दोपहर के तीन बजने को हैं, आज धूप
तेज है, ग्रीष्म ऋत है सो गर्मी होना स्वाभाविक है. जून चार-पांच दिनों के लिए अहमदाबाद
गये हैं. उसने सोचा गर्मियों के वस्त्र सहेज कर रखने और सर्दियों के वस्त्र बाहर
निकलने का यही उचित समय है. कल रात तेज वर्षा, आंधी, तूफान के कारण बिजली चली गयी.
घोर अंधकार छा गया, बाहर भी भीतर भी. पल भर के लिए एक अजीब सा भय उत्पन्न हो गया.
भीतर न जाने कितने संस्कार दबे हैं. भय का संचार होते ही वे जग जाते हैं. जैसे
अँधेरे में सारे रात्रि के जीव निकल आते हैं वैसे ही मन यदि तनिक भी भय का शिकार
हुआ तो भूत बनकर कुसंस्कार चिपक जाते हैं. प्रकाश होते ही सब जीव चले जाते हैं
वैसे ही ज्ञान का प्रकाश होते ही वे भी जल जाते हैं. साधना के द्वारा उन्हें पूरा
नष्ट करना होगा, ताकि घोर अंधकार में भी मन अभय का पात्र ही बना रहे.
उस दिन से शुरू हुई वर्षा आज थमी है, पर हवा ठंडी है, स्वेटर पहनना पड़े इतनी
ठंडी. आज सुबह सुंदर व्याख्यान सुना, शब्दों को वे सुनते हैं, कानों को भले लगते
हैं पर थोड़ी ही देर में अपना असर खो देते हैं. उसके अर्थ पर जब ध्यान हो, अर्थ में
मन टिक जाये, वे अर्थरूप ही हो जाएँ तभी शब्दों का काम पूरा होता है.
कल दोपहर एक सखी के यहाँ हालैंड वासी एक आर्ट ऑफ़ लिविंग के स्वामी से भेंट
हुई, वह बहुत अच्छी हिंदी बोलते हैं तथा संस्कृत में धाराप्रवाह श्लोक भी. शाम को
जून के दो मित्र आए, समय बदलता रहता है, एक सा नहीं रहता. कभी वे सब परिवार एक साथ
बैठकर भोजन करते थे, अब सब दूर-दूर हो गये हैं. मृणाल ज्योति का एक बच्चा जिसे कई रोग एक साथ थे, कल रात नींद में ही चल बसा. उस दिन वह स्कूल गयी थी तो हॉस्टल के कुछ बच्चे
मिले थे, पता नहीं उनमें से कौन सा था.
कुछ दिनों से नन्हे का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, उससे बात करके उसने कुछ सोचा और
जून को एक पत्र लिखा, ताकि वापस आकर वह इसे पढ़े. उन्होंने इकलौते पुत्र को बचपन
में बहुत स्नेह से पाला, लेकिन उसकी युवावस्था में उसे अकेला छोड़ दिया, अठारह वर्ष
की उम्र बहुत नाजुक होती है. कोटा में उसे हॉस्टल में छोड़ आए थे तो वह बहुत तनाव
में रहा होगा. घर की सुरक्षा से दूर एक अनजान शहर में...फिर कालेज में कितनी हिंसा
और तनाव झेलना पड़ा, अच्छे पल भी यकीनन थे पर वह कहते हैं न कि नकारात्मक की ओर झुकने की
प्रवृत्ति मानव में सहज ही होती है. उसे लगता है बंगलुरू में भी उसे कार्यभार और
जीवन की कठिनाइयों से अकेले ही जूझना पड़ रहा है. उसे लगता है पुत्र के प्रति अपना कर्त्तव्य
निभाने में उनसे कुछ चूक अवश्य हुई है. वे एक-दूसरे के प्रति जिस तरह पूर्ण
समर्पित हैं वैसे ही उसके प्रति नहीं हो पाए. उसने लिखा, जून को अब मजबूत बनना
होगा, उसके बिना रहने की आदत डालनी होगी. कुछ दिनों के लिए वह नन्हे के साथ रहना
चाहती है. उसे नया जीवन शुरू करना है, जिसके लिए उसे मानसिक व शारीरिक रूप से
स्वस्थ होना चाहिए. उसे उनका साथ सदा ही चाहिए था पर वे अपने जीवन में इतना खोये
थे कि उसके साथ रहकर उसे सहारा नहीं दे सके. वह कितनी-कितनी परेशानियों को अकेला
ही सहता रहा, उसने कभी उन्हें अपना राजदार नहीं बनाया. अब समय आ गया है पुत्र के
लिए अपने सुख के त्याग का समय, उसे अपना कर्त्तव्य स्पष्ट दिखाई दे रहा है. उनका
शेष जीवन उसके लिए हो, उसे जीवन में अभी प्रवेश करना है. यही उम्र है जब उन्होंने
विवाह बंधन में बंधकर नया जीवन शुरू किया था और उन्हें परिवार का पूर्ण सहयोग था.
उसने उम्मीद की, जून जब यह पत्र पढ़ेंगे, उसकी बात समझ रहे होंगे.
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