक्तता की अनुभूति हुई.


आज उन्हें बनारस जाना है. कल रात्रि स्वप्न में सभी संबंधियों को देखती रही. मंझले भाई को देखा, उसे बुखार है, फोन किया तो पता चला वास्तव में उसे ज्वर है. कुछ बातें समझ से परे होती हैं.  

Saturday, August 30, 2014

टेलीविजन - इडियट बॉक्स


पवित्र संग की आध्यात्मिक तरंगे हृदय को प्रभावित करती हैं और साधक को लोकातीत परमसुख का आकर्षण होता है”. आज बाबाजी ने संग की महत्ता को बताया. संग का बड़ा रंग लगता है. उसने चिन्तन किया यदि कामनाएं सीमित हों तो मन सुखी रहता है. ईश्वर का वरदान स्वरूप यह जीवन उन्हें समय की धारा के साथ-साथ बढ़ने के लिए मिला है. मन पर नियन्त्रण एक मर्यादा को जन्म देता है. सामान्य सुखों के पीछे अपने हृदय के अलौकिक सुख को जो तज दे, वह दुखों को आमन्त्रण दे रहा है. अंतर्दृष्टि रखते हुए इस जीवन रूपी चादर को स्वच्छ रखा जा सकता है, बुद्धि स्थिर होने से ही सही निर्णय की शक्ति प्राप्त होती है.

आज बाबाजी ने बड़ी मजेदार बात कही, कुल डेढ़ पाप होता है और कुल डेढ़ ही पुण्य होता है. एक पाप देह को ‘मैं’ मानकर उसमें आसक्त रहना और आधा सारे अन्य पापों को मिलाकर होगा. इसी तरह एक पुण्य आत्मा को ‘मैं’ मानने से व शेष आधा अन्य सभी अच्छे कर्मों को मिलाकर होगा. उस दिन मीटिंग अच्छी रही. उसका कविता पाठ सबसे पहले हुआ, कुछ लोगों ने तारीफ भी की. एक सखी का pearl set पहन कर अच्छा लगा, ड्रेस कोड के हिसाब से उसे वह पहनना था.  वक्त पड़ने पर उसने सहायता की, इसी का नाम तो मित्रता है. आज धूप तेज है, सूरज की तरफ पीठ करके बैठने पर भी चेहरे पर तपन महसूस हो रही है. सो अंदर जाना ही ठीक है. बगीचे में फूल ही फूल दिखाई दे रहे हैं, क्रिसेंथमम व गुलाब के फूल तथा जीनिय के, जो बड़े शोख रंगों में हैं.

आज बाबाजी का प्रवचन सुनकर मन भावविभोर हो उठा. कितनी गूढ़ बातें वह कितनी सहजता से कह जाते हैं. ईश्वर के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं. न जाने कितने उदाहरण, कितने उपाय बताते हैं. हर कोई अपने स्वभाव व रूचि के अनुसार तरीका पसंद करे और चल दे उस सच्चे मार्ग पर, जिससे अपना भी कल्याण है और लोक कल्याण भी . वह कहते हैं किसी भी बाहरी आकृति या रूप की नकल कोई न करे. अच्छा बनने का प्रयास भी नहीं बल्कि वह जो है, उसे सहज होकर जाने. यह जानना ही उसे सच्चा ज्ञान देगा. किसी को कुछ बनने की, किसी के जैसे होने की लालसा को प्रश्रय नहीं देना है, बल्कि अपने भीतर छुपी उस अनंत शक्ति का बोध पाना है, अपने अंतर के ईश्वर को भजना है. मन्दिरों और तीर्थों के भगवान किसी का कुछ भी भला नहीं करेंगे यदि मन में उसके दर्शन नहीं किये. कबीरदास ने ठीक ही कहा है – माला तो कर में फिरै, जीभ फिरै मुख मांहि, मनवा तो चहूँ दिसी फिरै....इस चहूँ दिसी फिरने वाले मानस को राह दिखानी है. राह जो उस परम सत्य तक ले जाती है. मनसा, वाचा, कर्मणा उसे ही समर्पित होना है. मन व्यर्थ का चिन्तन न करे, वाणी का दुरूपयोग न हो, कर्म ईश्वर को अर्पण हों तो जीवन स्वयंमेव तीर्थ बन जायेगा !

TV viewing is harmful for children, in fact it should be excess TV viewing is harmful for children. Nanha has to speak on this topic tomorrow. So she thought to brush up her mind also to get some points.Violence is increasing in  today’s youngsters even toddlers these days. Mothers are complaining the aggressiveness and restlessness among kids who are exposed to all kinds of programmes on TV.Children are more demanding these days, they get attracted to all the beautiful things, dresses and other products on TV and they want same things, they do not understand the difference between reality and virtual.They are exposed to harmful radiations, in cities houses are small so they watch TV from a short distance which affects their eyes also.They are distracted, while preparing for test and exams, if their favourite programme is being telecast ed they rush to watch it. They waste their valuable time, which can make or mar their future.They disobey their parents, who want to limit their TV hours. Children do not play outdoor games, they are less social than their parents when they were young. They live in fantasy which keeps them away from real life realities. They are exposed to all kind of adult program which can leave harmful impression on their young mind.  They mostly watch film based programmes or cartoon shows, both give only light entertainment but no education. She thought if Nanha asks her help she can give now.



Friday, August 29, 2014

गेंदे की क्यारी


कल शाम वह नैनी पर झुंझलाई और आज सुबह स्वीपर पर, दोनों अपने काम को टालने का प्रयत्न कर रहे थे. कभी-कभी ऊपर से क्रोध करना जरूरी हो जाता है, पर क्या वास्तव में सिर्फ ऊपर से ही क्रोध कर रही थी? इसका एक प्रमाण तो यह है कि अगले ही पल मन शांत था जबकि पहले देर तक असर रहता था. पूसी ने अपने बच्चों को बाहर खुले में ही रख छोड़ा है, जून का विचार है कि उन्हें प्राकृतिक रूप से पलने-बढ़ने दिया जाये, उसका भी यही विचार है, उस दिन उनके लिए दफ्ती के डिब्बे का घर बनाते-बनाते स्वयं को रोक लिया. आज भी धूप निकली है पर हवा बह रही है वह बाहर लॉन में ही बैठी है. दूर से किसी वाहन की आवाज आ रही है. कभी संगीत की और पंछियों की आवाजें भी ध्यान से सुनने पर आती हैं. कल शाम की पार्टी में पता चला कि ग्रेटर नोएडा में अपना घर बनाने के लिए जो सोसायटी बनाई गयी है उसमें ज्यादातर लोग रहने के लिए नहीं बल्कि इन्वेस्टमेंट के लिए पैसा लगा रहे हैं. जून भी कल की मीटिंग से ज्यादा खुश नहीं थे. पहली किश्त भरने के लिए उन्होंने पहले मकान के किराये के जमा हुए पैसे मंगाए हैं. सबकी बातें सुनकर तो उसे लगा कि एक बार और उन्हें भी सोच लेना चाहिए. रोज के कामों के आलावा आज उसे नन्हे का स्वेटर बनाना है, सुभाष चन्द्र बोस व शंकरदेव पर किताबें भी पढनी हैं. पत्रिकाएँ और अख़बार तो हैं ही. कविताओं वाली डायरी खोलनी है. बगीचे में भी कुछ समय देना है. कुल मिलाकर आज का दिन व्यस्त रहने वाला है.  

आज उसने जो सुना, उसका सार था, “साधना करने के लिए सम्पूर्ण समर्पण चाहिए, श्रद्धा, भावना और विश्वास चाहिये, पुलक चाहिए, मन को पूरी तरह अहंकार से मुक्त करना होगा. भीतर डूबना आना चाहिए. ध्यानस्थ होना पड़ता है. अपने चित्त की सौम्यता को नष्ट नहीं होने देना चाहिए. मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा के भाव रखते हुए अपने चित्त को प्रसन्न रखना होगा. समय की धारा के साथ पुराने कर्मों का लेन-देन चलता रहता है. नये कर्मों का बंधन न बने यही प्रयास करना चाहिए.

कल वह गाने की प्रैक्टिस में नहीं जा सकी, आज साढ़े पांच बजे जाना है. परसों मीटिंग है. वह बाहर है गेंदे की क्यारी के पास, अभी एकाध फूल ही खिले हैं इसमें. आज सुबह माँ से फोन पर बात की. कल चचेरी बहन की शादी अच्छी तरह सम्पन्न हो गयी. उसके मामा के परिवार ने काफी कुछ दिया. इधर उनकी तरफ से सभी का सहयोग रहा. यहाँ बाहर बैठकर चेहरे पर जो शीतल हवा छूकर जाती है, भली लगती है, उसका अहसास अंदर घर में नहीं हो सकता, पर तरह-तरह की आवाजें आती रहती हैं सो गम्भीर कार्य नहीं हो पाते. आज सुबह वह जल्दी उठी थी सो सभी कार्य समय से सम्पन्न हो चुके हैं. आजकल जून के प्रति उसका व्यवहार थोड़ा कम स्नेहपूर्ण रहता है. छोटी-छोटी बातों से चिढ़कर वह जवाब दे देती है. सहनशीलता खोती जा रही है या फिर अपनापन बढ़ता जा  रहा है. अब संगीत का समय है सो अंदर जाना चाहिए.

जीवन में ज्ञान और ध्यान हो तभी मुक्ति सम्भव है ! कल सुबह उसके दायें हाथ की अंगूठे के पास वाली अंगुली में जोड़ पर एक कांटा लग गया, बात छोटी सी है पर उसके मन ने उस हल्के दर्द को भी बड़ा मानकर देखा. नन्हे के हाथ का दर्द इससे कहीं ज्यादा रहा होगा लेकिन उसने संयम से सहा. इस वक्त सुबह के साढ़े सात बजे हैं वह टीवी पर  बाबाजी के आने की प्रतीक्षा में है.

“अपने मन. बुद्धि, विचार को देखने वाला इनसे अलग है, यदि इनसे जुडकर रहेंगे तो सही निर्णय नहीं कर पाएंगे. देह, मन बुद्धि के साथ जुड़कर कोई ‘स्वयं’ को खो देता है. इसका कारण तमो व रजो गुण है. यदि सात्विक गुण की प्रधानता हो तो धीरे-धीरे इन से मुक्त होना आयेगा. तमो गुण की प्रधानता का अर्थ है आलस्य व स्वार्थ और रजो गुण की प्रधानता का अर्थ है अपने मान-सम्मान की वृद्धि का सदा प्रयास करते रहना. देह की आवश्यकता सांसारिक वस्तुएं हैं, पर ‘स्वयं’ की आवश्यकता परमात्मा का स्वभाव है. ‘स्वयं’ को खोजना ही वास्तविक विज्ञान है. अंत में उन्होंने कहा एहिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दिन भर प्रयास चलता रहता है पर स्वयं की आवश्यकता को नजर अंदाज कर दिया जाता है.

  



Wednesday, August 27, 2014

कालिया नाग पर नृत्य


आज चाचा नेहरू का जन्मदिवस है “बाल दिवस ! बाबाजी कह रहे हैं, “शरीर स्वस्थ रहे, मन में शांति रहे, हृदय में आनंद रहे, क्योंकि स्वास्थ्य, शांति और आनंद स्वाभाविक हैं, इनके विपरीत अस्वाभाविक हैं. इनको पाने की इच्छा शेष सभी तुच्छ इच्छाओं को निगल जाती है और अंततः वह इच्छा भी स्वयं ही शांत हो जाती है, हृदय शुद्ध हो जाता है और अपने सहज रूप को पा लेता है. आदि भौतिक कर्म से आदि दैविक फल मिले ऐसा प्रयास करना चाहिए क्योंकि वह कर्म स्वार्थ पर नहीं टिका होगा”. आज उसने क्लब की पत्रिका के लिए हिदी की रचनाओं हेतु दो-तीन महिलाओं को फोन किये, उसे भी दो रचनाएँ तैयार रखनी हैं.

आज दोपहर वह असमिया सखी के यहाँ जा रही है, उसे बुनाई में उसकी आवश्यकता है. कल शाम को क्लब की मीटिंग में होने वाले कार्यक्रम के लिए गीत का चुनाव हुआ, ‘तीसरी कसम’ के एक गीत को चुना है, सिखाने वाली हैं एक बंगाली महिला, कल वह पहली बार उनसे मिली, अच्छा स्वभाव है उनका. कल जून ने seven spiritual laws for success भी प्रिंट कर दिए. परसों शाम उन्होंने ही टाइप किये थे. आज सुबह उसने दो बातों के लिए उन्हें टोका, पर गलत बात के लिए टोका न जाये तो.... क्या किया जाये ? परसों नन्हे के स्कूल में वार्षिक उत्सव मनाया जा रहा है.

“अंतः करण की यमुना में सहस्र फन वाला कालिया नाग रहता है, आत्मा रूपी कृष्ण यदि जप और पूजन का नृत्य उसके फनों पर करता रहे तो सदियों की पुरानी आदत शीघ्र नहीं जाएगी, फन टूटेंगे फिर बनेंगे पर अंततः विजय आत्मा की ही होगी”. हमारे मानस में इच्छाओं, कामनाओं, और वासनाओं के अनगिनत सर्प फन उठाये बैठे हैं जिन्हें अपने वश में करना है. आज बाबाजी ने कृष्ण की कथा का सुंदर अर्थ बताया. चित्त जैसा देखता है वैसा होता है, सन्त को देखते ही ईश्वर का स्मरण होना स्वाभाविक है. आज नन्हे को नहाने के लिए जबरदस्ती बाथरूम में भेजा तो वह पूरे चालीस मिनट बाद निकला. इस सारे वक्त वह नहा तो नहीं रहा होगा बल्कि मुँह फुलाकर बैठा रहा होगा.

“रक्तबीज की तरह मन में विकारों के बीज गिरते हैं तो नये विकार उत्पन्न होते हैं, चंडी माँ की तरह रक्तबीज को खप्पर में एकत्र करते हैं तो विकार बढ़ते नहीं. मानस की उपजाऊ धरती न मिले तो बीज नष्ट हो जाते हैं”. बुद्धि के स्तर पर गोयनका जी की कही यह बात उसे समझ में आने लगी है पर व्यवहार के समय इसे अपना नहीं पाती. होशा जगा रहे तो ही यह सम्भव है. अनुभूति वाला ज्ञान जगने लगे तभी यह सम्भव है. आज सुबह दीदी का फोन आया, उन्हें भी गोयनका जी के प्रवचन के बारे में बताया.

दोपहर के एक बजे हैं, आज मसूर की छिलके वाली दाल बनाई थी जो बहुत गरिष्ठ होती है सो आज एक अलसता सी मन पर छाई है. धूप निकल आई है, पिछले दिनों वर्षा के कारण मौसम बेहद ठंडा रहा. कल फोन से सभी के समाचार मिले, वे एक-एक कर सभी को कार्ड भेज रहे हैं जो नन्हे ने बनाये हैं. कल उसे स्कूल से पुरस्कार में पांच किताबें  मिलीं, सभी उपयोगी हैं. आज शाम को उसे एक सखी के जन्मदिन की पार्टी में जाना है. उससे पूर्व जून को क्लब में होने वाली मीटिंग में जाना है जो ग्रेटर नोएडा में बनने वाले फ्लैट्स  के सिलसिले में है. उन्होंने भी एक फ़्लैट बुक किया है. वर्षों बाद जब वे रिटायर होकर यहाँ से जायेंगे तो उनके रहने के लिए एक घर सुरक्षित स्थान पर होगा जहाँ अपने जीवन के शेष दिन शांति से गुजार सकेंगे. नन्हा तब पढ़ाई पूर्ण कर नौकरी कर रहा होगा, उसका परिवार भी होगा. अगले दो दशकों में उनका जीवन कुछ और ही होगा. समय की धारा यूँ ही बहती चली जाएगी. पूसी के दो छोटे-छोटे बच्चों को आज देखा, बाहर भीगी जमीन पर गर्म पानी के बर्नर के पास एक के ऊपर एक सिमटे पड़े थे.  


  

Tuesday, August 26, 2014

नानक नाम जहाज है


पिछले दो दिन फिर डायरी नहीं खोल पायी, आज भी यह बेमौसम बरसात की तरह सुबह के दस बजे ( जो समय संगीत के लिए सुरक्षित है) इसलिए खोली है कि स्वीपर आज बहुत देर से आया है. नैनी डिब्रूगढ़ गयी है, सुबह किचन का सारा कार्य स्वयं किया. वह नई पीली साड़ी पहन कर जब जा रही थी, अच्छी लग रही थी, खुश भी थी सो उसने भी ख़ुशी-ख़ुशी सभी काम किये. आज माली से आंवले भी तुड़वाये हैं, इस मौसम में पहली बार. सुबह गोयनका जी का प्रवचन सुना. ‘श्रद्धा पहली सीढ़ी है आत्मज्ञान के मार्ग की. पूर्णत सचेत मन ही धर्म को धारण कर सकता है. धर्म वह जो सार्वजनीन हो, प्रतिपल सजग रहने का संकल्प जगाता हो’. उसे लगा, जीवन पर्यन्त जो बेहोशी की अवस्था में जीये चले जाते हैं, न तो गहराई से स्वयं को जानने का प्रयास करते है न ही किसी अन्य को सुनना या समझना चाहते हैं, उथला-उथला सा ही जीवन जीते हैं, जिसमें संवेदना नहीं होती. क्यों न हर पल एक अनुभूति का पल बन जाये, जो क्षण जिस कार्य के लिए हो अपना आप उसे अर्पित कर दें. तब वह काम भी सफल होगा और उनकी ऊर्जा जो इधर-उधर व्यर्थ होती है, केन्द्रित हो पायेगी.

आज कितने सुंदर शब्द उसके कान में पड़े, ‘चलो सखि यह मन संत बनाएं’ ! और उसके भीतर विचारधारा बहने लगी. यदि यह मन, जो सारे क्रिया-कलापों का केंद्र बिंदु है सन्त बन जाये तो वे अपने स्वरूप को प्राप्त कर सकते हैं. ऐसा मन जो आलोचना नहीं करता, अपेक्षा नहीं रखता, पूर्वाग्रहों से मुक्त है. मन जो गतिमान है रमता जोगी है, जो जल की अविरल धारा की तरह बहता जाता है तट को भिगोता हुआ पर तट से बंधता नहीं. जो प्राणीमात्र के प्रति प्रेम से ओत-प्रोत है, जो विशाल है, संकुचित और संकीर्ण नहीं, जो मान नहीं चाहता. ऐसा मन ही समता में रह सकता है. सुख और शांति का आधार तो समता ही है न !

बाबाजी ने कितना सुंदर संदेश आज दिया, “धीरे-धीरे परम पथ पर बढ़ते जाना है. नेत्रों की ज्योति कम हो उसके पूर्व ही देखने की वासना न रहे, सुनने की क्षमता नष्ट हो जाये इससे पूर्व ही सुनने की इच्छा पर नियन्त्रण करना आ जाये. श्वासें साथ छोड़ने लगें इससे पूर्व ही जीवन का मोह न रहे. स्मृति और कल्पना के आधार पर होने वाले भय, शोक और मोह से मुक्त हुआ मन आत्मा में रहना सीख जाय. जिसे तृष्णा जलाती है वह कंगाल है, जिसे कुछ पाना शेष नहीं रह जाता वह अमीर है”.

आज गुरुनानक जयंती है, सुबह-सुबह पिता को जन्मदिन की बधाई दी. दादी कहती थीं टुबड़ी के दिन उनका जन्म हुआ था, अंग्रेजी तिथि उन्हें याद नहीं थी. वे हिमाचल में थे, छोटी बहन की बेटियों की देखभाल कर रहे थे, उसे पांच दिनों के लिए फील्ड ड्यटी पर जाना था. पता चला अगले कुछ दिनों में छोटे व मंझले दोनों भाइयों का तबादला घर के आस-पास ही हो जायेगा. उसने वर्षों पहले बचपन में नानक के जीवन पर एक पंजाबी फिल्म देखी थी, जिसके कुछ दृश्य आज भी उसे याद हैं. कल नन्हा दिन भर नये साल के शुभकामना कार्ड्स बनाने में व्यस्त रहा जिन्हें आज जून लिफाफों में डाल रहे हैं, उसे सिर्फ दो-चार खत लिखने हैं. नन्हे का स्कूल खुला है पर जून का दफ्तर आज बंद है. इस महीने क्लब की मीटिंग है वह अपनी नई कवितायें पढ़ेगी.






Monday, August 25, 2014

इंदिरा प्रिय दर्शिनी



“To have the inward beauty, there must be complete abandonment; the sense of not being held, of no restrain, no defense, no resistance; but abandonment becomes choice if there is no austerity with it. To be austere is to be satisfied with little and not to think in terms of the more. It is the simplicity born of  abandonment with austerity that brings about the state of creative beauty. But if there is no love you can not be simple, you can not be austere”. These words were told by Krishnamurti to his listeners. She too is his listener. He says such nice things which touch the heart. Yesterday they saw a movie “ dil pat mat le yar” hero Ramsharan was a simple and loving person but time changes him into a murderer. Today morning  is pink warm and pleasant.  दो दिन बाद नवम्बर शुरू हो रहा है, यानि सर्दियों का पहला महीना, उन्हें गरम कपड़े निकालने हैं, सूती रखने हैं. आज यूँ लग रहा है जैसे कई दिनों बाद इस निस्तब्धता का अनुभव किया है, चारों ओर कैसी शांति है. नन्हे की आज हिंदी की परीक्षा है, जून का फील्ड जॉब चल रहा है. आजकल वह ज्यादा व्यस्त रहने लगे हैं, जो उसे अच्छा लगता है. इन्सान का जीवन कर्मयुक्त हो तभी शोभित होता है. बगीचे में नन्हे-नन्हे पौधे निकल रहे हैं जो भले लगते हैं.

आज श्रीमती इंदिरा गाँधी की पुण्य तिथि है, जब उनका स्वर्गवास हुआ था, तब वह मुज्जफरपुर में थी, कितने बुरे हालात हो गये थे उसके बाद उस मोहल्ले में. धूप आज भी मोहक लग रही है. उसके बाल अभी भीगे हैं, बगीचे में धूप सेंकते हुए चाय की चुस्कियां लेना और फूलों को निहारना, सभी कल्पनाओं को साकार करने का मौसम आ गया है. कल सुबह दो सखियों से फोन पर बतकही की. दोपहर को संगीत की अंतिम कक्षा में गयी. शाम को एक मित्र परिवार आया, उसने उन्हें कैलेंडुला और जीनिया की पौध दी. आज जून डिब्रूगढ़ गये हैं, उनकी यात्रा से वापसी की टिकट करने. देर से आएंगे. लंच उसे अकेले ही करना होगा, चाहे और रह सके तो उनका इंतजार भी कर सकती है. जून ने उसे कुछ और पैसे लाकर दिए पर पैसों की भाषा उसकी समझ में नहीं आती, कोई आकर्षण महसूस नहीं होता. उसकी सारी आवश्यकताएं अपने आप ही पूरी हो जाती हैं शायद इसीलिए, और देख रही है नन्हे को भी पैसों का कोई लोभ नहीं है जो बहुत अच्छा ही है. जून उनका हर तरह से ख्याल रखते हैं. आज बाबाजी ने बताया कि हर वस्तु, व्यक्ति, स्थान में परम की सत्ता का अनुभव करना होगा. उसी का तेज चहूँ ओर फैला है, उसके ब्रह्मांड के हम निवासी हैं. उसका बोध उन्हें हर पल अपने तन में होने वाली धड़कनों से, बहते हुए रक्त प्रवाह से. आँखों की ज्योति से और आंतरिक शांति से होता है. वह उनके कितने निकट है !

Today Nanha is at home due to some ‘bandh call’, Jun had to go to office by walking. She is not at ease with her this moment due to Nanha’s habit of doing things slowly. He got up at seven and till now he took bath and ate breakfast only. She has done her morning jobs and after writing will riyaz. She told him to use his time properly but of no use. Now she is able to see each and every reaction of her mind to different situations. At this moment it is tense and lo ! as soon as she wrote it is tense, it relaxed, so the best way to cope with any adversity is to accept it and then all becomes easy.





Friday, August 22, 2014

गोभी की पौध


आज फिर बादल छाये हैं आकाश पर, पिछले कुछ दिन धूप भरे थे, उनका बगीचा खिल रहा था. आज सुबह उसने एक पपीता तोडा, और सोच रही है उन परिचिता को दे आये या भिजवा दे कल जिनसे फोन पर बात हुई थी, उसे लगा शायद उन्हें बुरा लगा हो. नन्हा आजकल सुबह फिर देर से उठने लगा है, फिर जल्दी-जल्दी चुपचाप सारे काम करता है, एक किशोर के लिए ये लक्षण क्या ठीक हैं. आज बड़ी भाभी के जन्मदिन पर उन्हें शुभकामना दी तो वह प्रसन्न हुईं, कहने लगीं, सबसे पहली बधाई उनकी ही है. रात एक स्वप्न में उसने बंगाली सखी को देखा, जून से कहेगी, इ-मेल से उन्हें  दीवाली की शुभकामनायें भेज दें. आज जे.कृष्णामूर्ति को सुना, वह कहते हैं, जो प्रतिकूलता को नहीं स्वीकारता वहीं संघर्ष पैदा होता है, सब कुछ अनुकूल होता रहे ऐसा तो सम्भव ही नहीं है, जीवन जिस रूप में सम्मुख आए उसे ही सच्चे दिल से स्वीकारना ईश्वर भक्ति है.
“बाहर के दीये तो बहुत जला लिए अब तो आत्मदीप जलाना है. मिठाई भी बहुत खा ली, अब तो अंतर की मधुरता चाहिए, बाहर की सफाई भी बहुत हो गयी अब तो अंतर्मन को स्वच्छ करना है. एहिक दीवाली तो बहुत मना ली अब प्रज्ञा दीवाली मनानी है”. आज बाबाजी ने दीवाली का तात्विक अर्थ बताया. नैनी का स्वास्थ्य आजकल ठीक नहीं है फिर भी वह काम पर आती है, विवशता कहें या कर्त्तव्य परायणता, अपने काम को वह महत्व देती है वरना घर में भी बैठ सकती थी. उससे भी नूना को कुछ सीखने को मिलता है. आज जून सम्भवतः गोभी की पौध लायेंगे. पालक, मेथी, गाजर, मटर, धनिया और प्याज के बीज पड़ चुके हैं पर गोभी की क्यारी खाली पड़ी है. आज सुबह एक और पपीता तोड़ा, उसने पड़ोसिन को दिया और कल के लिए उसे निमंत्रित भी किया. कल क्लब में दीवाली पर विशेष उत्सव है पर वे घर पर व्यस्त रहेंगे. सात परिवारों को उसने विशेष भोज के लिए आमंत्रित किया है. कल उसकी संगीत अध्यापिका ने आखिर कह ही दिया, अब वह नहीं सिखा पाएंगी, यह उसका अंतिम महीना होगा, इसके बाद नई शिक्षिका खोजनी होगी या घर पर ही अभ्यास जारी रखना होगा. संगीत तो एक वरदान है जिसकी जितनी संभाल की जाये उतनी कम है.

पिछले तीन दिन डायरी नहीं खोल सकी, उस दिन रात के आयोजन की तैयारी करनी थी, अगले दिन पार्टी के बाद की सार-संभाल तथा कल आराम करने के कारण. वे तीन जगह आमंत्रित थे, ज्यादा गरिष्ठ भोजन करने के बाद कल दिन भर उपवास करना पड़ा. कल शाम भी यहाँ दीवाली का ही माहौल था. सभी ओर दिए और रोशनियों की झालरें लगी थीं. पटाखों का शोर बढ़ता ही जा रहा था. आज दोपहर को जून के साथ बैंक जाना है, उसके अकाउंट को उन्हें जॉइंट अकाउंट बनाना है. कल जून ने उसे पैसे लाकर दिए, उसे कुछ भी रोमांचक नहीं लगा, बल्कि कुछ भी नहीं लगा, नये नोट देखकर भी कोई ललक नहीं उठी, लगता है मुक्ति की राह पर कदम तेजी से बढ़ रहे हैं. आज असमिया सखी ने ‘नीति वचन’ सुनने का फिर आग्रह किया, उसका मन भी अध्यात्म की ओर आकर्षित हो रहा है. जीवन अद्भुत है, यह नित नवीन रूपों में प्रकट होता है. कभी सुख और आनन्द की वर्षा कर उसे निहाल कर जाता है तो अगले ही पल अचानक विपत्ति बन प्रश्नचिह्न लगा जाता है. कभी सहज लगता है कभी अनबुझ पहेली की तरह प्रतीत होता है. साहित्य भी इन रसों व रंगों से अछूता नहीं रहता. वह सजग बनाता है, कठिन परिस्थितियों से पार पाने की प्रेरणा देता है.




Wednesday, August 20, 2014

स्टोर में चूहा


कल वे सारे कार्य कर सके जो विचारे थे. धूप तेज थी और मन में उत्साह था. कल शाम को एल मित्र परिवार अपनी यात्रा से वापस आ गया. परसों एक सखी ने  गुड़हल पर चार पंक्तियाँ लिखने की बात कही थी, पर वह भूल ही गयी, शाम को उसने फोन करके याद दिलाया. आज करवाचौथ का व्रत है, पर उसने सिर्फ एक बार विवाह के बाद मायके में यह व्रत रखा था, तब जून भी वहाँ नहीं थे. एक बार मंगनी के बाद भी. न ही जून को, न उसे व्रत आदि में विश्वास है. उसे विश्वास है अच्छाई में, नैतिकता में, सत्य और अहिंसा में, प्रतिपल निर्लोभी होकर जीने में, सम्यक जीवन दृष्टि में और स्वच्छता में, सो आज से हर दिन एक घंटा विशेष सफाई के लिए, दीवाली आने तक उनका घर दीयों के लिए तैयार हो जायेगा. आज गोयनका जी ने शिवजी , श्री राम, भगवान कृष्ण और गणेश देवता की भक्ति का वास्तविक अर्थ बताया. शिवजी प्रतिक्षण काल से घिरे रहने के बाद भी शीतलता धारण किये हैं, कामनाओं को भस्म कर चुके हैं. गणेश जी की मेधा इतनी ज्यादा है कि उन्हें हाथी का सिर चाहिए. राम त्याग की मूर्ति हैं, भाई के प्रति स्नेह का आदर्श रखते हैं. कृष्ण को वे भक्त प्रिय हैं जो अपेक्षा रहित हैं, राग-द्वेष से मुक्त हैं, निर्मल चित्त वाले हैं न कि वे जो उनके रूप का बखान तो करते हैं पर उनकी बातों को नहीं  मानते. उसे और सहनशील होना होगा और कर्मठ भी. स्वास्थ्य ( पूरे परिवार का ) के प्रति भी और सजग रहना होगा और सबसे बड़ी बात अपनी वाणी पर संयम रखना होगा. वाणी को जीतना पहली सीढी है.

पर्व प्रेरणा देते हैं. शुभ संकल्प जगाते हैं, उत्साह भरते हैं. जीवन जो एकरस प्रतीत होता है उसमें नवरस भरते हैं. अगले हफ्ते दीपावली का त्योहार आ रहा है वे सभी उत्सुक हैं. जीवन है ही क्या? कुछ पल ख़ुशी के कुछ पल उदासी के ! जीवन बहती धारा है, जो गुजर जाता है, लौटकर नहीं आता. सुख-सुविधा भी नहीं रहेगी और तप भी नहीं रहेगा, पर तप का लाभ बाद में मिलेगा. लोभवश किये कार्य और उनका त्याग दोनों ही नहीं रहेंगे पर त्याग अनासक्ति सिखाता है, मन निर्भार हो जाता है. मधुर शब्द और कटु शब्द दोनों ही नहीं रहने वाले हैं पर प्रेम, प्रेम को जन्म देता है, उसके सौदे में घाटे का कोई काम नहीं, लाभ ही लाभ है. आज बाबाजी ने उपरोक्त ज्ञान दिया. सुबह के कार्य हो चुके हैं, अभी ध्यान करेगी फिर कर्म. कई दिनों से कविताओं वाली डायरी नहीं खोली है मन में भाव तो उपजते हैं पर टिकते नहीं क्यों कि प्रयास ही नहीं किया. नन्हे ने डिबेट में भाग लिया था पर सलेक्ट नहीं हो पाया, उसने कहा लडकियाँ बहुत अच्छा बोलीं, वे लड़के समझ गये, उनका चुनाव नहीं होगा. जून कल दीवाली के लिए काफी कुछ लाए और अगले हफ्ते डिब्रूगढ़ जाकर फिर लायेंगे. वह चीजें खत्म होने ही नहीं देते पहले से ही और लाकर रख देते हैं. उसे इस बारे में कुछ सोचना नहीं पड़ता. वाकई वह बहुत भाग्यशालिनी है.

सामान्यत इस वक्त वह संगीत अभ्यास कर रही होती है, पर आज अभी तक न ही ‘ध्यान’ किया है न व्यायाम. सुबह फ्रिज की सफाई में कुछ वक्त चला गया, कुछ वक्त स्टोर से चूहा भगाने में. एक छोटा सा चूहा जाने कहाँ से घुस आया है जो छिप जाता है. फिर उन परिचित का फोन आया जो ससुराल के उनके घर गयीं थी. उनकी आवाज वह पहचान नहीं पाती, उन्हें परिचय देना पड़ता है. नैनी ने कुछ दिन उनके यहाँ काम किया पर उनके अनुसार ठीक से नहीं किया. पैसों के हिसाब को लेकर भी कुछ गलतफहमी थी, उसे वह समझाने लगीं. नैनी ने सुबह उससे हिसाब करवाया था, जो उसे ठीक से पता नहीं था, खैर वह न जाने क्या समझें और सोचें.. उसके मन में उनके लिए सहानुभति और पहले सा स्नेह ही है. वे उनके यहाँ जायेंगे दीवाली के दौरान. कल ‘वृदावन सारंग’ के दो गीत लिखाये टीचर ने. अब दोपहर को ही अभ्यास करेगी. आजकल न उसकी वाणी ही सौम्य, मधुर और अर्थपूर्ण रह गयी है न ही खान-पान में कोई परहेज, जैसा जब चाहा कह दिया, खा लिया और हृदयहीनता की तो हद ही नहीं है. जून को KBC का एडिक्शन हो गया है यह तक कह दिया. जून उसका इतना ख्याल रखते हैं और उसे उनकी छोटी सी ख़ुशी भी सहन नहीं होती. सिर्फ किताबें पढ़ लेने से या प्रवचन सुन लेने ही कोई ज्ञानी नहीं बन जाता. यह भी मन बहलाव ही है जब तक आचरण पूर्ववत् है तब तक कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह क्या पढ़ती है या सोचती है, सोच, व्यवहार में तो झलकनी चाहिए न.







खिली धूप में सफाई


आज सुबह उसने चित्त की विभिन्न अवस्थाओं के बारे में सुना, पहली है उदार अवस्था, इसमें चित्त जो भी देखता है, सुनता है, ग्रहण करता जाता है, चाहे वह लाभप्रद हो अथवा हानिप्रद. दूसरी विछिन्न अवस्था जिसमें मन राग-द्वेष से युक्त रहता है, कभी हताश तो कभी प्रसन्न. ज्यादातर चित्त की यही अवस्था होती है.  इस वक्त उसका चित्त थोड़ा ‘पशेमन’ है, (उर्दू के इस शब्द का सही अर्थ कुछ और भी हो सकता है) नैनी को कुछ ज्यादा ही कपड़े धोने को दे दिए हैं, जबकि मशीन घर में है, धोबी भी आता है, इसे आलस्य ही कहा जायेगा न, वह चुपचाप धो रही है, कर भी क्या सकती है. कल शाम जून ने भाईदूज के कार्ड बनाकर दिए, आज उसे खत लिखने हैं. दोपहर को संगीत अध्यापिका व उनके गोद लिए शिशु से मिलने भी जाना है, उसके मन में उस बच्चे के प्रति जो स्नेह उमड़ रहा है वह इसलिए है कि वह पहले अनाथ था या इसलिए कि वह बहुत प्यारा है. उसे देखे बिना ही तो उसके मन ने उसे अपना मान लिया था. उसकी टीचर भी तो बहुत अच्छी हैं, शांत व धैर्यवती, उसे संगीत के सुरों का ज्ञान उन्होंने ही तो कराया है, उसका मन सदा उनका ऋणी रहेगा. फूलों के जो बीज उस दिन माली ने बोये थे, सभी में अंकुर निकल आए हैं, टमाटर व गोभी की पौध नहीं बन पायी है, इन सर्दियों में उनका बगीचा फूलों से भर उठेगा. गुलदाउदी में लेकिन अभी तक कलियाँ नहीं आई हैं. कल शाम को ही उन्होंने उन्हें याद किया और बड़े भाई का फोन भी आ गया. चचेरे भाई की शादी किसी वजह से रुक गयी है, वह उदास होगा लेकिन समझदार तो है ही, संभल जायेगा.

मन रूपी मार्ग पर दिन भर विचारों के यात्री आते-जाते रहते हैं, उन्हें उन पर प्रतिबन्ध लगाना है, यात्री कम होंगे तो मार्ग स्वच्छ रहेगा और धीरे-धीरे उन यात्रियों का आना-जाना इतना कम हो जाये कि मन दर्पण की भांति चमकने लगे. इसमें सन्त उनके मार्गदर्शक हैं, उनके सद्वचनों के द्वारा ही उनमें ईश्वर के प्रति श्रद्धा भाव उत्पन्न होता है. जिससे माधुर्य, सहजता, कोमलता. सहानुभूति और करुणा अपने आप प्रगट होते हैं. वह कहते हैं, श्रद्धाहीन व्यक्ति रसहीन होता है, वह चतुर या ज्ञानी तो हो सकता है पर उसे सहज सुख नहीं मिलता ऐसा आनंद जो मात्र ईश्वर के नाम स्मरण से ही सम्भव है. आज सुबह दीदी को उनके विवाह की रजत जयंती पर बधाई दी. कल शाम को एक पत्र भी लिखा था पर बाद में वह भावुकतापूर्ण व बचकाना लगा, सो नहीं भेजा. आज नन्हे का स्कूल “लक्ष्मी पूजा” के लिए बंद है, वह पढ़ाई कर रहा है. जून का दफ्तर कल बंद है. कल शाम उसने व जून ने पर्दों के पीछे अस्तर लगाने का काम कर दिया.  

Jun is at home today. They ate Alu Paratha in breakfast with tea and now he is reading some magazine. It is raining since morning, Nanha has his last maths test today. Today ‘kartik’ has begun the month of diwali. Last evening they saw many Deepaks and candles lit in front of some houses due to Laxmi Puja. Here in Assam, Bengal and Orrisa also deepavali is the day for Kali puja and they worship Ma Laxmi on purnima. She could not listen ‘jagaran’ today, bur read ‘bhagvad gita’. They should do work for the sake of work, as their duty without any attachment to its result. Last evening she read some more experiments which bapu performed in his Ashram. He seems to be a simple as well as a very complex personality.

At this moment her mind is full of things about Deepawali celebration, whole house has to be properly cleaned and arranged. Somethings are to be purchased. She has to sew cushion covers. Diwali is festival of joy and prosperity and they are eagerly waiting for it. इस इतवार को यानि कल भी यदि मौसम आज सा रहा, जब धूप खिली हो और आकाश नीला हो तो वे सारे गद्दे, तकिये आदि धूप में रख सकते हैं, पुराना सामान घर से निकल कर उसे spacious बना सकते हैं. घर के दरवाजे खिड़कियाँ, रोशनदार सभी कुछ सलीके से पूरी तरह साफ करने हैं, शीशे चमकाने हैं. पीतल के सामान पर पॉलिश करनी है. कम से कम तीन दिन लगेंगे उन्हें, और उन्हें दीवाली आने में अभी दस-बारह दिन शेष हैं पर बगीचे में भी काफी काम शेष है.




Monday, August 18, 2014

सत्य के प्रयोग - बापू की आत्मकथा


Abraham Lincoln says, Most people are about as happy as they make up their minds to be. She is agreed with him… Yes, she has made her mind to be happy always ! yesterday she was busy in sewing fall to new saree and mending new dress so could not open diary. In the evening they went to meet and have dinner with one friend’s guest, they(four) all are happy, social persons. Daughter is fat and sun is studious(seems to be) lady is talkative and has jolly nature. Today she has invited them in their house for dinner. Nanha and she will decorate the house and prepare food. He takes interest in keeping the house clean and in cooking also. Jun(these days) is busy in his office work. Yesterday she got didi’s letter after so many days. It was good and informative, she will write her too and to brother also. Babaji told that God is always there so never consider alone or helpless in any condition. Her  mind is full of love for God, babaji and all. She is at peace with herself most of the time. God’s love is great and sometimes she feels very protective towards it. She enjoys each and every moment of her stay at mother earth and she…

उसे लगा कि वे दुनियावी बातों में इस कदर उलझे रहते हैं कि सर उठाकर देखने की फुर्सत भी नहीं निकाल पाते कि उलझाव से परे भी कोई दुनिया है. वे इस बात से बेखबर ही रहते हैं कि कहीं कोई उलझन है. इसी भटकाव को जिन्दगी मानकर चलते चले जाते हैं, जैसे पतंगों को दीपक की लौ में मर जाना ही अपने जीवन का परम उद्देश्य लगता है वैसे ही वे भी इन रोजमर्रा के साधारण से दिखने वाले कामों में अपनी ऊर्जा (शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक ) खपाते रहते हैं. इस ऊर्जा का कोई और भी उपयोग हो सकता है सोचने की जरूरत ही महसूस नहीं करते. ईश्वर से की गयी प्रार्थनाएं भी स्वार्थ से परिपूर्ण होती हैं. वे यही चाहते हैं कि इन झंझटों में वृद्धि हो कि वे इनमें और उलझे रहें, मदहोश रहें ताकि बड़े प्रश्नों से बचे रहें, ऐसे सवाल जो मन को झकझोरते हैं, आत्मा को कटघरे में खड़ा करते हैं, वे इस भूलभुलैया में मग्न रहना चाहते हैं.

दो अक्तूबर को पूज्य बापू के जन्मदिवस के अवसर पर उसने उनकी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ पढ़नी आरम्भ की थी जो अभी कुछ देर पूर्व ही समाप्त की है. उनके जीवन को जितना गहराई से देखें उतने ही अद्भुत प्रसंग व आख्यान मिलते हैं. सागर की तरह विशाल और गहरा है उनका जीवन, आत्मशुद्धि के लिए उनका प्रयास और उसके लिए किसी भी स्तर तक पहुंच जाने की उनकी आतुरता, नम्रता में वह सबसे आगे थे तो निर्भीकता में भी. उनकी कथनी व करनी में कोई भेद नहीं था, वह महानतम थे. उनकी इस पुस्तक से आत्मदर्शन की प्रेरणा मिलती है, उसके लिए मार्ग मिलता है, सत्य और अहिंसा के प्रति श्रद्धा जगती है. यदि प्रतिपल वह सत्य की खोज में चलती रहे तो ईश्वर दर्शन सम्भव है और अहिंसक हुए बिना वह सत्य को नहीं पा सकती. अहिंसा मनसा, वाचा, कर्मणा तीनों से होनी चाहिए. उसका सौभाग्य है कि गाँधी भारत में हुए थे. उनकी बातें, उनके आदेश व उनके प्रयोग आज भी प्रासंगिक हैं, वे शाश्वत हैं क्यों कि आत्मदर्शन की इच्छा शाश्वत है, ईश्वर की खोज शाश्वत है. जैसे बाहरी शुद्धि आवश्यक है, उसी तरह मानसिक व आंतरिक शुद्धि भी. जितनी देर कोई मन का प्रक्षालन करता है, शांति का अनुभव होता है, लेकिन जैसे ही कोई विकार प्रबल होता है तो मन अशांत हो जाता है. बाबाजी ने कहा, प्रतिक्रमण सीखना है, अविद्या के कारण उत्पन्न हुए दोषों को देखना है. इच्छाओं को संयमित करना ही धर्म है, उन्हें शुद्ध करना ही उपासना है और उन्हें निवृत करना ही योग है. योग ही लक्ष्य है.




Saturday, August 16, 2014

स्कूल में मेला


लहरें सागर में जन्मती, रहती और नष्ट होती हैं पर मानवों को इसका भान नहीं होता, ऐसे ही वे ईश्वर में ही जन्मते, रहते और नष्ट होते हैं. उन्हें अपने अस्तित्त्व का भान अपने जिंदा रहने का प्रमाण मृत्यु के समय मिलता है. जीवन भर वे मृतकों के समान जीते रहते हैं, एक बेहोशी की हालत में, तभी उन्हें अपने भीतर रहने वाले ईश्वर के दर्शन नहीं होते. वे हर पल बाहर की ओर भाग रहे हैं, अपने आप से दूर होते जा रहे हैं, और फिर एकाएक मौत का बुलावा आ जाता है  तब मुड़कर देखने का भी वक्त नहीं होता. उन्हें समय रहते जागना होगा. जीवन में सन्यास घटित हो जाये तो अनासक्त होकर, अलिप्त होकर जीना आ जाये. जो भीतर जायेगा वह भी-तर जायेगा. मौन रहते हुए, वाणी का सदुपयोग करते हुए परिवार जनों से, परिचितों से व्यवहार करना होगा. मन के दरवाजे खोलकर, झाड़-बुहार कर उस पाहुने की प्रतीक्षा करनी होगी जो आने के लिए स्वयं ही प्रतीक्षा कर रहा है. क्रन्तिकारी सन्त की बातें हृदय पर गहरा असर छोडती हैं, बाबाजी ने भी उसी बात को आगे बढ़ाया, और कहा कि ईश्वर ही सबसे बड़ा सुह्रद है, परम हितैषी है, सदा , सर्वदा सबके साथ है, उसे कोई देखना नहीं चाहता इसीलिए देख नहीं पाता. मन पर माया का पर्दा है, जब मन विकार रहित होगा, निर्मल होगा तभी उसके दर्शन होंगे. उसे प्रतिक्षण अपने पर नजर रखनी होगी, वाणी पर संयम रखना होगा. सांसारिक वस्तुओं का आकर्षण धीरे-धीरे खत्म हो रहा है ऐसा लग तो रहा है, हर पल मन खुश रहता तो है, विवेक को जगाये रखना होगा. अपने कर्त्तव्यों का भली-भांति पालन कर सके, अपनी आवश्यकताओं को कम से कम करते हुए सात्विक जीवन बिताये, न सुख-सुविधाओं का आग्रह रहे न ही प्रतिकूलताओं से भय लगे. हे ईश्वर अब यही प्रार्थना तुझसे है !  

अभी-अभी नन्हा अस्पताल से वापस आ गया है, उसे लगा था कि डाक्टर आज ही उसका प्लास्टर खोल देंगे पर उन्होंने दो दिन और रखने को कहा है. वह इसी कारण आज स्कूल भी नहीं गया. अज से नवरात्रि भी शुरू हो गयी है. अब साढ़े आठ होने को हैं, पिछले एक घंटे में उसने सन्त वाणी सुनी, नन्हे से साइंटिस्ट्स के बारे में पूछा, नैनी को पैसे दिए और इस वक्त मन में कहीं हल्की सी चुभन है, लेकिन जब उसका परम हितैषी उसके साथ है तो संशय कैसा, किसी भी परिस्थिति में कैसे भी रहे, वह सुहृद तो सदा-सर्वदा साथ रहता है. फिर यह तनाव क्यों ? आज क्रन्तिकारी सन्त का भाषण नहीं सुन पायी, क्या इसीलिए ? उनकी बातें झकझोर कर रख देती हैं और बाबा जी की बातें मरहम का काम करती हैं. कल मंझले भाई को पत्र लिखने का विचार मन में आया था पर विचार कार्यान्वित नहीं कर पाई. आज लिखेगी.

Yesterday they went to Digboi, tinsukiya then again Digboi. It was good to meet Sardarji’s family in digboi and the shopping spree in TSK. They purchased new curtains fur drawing room, new cushions and covers for bed room, new dresses for her and Nanha, dry fruits and other grocery items for their kitchen from a new shop, kaamdhenu. In Nanha’s school they enjoyed very much. They took idli and dosa with samber and chutney, drank coffee and watched children doing different types of jobs, selling things, playing games, selling tea and coffee with teachers helping them and vice verse.  Today jun is doing his office work, Nanha is watching TV and she is thinking what to do first- she has so many jobs to do-sewing the curtains, sewing the cushion covers, altering her new white dress, sewing fall to her new sari, arranging her wardrobe, arranging drawing room for puja, cutting the Olympics news and pasting them in file, writing new poem.

Today’s quotation is,  Ability is of little account without opportunity - Napoleon
 …and they all have golden opportunity- to live a life which is pure, blissful and simple. Today is the birth anniversary  of one great soul, in fact two great souls. Father of nation Bapu and  great leader Lal Bahadur Shastriji. Jun and Nanha are also at home. She has done all her morning chores. Jun suggested that they should go tsk to change Nanha’s shirt, which they bought for him but which he did not like. Jun has gone to deptt  for some job. They can go after lunch. One friend called to say that they will not go with them but want something from TSK for their sun’s birthday.


ट्रेन से टक्कर


शनिवार का आज का दिन बाकी दिनों से कुछ भिन्न है. सुबह बगीचे में कुछ देर कार्य किया फिर पड़ोसिन के यहाँ गयी. जब से उसने उन परिचिता की कक्षा में जाना शुरू किया है  वह ज्यादा समझदार लगने लगी है. नन्हे के स्कूल में आज radio programme recording है, आज देर से आने वाला है, जून को sample test के लिए एक घंटा पूर्व ऑफिस जाना पड़ा है. उसने सुबह की जगह अभी कुछ देर पूर्व ही रियाज किया. आज पहली बार उसने किसी को कहा (पड़ोसिन) कि वह आयेगी तो उसे अपनी कविताएँ दिखाएगी. कल दोपहर उसके मन में उन्हें छपवाने का विचार भी आया और कल्पना ही कल्पना में छपी हुई किताब हाथों में थी. जून वापस आ गये हैं और माली से अमरूद के पेड़ की कटाई-छंटाई करवा रहे हैं जो उससे देखी नहीं जाती सो वह अंदर आ गयी है. वैसे आज सुबह उसने भी कुछ पौधों, और झाड़ियों की कटिंग की थी पर इतने बड़े पेड़ पर कुल्हाड़ी चलाना अलग बात है.

‘’आखिर क्यों उसने अपने आप को इस सिचुएशन में पड़ने दिया’’, ये शब्द उसके होठों पर थे, उसकी जेब में एक पैसा भी नहीं था. रात का वक्त था, अनजान शहर में वह जून और नन्हे से बिछड़ गयी थी. वे किसी शहर में घूमने गये थे, एक होटल में पहले एक दिन रुके, जहाँ उनकी काफी अच्छी जान-पहचान हो गयी थी पर दूसरे दिन कहीं से घूम कर वापस आये, जून पीछे थे वह और नन्हे आराम से अपने पुराने कमरे की ओर बढ़े पर केयरटेकर ने मना कर दिया, कोई भी कमरा खाली नहीं है. तब तक जून भी आ गये. नन्हा और जून सामान लेकर आगे-आगे चल पड़े. उसके हाथ में भी कुछ था पर कोई खिलौना ही था. वह पीछे-पीछे बाजार देखते हुए चल  रही थी कि कुछ छोटी-छोटी लडकियाँ दिखीं. एक को देखकर वह मुस्कुरायी फिर वे कुछ बात करने लगे. उसने उस बालिका से कहा कल ‘बीच’ पर मिलेंगे. उसने भी ‘हाँ’ कहा, तब तक वे एक दोराहे तक आ चुके थे, जून और नन्हा कहीं दिखाई नहीं दिए. वह एक तरफ मुड़ गयी, और आगे जाकर एक होटल दिखा, उसे लगा वे लोग यहीं गये होंगे पर अंदर जाकर निराशा ही हाथ लगी. वह बाहर आ गयी और सोचने लगी कि रात्रि के वक्त इस अन्जान शहर में अब उसका अगला कदम क्या होना चाहिए. उसके पास पैसे भी नहीं थे कि कहीं फोन भी कर सके, तभी यह विचार उसके मन में आया कि ऐसी परिस्थिति में खुद को क्यों डाला और साथ ही यह भी कि कहीं यह स्वप्न तो नहीं, और नींद खुल गयी.

कल सुबह जून किसी काम से ऑफिस गये तो ड्राइवर ने एक एक्सीडेंट के बारे में उन्हें बताया जिसमें ‘आसाम मेल’ ट्रेन से टाटा सूमो की टक्कर में एक ड्रिलर की मृत्यु हो गयी. कल शाम नैनी ने, आज सुबह पड़ोसिन ने उसके बारे में बताया, फिर फोन पर एक सखी से भी उसी दुर्घटना के बारे में बात की. बार-बार उस वैधव्य को प्राप्त स्त्री का जो गर्भवती भी है तथा उसके ढाई वर्ष के पुत्र का ध्यान हो आता है. मृत्यु कब किस रूप में किसके सम्मुख आएगी, नहीं कहा जा सकता. हर दिन को जीवन का अंतिम दिन मानकर जीना चाहिए, मनुष्य वर्षों बाद की योजनायें बनता है पर अगले क्षण का उसे पता नहीं, आज सुबह बल्कि रोज सुबह ही वे ‘जागरण’ में जीवन की क्षण भंगुरता के बारे में सुनते हैं, सब कुछ नश्वर है प्रतिक्षण बदल रहा है, पल-पल वे मृत्यु की ओर बढ़ रहे हैं.

‘’विवेकी को पाने की इच्छा नहीं रहती, वह तो पूर्ण हो चका होता है, उसे कुछ पाना शेष नहीं रहता बल्कि छोड़ना ही शेष रहता है. संसार में आसक्ति को छोड़ना, सुख बुद्धि को छोड़ना, विकारों को छोड़ना और धीरे-धीरे सभी सांसारिक काल्पनिक वृत्तियों को छोड़ना. विवेकी अपने सुख-दुःख के लिए वह स्वयं को जिम्मेदार मानता है मानता ही नहीं, जानता है क्यों कि वह स्वयं के अनुभव के आधार पर ही निर्णय करता है’’. आज सुबह उसने यही सब सुना था, इस समय दोपहर के डेढ़ बजे हैं वह अपनी कविताओं वाली डायरी के साथ है. सुबह-सुबह जागरण सुनने के बाद सूक्ष्म और पवित्र भाव मन में जगते हैं उसी वक्त तो उन्हें लिख नहीं पाती पर बाद में उन्हीं के आधार पर कविताएँ गढ़ती है. उसकी आस्था और विश्वास का बोध कराती हैं, उसके विचारों का प्रतिबिम्ब है कुछ रचकर कैसी संतुष्टि का आभास होता है. उसे एक पत्र भी लिखना है, माँ-पिता का पत्र पिछले हफ्ते आया था. परसों नन्हे का प्लास्टर खुलेगा, अब उसका हाथ काफी ठीक है, एक महीना अंततः बीत ही गया, वक्त अपनी रफ्तार से चलता रहता है. परसों उनकी मीटिंग भी है. आज भारत-पौलैंड का हॉकी मैच है, यदि भारत यह मैच जीत गया तो सेमीफाइनल में प्रवेश पा सकता है. ओलम्पिक खेलों के समापन में मात्र चार दिन रह गये हैं, फिर चार वर्षों की प्रतीक्षा !



Thursday, August 14, 2014

मन के मंजीरे -शुभा मुद्गल


कुछ देर पूर्व छोटी बहन का फोन आया, जब वे बच्चों और पिताजी के साथ पहाड़ों पर सुबह की सैर से वापस लौटी. भांजी से बात नहीं हो पाई है अभी तक. आज शाम को जून अपने एक विभाग में आये अतिथि को चाय पर बुला रहे हैं. उसने सोचा है वह पाव-भाजी बनाएगी, वे बंगाली हैं तो बाजार से जून रसगुल्ले भी लेते आएंगे. नन्हे के लिए वे कोलकाता से अभी से ISC physics books लाये हैं दसवीं व बारहवीं की. जून लंच पर आये तो उसने उन्हें उड़िया सखी के फोन की बात बताई, वह उससे पूछ रही थी कि क्या वह English classes में जाएगी जो एक परिचिता अपने घर पर लेने वाली हैं. जून का जवाब ‘न’ होगा यह सोचकर उसने मना कर दिया था, पर अब वह कहते हैं कि वह जा सकती है सो उसने सोचा है इस हफ्ते वह तीन दिन घर पर ही दूसरे कमरे में बैठकर पढ़ेगी, यदि जून और नन्हे को कोई असुविधा नहीं हुई तो अगले हफ्ते से ज्वाइन कर लेगी. उस दिन जो किताब लाइब्रेरी से लायी थी उसमें से एक कहानी पढ़ी, कुछ ऐसा ही उसके साथ हुआ था जब वह स्कूल जाती थी. इसलिए उनकी राय जाने बिना ही मना कर बैठी. लेकिन इसका कोई अफ़सोस नहीं है उसे, न ही यह समझौता है बल्कि इससे त्याग के महत्व का पता चला है. अपनी आवश्यकताएं सीमित रखना, तन की ही नहीं मन की भी. अपनी ख़ुशी अपने अंदर तलाशना, हर हाल में संतुष्ट रहना और परिवार के प्रति अपने कर्त्तव्य को समझना. नन्हे और जून की जगह पर खुद को रखकर उनकी अपेक्षाओं को जानने का प्रयत्न, सबसे बड़ी बात उनके इस छोटे से घर का वातावरण सदा प्रफ्फुलित रखना !

“तप जीवन में आवश्यक है, अन्तर्मुखी होकर, राग-द्वेष मुक्त होकर, आसक्ति को मिटाकर तप किया जा सकता है. मन को संस्कारों से मुक्त करना ही तप है. मन के दर्पण को ऊपर की ओर स्थित करने से उसमें पड़ने वाली छाया ऊपर ही चली जाएगी”. आज भी बाबा जी ने ज्ञान की शिक्षा दी. सुबह वे जल्दी उठे, आज भी भाई के यहाँ फोन किया पर लाइन नहीं मिली, सम्भवतः टेलीफोन कर्मचारियों की हड़ताल की वजह से. कल जो मेहमान आये थे उन्हें भी घर फोन करना था, पर नहीं मिला. जून को पाव-भाजी अच्छी लगी. उड़िया सखी को सुबह-सुबह फोन करके पपीते के पौधों की जानकारी दी. जब ध्यान में थी, फोन बजा पर उठने का प्रयास नहीं किया. मन को केन्द्रित करना वैसे ही कितना कठिन है, शीशे पर धूप पडती है और उसे हिलाते हैं तो चमक भी हिलती है. ऐसे ही मन रूपी दर्पण पर बाहरी आघात पड़ता है तो मन चंचल हो उठता है. नन्हे ने क्लब की पत्रिका के लिए एक लेख लिखा है, आज शाम वे उसे देने जायेंगे. उसके स्कूल में ड्रामा रिहर्सल भी शुरू हो गयी है, कुछ ही दिनों में उसका प्लास्टर भी खुल जायेगा और वह पहले की तरह रिटेन टेस्ट दे सकेगा.

It is I o’clock and she is with her diary. Few minutes ago she heard again that song, “meri chuunar ur ur jaye… it is a sweet melodious song, every time when she listens it, it attracts, another songs which she likes on Zee music are “piya basnti aa..and “man ke manjire …sung by Shubha Mudgal. All these songs are melodious and soft., they touch one’s heart. Today she talked to two friends, one was worried due to early/voluntary retirement scheme and other due to her son’s exams but she is not worried at all. Last evening they went to jun’s office and did net surfing. They have copied some wall papers from life positive site, while coming back jun purchased one copy of same magazine for her. This magazine touches one in every way. She liked it from its first issue when they saw it in library. Today weather is changing its mood frequently, earlier it was drizzling but now sun has come again. Nanha was smiling in the morning when jun and she helped him like they used to do when he was a small kid. He is slow these days, cause can use only his left hand. But during all these weeks he complained only once. They all three are one strong unit as a family and have many things common, ie why they love so much.





Tuesday, August 12, 2014

अटल जी की चुटकियाँ


मन ही मुक्ति के आकाश में उड़ना सिखाता है, मन ही बंधन की खाई में पटक देता है. मन को सात्विक आहार, एकाग्रता और अनासक्ति मिले तभी वह ऊंचे केन्द्रों में रह सकेगा, ये सुंदर वचन आज ही उसने सुने थे. आजकल उसके मन ने एक नई आसक्ति पैदा कर ली है, टीवी के एक कार्यक्रम के प्रति, निश्चित समय होते ही अपने आप कदम टीवी की ओर बढ़ते हैं, इस आसक्ति की जड़ों को गहरा होने से पूर्व ही काटना होगा. अपने को आगे ले जाना है न कि पीछे, मुक्त होना है न कि नये-नये बंधनों में स्वयं को बांधना है. माँ-पिता का पत्र आये हफ्तों हो गये हैं, उसे पत्र लिखे हुए भी, नन्हे की बात लिखने का मन ही नहीं होता, क्यों, सही कारण शायद उसे खुद भी मालूम नहीं है. उन्हें बुरा लगेगा और माँ जो पहले ही अस्वस्थ हैं, उन्हें दुखद समाचार न ही दिए जाएँ तो बेहतर है. चचेरे भाई का पत्र आया है, जिसका जवाब देना ही पड़ेगा. वर्षों बाद बिन माँ के बच्चों के जीवन में खुशियाँ आने वाली हैं. बहन की शादी तय हो गयी हैं, भाई के लिए भी बात चल रही है. उन्हें एक बधाई कार्ड भेजना चाहिए. जून को कहेगी तो वे अवश्य ला देंगे. जून ने उसे कभी निराश नहीं किया, विवाह में वे क्या देंगे यह भी उन्होंने उस पर ही छोड़ दिया है. माँ से फोन करके इस बारे में बताना होगा. अगले हफ्ते भांजी का जन्मदिन है, उसे बधाई देते समय मंझले भाई से भी बात हो जाएगी.

आज इस क्षण ऐसा लग रहा है कि दिनों बाद स्वयं से मिल रही है. पिछले दिनों जीवन क्रम चलता रहा, कुछ सहज, कुछ असहज क्षण आये, किन्हीं पलों में मन कृतज्ञ हुआ, आनन्दित भी हुई जब ओलम्पिक खेलों का उद्घाटन समारोह देखा, कुछ दृश्य अद्भुत थे. फिर कुछ लोगों से मिलना भी हुआ, उनके परिचित ही हैं पर कई बार वर्षों जानने के बाद भी कुछ अनजाना रह ही जाता है. नन्हा स्कूल से आया तो बहुत खुश था, उसके मित्रों ने बहुत सहायता की और उसे जरा भी परेशानी नहीं हुई बस में, ऐसा उसने कहा. कल विश्वकर्मा पूजा थी, जून ने ऑफिस में ही लंच लिया. उनका दूधवाला भी इस दिन अपनी साइकिल की पूजा करता है, अच्छी तरह धो-पोंछ कर माला चढ़ाता है. लोगों को आस्था के लिए कुछ तो चाहिए, गोयनकाजी कहते हैं कि नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई नाम नहीं, किसी परम्परा का सहारा नहीं, बस प्रतिक्षण अपनी श्वास को देखते जाना है. साँस का सीधा संबंध मन से है जहाँ मन में उद्ग्विनता जगी कि साँस तेज हो जाती है. मन शांत है तो साँस भी नीरव धारा की तरह समान गति से चलती है. अपने मन में किसी आत्मा या परमात्मा के दर्शन करने के उद्देश्य से नहीं बैठना है बल्कि मन को विकारों से मुक्त करते जाना है. पहले तो विकारों के दर्शन होंगे फिर धीरे-धीरे संस्कार मिटेंगे, गांठे खुलेंगी, पर्दे हटेंगे तो मुक्त आकाश सा मन सम्मुख होगा जिसे कोई भी नाम दे दें, आत्मा या परमात्मा. मन में ऊपर-ऊपर से तो लगता है कि स्वच्छता आ गयी है निर्मलता आ गयी है पर जरा प्रतिकूल परिस्थिति आते ही कैसा बेचैन हो उठता है, किसी को को कुछ देकर पछताने लगता है, किसी के कुछ मांगने पर व्याकुल हो उठता है. यह विकारों का ही तो सूचक है. जो हो रहा है चाहे वह शरीर के स्तर पर हो या बाहर, साक्षी भाव से देखना आ जाये तो मन शांत रहना सीख लेगा.

आज सुबह माँ से बात की, वे सोलन में हैं, बहन, बच्चे व पिता जी घूमने गये थे. सुबह ध्यान में बैठी तो एक फोन आया, एकाएक उठना सम्भव नहीं था, पता नहीं किसका था. बगीचे से एक पपीता तोड़ा है जरा सा पकते ही पक्षी खाना शुरू कर देते हैं, उनका यह पपीते का वृक्ष बहुत मीठे व रस भरे फल देता है निस्वार्थ भाव से, ऐसे ही मानव को चाहिए कि दूसरों के काम आए. अभी तक तो वे संचित पुण्यों के फलस्वरूप प्राप्त वैभव का आनंद ले रहे हैं, लेकिन कभी तो ये संचित पुण्य समाप्त हो जायेंगे. भविष्य के लिए नये पुण्यों का संचय इसीलिए करना चाहिए. सद्विचारों से, सद्कर्मों से तथा सद्भावों से. ईश्वर से प्रार्थना भी इसी बात की करनी चाहिए कि कोई असद्विचार न जन्मे, यदि एक बार बीज पड़ गया तो अनुकूलता पाते ही वह पनपेगा अवश्य. कभी-कभी क्रोध व् द्वेष के भाव जो न चाहने पर भी मन को घेर लेते हैं वे इसी का सूचक हैं कि कभी न कभी बीज बोये जरूर गये थे. सुबह जल विभाग के लोग आये थे जो कल दोपहर को भी आए थे, पानी आजकल बहुत कम आता है, ऊपर चढ़ता ही नहीं, अपनी आँखों से देखकर गये हैं शायद अगले कुछ दिनों में सुधार हो. ओलम्पिक में भारत ने अर्जेंटीना को तीन गोल से हरा दिया अपने पहले मैच में. अटलजी ने उस दिन अमेरिका में कहा, पाकिस्तान से क्या बात करें, मौसम की अथवा बीवी-बच्चों की, उनकी चुटकियाँ लाजवाब थीं.




ग्लेडिएटर - अमेरिकन एपिक ड्रामा


आज सुबह जून ने कहा, “हैप्पी सेवेंथ” और तब उसे लगा कि आजकल वह उनका ज्यादा ख्याल नहीं रख रही है, ज्यादातर वक्त उसके मस्तिष्क में नन्हे की अस्वस्थता का ख्याल रहता है या फिर किताबें. कल रात से वर्षा लगातार हो रही है. इस साल पूरे देश में ही वर्षा काफी हुई है, फिर भी इतने बड़े देश का कोई न कोई भाग सूखे की चपेट में आया होगा. बंगाली सखी ने फोन पर नन्हे का हाल पूछा, बाकी सभी से कई दिनों से कोई बात नहीं हुई है. नन्हे के ठीक होने पर ही वे कहीं जायेंगे. घर से पत्र भी नहीं आया है, कल स्वप्न में मंझले भाई को देखा, वे इस बार उनका दिया उपहार नहीं लाये शायद वह.... वरना कभी-कभी उसका पत्र तो आ जाया करता था. सुबह ‘जागरण’ में सुना इस संसार में सभी रिश्ते स्वार्थ पर आधारित हैं, स्नेह की धारा लोगों के दिलों में सूख जाती है वक्त के साथ-साथ... एक उसका मन ही है जो सभी को याद किया करता है, शायद वे लोग भी ऐसा ही सोचते हों.  खैर, उसकी आध्यात्मिक यात्रा में कुछ शिथिलता आ गयी है. इच्छा मुक्त मन की कल्पना कर आज ध्यान में बैठी तो अच्छा लगा था, कोई प्रार्थना नहीं, कोई आशा, अपेक्षा नहीं निर्विकार, शांत मन !

प्रधानमन्त्री विदेश यात्रा पर गये हैं, देश का हित होगा उनके प्रयासों से. अस्वस्थता के बावजूद वे अपना कर्त्तव्य निभा रहे हैं. पिछले दिनों UNO में विश्व शांति सम्मेलन हुआ और आजकल सभी देशों के राष्ट्राध्यक्ष मिलकर चर्चा कर रहे हैं, शांति की स्थापना ही उसका उद्देश्य है. उनके काश्मीर में भी शांति की स्थापना हो !   

आज अभी सुबह के आठ बजे हैं, मौसम सुहाना है, वर्षा होकर थमी है, अभी भी बदली है, हवा में शीतलता है. नन्हे को अब हाथ में दर्द नहीं है, कल उसने Gladiator देखी, नई फिल्म है, आज वह भी देखने का विचार रखती है. कल शाम जून उन्हें अपने दफ्तर ले गये, internet surfing करने पर लाइन नहीं मिली. वे वापसी में इस फिल्म का CD लाये. रात को स्वप्न में उसने net surfing की तथा पिता को जून से बात करते हुए भी सुना, स्वप्न में इन्सान की सारी इच्छाएं अपने आप पूर्ण हो जाती हैं.

जैसे-जैसे बुद्धि विवेकशील होती जाएगी, मन कामना से मुक्त होता जायेगा. कर्म के फल की आसक्ति नहीं रहेगी, कोई अपेक्षा नहीं रहेगी. ध्यानस्थ होना सरल होता जायेगा. आज उपरोक्त वचन सुने, मन कैसा आश्वस्त हो गया. जो सत्य बाहर दीखता है वही सत्य भीतर भी घट रहा है, प्रतिपल, प्रतिक्षण ! जो भीतर के सत्य को देखना सीख जाये वही मुक्त है. धर्म परम मुक्त होना सिखाता है. बात बहुत सीधी है और सरल है पर वे जानकर भी अनजान बने रहते हैं.

Nanha their son is eating his lunch. Today he went to hospital, doctor said that plaster would be opened after two more weeks so they have to wait and watch. Yesterday didi rang her, she could not tell her about Nanha’s health, neither they have told her parents. That day she came to know, her cousin sistermarriage has been fixed on 26 Nov, she has to write at least one congratulation letter.


जून ने आज सुबह तिनसुकिया जाने की बात कही, उनके अनुसार नन्हे को यदि कल से स्कूल जाना है तो आज का अभ्यास ठीक रहेगा, इससे पता भी चल जायेगा कि सफर में उसे दर्द या असुविधा तो नहीं होगी. उसे स्कूल गये पन्द्रह दिन हो गये हैं, आज अंतिम परीक्षा है. सुबह घर से father-in-law का फोन आया वे चिंतित थे, जो स्वभाविक है. इस समय साढ़े आठ ही हुए हैं पर धूप कल की तरह इतनी तीव्र है कि लगता है दोपहर हो गयी है. उसके सुबह के कार्य हो चुके हैं. नन्हा अभी तैयार नहीं हुआ है, उसकी बातें सुनना, उससे फिजिक्स के प्रश्न पूछना और साथ-साथ टीवी पर कोई कार्यक्रम देखना बहुत अच्छा लगता है. बच्चों का दृष्टिकोण अलग होता है, वे पूर्वाग्रहों से ग्रसित नहीं होते.