Sunday, November 11, 2012

चार्ली चैप्लिन की फिल्म



कल सुरभि का पत्र आया, अच्छा लगा बहुत दिनों बाद कालेज की सखी का पत्र पाकर, शनिवार को उनका पत्र लिखने का दिन होता है, उसने सोचा वह उसी दिन इस पत्र का जवाब देगी. दो माह पूर्व जो परिवार सदा के लिए चला गया था कल उनका पत्र भी आया, वे परसों उनकी कोई खबर न मिलने की बात कर ही रहे थे, सही कहा है किसी ने कि हर रात के बाद जैसे सुबह होती है हर उलझाव के बाद सुलझाव हो जाता है, सोचा उसने, उसकी असमिया सखी से भी शायद एक दिन सुलझाव हो जाय, वक्त का इंतजार करते हैं. हर कार्य अपने समय पर ही होता है. कल तिनसुकिया जाने से पूर्व जून ‘दिल’ फिल्म का कैसेट दे गए थे, पर वह देख नहीं पाई. वे कार्टून फिल्म के भी दो कैसेट लाए हैं नन्हे के लिए. शाम को कोई परिचित परिवार मिलने आया, सात बजे वे स्वयं भी आ गए. आज नन्हा खुशी-खुशी स्कूल गया है. उसने बताया कि कोई बच्चा उसका टिफिन खा जाता है, अभी थोड़ा वक्त लगेगा उसे अपने को स्कूल के माहौल में एडजस्ट करने में. आज भी उसका कोई टेस्ट है. शाम को नाश्ते में उसे आज इडली बनानी है, उसने सोचा सामने वाले घर से थोड़ा सा करी पत्ता व मिर्च ले आते हैं. रात को एक परिवार को डिनर पर बुलाया है, उसकी भी तैयारी करनी है.

आज फिर तीन-चार दिनों के बाद डायरी खोली है. कल उनके पड़ोस में आए एक नए परिवार से मिलना हुआ. रक्षा बंधन का त्योहार आने वाला है, उसने जून से राखियां लाने को कहा है, वैसे यहाँ पर यह उत्सव नहीं मनाया जाता, पर कहीं न कहीं राखियां मिल ही जाएँगी. आज पता नहीं किस कारणवश बिजली नहीं है, ऐसा यहाँ बहुत कम होता है, कुछ देर पूर्व ही वह  हेयर कट करवा कर आयी है, इस नए हेयर स्टाइल में तो उसकी शक्ल ही बिलकुल बदल गयी है. लम्बे बालों का शौक तो है पर सम्भालना मुश्किल है.

आज छोटी बहन का जन्मदिन है, उसे पत्र व कार्ड भेजा था, दीदी आज परिवार सहित बाहर जा रही है, भारत से बाहर. कल उसने एक आठवीं के विद्यार्थी को भी पढ़ाया, पर लगता है चल नहीं पायेगा, जून और नन्हा, जब तक वह पढ़ाती है, बाहर घूमते रहते हैं, हाँ सुबह उनके उठने से पहले वह पढ़ा सकती है. उसने उस छात्र को शनिवार को आने को कहा है.

उन्होंने कल ‘पंचवटी’ फिल्म देखी, अच्छी है मगर अधूरी सी लगी, जैसी कि लगभग हर आर्ट फिल्म लगती है. समझने के लिए उसने फिर से देखी...तब लगा हाँ, इसके सिवा अंत हो भी क्या सकता था. कुछ दिन पहले टीवी पर एक टेलीफिल्म भी देखी, “विवेक” एक कटु सत्य पर आधारित..

नन्हा सुबह कुछ भी खाने में बहुत नखरे करता है, उसे छह बजे उठाकर ही सात बजे कुछ खिलाया जा सकता है. आज उसका स्कूल बंद है, यहीं बैठकर होमवर्क कर रहा है, इतनी बातें करता है कि...पता नहीं बच्चों के पास इतनी उर्जा कहाँ से आती है. उसका खुद का वजन है कि बढ़ता ही जा रहा है, व्यायाम बंद है और जून जबरदस्ती दाल में घी दाल देते हैं.

कल का इतवार पलक झपकते बीत गया. परसों रात चार्ली चैप्लिन की फिल्म देख कर सोये, ‘ए वोमन ऑफ पेरिस’, सो कल देर से उठे, दोपहर को तिनसुकिया जाना था, एक गाउन लिया, लाल रंग का जिस पर एक सुंदर तितली बनी है, आज सुबह उसने नन्हे को फुल शर्ट पहना दी, तो कहने लगा..कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा है, शायद उसको गर्मी लग रही थी. पिछले दिनों वह हावर्ड पास्ट का एक उपन्यास Lola Greg  पढ़ने में भी व्यस्त रही, बहुत रोचक है.






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