Thursday, January 31, 2013

सपने में ही मैन



आज शनिवार है, यानि जून लंच के बाद घर पर रहेंगे, पर नन्हे का स्कूल खुला है. कल वे तिनसुकिया गए शाम चार बजे, सात बजे लौट तक आये. वहाँ इतना कीचड़ था. मुख्य सड़क पर ही पानी भरा था, गंदा बदबूदार पानी, कितनी बीमारियों के कीटाणु रहे होंगे, फैलते होंगे वहाँ. कोई कुछ करता क्यों नहीं, जैसे वे कुछ नहीं करते. अखबार में एक बूढ़े पिता की अपील पढ़ी, जिसका अंतिम बेटा अस्पताल में है, किडनी का आपरेशन होना है, दो लाख रूपये इक्कट्ठे करने हैं. पढकर सहानुभूति होती है, लेकिन मात्र सहानुभूति तो काफी नहीं. पैसे वैसे ही बहुत खर्च हो गए हैं इस बार, किताबों पर ही सात-आठ सौ रूपये. पैसे के बारे में उसे कभी कोई चिंता नहीं करनी पड़ी. जून ने कभी होने ही नहीं दी. इस मामले में वह बेहद भाग्यशाली है. यूँ तो और भी कई मामलों में है. आजकल रात को उसे स्वप्न बहुत आते हैं, खासतौर पर सुबह के वक्त, जो याद भी रह जाते हैं, नींद शायद ठीक से नहीं आती. दिन में सोना बिलकुल बंद करना होगा. जून भी आजकल सुबह जल्दी नहीं उठ पाते क्या उन्हें भी गहरी नींद नहीं आती, उनके बारे में कुछ न लिखे तो लगता है कुछ छूट गया है क्या यह कर्त्तव्य बोध के कारण है या...बाल्मीकि रामायण का अयोध्या कांड पढ़ रही है आजकल, राम का चरित्र कितना महान दर्शाया गया है, तभी तो आज हजारों साल बाद भी राम नाम इतना पवित्र है, सीता-राम संवाद बेहद सुंदर है.

कल शाम को एक परिचित परिवार आया, काफी देर तक रहे वे लोग, अच्छा लगा. आज बहुत दिनों बाद फिर से समय मिला है स्वयं के पास आने का पर माध्यम बाहरी है. कैसेट बज रहा है, ‘बच्चन की मधुशाला’ और किताब भी वही खुली है कविता की. उसे अपना आप कविता में ही मिलता है शायद. कल मोहन राकेश की कहानी पर बना धारावाहिक देखा, लगता है यह कहानी पढ़ी है उसने. आज मौसम कल से ठंडा है. अभी हवा में शीतलता है दोपहर तक जो गर्मी में बदल जायेगी. लक्ष्मी का स्वास्थ्य अभी भी ठीक नहीं हुआ है, आज अस्पताल गयी है, बहुत कमजोर लग रही थी आज सुबह. लम्बी बीमारी है, अब साल भर ऐसा ही चलेगा शायद.

जुलाई का महीना खत्म होने को है, सुबह टीवी पर देखा, आज श्रावण मास की दूसरी तिथि है. मालपुए बनाने का महीना. किसी दिन बनाएगी जब खूब तेज वर्षा हो रही होगी. आज दस बजे तक ही सब काम हो गया है, देर तक रामायण भी पढ़ सकी. आज धूप अपने पूरे शबाब पर है.. चमकदार.. झनझनाती हुई. नन्हा आज बड़ी बोतल ले गया है पानी की, उसे बहुत प्यास लगती है स्कूल में. कक्षा में पंखे भी तो ठीक से नहीं चलते. उसने आज सुबह एक सपना बताया. बड़ा मजेदार था ‘हीमैन’ का सपना. उसने भी कल किराये के मकान का एक सपना देखा. जून और वह कुछ दिनों पहले बात कर रहे थे कि उन्हें आसाम छोड़कर चले जाना चाहिए और किराये के मकान में रहना चाहिए जब तक अपना मकान  न बन जाये. इसी की परिणति थी यह सपना. लेकिन इतनी सुख-सुविधाओं को छोडकर चले जाना बुद्धिमानी नहीं कही जायेगी. बात जून के विभाग की समस्याओं को लेकर शुरू हुई थी जो हर जगह होती होगी.




प्रतीक्षा स्कूल बस की



कल जुलाई का प्रथम दिन था, नन्हे का नए स्कूल में प्रथम कक्षा में प्रथम दिन ! सारी सुबह उसी में व्यस्त रही वह, पहले उसे तैयार करने में फिर उसके स्कूल भी गए वे. नन्हा खुश था, स्कूल से आकर भी बहुत सी बातें बतायीं उसने. इस समय सुबह के साढ़े दस बजे हैं, उसका मन शांत नहीं है इस समय, कारण वही उसकी नैनी...लक्ष्मी प्रसंग..लेकिन अब लगता है कि उसे इनके मामलों में ज्यादा उलझना ही नहीं चाहिए. मुश्किल तो यह है कि उसका मन कठोर नहीं है, खैर..सब लिख देने से मन कुछ हल्का होगा.

ढूँढते ढूँढते उसकी आँखें थक गयी थी
बोझिल हो गए थे पैर
दिल एक सवाल की तरह हर श्वास से यही
पूछ रहा था
कहाँ ? किधर ? कब ? कौन ?
लेकिन कोई जवाब नहीं होता कुछ सवालों का...

उसे याद आया कल घर से पत्र आया है, पिताजी ने लिखा है..’वह उसके विचार और सुझाव पढ़कर आनन्दित हुए’. आज शाम को उनके यहाँ एक असमिया परिवार आने वाला है, उसकी सखी की बहन, जीजा जी, तथा माँ आए हुए हैं, यहाँ परिवार से इतने दूर रहने पर किसी के भी यहाँ मेहमान आने पर ऐसा लगता है कोई अपना ही आया है.


अभी-अभी कहीं जाने के लिए घर से बाहर निकली पर जून के आने का समय हो गया है, आज सुबह से वर्षा हो रही है, नन्हे की स्कूल बस जब आई तो वर्षा काफी तेज थी. जून ने फोन करके मना कर किया उसे स्कूल भेजने के लिए, पर वह तैयार था और उसका मन भी उदास हो गया उसे उदास देखकर, स्कूल जाना ही चाहिए, पड़ोस का बच्चा उसकी ही कक्षा में पढ़ता है, वह भी गया. फिर जून उसे कार से छोड़ने गए. कल शाम वे लोग मेहमानों की प्रतीक्षा ही करते रहे, पर वे नहीं आए, तिनसुकिया चले गए थे.

उलझ गए सब मन के धागे
गुलझे तार हृदय वीणा के
कैसे उर का बोझ संभालूं
कैसे मन की गिरहें खोलूं
बंध कर गांठ हृदय पर बैठी
जैसे सर्प उठाये फन हो
फिर कैसे होगा मन हल्का
कैसे खिलेगा अंतर उपवन
रहूँ दूर गर जग प्रपंच से
बस अपने में अपने में बस
न कुछ लेना न कुछ देना
जीवन है इक ऐसी दलदल
गए निकट तो धंसना होगा
छीटें फिर अपने आंचल पर
बादल काले अपने मन पर छाने होंगे

दूर से आयी है हवा खुश्बुयें समोए हुए
कितनी खामोश है नदी साये डुबोए हुए

कल वह  किताब आ गयी, “हजार वर्ष की हिंदी कविता”, जो उन्होंने पिछले महीने मंगाई थी. जून ने कहा यह किताब इतने पैसों की नहीं लगती, उन्हें डाक का खर्च भी देना पड़ा था, लेकिन पैसों से नहीं आंकी जा सकती कीमत इन कालजयी कविताओं की. एक सौ पचासी कवियों की कविताएँ हैं इसमें. कुछ पढ़ी हैं उसने, इतनी सारी कवितायें एक साथ..कुछ तो इतनी अच्छी हैं कि मन में कहीं अंदर तक छू जाती हैं. आज उसके पास काफी वक्त है, नन्हा आज जल्दी उठ गया था सो सभी काम जल्दी जल्दी हो गए, कल उसकी स्कूल बस छूट गयी थी, कितना रोया था वह, कितना प्यारा है वह और कैसी बड़ी-बड़ी बातें करता है, स्कूल जाना उसे बहुत अच्छा लगता है. और अब शब्दों का खेल- यानि एक प्रयास- विषय क्या होना चाहिए, हाँ ‘कविता’ का विषय भी कविता ही होना चाहिए
कविता रस की धार जो प्रस्तर में भी बहा करती है
कविता मीठी कटार जो दिल में गहरे चुभा करती है
कविता इक आधार जिस पर मन पीड़ा आश्रय बनाती है
कविता इक संसार जिसे स्वप्नों की धूप जगाती है
कविता मन का प्यार जिसे पा बगिया खिल जाती है



Monday, January 28, 2013

रूह अफजा की आइसक्रीम



टीवी पर समाचारों में सुना, हर्षद मेहता व कई अन्य गिरफ्तार हुए. इसकी भूमिका तो बहुत दिनों से बन ही रही थी. अभी-अभी उसने स्टोरी टाइम में एक कहानी पढ़ी, how much does a horse know? बहुत अच्छी लगी. नन्हे का स्कूल ग्रीष्मावकाश के कारण अगले डेढ़ माह के लिए बंद है, उसे नियमित रूप से कम से कम एक घंटा तो पढ़ाना ही है. रात को उसने स्वप्न में देखा, भूकम्प आ गया है, वे सभी बाहर चले गए है, परसों भी एक बड़ा सा. अजीब सा स्वप्न देखा था, सोचा था लिखेगी पर अब कुछ याद नहीं है. पहले की तुलना में अब उसे स्वप्न कम आते हैं, शायद इसलिए कि दिन में सोना बंद हो गया है, रात को नींद अच्छी आती है.
कल दोपहर वे तिनसुकिया गए थे, बहुत तेज वर्षा हो रही थी, सड़क पर पानी भर गया था, उन्हें सड़क पार करने के लिए रिक्शा करनी पड़ी, जब घर से निकले तब आकाश पर थोड़े से बादल भर थे. टीवी पर आजकल “हेलो जिंदगी” देख रहे हैं वे, अच्छा धारावाहिक है. कल देखी “वेलकम टू १८” फिल्म भी, फोटोग्राफी अच्छी थी, समुद्र के दृश्य, रंगों का संयोजन बहुत अच्छा था. आज गर्मी बहुत है, साँस लेना मुश्किल है, पसीना सूखता ही नहीं है, ए.सी नहीं होता तो...पर हर वक्त तो उस कमरे में बैठा नहीं जा सकता. शायद इसी कारण या किसी अन्य वजह से वह  दुर्बलता अनुभव कर रही है, मन होता है लेट कर कोई किताब पढ़ती रहे. कल जून सुबह चार बजे ही चले गए थे, गैस कलेक्टिंग स्टेशन में ड्यूटी थी, लौटे शाम को सवा छह बज, बेहद थके हुए और गर्मी से परेशान.

“धूप किनारे” सचमुच एक बहुत अच्छा पाकिस्तानी धारावाहिक था. पिछले तीन-चार दिनों से डॉ अहमद, डॉ शीना, डॉ जोया और डॉ इरफ़ान इस कदर दिलोदिमाग पर छाये हुए थे कि और क्या हुआ कुछ खबर नहीं. डॉ जोया का चरित्र काफी सशक्त था, अंजी और इरफ़ान ने भी बहुत प्रभावित किया. उसने सोचा छोटी बहन को लिखेगी इस धारावाहिक के बारे में जो खुद भी डॉ है, ज्यादा समझ पायेगी. उसकी एक परिचिता की सासु माँ ने भी कहा था, यह सीरियल देखने के लिए, पर अब तक तो शायद वह घर चली गयी होंगी. जून कल जोरहाट चले गए थे, आज शाम को लौटेंगे. घर से पत्र आया है, ट्रेन टिकट बुकिंग करने केलिए वह परेशान हैं, हर कम जल्दी से जल्दी करना उनका स्वभाव है. इस समय नन्हा भी डायरी लिख रहा है. उसकी फरमाइश है कि आज वह रूह-अफजा वाली आइसक्रीम बनाये. कभी-कभी वह मैंगो आइसक्रीम के लिए कहता है, कस्टर्ड में उसकी पसंद की वस्तु डाल कर कुछ देर के लिए वह  फ्रीजर में रख देती है और ऐसी आइसक्रीम पाकर वह कितना खुश हो जाता है  कल रात भी जोरों की वर्षा हुई, रात एक बजे उसकी नींद खुली, फिर एसी बंद करके वे दूसरे कमरे में सोने गए.. आज मन में एक सुकून सा है, जैसे सब कुछ ठीक हो एक शांत धारा की तरह.. कुछ देर पहले जीनिया के फूल देखने गयी थी, कुछ फूल बहुत सुंदर हैं, शोख रंगों के..एक छोटा स नया फूल भी खिला है उस छोटे पॉट में जिसमें कुछ ही दिन पूर्व ही उसने अपनी मित्र से एक पौधा लाकर लगाया था.

पिछले दो तीन दिन घर की सफाई में लगी रही, पहले स्टोर फिर किचन और अभी भी काफी काम बाकी है. दराज वगैरह साफ करनी हैं और कपड़ों की आलमारी भी. अगले हफ्ते नन्हे का स्कूल खुल रहा है. आज भी मौसम अच्छा है. कल शाम वे पड़ोसी के यहाँ गए, मिसेज अ की तबियत ठीक नहीं है, डॉ ने अल्सर बताया है. पिछले कई दिनों से. आज दोपहर उसे भी अस्पताल जाना है पर अपने लिए नहीं, उसकी नैनी लक्ष्मी के लिए, उसे भी कभी कभी कमजोरी का अहसास होता है, फिर लगता है वहम ही होगा, अच्छी भली तो है. कल जून के एक परिचित का उसके जन्मदिन का कार्ड आया पूरे एक महीने बाद, अजीब-अजीब लोग होते हैं.



Thursday, January 24, 2013

रियो का पृथ्वी सम्मेलन



जून माह का प्रथम दिन ! आज सुबह नन्हा जल्दी उठा था, तब से कितनी ही बातों पर उसे गुस्सा दिला चुका है, सभी काम धीरे-धीरे कर रहा है, कुछ ज्यादा ही धीरे..जिससे उसके अन्य काम रुक जाते हैं. जानती है गुस्सा करने से कोई लाभ नहीं पर मन ही तो है अपने वश में नहीं रहता. ऊपर से आज स्वीपर भी नहीं आया है. इस समय लिखने का अर्थ है अपने मन का गुबार निकालना, उसकी एक मित्र ने कुछ सामान भिजवाना था वह भी नहीं आया. उसने भी कई बार निराश किया है. अब वह भी उदासीन रहेगी. कल उन्होंने सभी पत्रों के जवाब लिखे. परसों जन्मदिन अच्छा रहा पर कल इतवार कुछ अधूरा सा, क्योंकि “चाणक्य” नहीं दिखाया गया. नन्हे की साईकिल में फिर कुछ खराबी आ गयी है वरना साइकिल चलाने के लिए तो  वह हर काम जल्दी कर लेता.

पिछले वर्ष की तरह उसके छोटे फुफेरे भाई ने जन्मदिन पर उसे याद किया है, कार्ड भेजा है, उसे जवाब देना है. फूफाजी को दिल का दौरा पड़ा था, और उसका खुद का एक्सीडेंट हुआ, जब मुसीबत आती है तो हर ओर से आती है, और एक वह है कि सब कुछ ठीक-ठाक है, कहीं कोई समस्या नहीं, पर मन को चिंताओं का अखाड़ा बना लेती है. ऊपर से गर्मी का मौसम, तनाव में जैसे घी का काम करता है. झुंझलाहट और हल्का सा सिर दर्द या बेचैनी, कभी नन्हे के बहुत ही धीरे-धीरे भोजन व होमवर्क करने के कारण कभी माली, धोबी, या स्वीपर के कारण.

आज विश्व पर्यावरण दिवस है. रियो में पृथ्वी सम्मेलन आरम्भ हो चुका है. उसका मन शांत है जबकि मौसम गर्म है इसका अर्थ तो यह हुआ कि मौसम असर डालता है तो बस एक हद तक ही. ट्रांजिस्टर पर आशा भोंसले का एक अच्छा सा गाना बज रहा है- जिंदगी इत्तफाक है..कल भी इत्तफाक थी, आज भी इत्तफाक है...कल रात जून आठ बजे क्लब गए, नन्हे को अच्छा नहीं लगा, पहले वह नहीं जाने वाले थे, यह बात याद आने पर उसने लिखना बंद करके पत्र लिखना ज्यादा ठीक समझा.

जून क्लब से लौटे तो स्वस्थ नहीं थे, पेट में जलन और गैस की शिकायत थी, शायद वहाँ का भोजन पचा नहीं. पर यह सब उन्होंने सुबह बताया, रात देर से लौटे थे, उसे कुछ भी समस्या हो झट बता देती है पर यही अंतर है शायद स्त्री और पुरुष के स्वभाव में, स्त्रियां जिसे अपना मानती हैं पूरी तरह अपना मानती हैं. जून ने शायद उसके लिए ही उसे न उठाया हो, खैर ! वह दफ्तर तो गए हैं क्योंकि जीएम बहुत दिनों बाद आये हैं. कल उसने सोचा अंग्रेजी में खत लिखेगी पर उसकी लिखाई बहुत बिगड़ गयी है और लगा कि जो कहना था वह कह नहीं पाई, जबकि ऐसा होना तो नहीं चाहिए. नन्हा साइकिल लेकर गया है, आज अपेक्षाकृत गर्मी कम है, उसने घर की सारी खिड़कियाँ खोल दी हैं, हर कमरे में चार खिड़कियाँ.. डेक पर गुलाम अली की यह गजल आ रही है- ‘बिछड़ के भी तुझे मुझसे यह.....है, कि मेरी याद तुझे आनी है’.

जून कल क्लब की वार्षिक सोविनियर ले आये, उसकी एक कविता, जिसका अनुवाद उसने खुद अंग्रेजी में किया था, उसमें छपी है. कल सुबह इतनी व्यस्तता पता नहीं कहाँ से आ गयी थी, कुछ नहीं लिखा. परसों वह अपनी पुरानी पड़ोसिन के घर गयी, वह अस्वस्थ थी, पहले की हँसती, उत्साह से भरी सखी पता नहीं कहाँ खो गयी. उसकी नौकरानी ने कहा, कि उसे सुबह से मितली आ रही है, इन लोगों को दिन, तारीख, महीने तक का ज्ञान नहीं है, डॉक्टर के पास जाने को कहा तो है उसने.

हरा बार्डर पीली साड़ी



आज फिर वही व्यस्तता..जो उसे बहुत अच्छी लगने लगी है. नन्हे का स्कूल बंद है, साथ-साथ वे नाश्ता करते हैं, फिर वह पढ़ाई करता है थोड़ी बहुत और पहले रामायण का पाठ सुनता है. फिर अपने मित्र के यहाँ जाता है अथवा कभी वह आ जाता है. बच्चों को बड़ों के साथ से ज्यादा हमउम्र का साथ प्रिय होता ही है. ग्यारह कैसे बज जाते हैं पता ही नहीं चलता. कल दोपहर उसने अपनी ड्रेस सिलनी शुरू की है, आज भी करेगी, सिलाई करना उतना मुश्किल तो नहीं है जितना उसने सोचा था. कल जून बेहद खुश थे, पहले के जैसे उत्साहित और स्नेह से भरे..व्यर्थ ही वे बाहर की घटनाओं से उदास हो गए था..नीरस जीवन जिए जा रहे थे..नीचे प्यार की धारा बह रही थी पर वे उससे अनजान ही थे.

कल सत्यजित रे की प्रसिद्ध फिल्म “पाथेर पांचाली” देखी, जिसने उसे रुला ही दिया. ‘चारुलता’ भी लाए हैं जून, अभी अंत नहीं देखा, यह भी बहुत अच्छी फिल्म है. कल जून एक हास्य फिल्म का कैसेट भी लाए थे. आज क्लब में फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता है, सोनू भाग ले रहा है. वह जेम्स बॉण्ड बन रहा है.  
उसे लगता है, लिखने का यह समय ठीक नहीं क्योंकि मन तो घर-गृहस्थी के कार्यों में उलझा रहता है, विचार स्थिर हो ही नहीं पाते. यह छूट गया, यह करना था, यही सब.. आज सुबह उसने जून को समय पर नहीं उठाया..क्यों किया ऐसा ? उन्हें जल्दी-जल्दी तैयार होकर जाना पड़ा. क्या प्रमाद उसके भीतर इतनी गहरी जड़ें जमा चुका है..इतना आसान हो गया है माथे पर बिना कोई शिकन लाए, बिना गाल लाल हुए..उसे इस ओर सचेत रहना होगा. कल रात स्वप्न में दंगे और कर्फ्यू को देखा अपनी खिड़की के बाहर जैसे बनारस में देखा था. नन्हा बोला, अब वह छुट्टियों से बोर हो गया है, कुछ विशेष करने को कहो तो अकेले कर  भी नहीं पाता जब तक कि कोई साथ न रहे, और वह चाहकर भी ज्यादा समय नहीं दे पाती, अब ध्यान रखेगी.

नन्हे को चित्रकला प्रतियोगिता में पुरस्कार मिला है, उसने भी एक प्रतियोगिता में अपनी कवितायें भेजी हैं. कल रात स्वप्न में उसका गला खराब लगा सुबह उठी तो वाकई गले में खराश थी...कभी-कभी सपना और हकीकत एक हो जाते हैं. वर्षा का मौसम आ गया है या कहें कब से आ चुका है. आज सुबह से ही टपटप पानी बरस रहा है ऐसे में टीवी पर ‘सुमित्रा नन्दन पंत जी’ की कवितायें और उन पर एक कार्यक्रम बहुत अच्छा लगा, साथ ही ‘सच्चिदानन्द भारती जी’ पर एक कार्यक्रम देखा. कितनी पुरानी यादें पहाड़ों के वास की सजीव हो उठीं शायद छोटे भाई ने भी देखा हो यह कार्यक्रम. उसे खत में लिखेगी उसने तय किया. जून को हल्की सर्दी लगी हुई है, जैसे कल उसे लग रहा था, कल वे अस्पताल भी गए थे, डॉ बरुआ ने ढेर सारी दवाएं दे दीं पर उसने ली एक भी नहीं है, दोपहर को जून के हाथ वापस भिजवा देगी. 

परसों वह एक परिचित के यहाँ गयी थी, कपड़ों का एक सौदागर आया, उसने एक पीली तांत की साड़ी खरीदी हरे बॉर्डर वाली, जून को घर पर आए सेल्समैन से कुछ खरीदना अच्छा नहीं लगता, पर यहाँ बहुत लोग घर पर कपड़े आदि खरीदते हैं. आज टीवी पर “नेहरु ने कहा था” कार्यक्रम के अंतर्गत पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति उनके विचार सुनाये गए. आज के बच्चों के लिए नेहरु एक कहानी के पात्र ही रह गए हैं. उसके बचपन में आधुनिक भारत के निर्माता नेहरु कितने निकट जान पड़ते थे. राजीव गाँधी की प्रथम पुण्य तिथि के अवसर पर टीवी पर उन्हें भी कई बार देखा, हजारों लोग उन्हें भरे मन से याद करते हैं.

उसका जन्मदिन है आज, भाई-बहनों व ननद के बधाई कार्ड्स मिले हैं, नन्हे ने भी उसके लिए एक कार्ड खुद बनाया है, वह उसके लिए एक उपहार भी लाया है जो अभी तक दिखाया नहीं है. जून ने उसे एक साड़ी दी है और ढेर सारा प्यार. आज शाम को वह मैंगो शेक व ब्रेड रोल बनाएगी, केक तो होगा ही, खाने में पनीर की सब्जी. जन्मदिन पर खुशी क्यों होती है ? क्या इसलिए कि बचपन से इस दिन खुश होना सिखाया जाता है या इसलिए कि वे शुक्र गुजार होते हैं दुनिया में आने के लिए. गरीब लोग जन्मदिन मनाते होंगे, मनाते भी होंगे तो खुश नहीं, उदास होते होंगे, यह बात उसने क्यों लिखी. कल रात को ‘सलीम लंगड़े पे मत रो’ फिल्म देखी. फिल्म काफी देर से शुरू हुई पर उसने इंतजार किया और उस इंतजार का परिणाम अच्छा ही रहा. फिल्म काफी अच्छी और सच्ची थी, मुसलमानों का दर्द उभर कर आया है, लेकिन ऐसा क्यों है? गरीबी, अशिक्षा और संकुचित विचारधारा के कारण ही तो. देर से सोयी तो सुबह नींद भी फिर देर से खुली. 

Wednesday, January 23, 2013

सत्यजीत रे की गण शत्रु



पंजाबी दीदी अगले हफ्ते बुधवार को यहाँ से सदा के लिए जा रही हैं, मंगल को वे लोग उनके यहाँ आएंगे और एक रात रहेंगे, अगले दिने वे उन्हें छोड़ने भी जायेंगे. कल रात यह सुनकर वह उदास हो गयी, जून के प्रश्न का उत्तर भी ठीक से नहीं दिया, पर उसने कितने धैर्य का परिचय दिया. पता नहीं उसे क्या हो गया है, क्यों झुंझलाहट होती है, वह किससे नाराज है ? उसे खुद भी समझ नहीं आता. नन्हा फिर उसे कैसे समझाता है. पर वह इतना जानती है बादलों के पीछे से सूरज फिर से निकलेगा..फिर से वह मुस्कुराएगी और अपने आप से शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा.

कल शाम को कोलकाता के नर्सिंगहोम में महान फ़िल्मकार सत्यजीत रे का देहांत हो गया. टीवी पर उनकी फिल्म “गणशत्रु” दिखाई जा रही है.

गीत वह जो प्राण भर दे
सदियों से सुप्त उर में
भीषण हुंकार भर दे !

दस दिशाएं गूंज उठें
भीरु कातर इस नगर में
शक्ति का संचार कर दे !

आज फिर संयोग हुआ है अपने करीब आने का, कल एक मित्र के यहाँ गयी थी, अच्छा लगा उससे बातें करके. यह क्या..अपने करीब आने का मौका भी दूसरों के पास जाने में गंवा देना चाहती है...इंसानी मन ही ऐसा है, यह नहीं सोचता कि वह स्वयं क्या है ? क्या सोचता है ? बल्कि ज्यादा यह कि दूसरे क्या सोचते हैं ? जबकि इन दूसरों का जरा भी दखल नहीं होता उनकी जिंदगी में. उस दिन पंजाबी दीदी की प्यारी सी चिट्ठी मिली, आज वह भी उन्हें लिखेगी. एक किताब पढ़ रही है, रोमांचक तो है थोड़ी खतरनाक भी है, क्या लेखिका हैं! उसने पिछले कई दिनों से एक पंक्ति भी नहीं लिखी, समय न मालूम कैसे गुजर जाता है, कुछ हाथ का काम भी नहीं किया. सेंट्रल स्कूल में कक्षा एक में पढ़ने के लिए कल नन्हे का एडमिशन टेस्ट हो गया, तीन दिन बाद रिजल्ट आएगा. इस समय वह भी डायरी लिख रहा है. बचपन में कितनी तुकबन्दियाँ की थीं उसने, कभी किसी ने पढ़ी नहीं, वक्त ही कहाँ था, माँ-पिता के लिए इतने बड़े परिवार को चलाना क्या आसान था ? लेकिन नन्हे को वह पूरा वक्त दे सकती है, उसे पढ़ा सकती है.

आज मौसम बहुत अच्छा है, ठंडा-ठंडा शांत सा..रोजमर्रा का काम तो हो गया है पर सोचा था फ्रिज साफ करना है, वह नहीं हो पाया, घर-गृहस्थी के कामों का कोई अंत ही नहीं है, स्टोर  की सफाई फिर ड्यू हो गयी है और किताबों वाला रैक भी आवाज दे रहा है, पर थोड़े से पल शांत बैठकर अपने आप से बातें करना भी शायद उतना ही जरूरी है, पर बीच में यह ‘शायद’ क्यों? कल जून तिनसुकिया गए थे उनकी कार में कुछ खराबी आ गयी थी, लौटे तो बहुत थके थे, झुंझला गए. पर रात को जब उन्होंने अपने-अपने मन को टटोल कर देखा तो वहाँ एक दूसरे के सिवा कुछ था ही नहीं.

आज जून किसी मेहमान को लंच पर साथ लाने वाले हैं, उसकी सुबह किचन में ही बीती, साढ़े दस बज गए हैं अभी मेज सजाना शेष है और सलाद आदि भी. लेकिन ऐसी व्यस्तता उसे भली लगती है. लगता है कि वह है, जीवित है, स्पंदन है. उसे ही फोन करना पड़ा अपनी मित्र को जब पता चला कि उसकी तबियत ठीक नहीं है तो रहा नहीं गया, पर जिस स्तर पर वह चाहती है उस स्तर पर सम्बन्ध बन नहीं पाते, निस्वार्थ..अपनेपन से भरे..यह मृगमरीचिका ही रहेगी उसके लिए.

नन्हा साईकिल चलाना चाहता है, उसकी पढ़ाई आजकल बिलकुल नहीं हो पाती है. नए स्कूल में उसका दाखिला हो गया है. वे लोग घूमने गए, जून ने उसे जन्मदिन का उपहार ले दिया, दो सूट के कपड़े - नीले कपड़े पर सफेद फूल और काले कपड़े पर सफेद फूल.. नन्हे को भी उसकी पसंद का एक गिफ्ट, उसके अच्छे रिजल्ट के लिए. उस दिन मंदिर में उसने भगवान से शांति की प्रार्थना की थी, वह सुन ली गयी है...ईश्वर अब भी उसकी बात सुनते हैं. बहुत दिनों बाद ढेरों फूल खिले हैं मन में और एक सफेद व बैंगनी रंग का एक नया फूल उनके बगीचे में भी खिला है पहली बार..




Tuesday, January 22, 2013

होमर की किताब - ओडिसी



किसी के प्रति द्वेष न रखो, अपने सब कर्म ईश्वर को अर्पण कर निस्वार्थ भाव से जीवन जीते चलो, ऐसे में न मन में कोई चिंता होगी न विकार, शांत मन और व्यर्थ भावुकता से परे हृदय ! आज गीता में यही पढ़ा. बारहवें अध्याय में कृष्ण कहते हैं- “सुख-दुःख, निंदा-स्तुति में समान, हर्ष व द्वेष से रहित, मान-अपमान से परे, आशा मुक्त, चिंताओं से दूर मेरा भक्त मुझे प्रिय है.” कितने सुंदर विचार भरे पड़े हैं गीता में. कल रात को माँ से बात हुई, लगा जैसे आमने-सामने बातें कर रहे हों, अभी एक पत्र लिखेगी उन्हें, दोनों बहनों को भी पत्र लिखने हैं. कल दोपहर भर नन्हे के लिए नाईट ड्रेस सिलती रही, उसका चेहरा कितना खिल गया था, कहने लगा, आप हमेशा कपड़े खुद सिलकर मुझे दीजियेगा, देखें, कितने साल तक घर के  सिले कपड़े पहनता है. शाम को वे क्लब गए खाना वहीं खाया.

आज सुबह ईश्वर की विभूतियों का वर्णन पढ़ा, पहले वह बादलों, सूरज और हरियाली... सभी में भगवान को महसूस करती थी, लेकिन बौद्धिकता के साथ आध्यात्मिकता नहीं रह जाती, अब ईश्वर याद आता है तो तब जब मन हर तरफ से निरुपाय हो जाता है, लेकिन कहीं न कहीं ईश्वर की सत्ता है जरूर, यह तो मन मानता ही है. नन्हे का स्कूल बीहू के कारण चार दिनों के लिए बंद है, एक दिन खुलेगा फिर “गुड फ्राई डे” का अवकाश होगा. सुबह उसने व्यायाम किया, और चार दिन बाद होने वाली कला प्रतियोगिता की तैयारी कर  रहा है. कल उनके लॉन में पंजाबी दीदी का दिया झूला लग गया, उनके अहसान बढ़ते ही जा रहे हैं. कल सुबह जो पढ़ा था, शाम को ही भूल गयी, जब क्लब में खाने को देखकर नापसंदगी जाहिर की, अपना मन तो परेशान हुआ ही, जून और सोनू का भी. जून तो आज सुबह भी उदास थे उसकी नासमझी के कारण ही तो. न जाने कब उसका सम भाव का सपना पूर्ण होगा. पढ़ने में जो बातें अच्छी लगती हैं, उनपर चलना उतना ही मुश्किल होता है, पर बार-बार पढ़ने से तत्व को आचरण में लाया जा सकता है, या तत्व व आचरण का अंतर कम किया जा सकता है.

वे लोग छुट्टियों में घूमने गए, उसने एक साड़ी खरीदी, हल्के शेड में कोटा की साड़ी. वीसीपी पर फ़िल्में देखीं. मित्रों के यहाँ गए और मजे-मजे में दिन बीत गए. उसने किसी किताब में ये लाइनें पढीं- “पहले वैष्णव बनो, नरसिंह मेहता के बताए रास्ते पर चलकर फिर गुणातीत व  सतोगुणी स्वयं बन जाओगे”. सात्विकता इतनी दुर्लभ तो नहीं ? अगर वह दैवी सम्पदा लेकर इस जगत में आई है तो आचरण भी उसके अनुसार ही करना चाहिए.

आज बहुत दिनों का सोचा हुआ एक काम किया, गमलों की देखभाल, पानी नहीं दिया, धूप तेज हो गयी थी. शाम को सभी पत्तों को नहला कर पानी डालेगी. जरा सी देख-रेख से कैसे खिल उठा है बरामदा. पौधों को उगा कर छोड़ देने से वे उद्दंड बच्चों की तरह हो जाते हैं. कल क्लब में एक रोचक विषय पर डिबेट सुनी. आज क्विज है. नन्हा कल रामायण की अपनी किताब स्कूल में ही छोड़ आया है, पता नहीं आज उसे मिलेगी या.. जून हैं सदा की तरह स्नेहिल..पर उसे ही आजकल पता नहीं क्यों कुछ अच्छा नहीं लगता.

आज मन हल्का है तन भी, मालिश के बाद स्नान से कितना सुकून मिलता है, समय जरूर ज्यादा लग गया पर उसने सोचा हफ्ते में एक बार तो इतना समय स्नान को देना ही चाहिए. आजकल पिछले कुछ दिनों से वह ‘होमर’ की ‘ओडिसी’ पढ़ रही है, अनुवाद है अंग्रेजी में. बहुत रोचक है.

एकांत में खिले फूल के पास जाओ
फूल के पास अकेले जाओ
जैसे हवा जाती है
जैसे तितली जाती है
जैसे माँ जाती है
अपने घर में कोई खाली जगह ढूंढो
मिट्टी ! यह तन मिट्टी
धरती और आकाश की मिट्टी
जाहिर में बेरंग है मिट्टी !



Monday, January 21, 2013

वसंत की विदाई



शनिवार और इतवार गुजर गए, अच्छे दिनों की तरह. शनि की शाम को वह थोड़ा सा  घबरा गयी थी, जून डिब्रूगढ़ गए थे, आने में काफी देर कर दी, कार खराब हो गयी थी, पर फिर सब ठीक हो गया. इतवार शाम वे पड़ोस में एक बच्चे के जन्मदिन पार्टी में गए. आज सुबह ही पंजाबी दीदी ने फोन किया, वह उस समय खिड़कियों के लिए नेट के पर्दे सिल रही थी. उनके पास पंजाबी गीतों का एक कैसेट है, वह चाहती हैं वे उसे टेप कर दें. उसने कहीं पढ़ा कि डायरी लिखना चरित्र विकास में अत्यंत सहायक है. अपनी गलतियों तथा अपने सद्विचारों को परखने का माध्यम है. वह गलतियाँ तो हर पल न जाने कितनी करती है पर डायरी में लिखती नहीं. कल शाम को जून को कितना कुछ कह गयी, यह सबसे बुरी आदत है ज्यादा बोलना, किसी बात को कम से कम शब्दों में कहने से उसका असर बढ़ता ही है कम नहीं होता. जून कितने धैर्यवान हैं जरा भी बुरा नहीं मानते मगर वह जानती है यदि वह उसे ऐसे ही कुछ कह दें तो उसे कितना खराब लगेगा....नन्हे को प्यार वह भी उससे कम तो नहीं करते. और दूसरी कमजोरी है उसकी, कोई कार्य करके पछताना, पहले उत्साह में या कहें जल्दबाजी में कुछ करना और फिर सोचते रहना कि ऐसा न करके वैसा किया होता. तीसरी गलती है अपेक्षाएं रखना, इस दुनिया में अगर सही अर्थों में सुखी रहना है तो किसी से भी कोई भी अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए, क्योकि ज्यादातर मामलों में लोग निराश करते हैं और जहां नहीं करते हैं वहाँ उनकी और ध्यान नहीं जाता अर्थात हम खुश कम होते हैं और उदासी ज्यादा ओढते हैं.

मार्च का अंतिम दिन यानि वसंत को विदा और गर्मी का आगमन. आज भी कैसी उमस है इस कमरे में, अभी साढ़े नौ ही हुए हैं, बिना पंखा चलाए यहाँ बैठना मुश्किल है. अब सुबह अपने आप ही नींद खुल जाती है और सर्दियों की तरह उठने में देर भी नहीं लगती. नन्हे का आज पहला पेपर है, अंग्रेजी का, अच्छा होगा क्योंकि उसे सब याद है, कितना खुश था सुबह, बच्चे हर वक्त खुश, खिले-खिले पता नहीं कैसे रह लेते हैं...तभी तो वे बच्चे हैं ! उसकी एक परिचित का कई दिनों से फोन नहीं आया, उसे लगता है कि सम्बन्ध थोपे नहीं जा सकते, यदि सम्बन्ध जरूरत पर ही टिके हैं तो ठीक है जरूरत होने पर ही वह भी बात करेगी.

यह उसकी नितांत व्यक्तिगत पूंजी है
उसका ईश्वर सदा उसके पास है

आज बहुत दिनों बाद गीता पढ़ी, और अब अपने निकट आने का सुअवसर भी प्राप्त हुआ है. अप्रैल के महीने में दूसरी बार. इतने दिनों जैसे किसी स्वप्नलोक में जी रही थी. नन्हे के इम्तहान हुए, वे तिनसुकिया गए, मित्र परिवार को खाने पर बुलाया. छोटी बहन का पत्र आया. बड़ी बुआ के बेटे की शादी का कार्ड आया. छोटी भांजी कविता लिखती है, मालूम हुआ, और न जाने कितनी बातें.. कुछ लोगों से पहली बार मुलाकात हुई, चादर के तीन हिस्से पूरे हो गये. लेकिन बार-बार मन आहत होता है क्योकि अपेक्षाएं लगा बैठता है जो पूरी नहीं होती सकतीं..क्योकि वे दूसरों पर आश्रित होती हैं. अपना काम स्वयं करो संतुष्ट रहो, यही पाठ तो गीता में पढ़ती है फिर...आमतौर पर लोग निस्वार्थ नहीं होते..और पहले अपनी सुविधा फिर दूसरे का काम, यही रवैया अपनाते हैं...और जितनी जल्दी यह बात समझ में आ जाये..उतना ही अच्छा है.


Saturday, January 19, 2013

कभी खुशी कभी गम



अयोध्या में निर्माण तोड़ने पर लोकसभा में हंगामा, यूपी सरकार को चेतावनी..वही राममंदिर बाबरी मस्जिद विवाद. कल बहुत दिनों के बाद उन्होंने घर के कोर्ट में बैडमिंटन खेला और सांध्य भ्रमण को भी गए. मौसम सुधरा था पर रात इतनी तेज वर्षा हुई कि लॉन की हालत देखी नहीं जाती, माली भी नहीं आया है, सुबह तीन बजे के करीब जोरों का तूफान आया था और शायद ओले भी गिरे थे, आवाज से ऐसा लग रहा था और इस समय भी सूर्य देव आंखमिचौली खेल रहे हैं. सुबह उठते ही उसे गले में हल्की चुभन महसूस हुई, लिपटन का टी बैग शायद कुछ राहत दे.

उल्फा नेता परेश बरुआ हथियार समर्पण को तैयार नहीं. कल शाम लगभग साढ़े पांच बजे  फोन आया और साढ़े सात बजे जब वे क्लब से वापस आए, उनकी कार वे लोग ले गए. एक ही लड़का था, उम्र भी कुछ खास नहीं थी, उसने गुस्से में या आवेश में कुछ बातें कह दीं, जो उसे नागवार गुजरीं, और उसे लगता है कि जल्दी वह कार वापस नहीं करेगा. कल उस समय से कितनी ही बार मन में वे सारी बातें स्पष्ट हो आयी हैं, कितना दूसरी बातों में मन लगाये पर ध्यान उसी ओर चला जाता है, अब जब तक कार वापस नहीं आ जाती, ऐसा ही होगा.

आज तीसरा दिन हो गया. कल दिन भर आँखें दरवाजे पर लगी रहीं और कान आहटों को पहचानने में, पर कार वापस नहीं आयी. अब तो इंतजार करना छोड़ दिया है, आ जायेगी अपने आप. जून के चेहरे से हँसी ही गायब हो गयी है, आँखों में एक अजीब सा सन्नाटा. कुछ दिन पहले बल्कि पिछले हफ्ते आज ही के दिन तो वे कितने खुश थे, होली थी उस दिन. ठीक ही कहा है किसी ने-
मुरझा जाती हैं कुछ कलियाँ, सारी कलियाँ कब खिलती हैं?
इस दुनिया में सारी की सारी खुशियाँ किसको मिलती हैं ?

एक पल खुशी का तो दूसरा उदासी भरा, उसकी आँखें किसी भी पल बरसने को तैयार हैं, अंदर ही अंदर कोई घुटन सी खाए जा रही है जैसे, पर जानती है रोने से कुछ होने वाला नहीं है, इसी घुटन को अपनी हिम्मत बनानी है. ऐसे में जिन्हें वे अपना हित चिंतक समझते हैं तथाकथित मित्र गण भी कैसे चुपचाप बैठ जाते हैं..जैसे उनसे कोई परिचय ही न हो. वह ही मूर्ख है जो...पर यह सब लिखकर वह कोई अच्छा कार्य तो नहीं कर रही. इस दुनिया की यही रीत है हरेक को रोना अकेले ही पड़ता है, जबकि साथ हँसने के लिए कई साथी मिल जाते हैं.

कल रात आठ बजे कार मिल गयी. आज मन हल्का है और स्वास्थ्य भी ठीक है. कल कितनी कमजोरी महसूस कर रही थी, जून का भी यही हाल था कल शाम तक. अब सब पूर्ववत् हो गया है, हाँ वे कुछ और करीब आ गए हैं, दुःख व्यक्तियों को जोड़ता है और असली-नकली दोस्तों की पहचान भी कराता है. वे थोड़े गम्भीर भी हो गए हैं इस घटना के बाद..पता नहीं कितने दिनों तक.



Thursday, January 17, 2013

बच्चन की मधुशाला



आज सोमवार है, मौसम वही बादलों वाला, ठंड इतनी, जितनी दिसम्बर-जनवरी में होती है, चिड़ियों की चहकार के कोई शब्द नहीं, कुछ देर पूर्व फोन की घंटी बजी थी जिसकी आवाज पुरे घर में गूंज गयी थी. लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर मत हो रहा है, राव सरकार के लिए आसान सी चुनौती ! 

टीवी पर भारत और वेस्टइंडीज के बीच मैच चल रहा है, उसे सिर्फ २३ रन और बनाने हैं, लगता है भारत हार जायेगा, और सेमी फाइनल में शायद नहीं पहुंच पायेगा. हारते हुए देखना अच्छा नहीं लग रहा पर टीवी बंद कर दे, ऐसा भी तो नहीं कर सकती. आज नन्हे ने सुबह पिया दूध निकाल दिया, उसने कहा, स्कूल मत जाओ, अगर स्कूल में कुछ समस्या हुई तो, वह बोला टीचर से ‘एक्स्यूज मी’ कहकर सिंक के पास चला जाऊँगा और कुल्ला करना भी आता है, कितना क्यूट है वह.. स्कूल जाना उसे बहुत जरूरी लगता है, अच्छा भी लगता है.

आज भी ठंड काफी है और उसका मन कुछ कहना चाहता है, अभी कुछ देर पूर्व उस सखी का फोन आया जिसे देखने वह अस्पताल गए थे, बार-बार धन्यवाद दे रही थी, कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें कहने से उनकी खूबसूरती खत्म हो जाती है, उन्हें सिर्फ महसूस करना और करवाना चाहिए.

भारत और न्यूजीलैंड के बीच मैच, भारत की हार, सेमीफाइनल से बाहर. जून ने फोन पर कहा कि आज उनके विभाग में जी.एम की विदाई पार्टी है, वह हिंदी या अंग्रेजी में एक छोटा सा भाषण लिख दे, उसने लिख तो दिया है, पता नहीं उसे पसंद आता है या नहीं.

शनिवार यानि व्यस्तता भरा दिन..सुबह अभी पूरी गुजरी नहीं है, नन्हा पड़ोस में खेलने गया है, वह कुछ देर पहले अस्पताल से आयी है, बाएं तरफ वाली पड़ोसिन से कुछ देर बात की, उसकी बेटी भी नन्हे के स्कूल में पढ़ती है.

आज कुछ देर पूर्व ही किचन में होली के लिए गुजिया और नमकपारे बनाते समय शायद देर तक खड़े रहने के कारण या गर्मी के कारण उसे चक्कर सा आ गया, हल्कापन सा लगा जैसे गिर ही जायेगी, नौकरानी भी वहीं थी, वह बेल रही थी, सब उसी पर सौंप कर वह कुछ देर के लिए लेट गयी, फिर स्नान करके एक कप दूध पिया. स्टेमिना नहीं है शरीर में..यह तो अच्छा है परिवार छोटा है नहीं तो एक दो घंटे किचन में खड़े होने पर आये दिन यही होता, गरमी भी यकायक बढ़ गयी है. जून कल दफ्तर से लौटे तो उदास थे, उनका पेपर टाइप नहीं हो पाया था आज जमा करना था, अब अगर आज हो जाये तो कल जमा कर सकते हैं. उनके बगीचे में इस वर्ष पॉपी के सुंदर डबल फूल खिले हैं, नन्हा स्वेटर पहन कर स्कूल गया है, कहता था क्या पता मौसम बिगड़ जाये, खूब बातें बनाता है. उसने सोचा है, होली पर जिन लोगों को वे बुलाएँगे उन्हें हँसाने के लिए पेयर-वाइज टाइटिल लिखेगी, बहुत साल पहले घर पर सभी को दिए थे.

होली का उत्सव अच्छी तरह से बीत गया. आज से उसने मैटी की डबल बेड की चादर काढ़नी शुरू की है, इस उम्मीद पर कि एक दिन तो यह पूरी हो ही जायेगी. साथ ही बच्चन की मधुशाला सुन रही है वह कैसेट से, अच्छा लगता है सुनना, हालाँकि वह इतना समझ नहीं पाती इसका वास्तविक अर्थ.

शनिवार को दोपहर को दो बजे नन्हे का एक मित्र आ गया खेलने, चार बजे उसकी माँ आयी, यानि उसकी सखी, फिर छह बजे उसके पापा आए जून के मित्र, पूरा दिन उन्हीं के नाम...दोस्ती के नाम पर सब सहना पड़ता है. परसों जून का पेपर ठीक पढा गया, इतने दिनों की व्यस्तता खत्म हो गयी है. आज उसे नन्हे के स्कूल जाना है, सिल्वर जुबली कार्यक्रम के सिलसिले में. घर से पत्र आया है, छोटी ननद के विवाह की तिथि तय हो गयी है.

बेचैनी यह आतुर मन की
अकुलाहट सूने नयनों की
अंतहीन भटकन कदमों की
प्रज्ज्वलित ज्वाला अंतरस्थल की !

विश्व कप- क्रिकेट का उत्सव



पाकिस्तान को हराकर भारत के तीन अंक हो गए हैं, अगला मैच दक्षिण अफ्रीका से है, उसमें तो विजय निश्चित है. इसलिए वे खुश थे, एक मित्र के यहाँ गए, उसके माँ-पिता दिल्ली से आए हुए थे, उनसे भी मिलना था, वहाँ पता चला, उसकी एक सखी अस्पताल में दाखिल है. नन्हे की परीक्षा की तारीखें आ गयी हैं, स्कूल में रिवीजन शुरू हो गया है, और घर पर भी. कल रात उसका खाने का मन नहीं था, हाथ बांध कर वह बैठ गयी तो कहने लगा मेरा भी तो हाथ है आप इससे खाइए...बच्चे कितने मासूम होते हैं..भोले..फूलों की तरह पवित्र..

सुबह के साढ़े दस बजे हैं, आज धूप का नामोनिशान नही है, ठंड जाते-जाते फिर लौट आती है. बहुत दिनों से उसने कोई कविता नहीं लिखी, अगर वे चंद पंक्तियाँ कविता कही जा सकती हैं जो वह लिखती है. सुबह देखे एक स्वप्न में कितनी आसानी से वह कवितायें कह रही थी  पर अब कुछ याद नहीं आता, पर उस समय उसने सोचा था, लिख लेना चाहिए इन्हें. विश्वकप श्रृंखला में आज दो मैच हैं, पता नहीं भारत का कौन सा स्थान होगा, पर हम भारतीय हर हाल में खुश रहना जानते हैं, यही तो हमारी विशेषता है, जो भी स्थान मिलेगा, उसी के अनुकूल एक्सक्यूजेस निकल लेंगे, आखिर परेशान होकर मिलेगा भी क्या? कल रात जून नींद आने के बावजूद उसकी हल्की सी करवट लेने से उठ गए और रोज की तरह बातें कर के वे सोये, बातें जिनमें होंठ नहीं सिर्फ मन बोलते हैं, सिर्फ एक आश्वस्ति भरा स्पर्श..वह किस तरह समझते हैं..कितना अप्रतिम होता है स्नेह का यह रिश्ता...बातें करना क्या जरूरी है जब चुप रहकर ही सब कहा जाता है. कितनी सुरक्षा..कितना अपनापन..उनकी किसी बात का उसे बुरा नहीं मानना चाहिए..क्योंकि वह कभी नहीं चाहते, वह उदास रहे, नन्हे के लिए भी उनका प्रेम असीम है, उसने खुद से पूछा, आज क्यों वह इतना याद आ रहे हैं..

रात से ही बादल बरस रहे हैं, मार्च का महीना है पर लगता है सावन आ गया है, ठंड भी काफी बढ़ गयी है. सोनू की बायीं आँख सुबह लाल थी, उसने उसे स्कूल जाने से मना किया पर स्कूल छोडना उसे गवारा नहींहोता, वैसे भी वर्षा के कारण आज काफी कम बच्चे आये होंगे. जून कल शाम काफी देर तक अपना पेपर लिखते रहे. उसके पूर्व वे अस्पताल गए थे. पता नहीं क्यों वहाँ से आकर मन कुछ अजीब सा हो गया था जो आधा घंटा एक परिचित के यहाँ बैठने से भी दूर नहीं हुआ और बिस्तर तक उसके साथ गया. एक हफ्ता हो गया कोई भी चिट्ठी नहीं आयी, इसी तरह न जाने कितने दिन, कितने हफ्ते गुजरते जा रहे हैं. नन्हे को दिनोंदिन बड़ा होते, समझदार होते देखना अच्छा लगता है. एक पल वह बच्चा बन जाता है फिर कोई ऐसी बात बोलेगा कि लगता है बड़ा हो गया है, रात ही कह रहा था, “माँ जब मैं अकेला होता हूँ तो अकेला नहीं होता कोई मेरे साथ रहता है, जो मेरी बातें सुनता है बस जवाब नहीं दे पाता”, उसने पूछा, कौन ? तो बोला, “मेरा मन, मैं उसके साथ बहुत बातें करता हूँ”. आज जून के एक मित्र भी खाने पर आएंगे, उसने सोचा अब लिखना बंद करना चाहिए. जल्दी से बादलों पर चार लाइनें लिखने का प्रयास करेगी-

उमड-घुमड़ कर अजब रूप धर
काले, भूरे, धूसर बादल,
जब देखो छा जाते नभ पर
और बरसने लगते झर-झर !

विश्वकप के नियमों के तथा वर्षा की बदौलत भारत और जिम्बाववे के मैच में भारत विजयी हुआ है. बहुत दिनों बाद ‘हमलोग’ देखा, कहानी बहुत धीरे धीरे बढ़ रही है.
आज सोमवार है, मौसम वही बादलों वाला, ठंड इतनी, जितनी दिसम्बर-जनवरी में होती है, चिड़ियों की चहकार के कोई शब्द नहीं, कुछ देर पूर्व फोन की घंटी बजी थी जिसकी आवाज गूंज गयी थी. लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर मत हो रहा है, राव सरकार के लिए  आसान सी चुनौती !