Sunday, January 13, 2013

प्रोफेसर पूरण सिंह- पंजाब के शायर



वित्तमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा विश्वबैंक से बजट सम्बन्धी पत्राचार को लेकर आज लोकसभा में हंगामा हुआ. रेलवे बजट संतुलित है. टीवी पर पंजाब के कवि, दार्शनिक, चिंतक, शायर के बारे में प्रोग्राम आ रहा है..अमृता प्रीतम उनके बारे में कितनी अच्छी भाषा में बता रही हैं. ‘पूरन सिंह’ धरती के मानस पुत्र थे, उनकी कविता मजदूर चंगे ! कितनी मार्मिक है कितनी सच्ची, १९३१ में उनका देहांत हो गया. प्रोफेसर पूर्ण सिंह की और भी कितनी कवितायें होंगी.. ऐसे ही भारत की अन्य भाषाओँ के भी कितने ही कवि होंगे जो अनोखी बात सीधी-सादी भाषा में कह जाते हैं. पंजाब के कवि की यह नज्म भी कितनी अच्छी है-

उत्तर की हवाओं के चुम्मन पी पीकर ...ओ फाख्ता !

और.. तू हमें छोड़कर कौन सी राह पर चल दिया पंजाब ?
मैं तो एक गीत हूँ हवा में कांपता हुआ..

सुरजीत कुमार का छायांकन कितना सुंदर है..लाल, नीले, पीले, गुलाबी, सलेटी आकाश के ये चित्र और नीले, लाल पानी में पड़ती हुई सूरज की छाया......झील का काँपता हुआ पीला पानी और सलेटी पहाड़..सब कुछ आँखों को मुग्ध कर रहे हैं...और दिल में कैसी हूक सी उठती है आँखें नम होने को आतुर और सीने पर जैसे कोई भार सा है..कितना महान शायर था वह, जिसने उसे पहली बार में ही अपना प्रशंसक बना लिया है. उसने भी कुछ पंक्तियाँ लिखीं-

जैसा मन तूने मेरा बनाया है ओ खुदा !
वैसा उनका क्यों नहीं बनाया
जो छुरियाँ चलाते हैं दरख्तों के सीने पर
रूप बिगाड़ रहे हैं सलोनी धरती का
जो अमृत से पानियों में जहर घोलते हैं
ऊंचें पहाड़ों को बारूद से उड़ाते हैं
ये धरती, हवा, पानी, पहाड़ ही तो जीवन हैं..तेरा सच्चा रूप ओ खुदा !
फिर तू क्यों चुप है ?


कल वे क्लब गए थे पर सिर्फ आधे घंटे के लिए, जून ऑफिस से देर से आये थे और नन्हे ने टेबल्स में बहुत सी गलतियाँ की थीं. कल कोई खत नहीं आया, फोन भी नहीं मिला, शाम को जून ने कोशिश की थी.आज फिर कल की तरह मौसम खिला-खिला है, धूप अब तेज लगती है, बाहर देर तक बैठा नहीं जाता. आज उसने सूजी के लड्डू बनाये थे. कल रात उसने एक स्वप्न देखा-

कल रात स्वप्न में आकाश में उड़ता एक जहाज देखा
जिसमें पीछे-पीछे
आग की एक लपट भी थी
जाने वह जहाज की अपनी थी या
उसका पीछा कर रही थी
फिर आकाश की दसों दिशाओं में
रोशनियाँ प्रज्ज्वलित हो उठीं
युद्ध की दुन्दुभी बजने लगी
और पर कटे पंछी सा जहाज
धरती पर आ गिरा
वह उसके पास गयी
एक पुतला
झीने आवरण में लिपटा लेटा था
और पास ही एक छोटी बच्ची सिसक रही थी
रात्रि से सुबह, और सुबह से शाम हो गयी है और यह स्वप्न उसके पीछे-पीछे है, क्या स्वप्नों का कोई अर्थ होता है, यदि हाँ, तो क्या वह जहाज उसका तन था और बच्ची उसकी आत्मा ?

No comments:

Post a Comment