अभी कुछ देर में उन्हें आगे की
यात्रा के लिए निकलना है. तैयारी हो रही है. पिताजी यहीं रहेंगे, अभी तक सुबह के
भ्रमण से वापस नहीं आये हैं. छोटी ननद मेथी पुलाव बना रही है व रात के लिए रोटी व
भिंडी की सब्जी. यहाँ की आवभगत का जवाब नहीं है.
कल पिताजी काफी देर तक नहीं आए तो वे सभी परेशान हो गये थे. नाश्ता खाने तक का
मन नहीं हो रहा था, फिर पता चला वह अपने एक मित्र के यहाँ बैठे थे, उनके आने पर सबने नाश्ता
खाया और वे स्टेशन के लिए चल पड़े. जहाँ बंदरों का एक झुण्ड छत पर लगी लोहे की
पाइपों और बीम पर करतब दिखा रहा था. वह कुछ देर उनके चित्र उतारती रही. जून ने भी फोटो
खींचे. ट्रेन दो घंटे लेट थी, छोटा भाई गन्तव्य पर लेने आया था, वह स्टेशन पर रात्रि
के बारह बजे ही आ गया था, दो घंटे तक ओशो की किताब पढ़ रहा था. पौने चार बजे वे घर
पहुंचे, सब सोये थे. छोटी बहन कुछ देर में उठकर आई. दोपहर को सारे परिवार की बैठक
शानदार थी, बड़ी बहन जीजाजी व उनका बड़ा भी पुत्र आ गया था. शाम को वे छोटी ननद की
ससुराल गये. उसके ससुर ज्यादा बात नहीं करते, सुन नहीं सकते, सासूजी भी कई
व्याधियों से ग्रस्त हैं पर कोशिश कर रही हैं पूर्ण स्वस्थ रहने की.
दो दिन बाद वे दिल्ली के लिए रवाना हुए थे. मोर की केंआ केंआ इस भरी दोपहरी
में भी सुनाई दे रही है. सामने वाले पीपल के चबूतरे पर से उतर कर दो गिलहरियाँ
नीचे से कुछ उठाकर खा रही हैं. कबूतरों का आना-जाना जारी है. अभी एक तिनका लेकर
आया और बक्से के नीचे घुस गया. एक कार्टन के पीछे सफेद रंग का छोटा सा अंडा भी पड़ा
है. यहाँ बालकनी में बैठकर लिखना सुखद अनुभव है. एक कबूतर बिलकुल सामने आकर बैठा
है, उसकी स्लेटी देह पर काली धारियां और गुलाबी व हरी चमकदार गर्दन सुंदर लग रही
है. गिलहरियों की चिटक-पिटक भी जारी है.
आज दिल्ली में अंतिम दिन है, कल पुनः वाराणसी के लिए रवाना होना है. सुबह एक मोर
का पुनः दर्शन किया. दिल्ली की कितनी हसीन यादें लेकर वे जा रहे हैं, बड़ी भाभी
भोजन बना रही है और साथ-साथ फोन पर बात भी कर रही हैं. शाम को मंझली भाभी को फोन
किया तो उसने कहा घर खाली लग रहा है. कोई आता है तो अच्छा लगता है और जाता है तो
उसी अनुपात में अकेलापन खलता भी है.
दिल्ली से वापसी की यात्रा में वे दो ही हैं एसी टू टियर में. जून सामने की
बर्थ पर लेटे हैं, स्टेशन से दो पत्रिकाएँ लीं, ‘अहा जिन्दगी’ तथा ‘लफ़्ज, दोनों
यात्रा में पढ़ने के लिए आदर्श पत्रिकाएँ हैं. शाम हो गयी है. उसने कुछ लिखा है
यात्रा की यादें ही कहा जायेगा उन्हें, एक सफल और यादगार यात्रा रही है अब तक की.
परसों सुबह पौने पांच बजे ट्रेन काशी विश्वनाथ स्टेशन पर पहुंची, घर आए तो सभी
जगे थे. अभी आज अंतिम दिन उन्हें यहाँ रहना है, शाम की वापसी है. सुबह हवा में
ठंडक थी पर अब मौसम गर्म है. सुबह उठकर सूर्योदय के दर्शन करने व नौका विहार करने
गंगा घाट गये. घाट पहुंचने से पहले ही देशी-विदेशी पर्यटकों की भीड़ लगी थी. बड़ी-बड़ी
गाड़ियाँ और बसें पंक्तिबद्ध खड़ी थीं. गंगापार रेत पर सूर्य के सम्मुख होकर सूर्य
नमस्कार किया. ठंडी हवा व ठंडी रेत का स्पर्श बहुत गहरे तक मन को छू गया, बादलों
से आँख-मिचौनी खेलता सूर्य का गोला कभी दीखता कभी छिप जाता था. वापस लौट रहे थे तो
एक पौधे बेचने वाले से ‘रात की रानी’ व ‘अजवायन’ के दो पौधे खरीदे. यह लिखते-लिखते
ही मौसम ने अचानक रुख बदल लिया है, धूल भरी आँधी आ रही है, यह घर ऊपर है, दो
मंजिला, सो तेज हवा घर के सारे दरवाजों को हिला रही है. सुबह सफाई की गयी थी पर पल
भर में सारे कमरे पुनः धूल से भर गये हैं. दोपहर के साढ़े बारह बजे हैं, लग रहा है
शाम हो गयी है.
कलकाता गेस्ट हॉउस में वह टीवी पर बहुत दिनों के बाद श्री श्री को सुन रही है
और साथ-साथ पैकिंग का कार्य भी चल रहा है. कल वे रेलवे स्टेशन पर उतरे तो वर्षा हो
चुकी थी, पानी भरा था, सडकों पर भी पानी इकठ्ठा हो गया था पर दोपहर बाद धूप तेज हो
गयी. वे पिताजी को विक्टोरिया मेमोरियल और बिरला प्लेनेटोरियम दिखाने ले गये. शाम
को मन्दिर भी गये. आज ही दोपहर की फ्लाईट से घर वापसी है.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 02-03-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2600 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
स्वागत व बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !
ReplyDeleteआँखों देखा हाल सुन्दर लगा
ReplyDeleteस्वागत व आभार कविताजी !
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