“महिला
आरक्षण विधेयक, आजादी की ओर बढ़ते कदम” कल उपरोक्त विषय पर नेट
से देखकर कुछ लिखा. एक सखी भी आई थी, उसने भी कुछ बातें बतायीं. महिलाओं में यदि
शिक्षा, जाग्रति, देशभक्ति तथा जनसेवा की भावनाएं न हों तो राजनीति में उनके
प्रवेश करने मात्र से कोई विशेष लाभ नहीं होगा ऐसा उसका मानना है. पिछले दस वर्षों
से इस विधेयक को पारित करने के प्रयास हो रहे हैं पर संसद में कुछ पार्टियों की
असहमति के कारण ऐसा नहीं हो पाया है. अगले महीने की दस तारीख तक उसे इस विषय पर लेख
देना है. आज मृणाल ज्योति की हुसूरी के लिए बात की, दो लोगों ने सहमती दी. एक गमछा
तथा पान व ताम्बूल लाकर रखना होगा. जून आज मुम्बई पहुंच गये हैं. नन्हे ने उस दिन
हैप्पीनेस वाला लेख भेजा था, उसकी दिशा ठीक है, वह भी वास्तविक प्रसन्नता को ही
महत्व देता है न कि ऊपरी ताम-झाम को. दीदी ने उसकी हास्य कविता ‘आधुनिक शिक्षा
प्रणाली’ पढ़कर कमेन्ट लिखा है.
सुबह
कैसा तो स्वप्न देखकर उठी. कीचड़ और गोबर से भरी एक गली है जिसमें से वह और नन्हे
गुजर रहे हैं, उन्हें गुजरना ही है, तभी बीच सड़क में एक कूड़ेदान में लेटा हुआ एक
व्यक्ति उठता है, उसके हाथ में गंदगी टपकाती हुई एक डाली है जिसका छींटा वह उस पर
डालता है. वह उसे हाथ से पकड़ कर उठाती है और वह एक कपड़े के पुतले सा हाथ में झूल
जाता है. आस-पास के घरों से पूछती है यह किसका है, सब मना करते हैं, एक लडकी इशारे
से बताती है, दूसरी गली में इसका घर है, नशा करके इधर-उधर पड़ा रहता है. उसकी नींद
खुल जाती है. पांच बज चुके थे. सुबह के स्वप्न कुछ अलग ही होते हैं. उसे लगा
अहंकार ही वह कीचड़ है जो नन्हे की सहायता से शुरू किए ब्लॉग के कारण उसे हो सकता
है. हिन्युग्म पर अपनी एक कविता उसने हटा दी है, जिसमें व्यर्थ ही अपनी प्रशंसा आप
करने जैसी बात है. अभी कुछ देर पहले पिताजी ने तारीफ की, उन्हें कम्प्यूटर पर अपनी
मेल खोलना आ गया है. सुबह नैनी को दो बार डांटा, प्राणायाम करते समय वह उसी कमरे
में डस्टिंग करने आ गयी, मना करने पर भी नहीं जा रही थी, बाद में शीशे का एक
गुलदान तोड़ दिया, उसके भीतर कुछ अवश्य हुआ होगा क्षण भर को, लेकिन गुलदान टूटने का
दुःख नहीं था वह, काम ठीक से न करने का तथा किसी को दुःख देने का भी, खैर, जो हुआ
सो हुआ..भीतर आसक्ति है, कामना है, यश की लालसा है, क्रोध है, अहंकार है. सारे
विकार दिख गये, इतना सब होने पर भी भीतर परमात्मा है, साक्षी है, अनंत सुख है,
मस्ती है, परमात्मा कितना दयालु है, वह उनकी कमियों पर ध्यान ही नहीं देता, वे उसे
पुकारते हैं तो वह तत्क्षण प्रकट हो जाता है. परमात्मा उनके कितने निकट है !
आज
से दिनचर्या में काफी फेरबदल किया है उन्होंने. सुबह चार बजे का अलार्म सुनकर उठी.
बड़ी भांजी व भांजे को उनके बचपन में देखा, आखिरी सपना नींद खोलने के लिए होता है
इस बात का ऐसा प्रमाण मिला कि मन आश्चर्य से भर गया. नींद खुली और उसी क्षण अलार्म
बजा. पांच मिनट चिदाकाश में तारे देखते लेटी रही पर पुनः स्वप्न शुरू हो गये ऐसे
ही न जाने कितने जन्मों में वे जाग-जाग कर पुनः सो जाते हैं, फिर उठी, वे प्रातः
भ्रमण को गये. आकर प्राणायाम किया, जून भ्रार्मरी के बाद शांत बैठे रहे, पहली बार
उन्हें इस तरह चुपचाप बैठे देखा. शायद कोई अनुभव हुआ हो, ज्योति की एक झलक भी मानव
को बदल सकती है. परमात्मा हर पल साथ है. वह है तो वे हैं, यह संसार है, वह नहीं तो
कुछ नहीं, वह भी वही है और सब कुछ भी वही तो है. नैनी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है,
फिर भी काम कर रही है. उसकी बेटी को पिताजी सम्भाल रहे हैं. उनका दिल भी सोने का
है, भावनाओं से भरा है. दुनिया देखी है उन्होंने, जीवन को पूर्ण रूप से जीया है.
उनके पास भी भोले बाबा हैं..ईश्वर को प्रेम किये बिना कोई जीवन रस से पूर्ण हो ही
कैसे सकता है !
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