Tuesday, October 4, 2016

सलाद पत्ता


आज उसने ब्लॉग पर यीशू पर लिखी एक कविता पोस्ट की है, जिसे और भी कुछ लोगों को भेज सकती है, फेसबुक पर भी. हिन्दयुग्म, हिंदी कविता, सरस्वती सुमन, ऋशिमुख, साहित्य अमृत, नन्हे, पिताजी सभी को भेज सकती है. प्रिंट करके स्थानीय स्कूल के फादर को भी दे सकती है. बड़ी ननद की बड़ी बेटी के लिए जो कविता लिखी थी, उसे भी भेज देना ठीक रहेगा, उसकी शादी की बात पक्की हो गयी है. आज गुलदाउदी के गमले घर के द्वार पर सजाये हैं, घर से निकलते, प्रवेश करते उन पर नजर पड़े और दिल महक जाये, फूल खुदा की खबर देते हैं !

आज क्रिसमस है. सुबह जल्दी उठी, प्राणायाम आदि किया. आज जून ने मेथी का पुलाव बनाया है अभी सलाद पत्ता लेने बाहर बगीचे में गये हैं. क्रिसेन्थमम के फूल घर से निकलते ही दिखाई देते हैं, सुंदर हैं, ऐसे ही जब उनकी आत्मा की कली खिल जाती है तो वे भी फूल बन जाते हैं, उनकी मुस्कान तब कोई नहीं छीन सकता, सारे विरोध समाप्त हो जाते हैं, सारी वासनाएं मिट जाती हैं, कामना का अंत हो जाता है और भीतर एक रस शांति का अनुभव होता है !


आज वह लेडीज क्लब की एक सदस्या से मिलने गयी थी. उनके पैर में प्लास्टर लगा था, बरामदे में बैठी थीं. उनके लिए भी एक कविता लिखी, कल सेक्रेटरी के लिए लिखी थी. पिताजी आज बहुत दिनों बाद टहलने गये. यह वर्ष बीतने को है. नये वर्ष में उसे अपने ब्लॉग को भी बदलना है. आज सुबह अभी नींद में ही थी कि एक सुंदर दृश्य दिखा, वह स्वप्न नहीं था, ध्यान की एक अवस्था थी, सब कुछ स्पष्ट दिखाई दे रहा था. अचानक भाव उठा कि सद्गुरु ऐसे ही सब घटनाओं के बारे में जान जाते होंगे, तभी उन्हें सर्वज्ञ कहते हैं. वह साधक के मन की बातें भी यदि चाहें तो जान सकते हैं. श्रद्धा से मन भर गया और कुछ देर वहीं बैठी रही. न ठंड का अहसास हो रहा था न ही कहीं दर्द या असुविधा का. सद्गुरु का आश्रय लिया है उस शिव तत्व ने, उनका मन स्फटिक सा शुद्ध है, वह परमात्मा ही हो गये हैं अथवा तो हैं, इस भाव को तीव्रता से अनुभव किया. सुबह नौ बजे तक मन इसी भाव दशा में रहा. उनकी उपस्थिति का अहसास इतनी शिद्दत से हुआ. बाद में घर के कामों में वह भाव लुप्त हो गया. अभी-अभी चंपा की गंध आई एक पल के लिए...वह परम उनके द्वारा प्रकट होना चाहता है. वे हर तरह से उसमें बाधा देते हैं. अहंकार, लोभ, मोह, काम, क्रोध, दम्भ और न जाने कितने-कितने अवरोध रास्ते में खड़े कर देते हैं अन्यथा तो वह सदा उपलब्ध है, उपलब्ध ही नहीं वह आतुर भी है, बात एकतरफा नहीं है, एकतरफा यदि हो भी तो उसकी तरफ से ही है, उनमें न वह शक्ति है न वह आतुरता !

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