आज असमिया सखी के पुत्र का
जन्मदिन है, जो कुछ वर्ष पहले तबादले के कारण यहाँ से चली गयी है, उसने फोन किया,
वह खुश है कि एक और सखी वह जा रही है. यह संसार ऐसा ही है कोई आता है, कोई जाता
है. वे देखने वाले हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं. कल रात एक अनोखा स्वप्न देखा. नन्हा,
पिताजी और जून तीनों ने मिलकर गुरूजी के लिए दोपहर के भोजन का इंतजाम किया है. वे
कमरे में भोजन कर रहे हैं और वे सभी बाहर खड़े हैं, वह भी बाहर है. गुरूजी हाथ धोने
के लिए बाहर आते हैं, उन्होंने श्वेत वस्त्रों पर भूरे रंग का लम्बा चोगा पहना है,
जब लौटते हैं, वह उन्हें प्रणाम करती है. उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं है, वह उनके
चरणों पर झुकती है और मन में सोचती है यह उसे पहचानते नहीं, कि उनका कोई संबंध
नहीं रहा, तब वह सिर ऊपर उठाती है कि एक आँख दिखाई पडती है. सामान्य आँख से दस
गुना बड़ी रही होगी. उसका एक-एक भाग पूरा स्पष्ट था, उसके भीतर की सफेदी, काला भाग,
द्रवता तथा ऊपर भौंहें भी, फिर वह आंख अपना तारा नीचे करती है और भीतर से एक और काला
तारा दिखाई पड़ता है, एक आँख में दो पुतलियाँ देखकर वह आश्चर्य से बेहोश होकर गिरने
लगती है, उसे सम्भाल लेते हैं जो लोग वहाँ खड़े हैं. भीतर भाव उठता है कि वह समाधि
में प्रवेश कर रही है. इस स्वप्न का अर्थ यही हो सकता है कि परमात्मा की नजर हर
वक्त उन पर है, वह एक नहीं दो-दो पुतलियों से, विशाल नेत्र से उन्हें देखता रहता
है. कल रात भर वर्षा होती रही, अभी रुकी हुई है.
जून आज मुम्बई गये हैं, वह से बंगलूरू जायेंगे. दोपहर का वक्त है, एक पंछी की
आवाज रह रहकर आ रही है. माली को बगीचे में कुछ ज्यादा काम बताया तो वह नम्र शब्दों
में कहने लगा कल सुबह उठा दें तो वह कर देगा. सत्संग का असर पड़ने लगा है उस पर. आज
पहली बार उसने एक ब्लॉगर की पोस्ट पर कमेन्ट करने के बाद लिखा, नई पोस्ट पर उनका
स्वागत है, देखें वह आती हैं या नहीं. आज पिताजी ने चौलाई का साग साफ करते समय वही
सब कहा जो माँ कहा करती थीं, तब वे उन पर हँसा करते थे. उन्होंने भीगे स्वरों में
उससे यह भी कहा कि उन्हें बीस इंच की एक साइकिल चाहिए. जून के आने पर वह उनसे
कहेगी कि इस इच्छा का मान रखें. वह बता रहे थे, चौदह-पन्द्रह वर्ष की उम्र से
साइकिल चलाना शुरू किया था. और अगले साठ वर्ष तक चलाते रहे. अब इतना तो अभ्यास
उन्हें है ही कि बिना गिरे चला सकें. उन्होंने जीवन भर दूसरों के लिए कार्य किया,
स्वाभिमान से जीये. आज अपने मन की बात कहकर उन्हें अवश्य अच्छा लग रहा होगा.
कल रात उसने स्वप्नों का स्वप्न देखा..The Ultimate Dream ! परसों एक गाय को
देखा था, जो बिलकुल श्वेत थी, वह दौड़ती हुई आ रही है, तीव्र गति है उसकी. वह और गाय
दोनों एक maze में घुसते हैं, वे नाच रहे हैं और गा रहे
हैं, बहुत सुंदर गीत है वह, कुछ दिन पूर्व भी उसने स्वप्न में एक मधुर धुन बनाई
थी. कल तो यह देखा कि वह यशोदा है कृष्ण की माँ जो पुनः इस जन्म में कृष्ण के
प्रति प्रेम से भर गयी है और वह कृष्ण और कोई नहीं गुरूजी हैं, बाबा रामदेव को भी
देखा एक क्षण के लिए, उनके चेहरे पर अप्रतिम तेज है. इस बात का भान होते ही उसके
जीवन की बहुत सारी घटनाएँ स्पष्ट होने लगी हैं. दो दिन से नेट नहीं चल रहा है, यह
भी अच्छा ही है. वह अन्यों को यश देने के लिए है, यश बटोरने के लिए नहीं. यश की
कामना जैसे पूरी तरह गिर गयी है, गिर गया है अहंकार भी, गुरूजी के प्रति उसकी
भक्ति का राज भी अब समझ में आने लगा है. आज उन्हें भी वर्षों बाद एक पत्र लिखेगी.
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