आज सुबह इस बात का अर्थ स्पष्ट हुआ कि यह जगत एक नाटक
है, एक लीला है और उन्हें इसमें कुशलता से अपना पात्र निभाना है. जिस समय जो भी
भूमिका मिले, उसे पूरी ईमानदारी से निभाते चलें तो कोई दुःख छू भी नहीं सकता, वे
जो नहीं हैं, वह बनने का प्रयत्न करते रहते हैं और जो हैं उससे चूक जाते हैं,
व्यर्थ के कर्मों का बंधन बांध लेते हैं. आज भी मौसम वर्षा का है, पंखे से ठंडी
हवा आ रही है. इस समय उसका रोल एक लेखिका का है, एक कविता लिखेगी, इन्हीं भावों पर
आधारित. कल से एक नई किताब पढनी शुरू की है, अच्छी लग रही है रूमी की कहानी. उसकी अपनी
कहानी भी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है.
आज सुना, शक्ति जब ऊपर के केन्द्रों में जाती है तो
साधक के देखने की शक्ति बढ़ जाती है, लेकिन सत्य इन सबके पार है, वह देखने वाला है.
ऊर्जा का सदुपयोग हो सदा इसके लिए सजग रहना है. कल नन्हा आ रहा है अपने दो मित्रों
के साथ, जिनमें से एक लड़की है. उसने सोचा, देखे, ऊंट किस करवट बैठता है. बंगलूरू
में ट्रैफिक ज्यादा है, प्रदूषण है हर तरह का. जिंदगी एक चुनौती है, जिसे उठाना ही
होगा. वक्त ही बतायेगा कि भविष्य में क्या लिखा है.
मेहमान चले गये. आज पूरे एक हफ्ते बाद डायरी खोली है.
पिछले दिनों ब्लॉग पर पोस्ट डालने के अलावा कुछ नहीं लिखा. आज मौसम का मिजाज गर्म
है. इस समय सुबह के दस बजे हैं. पिताजी अपने कमरे में बैठे हैं, टीवी बंद है,
अख़बार पढ़ चुके हैं. नन्हे का संदेश आया है, सवा नौ बजे, ऑफिस जा रहा था. आज
अपेक्षाकृत स्वस्थ है नूना, पिछले दो दिन तबियत ढीली-ढाली सी थी, लेकिन भीतर आत्मा
का दीपक ज्यों का त्यों जलता रहा, शक्ति भी बनी रही. अभी कुछ देर पूर्व ग्लूकोज का
एक गिलास पिया, मुँह का स्वाद अभी भी बिगड़ा हुआ है. एकाध दिन में सामान्य हो ही
जायेगा, लेकिन यह अस्वस्थता उसे बहुत बड़ा पाठ पढ़ा कर गयी है. नन्हे के कारण भी कई
पाठ पढ़ने को मिले हैं. वे अपने बनाये पूर्वाग्रहों के जाल में इस कदर जकड़े रहते
हैं कि जरा सा भी विपरीत होने पर उसमें कसमसाने लगते हैं. समाज में हर तरह के लोग
हैं, आदिकाल से होते आये हैं. हरेक अपनी तरह से जीता है. समाज कुछ नियम बनाता है
जिन्हें पालन करना होता है, लेकिन अपनी जीवनचर्या के लिए किसी को नीचा देखना
व्यर्थ है. यह खुद को नीचा गिराने जैसा है. हरेक स्वतंत्र है और अक्सर वे जिन
बातों के लिए अन्यों को दोष देते हैं, जरूरत पड़ने पर खुद भी वही कर रहे होते हैं.
अपने लिए एक कसौटी व दूसरों के लिए दूसरी कसौटी यही तो दम्भ है. इस तरह तो इस जगत
में कोई भी दोषी नहीं है, यहाँ पूर्ण न्याय है. परमात्मा हरेक के भीतर है यदि
व्यक्ति उसकी ओर नजर उठाकर देखे तो सारे प्रश्न गिर जाते हैं, भीतर समाधान मिल
जाता है किसी के प्रति कोई राग-द्वेष नहीं रहता. जीवन एक सहज धारा की तरह बहने
लगता है !
आज गुरु पूर्णिमा है, नैनी ने एक पुत्र को जन्म दिया
है. उसे आश्चर्य हुआ. दो-दो बार तो संयोग नहीं हो सकता. उसकी बिटिया का जन्म
गुरूजी के जन्मदिन पर हुआ, माँ ने उसका नाम मीरा रखा था. बेटे का जन्म गुरु
पूर्णिमा के दिन, उसकी भक्ति भावना अवश्य सद्गुरु तक पहुंच गयी है.
कल कुछ नहीं लिखा. स्वस्थ नहीं थी. आज सुबह अस्पताल
गयी थी, शाम तक रिपोर्ट मिल जाएगी, सब कुछ सामान्य ही होगा. भोजन के प्रति जो दृढ
आसक्ति थी, उसे छुड़ाने के लिए ही यह सब प्रकृति द्वारा रचा गया है. ‘शिव’ वह नई आत्मा
जो नैनी के गर्भ से जन्मी है, अच्छा भाग्य लायी है. इतने शुभ दिन उसका जन्मना और
इतनी सरलता से माँ को कष्ट दिए बिना धरती पर आना भी यही बताता है. उसके प्रति सहज
ही स्नेह उमड़ता है, नवजात शिशु कितना निष्पाप होता है.
कल शाम बेहद तेज वर्षा हुई, मूसलाधार वर्षा. जून को
आने में देर हुई, उसे लगा वह डाक्टर से उसकी मेडिकल रिपोर्ट डिस्कस कर रहे होंगे. लिवर
में कुछ वृद्धि मिली है उसकी पाचन संबंधी सारी परेशानियां उसी के कारण हो रही हैं.
अगले एक महीने तक दवा खानी है. देह में अतिरिक्त गर्मी के कारण ऐसा होता है. पर इन
सब बातों के बावजूद उसकी भीतरी ऊर्जा वैसी ही है. परमात्मा की कृपा रूप जो कष्ट
मिला है, उसने जीवन को एक नई दिशा दी है. व्यर्थ को छूट ही जाना चाहिए. जून उसके
लिए प्रोटिनेक्स और प्रोटीन बिस्किट ले आए हैं. प्रोटीन से रोग प्रतिरोधक शक्ति
बढ़ेगी, गुरूजी कहते हैं देह का सम्मान करो. उसने अपने लिवर को न जाने कितनी बार
जलाया है. क्रोध, ईर्ष्या और भय के कारण, आज उससे क्षमा मांगी, उसे स्नेह भेजा,
आगे ऐसा न करने का वचन भी देना चाहिए. परमात्मा उसके जीवन से सभी अवांछित बातों को
हटाता जा रहा है. उससे परमात्मा को कोई काम होगा भविष्य में तभी तो वह उसे तैयार
कर रहा है. इस वक्त भी जो कुछ उससे हो रहा है, वह उसी का है.
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