Showing posts with label बुखार. Show all posts
Showing posts with label बुखार. Show all posts

Tuesday, April 29, 2014

लोक कथाओं का संसार


Health is wealth इस बात का सही मूल्यांकन एक फ्लू का मरीज ही कर सकता है, जब जिन्दगी एक बिस्तर तक ही सीमित रह गयी हो. मुँह का स्वाद इतना कड़वा हो चुका हो कि चाय, दूध, कॉफ़ी और सूप का अंतर ही पता न चले. सुबह कब हुई, दोपहर कब शाम में ढल गयी, जगती-सोती आँखों को इसकी खबर ही न हो. लोगों से मिलना-जिलना दुश्वार हो जाये. कभी यह डर कि उतरा हुआ चेहरा देखकर आईने से ही बैर न हो जाये. आज पांचवा दिन है उसके बुखार का, मुख का स्वाद इस वक्त बेहद कड़वा है, कसैलेपन की हद तक कड़वा. छाती में जैसे कुछ अटका हुआ है. दोपहर को लगा था जैसे इस कैद से छुटकारा मिलने ही वाला है, भगवान करे यह सच ही हो. Indian Folk Tales पिछले दो-तीन दिनों से पढ़ रही है, बड़ी मजेदार कहानियाँ हैं, कोई-कोई तो इतनी अच्छी कि बस.. जून आज सुबह भी कल की तरह जल्दी आ गये थे, उसे दाल का पानी दिया, खाना बनाया और सुबह-सुबह नन्हे को स्कूल भेजा. दुनिया वैसे की वैसे चल रही है बस कमी है तो उसकी शक्ति की जो बुखार ने छीन ली है. कल शाम दीदी का फोन आया वह ठीक से बात कर सकी बिना यह जाहिर किये कि वह अस्वस्थ है. ऐसा क्यों  है, आखिर वह किसी को बताने से क्यों डरती है, क्या इसके पीछे वह उस रात को माँ-पापा के बीच हुई बात है जो उसने सुनी थी. इस तरह की होने के कारण उसे सहना भी पड़ता है अकेले-अकेले, नहीं, जून और नन्हे के साथ !

आज वह ठीक है, कल शाम को बुखार उतर गया था, जून ने जब देखकर बताया कि थर्मामीटर का पारा ९८.६ पर रुका है तो पहले उसे विश्वास ही नहीं हुआ था पर उस वक्त से अब तक फिर नहीं चढ़ा है. स्वाद अभी भी कड़वा है और कमजोरी भी, पर पहले की तुलना में तो यह कुछ भी नहीं. अभी कुछ देर पहले दो सखियों के फोन आये, दोनों को जन्मदिन की पार्टी में पता चला. आज नन्हा घर पर ही था, सुबह खाना बनाने में उसका बड़ा हाथ था. दोपहर को उसके लिए खीरे पर नमक, काली मिर्च, अमचूर और नींबू का रस डालकर लाया कि “अब आपके मुंह का स्वाद बिलकुल ठीक हो जायेगा.” शाम को जून के साथ ‘रिश्ते’ में एक अच्छी कहानी देखी जिसमें हीरो रेस्तरां में सामने बैठी लडकी को देखकर कल्पनाओं में खो जाता है और उसी सपने में उससे शादी भी कर लेता है. जून ने आज मक्खन में आलू-पनीर की सब्जी बनाई है, वह उसे काजू, बिस्किट, दूध खिला-पिला कर जल्दी से ठीक कर देना चाहते हैं. परसों नन्हे के स्कूल का वार्षिक दिवस है, वे दिगबोई जायेंगे. आज उसने एक अंग्रेजी उपन्यास पढ़ना शुरू किया जो वर्षों पहले पढ़ा था. सुबह से एक भी folk tale नहीं पढ़ी.

पिछले दो दिन पूरी तरह आराम किया फिर भी अभी खांसी ठीक नहीं हुई है, सो आज भी घर पर ही रहेगी, संगीत क्लास अगले हफ्ते से ही शुरू होगी. साढ़े आठ बजने को हैं, जून हिदायत देकर गये हैं कि वह ज्यादा काम न करे, वह चाहते हैं कि पूरी तरह स्वस्थ हो जाये तभी अपनी सामान्य दिनचर्या अपनाये.

कल शाम वह बहुत दिनों बाद टहलने गयी, मौसम में हल्की ठंडक थी, शेफाली के फूलों की हल्की गंध भी थी. लोगों के झुंड पूजा देखने जा रहे थे. आज भी पूजा की छुट्टी है. नन्हे का स्कूल शनिवार को खुलेगा, जून का दफ्तर भी, यानि अगले तीन दिन उनके पास हैं अपनी मनमर्जी के मुताबिक बिताने के लिए. कुकर में काले चने उबालने के लिए रखे हैं, गैस कम करने के बावजूद कुकर की सीटी है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही, कभी-कभी सामान्य सी लगने वाली बात भी कितना irritate कर जाती है. अभी कपड़े धोने हैं और सब्जी बनानी है. जब भी वह काले चने की सब्जी बनाती है तो ननद व सासु माँ के बनाने का ढंग याद आ जाता है. ढेर सारे प्याज, पिसे हुए अलग और कटे हुए अलग, जीरा भी पिसा होने के साथ-साथ साबुत भी, ढेर सारा धनिया पाउडर, और उबने के बाद चनों को मसाले में भूनना. उसका तरीका बिलकुल आसान है. कल सुबह ससुराल से फोन आया था, उनके पत्र उन्हें मिल रहे होंगे पर जवाब फोन से ही देते हैं. छोटी बहन के फोन का भी उसे इंतजार था. आज सुबह उठी तो मन में कोई उत्साह नहीं था, एक नये दिन का स्वागत करे ऐसा कुछ भी नहीं था, बल्कि यह भावना थी कि एक और पहाड़ सा दिन, फिर धीरे-धीरे दिनचर्या शुरू की तो रूचि जगने लगी और यह बात भी याद आई कि इतना व्यस्त रहना चाहिए कि यह सब सोचने का वक्त ही न मिले, पर मन तो हर वक्त अपने साथ रहता है जो यह याद दिलाता रहता है.




Sunday, December 29, 2013

बच्चों के कमरे के पर्दे


ऐसा क्यों होता है कि कभी-कभी भगवद् गीता के श्लोक और उनका अर्थ उसे पूर्णतया स्पष्ट हो जाता है और कभी-कभी वे बहुत दुरूह लगते हैं. सम्भवतः इसका कारण है उसके मन की ग्राह्य शक्ति, वह एक सी नहीं रहती. कल की मीटिंग अच्छी रही, सुबह उसने इस सिलसिले में कई फोन किये. आज नन्हे का स्कूल जल्दी बंद होगा, माह का अंतिम दिन है. कल एक परिचिता ने बताया, उसे एक जगह काम मिल गया है, ठीक-ठाक पैसे मिलेंगे, लोग हमेशा ही पैसों को महत्व देते हैं. उसने जून को बताया तो वे भी यही बोले, ज्यादा पैसों के कारण थोड़ी तकलीफ सही जा सकती है, उसे आश्चर्य हुआ. उसने पुरानी बात याद दिलाई और बिना बात के ही मन को उदास किया. बाद में सोचा तो लगा, यदि कभी जून ने उसकी स्वतन्त्रता का हनन किया भी तो एक हक के साथ पर उससे उसके अहंकार को चोट पहुँची और ...क्या वाकई इन्सान का अहंकार इतना महत्वपूर्ण होता है कि रिश्तों की भी परवाह नहीं करता, वह उस वक्त भी खुद को समझने की कोशिश कर रही थी. अर्थात उसे भान था कि वह क्या कर रही थी, यह क्रोध में किया हुआ कोई ऐसा काम नहीं था जिसके लिए बाद में पछताना पड़ता है. उसे ठेस पहुँची थी और जून उस बात को समझ नहीं रहे थे. इसी को टेकेन for ग्रांटेड कहते हैं, उसका व्यवहार अनुचित था इसमें दो राय नहीं थी और इसलिय सुबह क्षमा मांगी और अब मन शांत है. आज दोपहर उसे हिंदी की क्लास लेने जाना है सो संगीत का अभ्यास अभी कर लेना होगा.

.... “और बुखार हो गया” कल इतनी धूप में वे तीनों हिम्मत दिखाते हुए तिनसुकिया गये. वापस आकर एक घंटे के अंदर ही उसे तपन सी महसूस हुई, बुखार चढ़ रहा था. पिछले कई हफ्तों से सबके बुखार की बात सुनते-सुनते वह स्वयं पर थोड़ा ज्यादा भरोसा करने लगी थी, स्वयं को ठीक रखने में सक्षम है, कि उसे कुछ नहीं हो सकता. जून कल से उसे कोई काम करने नहीं दे रहे हैं. पर उसने सुबह से अपने नियमित सभी काम किये हैं, पढ़ाना भी और दोपहर को संगीत सीखने भी जाएगी. छोटी बहन से बात की वह भी आराम करने व स्वास्थ्य लाभ के लिए घर आयी हुई है पर माँ-पिताजी छोटी बुआ के पास गये हैं उसकी देखभाल करने, अपने ही अपनों के काम आते हैं.  सुबह नन्हे ने कहा, फिर बुखार है, फिर माथा छूकर कहा, हाँ गर्म तो है. बुखार में लेकिन मन शान्त हो जाता है. ध्यान करने का प्रयास तो नहीं किया पर करे तो अवश्य आसानी होगी.

कल शाम को ही उसका बुखार उतर गया था. यूँ सुबह से ही वह उसे धता बताने का प्रयास कर  रही थी. शाम को अचानक आये मेहमानों का स्वागत भी सामान्य ढंग से किया. जून अलबत्ता कुछ ज्यादा ध्यान रख रहे थे. कल शाम उन्होंने नन्हे के कमरे के लिए नये पर्दे काटे, थोड़े से टेढ़े कट गये और वे घबरा गये पर बाद में पता चला समस्या उतनी गम्भीर नहीं थी जितनी वे समझ रहे थे. आज दोपहर से वह सिलना शुरू करेगी. आज खत भी लिखने हैं, राखियाँ भेजनी हैं. उसे ध्यान आया मंझले चाचा के बच्चों, दोनों भाई-बहन की उम्र हो गयी है पर उनके विवाह की कोई खबर सुनाई नहीं देती, बिन माँ के बच्चे ऐसे ही होते हैं. छोटे चाचा के बच्चे भी कुछ वर्षों में विवाह के योग्य हो जायेंगे. मातापिता के अयोग्य होने की सजा निर्दोष बच्चों को भुगतनी पडती है. आज भी धूप तो है पर गर्मी कम है.

जिन्दगी, कैसे कैसे राज छिपाए हैं तूने
खुल जाये तो फट जाये कलेजा खुदा का भी
जन्नत भी यहीं है और जहन्नुम भी इधर ही
मिल जाये सही राह तो मंजिल का पता भी 

Friday, November 2, 2012

परीक्षा की तारीख



सोनू का बुखार उतर गया है, कल उसने दोनों वक्त थोडा भोजन भी खाया, अभी दस-पन्द्रह मिनट बाद वह उसे उठाएगी. वह भी बहुत हल्का महसूस कर रही है, उसे जून की याद हो आई अभी तो ट्रेन में ही होंगे, शाम को उन्हें आगे जाना है. उसके एक्जाम की तारीख आगे बढ़ गयी है, पहले यह खबर उसके लिए शुभ नहीं थी पर अब उसे यह जानकर राहत हुई. उसकी परीक्षाएं सम्भवतः अब पहली मई से शुरू होंगीं.


आज होली है, उसे जून की याद आज कुछ अधिक ही आ रही है, डायरी में उसके लिखे शब्द ‘हैप्पी होली’ उसे छू गए, जाने कब उसने आज के पन्ने पर लिखे होंगे. शाम को उसने वही लाल साड़ी पहनी जो उस दिन उसने उसे दिलाई थी. नन्हे ने ऊं आं शुरू कर दिया और वह उसे उठाकर ऊपर कमरे में ले गयी.
आज उसे जून का पत्र मिला, अब वह राजस्थान के बार्डर पर स्थित किसी आयल फील्ड में है, उसकी कमीज प्रेस करवानी थी पर धोबी नहीं आ रहा है आजकल, उसने सोचा वह खुद ही कर देगी. आज सुबह स्वप्न में उसे देखा, हाई स्कूल या इंटर के एग्जाम चल रहे हैं, कितने वर्ष हो गए उसे स्कूल से निकले, लेकिन स्वप्न में लग रहा था जैसे आज की बात हो. आज  कालेज गयी थी, एक या दो लडकियां ही उसकी तरह स्वेटर पहन कर आई थीं, मार्च आधा बीत चुका है, पर सुबह तो ठंड होती है.

जून परसों रात को आ गए थे, वे लोग अभी सोये नहीं थे, ढेरों बातें हुईं इन चंद घंटों में, वह  वापस भी चले गए हैं, ढेर सारी यादों को छोड़कर. अभी कुछ देर पूर्व ही वे उन्हें स्टेशन तक छोड़कर आए हैं. नन्हा भी गया था जब कि अभी भी वह कमजोर है, शाम को उसकी रिपोर्ट लेने भी जाना है, उसके कालेज का समय बदल गया है, सुबह सवा सात बजे ही उसे जाना है. नन्हा तब तक सोकर भी नहीं उठेगा. उसे चिंता हुई पता नहीं वह दादी से कुछ खायेगा भी या नहीं.
उसकी आशंका ठीक निकली कल नन्हे ने न ब्रश किया और न कुछ खाया था जब वह लौटी, अब वह सुबह जाने से पूर्व ही उठा देगी, इसके लिए रात को भी जल्दी सुला देना होगा. आज नागर मैडम ने ग्राफ बनाना सिखाया, पौलीग्राफ..नन्हे की रिपोर्ट देखने डाक्टर मित्र आए थे, वह घर पर नहीं थी, दवा देने को कह गए हैं, पर अब तो उसे बुखार नहीं है फिर यूँ ही दवा देने का अर्थ..जून का एक कार्ड आया है खूब बड़ा सा, बहुत सुंदर..उसकी स्मृति सहला जाती है, सताना अभी शुरू नहीं किया है, देखें कब तक. बड़ी भाभी का पत्र भी बहुत दिनों के बाद आया है.
कल तो नन्हे ने उसके कालेज जाते समय रोना शुरू कर दिया, अब आठ-दस दिन ही उन्हें और जाना है, अभी भी प्रथम पेपर का कोर्स पूरा नहीं हुआ है बाकी सबका भी थोडा बहुत तो शेष है ही. जून का फोन आया था, उसे अपनी मार्कशीटस् की कॉपी भेजने को कहा, वहाँ एक स्कूल में एप्लाई करने के लिए.
अभी सात बजने में दस मिनट हैं, यानि उसे जाने में पन्द्रह मिनट का समय है. कल दीदी, बड़े भाई, व बड़ी बुआ को पत्र लिखे. जून का पत्र नहीं आया, वह कोलकाता में हैं, कल गोहाटी जायेंगे. माँ ने लिखा है रिजर्वेशन कराने के लिए.


Thursday, November 1, 2012

देखो मम्मा, चढ़ा बुखार



कल शाम से ही नन्हा कुछ अस्वस्थ लग रहा था, सुबह उठा तो और भी ज्यादा परेशान था, वह उसी के पास बैठी रही, साढ़े ग्यारह बजे निकली, कालेज बंद था सोचा लिफाफे ही खरीद लेगी, खत्म हो गए हैं, कल इतवार है सोच रही है सुबह जल्दी उठकर कपड़े धोएगी, कई दिन से सारा काम माँ पर आ गया है, ननद को बाहर जाना था, वह कल ही वापस आयी है.

पिछले चार दिनों से नन्हे को बुखार चढ़ता-उतरता रहता है, दवा ले रहा है पर उसका असर नहीं हो रहा है, उसका खुद का स्वास्थ्य भी पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है, पढ़ाई तो हो नहीं पा रही है पर उसकी चिंता अवश्य है. घर का माहौल भी प्रफ्फुलित नहीं रह गया है, सभी के मन जैसे इस जिंदगी ने स्नेह से वंचित कर दिए हैं, नन्हा ठीक था तब वे उसके साथ हँसते-खेलते थे.
आज वह नन्हे की रिपोर्ट लेने गयी थी, डाक्टर ने रक्त की जाँच करने को कहा, दवा बदल दी है. कल से उसका ज्वर तेज नहीं हुआ है. कल कालेज गयी थी, लाइब्रेरी से किताबें बदलनी थीं. उनसे कुछ नोट्स बनाने हैं, पूर्णिमा मैडम बहुत सहयोगी स्वभाव की हैं, सुधा मैम उतनी ही अक्खड़.

सुबह स्वयं नहाकर फिर सोनू को उठाने आयी, थर्मामीटर लगा रही थी कि सुनील (इसी मकान में रहने वाला दस-बारह साल का बच्चा) ने आकर बताया, भैया आए हैं, वह जानती थी जून जरूर आएंगे, अगले ही पल सीढ़ियों पर चिर-परिचित आवाज जूतों की और वह  अपने हाथ में सूटकेस लिए कमरे में आ रहे थे, वह खुश थी उस क्षण और भय भी था...दुःख था ही,  नन्हे का थर्मामीटर निकालते-निकालते उसकी ऑंखें बरस पडीं, कितने दिनों से आँसू बहना चाहते थे और आज वह आए हैं इतनी दूर से, जिन्हें उन आंसुओं की कद्र थी. नन्हे को देखकर वह भी उदास हो गए, पर अब सब ठीक हो जायेगा, कल उन्हें राजस्थान जाना है दस दिनों के लिए, जब तक लौटेंगे सब सामान्य हो चुका होगा. दोपहर को वे उन्हें लेकर मार्केट गए, उसे दो बेहद सुंदर साड़ियां उपहार में दिलायीं और नन्हे के लिए भी एक ड्रेस खरीदी.

जून किसी काम से बाहर गए हैं, कह गए थे दो-ढाई बजे तक आएंगे, वह जानते नहीं कि हर पल कोई उनका इंतजार करता होगा. अभी-अभी उनका एक पत्र मिला तब उन्हें पता नहीं था कि वह यहाँ आ सकेंगे, आज डीलक्स से दिल्ली, फिर वहाँ से जोधपुर तथा आगे फील्ड, दस दिन बाद एक दिन के लिए पुनः यहाँ और फिर वापस असम. उसने कल्पना में देखा कि परीक्षाओं के बाद वह नन्हे को लेकर अपने माँ-पिता के यहाँ गयी है, वहीं उसे लेने जून आए हैं, फिर वे सब अपने घर गए हैं और जीवन पूर्ववत् हो गया है, खूब घूमना...कहानियाँ पढ़ना.. खूब सारे पानी से जी भर कर नहाना...सब तरह की दालें बनाना..और भी कई काम, जिंदगी में सभी कुछ एक साथ तो नहीं मिल जाता है, कभी धूप कभी छाँव, कभी प्यार तो कभी इंतजार...कभी मिलन तो कभी बिछड़ना..पर अब और नहीं बिछड़ना.

अभी-अभी वह चले गए, कल सुबह आए और आज शाम चले गए पर इस एक रात और दो दिनों में कितना-कितना स्नेह भर गए हैं, उसने वादा किया कि कभी उदास नहीं होगी, उन्हें भी मालूम है और उसे भी की उनकी याद कितनी आयेगी और कभी रुला भी जायेगी लेकिन उनका आना उसे बहुत अच्छा लगा, इतने दिनों से एकाकी मन जो एक ख़ामोशी से भर गया था, उसे तोड़ना कितना सुकून दे गया. कितनी खुशी से भर गया, जो इतनी दूर थे, जिन्हें वह रोज बुलाती थी, वह उसकी आवाज सुनकर एक सच्चे मित्र की तरह उनके पास आ गए. नन्हा भी बहुत खुश है वह जल्दी ठीक हो जायेगा अब. कुछ दिन बाद फिर आएंगे अब उसका समय उसी दिन के इंतजार में कटेगा.

सोनू आज सुबह से उठा है तभी से बहुत परेशान सा है, बात-बात पर रो देता है, दूध नहीं पीना...ब्रश नहीं करना..चाय भी नहीं..और बिस्किट भी नहीं...हर बात में नहीं और ज्यादा कहने पर सिसकियाँ लेकर रोना, उसे लगता है पापा की याद आ रही है. जब तक वह आएंगे तब तक तो बिल्कुल ठीक हो जायेगा, कितना कमजोर हो गया है, पर ठीक होकर पुनः दौडेगा पहले की तरह छत पर, फिर अपने घर में.. वह सोच रही थी आज कालेज जायेगी, पर अब मुश्किल लगता है. बहुत दिनों का गैप हो गया है उसका, अब तो लगता है सब खुद ही पढ़ना होगा. अगर अच्छे नम्बर नहीं भी आए तो कोई बात नहीं, नन्हे से बढकर कुछ नहीं उसके लिए. उसे छोड़कर तो नहीं जा सकती.