Wednesday, October 19, 2016

बीहू में हूसरी

आज जून अहमदाबाद जा रहे हैं. उसे सफाई के शेष कार्य पूरे करने हैं. आज सुना, काठवाडी़ गाँव में एक अद्भुत दुकान है, बिना दुकानदार की दुकान, ग्राहक अपने आप ही सामान लेते हैं तथा पैसे रखकर चले जाते हैं. सुबह जून से उसकी किसी बात पर बहस हो गयी, बाद में उसने सोचा तो लगा की अति उत्साह में आकर वह भला करने के बजे उल्टा ही काम कर बैठी. उसे अपनी वाणी के दोषों पर बहुत ध्यान देने की आवश्यकता है. उसे लगता है जिस प्रकार वह स्वयं को शुद्ध, बुद्ध आत्मा मानती हैं, उसी प्रकार सभी पूर्ण शुद्ध तथा ज्ञानस्वरूप हैं, यह भी अकाट्य सत्य है तो जो भी विकार उसमें दीख रहे हैं, वे ऊपर-ऊपर ही हैं. जैसे गंगा जल की धारा में कभी कोई कचरा बहता चला जाये तो कभी फूल या दीपक..धरा तो शुद्ध ही रहती है. इस तरह तो किसी के दोष देखने ही नहीं चाहिए, आत्मा को ही देखना चाहिए, जैसे वह स्वयं को देखता है ! दूसरी बात कि यदि कोई स्वयं पूर्ण हो तभी उसे दूसरों को कुछ कहने का हक है. वह केवल गुरू ही हो सकता है. उसे अपने अंदर लाखों कमियां दीख पड़ती हैं तो फिर उसे कोई अधिकार ही नहीं है. उसने प्रार्थना की, कि जून अपने हृदय को उसके प्रति स्वच्छ करके सदा की तरह क्षमा कर दें. जैसे आज तक अनगिनत बार बिना कहे ही उसकी सभी गलतियों को माफ़ किया है. उसकी यात्रा शुभ हो.  


यदि कोई कार्य सेवा भाव से किया जाये तो ईश्वरीय सहायता अपने आप मिलने लगती है. जब लेडीज क्लब द्वारा मृणाल ज्योति जाने के लिए गाड़ी नहीं मिल पायी तो एक एक सखी ने भेज दी. बच्चे खुश हुए और वह क्लब की ओर से डोनेशन चेक भी दे पायी. बीहू के दिन घर में ‘हूसरी’ करने की बात भी कह पायी. कल कुछ अन्य लोगों से भी कहेगी. आज भी वर्षा हो रही है. हिन्दयुग्म पर उसकी कविता आई है. वर्षों पहले लिखी यह कविता उसके भीतर के बीज का प्रतीक है, जो अंततः सर्वोच्च मुक्ति के रूप में प्रकट होने को है. एक धार्मिक या कहे अध्यात्मिक व्यक्ति ही परिवर्तन कर सकता है. वह कोई आवरण नहीं चाहता, वह अंतिम सत्य को चाहता है, उससे कम कुछ नहीं. चाहना ही है तो उसे चाहो जो वास्तव में चाहने योग्य हो और मांगना भी हो तो उससे मांगो जो ख़ुशी से दे दे. तन पर लगे पहरों से ज्यादा कठिन है मन पर लगे पहरों को खोलना..और सच्ची क्रांति भी तभी घटती है जब मन के पहरे तोड़ दिए जाएँ और भीतर से एक ऐसी ज्वाला को प्रकट किया जाये जिसे दुनिया का कोई जल बुझा ही नहीं सकता..क्रांति फलित हुई है उसके भीतर ! भीतर जाने के उपाय और साधन बहुत हैं, समय भी है. भगवद् गीता पर लिखना शुरू किया है कल, आज उसे आगे बढ़ाना है ! जून से बात हुई आज वह दूसरी फील्ड में जायेंगे. 

2 comments:

  1. बहुत ही अच्छी अच्छी बातें.

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  2. अच्छी बातें सबको अच्छी लगती हैं..आभार !

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