आकाश में सुबह से बदली बनी है.
जून अभी तक घर नहीं आए हैं. हवा बह रही है. वह बाहर झूले पर बैठी है. आज शाम वे कई
हफ्तों बाद ध्यान-कक्ष में ही सत्संग करने वाले हैं, तैयारी हो गयी है. प्रसद रूप
भोजन भी बन गया है. आज नेट नहीं चला, सो कोई पोस्ट नहीं डाल पायी. नई कविता भी
नहीं लिखी है, अन्य कवियों की कविताएँ पढ़ रही है, सभी के भीतर कितने सुंदर भाव
उठते हैं, सभी तो एक ही चेतना का अंश हैं. अब अपना-पराया कुछ भी महसूस नहीं होता.
खुद लिखे, ऐसा भी मन नहीं होता. जो हो रहा है, वही हो..जो परमात्मा चाहे वही हो !
बापू कहते हैं, सूधे मन से, सूधे वचन से तथा सूधी करतूती से उर में प्रेम का
जन्म होता है. प्रेम में कोई नियम नहीं होता. “हरि देखा सर्वत्र समाना, प्रेम ते
प्रकट होए मैं जाना” हृदय में यदि प्रेम प्रकट हो तो ही परमात्मा प्रकट होता है,
पर वे उसको पहचान नहीं पाते. भीतर इतने अशुभ संस्कार रहते हैं कि वे उसे महत्व ही
नहीं देते. प्रेम जब निरंतर बढ़ता ही रहे तो ही वह परमात्मा उनके अनुकूल होगा
अर्थात वह उसे पहचान पाते हैं. प्रेम को निरंतर बढ़ना ही चाहिए, नित-नित बढ़े वही
प्रेम है ! अकबर ने अपने नवरत्नों से एक बार पूछा था, अल्लाह की जाति क्या है, रंग
क्या है, अंग कैसा है, जवाब मिला इश्क अल्लाह की जाति है, इश्क अल्लाह का रंग और
वह इश्क से ही बना है ! उनकी कथा आ रही है, “सब सोच विमोचन चित्रकूट, कलि हरण करण
कल्याण कूट”. कल रात एक अनोखा स्वप्न देखा. छोटी बहन का परिवार है, जून और वह है.
एक उपकरण बनाया है दोनों के पतियों ने, वे उसे दोनों ओर से पकड़े बैठे हैं और वह
फोटो खींच रही है. तभी अचानक जून का चेहरा गोरा हो जाता है, नीली आँखें, उसकी इस
बात पर कि यह तो फ्रेंच है, छोटी बहन के पतिदेव कह उठते हैं मैं जर्मन हूँ, उसका
भी चेहरा बदल जाता है. जरूर किसी पूर्व जन्म का स्वप्न होगा.
बायीं आँख में उपर की
पलक के पास हल्का दर्द है, जून ने फोन किया वे उसे डाक्टर के पास ले जाने आयेंगे
अभी कुछ देर में. आज धूप तेज है, मौसम हर रोज अपना मिजाज बदलता है. अगले महीने वे
उसे गोवा ले जायेंगे, वे एक हफ्ता वहाँ रहेंगे. अब लगता है भीतर परम विश्राम मिला
है. तन की अवस्था कैसी भी हो मन सदा एकरस बना रहता है. परमात्मा जैसे अपनी याद खुद
दिलाता रहता है. जून को पिछले चार-पांच दिनों से सर्दी लगी है. एक दिन उनके भी
जीवन में ध्यान आये, ऐसी ही प्रार्थना उसकी प्रभु से है, नन्हे को भी ऐसा ही
विश्राम प्राप्त हो. जीवन का परम लक्ष्य यही है, एक ऐसी अनवरत शांति और आनंद का
स्रोत उनके भीतर है, जो उनका अपना है, उस तक उनकी पहुंच हो.
अगस्त का अंतिम दिन !
मौसम सुहाना है, वर्षा के कारण सभी कुछ स्वच्छ और आकाश में पूर्णिमा का चाँद बहुत बड़ा
सा ! अभी कुछ देर पहले वे लॉन में टहलकर वापस कमरे में आये हैं. जून की तबियत
बेहतर है. नन्हा आजकल बहुत व्यस्त चल रहा है. कल बड़े भांजे को भी हॉस्टल शिफ्ट
करना है, उसके घर में ही ठहरा है. नूना का मन शांत है, अब अपने घर का पता मिल गया
है, एक पल लगता है उसमें जाने में !
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