Thursday, October 6, 2016

नये वर्ष के कार्ड्स


आज सुबह-सुबह टीवी पर एक आचार्य जी से (नाम याद नहीं है ) पतंजलि योग सूत्रों की अद्भुत व्याख्या सुनकर मन स्थिर हो गया. द्रष्टा जब अपने आप में स्थित हो, मन समाहित हो, बुद्धि स्थिर हो तो क्षणांश के लिए उस स्थिति का अनुभव होता है. वहाँ से आने के बाद अपूर्व शांति और आनंद सहज ही भीतर उत्ताल तरंगों की भांति व्यक्त होता है. दोपहर को एक कविता की पंक्तियाँ बार-बार मन में आ रही थीं पर अब वह स्मृति खो गयी है, संकल्प जाने कहाँ से उठते हैं फिर विलीन हो जाते हैं, जो संकल्प वे अपने बोध में उठाते हैं वे उनके भाग्य का निर्माण करते हैं. नये वर्ष में एक लक्ष्य तो है वजन घटाना जो पिछले वर्ष बढ़ गया है. घर की साज-सज्जा पर विशेष ध्यान देना है और सेवा के कार्यों को तरजीह देनी है. जून कुछ कार्ड्स लाये हैं, उसने सोचा उन्हें यहीं उन लोगों को देगी जिनसे उनका वास्ता पड़ता है. लाइब्रेरियन, को-ओपरेटिव मैनेजर, बैंक मैनेजर, मृणाल ज्योति आदि आदि..नैनी अभी अस्पताल में है, उसका आपरेशन कल होगा. दो सखियों के बच्चे छुट्टियों में अपने-अपने घर आये हुए हैं, न मिलने आये, न फोन ही किया. बच्चों की अपनी एक दुनिया होती है जिसमें उनके माता-पिता भी नहीं जा सकते फिर अंकल-आंटी तो दूर की बात है. आत्मा रूप से देखे तो वे भी वह स्वयं ही है, जो निकट ही है, उससे कैसी दूरी और कैसी निकटता. उसके अंतर का स्नेह सदा उन्हें मिलता रहे. आमीन !

आज छोटी भाभी का जन्मदिन है, उसके लिए एक कविता भेजेगी. उसने अंग्रेजी में एमए किया है, गाने तथा चित्रकला का शौक है या था. सुंदर है, लम्बी है, गोरी है, रंग ऐसा जैसे दूध में चन्दन व हल्दी मिलायी हो. पढ़ने का शौक है, घर का काम दक्षता से करती है. तीन बहनों में सबसे बड़ी है. आज फिर सासुमाँ ने उसके कमरे में आकर टीवी बंद कर दिया, उन्हें शायद आवाज से भी डर लगने लगा है. जब उसने पूछा, आपने क्यों बंद किया तो कहने लगीं, कमरे में कोई नहीं था. एक सखी से बात की फोन पर, उसकी मौसेरी बहन की कल मृत्यु हो गयी जो बीमार थी. दीदी को भी ज्वर हो गया है. बड़ी ननद की बेटी दुखी है, उसकी बात पक्की होते-होते टूट गयी है. घर से खबर आई, जून की मासी का देहांत हो गया है, एक-एक कर सभी को जाना है, कोई पहले, कोई बाद में जाने ही वाला है. चारों और से मृत्यु, अस्वस्थता और दुःख के समाचार ही आते हैं, उनके भीतर ही जन्नत हो सकती है यदि हो तो, बाहर तो उसके ख्वाब ही देखे जा सकते हैं. जीवन सम्भवतः इतना जटिल पहले कभी नहीं था, अथवा तो हर युग के अपने कुछ दुःख होते हैं. इस वक्त वह बाहर लॉन में झूले पर बैठी है, इस कोने में धूप देर तक रहती है. गुलदाउदी के कुछ फूल वर्षा में खराब हो गये हैं, उन्हें अलग करना है. कल चार डीवीडी लिए आर्ट ऑफ़ लिविंग के, उनके पड़ोसी टीचर हैं एओल के. कुछ वर्ष पूर्व ऐसा होने पर वे स्वयं को भाग्यशाली मानते, पर अब जून को ज्यादा रूचि नहीं रह गयी है, वह भी अब सत्संग व क्रिया घर पर ही करती है. गुरुजी से कोई दूरी अब लगती नहीं. जून कल तीन दिनों के लिए अहमदाबाद जा रहे हैं. परसों उनके विवाह की सालगिरह है. उन्हें अब इस रिश्ते में दूसरे कई पहलू नजर आने लगे हैं, प्रेम, विश्वास, भरोसा, मित्रता और एक साहचर्य की भावना, देह से ऊपर मन व आत्मा के स्तर पर वे जुड़ गये हैं. अब इस रिश्ते की नींव बहुत गहरी हो गयी है. कुछ वर्ष पूर्व, कई वर्ष पूर्व उसे इसकी चूलें हिलती नजर आई थीं. वैसे मन का कभी भरोसा नहीं करना चाहिए, मन के साथ रहना तो ऐसा ही है जैसे कोई अपने शत्रु के साथ एक ही घर में रह रहा हो !



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