Monday, October 5, 2015

काजीरंगा के अरण्य


कितना रहस्यमय है यह जीवन, इसमें प्रवेश करें तो न जाने कितनी दीवारें खड़ी हो जाती हैं, किसी भी सवाल का जवाब नहीं मिलता, सद्गुरु कहते हैं कुछ प्रश्न अति प्रश्न हैं जिनका उत्तर साधना की परम अवस्था तक पहुंचा हुआ व्यक्ति ही दे सकता है, क्योंकि जब तक कोई उस अवस्था तक न  पहुंचे तब तक उसे बताये जाने पर भी नहीं समझ सकेगा. आजकल वह बच्चन सिंह’ की एक पुस्तक पढ़ रही है, ‘महाभारत पर आधारित इस पुस्तक में पांडवों व अर्जुन-कृष्ण की महानता पर प्रश्नचिह्न लगाया गया है. वे जिन्हें पूज्य मानते हैं उन पर कोई आक्षेप कैसे लगा सकते हैं, वास्तव में माया के प्रभाव से कोई नहीं बच पाता, ‘माया’ मानव व देवता दोनों को ही नचाती है. जब तक भीतर का विवेक नहीं जगता, तब तक कुछ भी कहने का अधिकार उन्हें नहीं है. पौराणिक कथाएं न जाने कितने रूप बदल कर समुख आती हैं, और प्रतीकात्मक होती हैं. कोई उनसे कुछ सीख ले सके तो अच्छा है वरना उन्हें मात्र कथा मानकर ही पढ़ना उचित है. जीवन तो स्वयं के ज्ञान से ही चलेगा. ज्ञान और ज्ञानी के प्रति श्रद्धा ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करेगी, लेकिन काम तो वह अर्जित ज्ञान ही आएगा. दिसम्बर आ चुका है यानि एक वर्ष और बीत गया. जनवरी में उसने स्वयं से वायदा किया था कि इस वर्ष अध्यात्म के पथ पर और आगे बढ़ेगी पर अभी भी लगता है कुछ नहीं जानती. अभी भी खोज जारी है. कल नन्हा आ रहा है.

शाम के पौने छह बजे हैं, वे परसों सुबह काजीरंगा के लिए रवाना हुए थे और आज वापस लौट आए. वर्षों पहले भी वे एक बार गये थे, तब ठंड बहुत थी. इस बार मौसम अच्छा था, कई पशु-पक्षी देखे, हाथी की सवारी भी की. वापस आकर घर साफ करते तथा कपड़े आदि धोते-धोते, खाना बनाते इतना वक्त लग गया और अब वे आराम से बैठे हैं. कल रात्रि सोने से पूर्व जंगल, नदी, पशु-पक्षी जैसे भीतर पुनः जागृत हो गये थे. सब कुछ कितना स्पष्ट दिख रहा था, जो बाहर है वही भीतर है, यहाँ तक कि पक्षियों की आवाजें भी स्पष्ट सुनाई दे रही थीं. अभी-अभी उन्होंने पुरानी फोटो देखीं ‘अरण्य’ की, जिसमें इस बार पुनः गये, कुछ-कुछ बदल गया है, कुछ-कुछ वैसा ही है. जैसे वे स्वयं भी समय के साथ कुछ बदल जाते हैं कुछ वैसे ही रहते हैं. यह वर्ष जाने को है, इस साल को विदा करें इसके पूर्व कुछ नये वादे करने हैं खुद से जिन्हें अगले वर्ष पूरा करना है. हर दिन एक कविता लिखनी है और हर दिन एक गीत गाना है. हर दिन बगीचे में भी काम करना है और हर दिन वे सारे काम भी करने हैं जो पिछले साल करती आई है जैसे ध्यान अदि ! व्यर्थ चिन्तन, व्यर्थ बातें, व्यर्थ कार्यों से बचना है. अभी कुछ देर पहले सासु माँ का फोन आया, वह स्वयं सत्संग में गयीं और स्वयं फोन किया उनका आत्मविश्वास बढ़ा है.


आज जीसस का जन्मदिन है, क्रिसमस का शुभ दिन ! बचपन में कितने गीत उन्होंने गाये हैं प्यारे यीशू के. यीशु उसका गड़रिया है, वह उसकी भेड़ है, वह उसका चरवाहा है, उसका दूल्हा है इस भाव में भी संत टेरेसा के साथ वह कई बार डूबी है, यीशू अद्भुत है, अनोखा है, उसे सारे प्यार करें यह बिलकुल स्वाभाविक है, उसे फिर भी मरना पड़ा, कोई जितना-जितना सत्य के करीब जाता है उसे अपमानित किया जाता है, सत्य कोई सहन नहीं कर पाता, सत्य की आंच को कोई सह नहीं पाता तो वह पलट कर वार करता है. कोई यदि मीठे-मीठे शब्दों से काम लेता रहे तो सभी खुश रहते हैं. यीशू सच्चा है, गाँधी सच्चा है तो उन्हें मरना ही पड़ेगा और बाद में लोग उनको याद करेंगे, कितनों को वे प्रेरणा भी देंगे, क्रिसमस के बाद आता है नया वर्ष ! आने वाले साल में वह पहले से भी ज्यादा उस परमेश्वर के निकट जाये, उसे प्रेम करे, उसका ज्ञान भीतर प्रकट हो और वह उसके व्यवहार में उतरे, उसका आचरण पवित्र हो, भाव पवित्रतर हों तो ही पवित्रतम प्रभु भीतर उतरेगा. यीशु का जन्म भीतर होगा जब मन मरियम की तरह पाक होगा. नये वर्ष में कितने ही कार्य उसे करने हैं. अगले पृष्ठ पर वह अपनी दिनचर्या लिखेगी. काजीरंगा पर लिखी कविताएँ अभी तक ठीक नहीं की हैं वापस आकर, नन्हा दिन-रात कम्प्यूटर पर काम रहता है. नये वर्ष में उसका ध्यान-कक्ष भी बन जायेगा !   

5 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, संत कबीर के आधुनिक दोहे - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. सत्य कोई सहन नहीं कर पाता, सत्य की आंच को कोई सह नहीं पाता तो वह पलट कर वार करता है. कोई यदि मीठे-मीठे शब्दों से काम लेता रहे तो सभी खुश रहते हैं. यीशू सच्चा है, गाँधी सच्चा है तो उन्हें मरना ही पड़ेगा और बाद में लोग उनको याद करेंगे, कितनों को वे प्रेरणा भी देंगे

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    1. स्वागत व आभार कविता जी..

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    start selling more copies, send manuscript

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