फिर एक अन्तराल ! सुबह चार बजे
ही अलार्म सुनकर नींद खुल गयी, न बजे तो पता नहीं कितनी देर से खुले. दिन ऐसे
बेहोशी में बीत रहे हैं. आज दूध देर से आया था, दोपहर को गैस पर रख कर भूल गयी.
जून को लंच के बाद बाहर तक छोड़कर आई तो दूध चूल्हे से उतारने के बजाय कम्प्यूटर के
सामने बैठ गयी और पतीला बुरी तरह से जल गया. देखें कितना साफ होता है, नैनी को कहा
है कि रगड़-रगड़ कर साफ करे. सारे घर में जले हुए दूध की गंध फ़ैल गयी है. ब्लॉग पर ‘गंगा’
कविता डाली, तस्वीर नहीं आ पाई, स्पीड बहुत कम थी. जून ने दोपहर को पपीते के
परांठे की तारीफ़ क्या कर दी, सब भूल गयी. दुःख में मानव सजग रहता है, सुख उसे
बेहोश कर देता है, पर उन्हें तो दोनों का साक्षी होकर रहना है. सजग होकर रहना ही
आत्मा में रहना है. विचार सदा भूत या भविष्य के होते हैं, वर्तमान में कोई विचार
नहीं होता, वर्तमान का पल इतना सूक्ष्म होता है कि बस वह होता है. पिछले दिनों जो
पुस्तक पढ़ती रही उसने भी मन पर जैसे पर्दा डाल दिया था. खैर, ठोकर लगकर ही इन्सान
सुधरता है. भीतर जो साक्षी है, वह तो अब भी वैसा ही है, निर्विकार और स्थितप्रज्ञ,
यह जो उथल-पुथल मची है, यह अहंकार को ही सता रही है.
कल से एक नई किताब पढ़नी
शुरू की है, जो कोलकाता यात्रा के दौरान खरीदी थी पर अभी तक पढ़ी नहीं थी. इसके
अनुसार सबसे अच्छा ध्यान है कुछ भी न किया जाये, साक्षी भाव में रहा जाये. जब
जरूरत हो तभी मन से काम लेना है, अन्यथा उसे शांत रहने दें. अपने आप आकाश में
बादलों की तरह कोई विचार आये तो उसे गुजर जाने दें, बिना कोई टिप्पणी किये क्योंकि
टिप्पणी करके भी क्या होगा, व्यर्थ ऊर्जा नष्ट होगी. जीवन में भी इसी सिद्धांत को
अपनाना होगा तथा ध्यान में भी. हर समय इसी को पक्का करना होगा तब न अहंकार रहेगा न
दुःख ! साक्षी भाव इतना सूक्ष्म है कि मन, बुद्धि की पकड़ में नहीं आता, जब कुछ न
करें तो बस वही होता है लेकिन जैसे ही भीतर कोई स्फुरणा हुई वह लोप हो जाता है, बड़ा
शर्मीला है ! अंतर के आकाश में जब वर्तमान का सूरज खिलता है तो अतीत के बादल छंट
जाते हैं.
आज विश्व महिला दिवस है,
उसे अपने भीतर अनंत शक्ति का उदय होता दिखाई दे रहा है. कल शाम को क्लब में पहली
बार बिलियर्ड खेला. q तथा v का भेद जाना, अच्छा लगा. कोच अच्छी तरह सिखा रहे हैं. कुछ न कुछ नया
सीखते रहना चाहिए. होली का उत्सव आने वाला है. होली का उद्देश्य है सारे मतभेद
भुलाकर मस्त हो जाना, अद्वैत का संदेश देती है होली..एकता का, प्रेम का, मिठास का,
मधुरता का..जब आम पर बौर छा जाते हैं और पलाश के फूलों से वृक्ष सज जाते हैं. भंवरे
और तितलियाँ गुंजन करती हैं, जब हवा में मदमस्त करने वाली सुगंध भर जाती है. जब
महुआ फूलों से लद जाता है. गाँव-देहात में फागुनी बयार की मस्ती में लोग फागुन गाते
हैं और जब बच्चों की परीक्षाएं होने वाली होती हैं, तब होली आती है. रंगों की बातें करे तो हर रंग सुंदर है. सतरंगी यह जगत और सुंदर बन जाता है, तो होली पर कविता
लिखी जा सकती है..
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 19 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार यशोदाजी !
ReplyDeleteविश्व महिला दिवस की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteस्वागत व आभार सुशील जी !
Deleteदुःख और सुख दोनों से अछूता निकल जाना.. बहुत ही अच्छी बात है, किन्तु बहुत ही कठिन. साक्षी भाव की साधना - जिसने साध लिया उसने सब साध लिया!
ReplyDeleteकठिन को साधना ही तो साधना है..आभार !
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