Saturday, November 7, 2015

आजादी की पहली लड़ाई


कल एक नन्ही बालिका से मिली, एक सखी की नन्ही सी बेटी, अभी तीन महीने की भी नहीं हुई, कल होगी. बहुत अच्छा लगा, वे सभी बहुत खुश थे, एक परिवार पूरा हुआ, बच्चे के होने पर ही परिवार पूर्ण होता है. नूना का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, गला खराब है, सर में दर्द है, लेकिन ये सब वास्तव में उसमें नहीं हो रहा है, वह शरीर से परे है, शरीर को ऐसा अनुभव पहले भी कई बार हुआ हैं. प्रारब्ध का कोई कर्म होगा जो अब सामने आया है. वैसे पिछले दो-तीन दिनों में भी कई ऐसे कर्म किये उसने जो ठीक नहीं थे. बालों में खराब हो गई मेंहदी को लगाना और ढक कर रखना पूरे तीन घंटों तक, सुबह-सुबह ठंडे पानी से स्नान, मैदे का आहार तथा बाहर का खाना, ये सारी बातें निमित्त बनीं उसके प्रारब्ध को प्रकट होने के लिए. दीदी का फोन कुछ देर पहले आया, कुछ देर को सब भूल गयी. बहुत दिनों बाद छोटी चाची से भी बात की, वह कई दिनों से उन्हें फोन करने की बात सोच रही थी. उन्होंने अपने काम की परेशानियों के बारे में बताया, कढ़ाई का कम अब पहले सा नहीं रहा. कम्प्यूटर वाली मशीनें आ गयी हैं. वह चाहती थीं कि नूना छोटी बहन से बात करे कि उनके बड़े पुत्र को विदेश आने के लिए कहे, पर उसे लगता है इन पारिवारिक मामलों में न पड़ना ही ठीक है, वैसे भी छोटी बहन दो महीने बाद आ रही है वह स्वयं ही बात कर लेंगी.

आजादी की पहली लड़ाई १८५७ में लड़ी गई थी आज उसको डेढ़ सौ वर्ष हो गये हैं. टीवी पर सोनिया गाँधी इस अवसर पर लाल किले से ओजस्वी भाषण दे रही हैं. उनका भाषण तो किसी अन्य ने लिखा होगा लेकिन उनके बोलने का तरीका तथा उच्चारण काफी अच्छा हो गया है. उसने पिछले दिनों इंदिरा, नेहरु तथा आजादी की लड़ाई के वक्त की घटनाओं के बारे में पढ़ा. गाँधी फिल्म भी देखी, उनके देश की कहानी अद्भुत है और अनोखा है सेनानियों का बलिदान !

कल उन्होंने बच्चों के कार्यक्रम के द्वारा गुरूजी का जन्मदिन मनाया. उनका उत्साह देखते ही बनता था. इसी महीने मृणाल ज्योति भी जाना है. इसी महीने उसका जन्मदिन भी है, ऐसे ही कुछ और जन्मदिन आयेंगे और फिर आएगा निर्वाण का दिन, जीते जी जिसने आत्मा का अनुभव कर लिया उसका निर्वाण तो निश्चित है. उसके बाद उनका मन है कि वे इस धरा पर कहाँ जन्म लें. अभी तक तो वे अपने कर्मों के द्वारा भटकाए जाते रहे हैं, पर अब सद्गुरु के द्वार पर आकर यह भटकन खत्म हो गई है, वह उनकी आत्मा है, उनके रूप में मानो अपनी आत्मा को ही पा लिया है. उन्हें अपने भीतर भी वैसी ही पवित्रता, मस्ती और आनन्द का खजाना मिल गया है, जैसे वे जगत में बांटते फिरते हैं. वे पूर्ण तृप्त हो गये हैं. पूर्ण काम और पूर्ण निश्चिन्त !

जब ध्यान स्वयं घटित होने लगे तो अलग से उसके लिए बैठने की बहुत आवश्यकता महसूस नहीं होती, आज यह उसके ध्यान का समय है पर वह लिख रही है, कितनी बातें भीतर है जो उससे कहनी हैं जो सब जानता है. लिखना भी अब अति आवश्यक नहीं रहा, मन पूरी तरह खाली होना चाहता है, कोई अपेक्षा नहीं, कोई बंधन नहीं. आज वर्षा की रिमझिम जारी है. पिछले तीन-चार दिनों से ऐसा ही हो रहा है, उनके सतनाम-ध्यानकक्ष की सभी पाँचों खिड़कियाँ खुली हैं, ठंडी हवा रह-रह कर आ रही है. सामने की दीवार पर गुरूजी तस्वीर में मुस्कुरा रहे हैं, उनकी मुद्रा मोहक है. मुस्कान चित्ताकर्षक है. उसके पीछे राधाकृष्ण की मूर्ति है तथा दीपदान जो वे वाराणसी से लाये थे. इस कमरे को जून ने कितनी लगन से उसके साथ मिलकर सजाया है पर अफ़सोस कि उनके हृदय में संतों के प्रति कोई आदर नहीं है, ईश्वर के प्रति प्रेम भी नहीं, आर्ट ऑफ़ लिविंग की टीचर कहती है यह जरूरी तो नहीं कि सब उनके जैसे हों, उसे यह प्रतीक्षा धैर्यपूर्वक करनी होगी तथा प्रार्थना भी कि उनके आसपास के लोग भी उस आनन्द को चखें जो उन्हें मिला है !    



6 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, आज का पंचतंत्र - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. बहुत बहुत आभार !

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  3. सुन्दर रचना.........

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    1. स्वागत व आभार ऋषभ जी..

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  4. कालयात्रा है यह पढ़ना - जैसे टाइम मशीन का सफर, छूट गए छोटे-छोटे स्टेशन, ...

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    1. वाकई..यदि लिखा न होता तो यह सब याद कहाँ रहता..आभार

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