Friday, November 16, 2012

सलमान रश्दी -ग्रिमस



परसों वे लोग डिब्रूगढ़ गए थे, मौसम बहुत अच्छा था, दोनों मंदिर देखे, तिरुपति और जालान मंदिर दोनों आकर्षक हैं. आजकल पंखा बंद करते ही गर्मी हो जाती है पर पंखा चलाने पर भी उतना भला नहीं लगता, नन्हे को हल्की खांसी हो गयी है.

कल दोपहर शनिवार होने के कारण जून भी घर पर थे, भोजन के बाद वे कुछ देर को लेटे, सोने जा ही रहे थे कि बाहर स्कूटर तथा कुछ लोगों की बातचीत की आवाज कानों में पड़ी, और उनकी धड़कन बढ़ गयी, क्यों हुआ ऐसा...रात को आठ बजे के बाद घंटी बजती है...तो मस्तिष्क में सबसे पहले एक ही बात आती है- अल्फ़ा. शाम को जून उसे व नन्हे को कार में दूर तक घुमाने ले गए. नन्हा तो आराम से बैठा था पर वह ही जरा टेंस थी. जरा भी खुशी नहीं हो रही थी...अजीब सी हालत हो रही थी- डर?


सितम्बर की चौदह तारीख हो गयी और उसने आज डायरी खोली है. पिछले दिनों कितनी ही बातें हुईं. पिछले से पिछले इतवार को उनका तिनसुकिया जाना और वह हादसा..फिर पिछले शनिवार को अस्पताल में रहना..और आज सुबह से होती वर्षा, सर में हल्का भारीपन, दीदी-छोटी बहन के पत्र. नन्हे के इम्तहान जो अगले हफ्ते हैं. लाइब्रेरी से लायी किताब- सलमान रश्दी की , Grimus  क्या लिखते हैं मिस्टर रुश्दी भी. इराक-कुवैत युद्ध के इतने हफ्ते और उन सज्जन का अभी तक पता नहीं. चीन का आतंकवाद पढ़ा उस दिन सर्वोत्तम में...तो अपने देश से और प्यार हो गया. छोटे फुफेरे भाई का पत्र और वह आत्मकथा...जून का प्यार और उसकी शिकायतें..वह महान है और उसका प्यार भी. नन्हे के पसंद के राजमा और नम्रता का जन्मदिन, उनके एक परिचित की बेटी का. कल उन्हें एक पंजाबी परिवार के यहाँ जाना है, जिनके पूर्वजों के साथ उसके पूर्वजों के सम्बन्ध थे. वह केक बनाकर ले जायेगी.

आज नन्हे का पहला इम्तहान है, कल विश्वकर्मा पूजा के कारण जून का दफ्तर जल्दी बंद हो गया. उन्हें चार दिन के बाद लम्बी यात्रा पर निकलना है. सोनू के स्कूल जाकर छुट्टी के लिए प्रार्थना पत्र देना है. आज सुबह झमाझम वर्षा हुई पर अब धूप निकल आयी है.

नवम्बर का प्रथम दिन ! खिली-खिली धूप और सब कुछ साफ-शफ्फाफ सा..जून और सोनू दोनों अपने-अपने ऑफिस व स्कूल गए हैं और वह यहाँ अपने चिर-परिचित स्थान पर..कितने दिनों के बाद.. वे लोग कितने स्थानों पर गए, बनारस, उल्हास नगर, मुम्बई, सहारनपुर, देहली, और पुनः बनारस...फिर कोलकाता, कितने लोगों से मिले ..जून की मासियों, मामाओं, बुआ  और उनके बच्चों से.. पहली बार वह उन सबसे मिली..फिर अपने परिवार जनों से...अब वे आ गए हैं अपने घर. यहाँ सब कुछ वैसा ही है. उसने सोचा धीरे-धीरे सभी को पत्र लिखेगी. श्रीमती गाँधी की पुण्यतिथि भी बीत गयी, छह वर्ष हो गए, समय कितनी जल्दी गुजर जाता है. आज शाम को उसकी छात्रा आयेगी पढ़ने, अच्छा ही है, लगेगा कि उसने कुछ किया दिन भर में ऐसा जो उसे अच्छा लगता है. आज ‘डेफिनिट इंटीग्रल’ पढाना है.

गुलाबी सर्दियाँ पड़ने लगी हैं, नौ बजे हैं, सब ओर सन्नाटा एक चुप्पी सी लगी है. उसने कोलकाता से लाए पैंजी के बीज माली से भूमि में डलवाए फिर उन्हें हल्का पानी डाल कर ढक दिया. उसे सोनू का ध्यान हो आया, आज फिर उसका टेस्ट है, घर आयेगा तो स्कूल की सारी बातें कहेगा. आजकल सुबह उसे उठाने के लिए बहुत मनाना पड़ता है. पढ़ाने के लिए भी उसे नए-नए तरीके सोचने पड़ते हैं, उसका ध्यान खेल में कुछ ज्यादा रहता है. जून जब थोड़ा जोर से बोलते हैं समझाने के लिए तो बैठ जाता है पर उसका भी असर कुछ देर ही रहता है. शायद सभी बच्चे ऐसे ही खेलते-कूदते बड़े हो जाते हैं.

No comments:

Post a Comment