आज हफ्तों बाद सुबह लिखने का सुयोग मिला है. कल रात से लगातार
वर्षा हो रही है. भीषण गर्जना के कारण रात को एक बार नींद खुल गयी, जब आई तो बहुत
दिनों बाद एक दुःस्वप्न देखा. पिताजी व माँ को भी स्वप्न में काफ़ी देर तक देखा.
उन्होंने कोई फोटो खोजने को कहा था, जब पूछा, मिल गया तो याद आया, अभी तो खोजना भी
शुरू नहीं किया. एक स्वप्न में उन्हें मदद के लिए बुलाती है, आवाज भी दी है, और
कानों से उसे सुना भी. स्वप्नों की दुनिया कितनी विचित्र होती है. आज धौती व नेति
दोनों की, तन हल्का लग रहा है. जून ने कहा है अपना सोनी का नोटपैड मृणाल ज्योति के
एक टीचर को दे देंगे. कोई वस्तु किसी के काम आये, इसीमें उसकी सार्थकता है. दीवाली
के लिए घर की सफाई का कार्य चल रहा है, पर हो सकता है इस दीवाली पर वे बंगलूरू
जाएँ. वहाँ की दीवाली भी देखने योग्य होगी.
आज 'हिंदी दिवस' है. व्हाट्सएप पर संदेश भेजे.
फेसबुक पर हिंदी दिवस की शुभकामनायें दीं. इसके अलावा तो हिंदी के प्रचार-प्रसार
के लिए कुछ नहीं किया. छोटा सा लेख या कविता जो हिंदी के महत्व को दर्शाती हो, अभी
भी लिखी जा सकती है. बचपन से हिंदी की कहानियाँ पढ़ते-पढ़ते हिंदी के लेखकों-कवियों
का सान्निध्य प्राप्त करते-करते यह भाषा इस तरह भीतर घुल-मिल गयी है कि थोड़े से प्रयास
से ही कुछ भीतर से झरने लगता है. शब्दों के बीज जो बचपन में बोये थे मन की धरती
पर, वह आज विचारों की पत्तियां और शाखाओं के रूप में खिल रहे हैं. वे ऋणी हैं इस
भाषा के, जिसने उन्हें सूर, तुलसी के रूप में कृष्ण और राम का अवतार दिया. गीतों
और कविताओं की एक लम्बी श्रंखला जो हिंदी के साहित्य को समृद्ध कर रही है, उनकी
धरोहर है. इसे सम्भालना है, इससे पोषित होना है और इसे पल्लवित भी करना है !
शाम के सात बजे हैं, कुछ देर पूर्व ही वे
डिब्रूगढ़ से आये हैं. उसने कुछ वस्त्र खरीदे और जून ने विवाह के कार्ड्स पर लगाने
के लिए स्टिकर्स लिए. नन्हे से बात की, वह परसों मुम्बई जा रहा है. कोकिला बेन और
हिंदुजा अस्पताल के मैनेजमेंट से मिलने, वे उसकी कम्पनी के बड़े क्लाइंट हैं. अपनी
मेहनत के बल पर कम्पनी आगे बढ़ रही है, पर वह अपनी सेहत का ध्यान ठीक से नहीं रख
पाता है. आज जून ने दोपहर का लंच अकेले किया, दोपहर को उसे महिला क्लब द्वारा
चलाये जाने वाले छोटे बच्चों के स्कूल जाना पड़ा. डेढ़ घंटे से भी कुछ ज्यादा समय
सभी अध्यापिकाओं के साथ अध्यक्षा का भाषण सुनते हुए बिताया. उसे आश्चर्य होता है,
वह इतना समय तक बिना थके कैसे बोल लेती हैं. आज श्वास लेते हुए कई बार पूल की
चौड़ाई पार की. प्राणायाम करते समय भी श्वास को पूरी तरह अनुभव किया, इतने वर्षों
से श्वास को देखने का ध्यान किया है पर श्वास को आरम्भ से अंत तक इस तरह महसूस
पहले नहीं किया था. सुबह टहलने गयी तो चलने में जरा भी प्रयास नहीं करना पड़ रहा
था. उठने से पूर्व एक स्वप्न में अपने किसी पूर्व जन्म का दृश्य देखा, एक कहानी
जैसा. जिसमें एक लड़की दरजिन के पास कपड़े सिलवाने जाती है, जिसे किसी शाह ने उसके
लिए खरीदे हैं. इस जन्म के कई सवालों के जवाब इस स्वप्न में मिल गये.
बहुत बहुत आभार !
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