Thursday, January 17, 2013

विश्व कप- क्रिकेट का उत्सव



पाकिस्तान को हराकर भारत के तीन अंक हो गए हैं, अगला मैच दक्षिण अफ्रीका से है, उसमें तो विजय निश्चित है. इसलिए वे खुश थे, एक मित्र के यहाँ गए, उसके माँ-पिता दिल्ली से आए हुए थे, उनसे भी मिलना था, वहाँ पता चला, उसकी एक सखी अस्पताल में दाखिल है. नन्हे की परीक्षा की तारीखें आ गयी हैं, स्कूल में रिवीजन शुरू हो गया है, और घर पर भी. कल रात उसका खाने का मन नहीं था, हाथ बांध कर वह बैठ गयी तो कहने लगा मेरा भी तो हाथ है आप इससे खाइए...बच्चे कितने मासूम होते हैं..भोले..फूलों की तरह पवित्र..

सुबह के साढ़े दस बजे हैं, आज धूप का नामोनिशान नही है, ठंड जाते-जाते फिर लौट आती है. बहुत दिनों से उसने कोई कविता नहीं लिखी, अगर वे चंद पंक्तियाँ कविता कही जा सकती हैं जो वह लिखती है. सुबह देखे एक स्वप्न में कितनी आसानी से वह कवितायें कह रही थी  पर अब कुछ याद नहीं आता, पर उस समय उसने सोचा था, लिख लेना चाहिए इन्हें. विश्वकप श्रृंखला में आज दो मैच हैं, पता नहीं भारत का कौन सा स्थान होगा, पर हम भारतीय हर हाल में खुश रहना जानते हैं, यही तो हमारी विशेषता है, जो भी स्थान मिलेगा, उसी के अनुकूल एक्सक्यूजेस निकल लेंगे, आखिर परेशान होकर मिलेगा भी क्या? कल रात जून नींद आने के बावजूद उसकी हल्की सी करवट लेने से उठ गए और रोज की तरह बातें कर के वे सोये, बातें जिनमें होंठ नहीं सिर्फ मन बोलते हैं, सिर्फ एक आश्वस्ति भरा स्पर्श..वह किस तरह समझते हैं..कितना अप्रतिम होता है स्नेह का यह रिश्ता...बातें करना क्या जरूरी है जब चुप रहकर ही सब कहा जाता है. कितनी सुरक्षा..कितना अपनापन..उनकी किसी बात का उसे बुरा नहीं मानना चाहिए..क्योंकि वह कभी नहीं चाहते, वह उदास रहे, नन्हे के लिए भी उनका प्रेम असीम है, उसने खुद से पूछा, आज क्यों वह इतना याद आ रहे हैं..

रात से ही बादल बरस रहे हैं, मार्च का महीना है पर लगता है सावन आ गया है, ठंड भी काफी बढ़ गयी है. सोनू की बायीं आँख सुबह लाल थी, उसने उसे स्कूल जाने से मना किया पर स्कूल छोडना उसे गवारा नहींहोता, वैसे भी वर्षा के कारण आज काफी कम बच्चे आये होंगे. जून कल शाम काफी देर तक अपना पेपर लिखते रहे. उसके पूर्व वे अस्पताल गए थे. पता नहीं क्यों वहाँ से आकर मन कुछ अजीब सा हो गया था जो आधा घंटा एक परिचित के यहाँ बैठने से भी दूर नहीं हुआ और बिस्तर तक उसके साथ गया. एक हफ्ता हो गया कोई भी चिट्ठी नहीं आयी, इसी तरह न जाने कितने दिन, कितने हफ्ते गुजरते जा रहे हैं. नन्हे को दिनोंदिन बड़ा होते, समझदार होते देखना अच्छा लगता है. एक पल वह बच्चा बन जाता है फिर कोई ऐसी बात बोलेगा कि लगता है बड़ा हो गया है, रात ही कह रहा था, “माँ जब मैं अकेला होता हूँ तो अकेला नहीं होता कोई मेरे साथ रहता है, जो मेरी बातें सुनता है बस जवाब नहीं दे पाता”, उसने पूछा, कौन ? तो बोला, “मेरा मन, मैं उसके साथ बहुत बातें करता हूँ”. आज जून के एक मित्र भी खाने पर आएंगे, उसने सोचा अब लिखना बंद करना चाहिए. जल्दी से बादलों पर चार लाइनें लिखने का प्रयास करेगी-

उमड-घुमड़ कर अजब रूप धर
काले, भूरे, धूसर बादल,
जब देखो छा जाते नभ पर
और बरसने लगते झर-झर !

विश्वकप के नियमों के तथा वर्षा की बदौलत भारत और जिम्बाववे के मैच में भारत विजयी हुआ है. बहुत दिनों बाद ‘हमलोग’ देखा, कहानी बहुत धीरे धीरे बढ़ रही है.
आज सोमवार है, मौसम वही बादलों वाला, ठंड इतनी, जितनी दिसम्बर-जनवरी में होती है, चिड़ियों की चहकार के कोई शब्द नहीं, कुछ देर पूर्व फोन की घंटी बजी थी जिसकी आवाज गूंज गयी थी. लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर मत हो रहा है, राव सरकार के लिए  आसान सी चुनौती !  




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