Wednesday, November 21, 2012

Cry the Pecock -Anita desai



नए वर्ष का प्रथम प्रभात भी और दिनों की तरह ही आया उसके लिए, यानि कि कोशिश करने पर भी सुबह जल्दी नहीं उठ सकी, वही सात बजे जबकि पिछली रात सोयी दस बजे ही थी, नव वर्ष की पूर्व संध्या पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम भी नहीं देखे, जून होते तो वे साथ-साथ देखते, दोपहर होते-होते ही वह आज भर के लिए आ गए. कल सुबह ही उन्हें जाना होगा. अब पाँच दिन बाद आएंगे. छोटे भाई का खत व फूलों भरा कार्ड मिला. नए वर्ष में उसे यह नीले रंग की सुंदर डायरी मिली है, जून के पास भी ऐसी ही डायरी है. उसके दिन अच्छे बीत रहे हैं, वे आते हैं फिर एक-दो दिन रहकर चले जाते हैं, सब कुछ भला-भला सा लगता है. कभी-कभी मन परेशान हो जाता है, छोटी-छोटी सी बात पर ही. वह सलीके से रहना नहीं जानती इसी बात पर या वह बात नहीं कर सकती या फिर इसी बात पर कि उसके बाल ठीक नहीं लग रहे हैं या फिर यही कि कमर का घेरा बढ़ता जा रहा है. शाम को नन्हे के साथ झूला पार्क में दौड़ने पर उसे कितना अच्छा लगा था हल्का-हल्का, हवा से भी हल्का. उसे अपना वक्त सही बातों में और सही ढंग से लगाना चाहिए, सब कुछ व्यवस्थित...तभी मन भी व्यवस्थित रह सकेगा. दादीजी को अब घर जाने पर वह नहीं देख पायेगी, कभी-कभी सोचकर कैसा लगता है. पिता ने उसकी स्कूल की एक सखी का पता भेजा है. उसे पत्र लिखेगी.

नन्हे का रिजल्ट आया है, उसकी लिखाई के कारण कुछ नम्बर कटे और कुछ उसके राइम्स न सुनाने के कारण, वह थोड़ा शरमाता है. उसने सोचा वह उसकी पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देगी, ताकि वार्षिक परीक्षा में अच्छा करे. सुबह का काम खत्म करके वह पड़ोस में गयी उनका नया टीवी देखने, पड़ोसिन ने बड़े स्नेह से स्वागत किया. दोपहर को नन्हा स्कूल से आया तो खेलने में उत्सुक था, वह उसकी बेबी अलबम में फोटो लगाने लगी, उन्होंने खाना देर से खाया, पर ठंडा हो जाने के कारण ठीक से खा भी नहीं सके, कल से वह ऐसा नहीं करेगी सोचा उसने. तीसरे जन्मदिन का फोटो नहीं मिला था, उसे याद आया तब वे बनारस में थे, जन्मदिन मना ही नहीं था, उसी साल तो उसने बीएड किया था, अब लगता है कितनी पुरानी बात हो गयी. मैडम को कार्ड भेजा है पर वे शायद ही जवाब दें, सुरभि ने भी पत्र नहीं लिखा. जीवन में कितने-कितने लोग मिलते हैं, लगता है हम उन्हें अच्छी तरह जानते हैं पर समय के साथ सब भुला देना पड़ता है.

शाम को वह देर तक ‘प्लेन और स्ट्रेट लाइन्स’ पढ़ती रही, कल उसकी छात्रा पढ़ने आयेगी. आजकल वह लाइब्रेरी से लायी अनिता देसाई की एक पुस्तक cry the pecock भी पढ़ रही है. उसकी नायिका बहुत कुछ खुद जैसी लगती है और लग रहा है कि गौतम यानि उसका पति एक दिन उसे खूब प्रेम करेगा..जैसे जून.. उसे याद आया जून के लिए उसे एक उपहार खरीदना है, उनके विवाह की वर्षगाँठ से पहले. कल ही जायेगी बाजार..पर किसके साथ?

शाम के साढ़े पांच हुए हैं, बाहर सुबह से ही बूंदाबांदी हो रही है जो दोपहर बाद से तेज हो गयी है, नन्हा और वह घर में बैठे हैं, चार बजे से ही अँधेरा छाया है कहीं जाने का सवाल ही नहीं उठता, अगर जून होते तब भी नहीं. नन्हे के साथ कारपेट पर टेनिस टेनिस खेल रही थी, वह एक घंटा पहले ही उठा है. दोपहर सोने से पूर्व उसे दो कवितायें सिखायीं, अगर वह साल भर नर्सरी में पढ़ा होता तो उसे कई याद होतीं. नन्हा उसके पास ही बैठा है कह रहा है उसकी पोयम भी डायरी में लिख दे,  humpty dumpty sat on a wall…और pat a cake …सोमनी उसकी छात्रा ऐसे मौसम में शायद न आ पाए, उसने सोचा था पर घंटी बजी, वह पढ़कर गयी पिछले माह की फ़ीस देकर, पर उसे अब उतनी खुशी नहीं होती, जून की पे बढ़ गयी है अब उन्हें किसी जरूरत के लिए सोचना नहीं पड़ता, यानि की वह अपने मन की हर इच्छा पूरी कर सकती है खरीदने के मामले में, पर अब खरीदने में भी उतना आनंद नहीं आता..संतुष्ट होना शायद इसी को कहते हैं. पर जून के लिए उसे कुछ लेना है.

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