अंततः वह दिन आ ही गया, जून की
परीक्षा का दिन. कल इंटरव्यू है आज लिखित परीक्षा है. पिछले कई हफ्तों से वह
तैयारी कर रहा था. उसे अवश्य ही सफलता मिलेगी, विभाग में पदोन्नति होगी. सुबह का
पहला पहर है, नन्हा उठकर फिर सो गया है, कल रात उसे नींद नहीं आ रही थी, नूना कब
सो गयी उसे भान नहीं, जून ने ही फिर उसे
संभाला. ज्यादातर ऐसा ही होता है शाम को घर आने के बाद दोनों का साथ छूटता
ही नहीं. उन्होंने जो तस्वीरें उतारी थीं, कुछ बहुत अच्छी आयी हैं, कुछ सामान्य,
पहली बार खीचीं थी शायद इसीलिये, छत का पंखा कितना गंदा हो गया है, उसकी नजर ऊपर की
ओर गयी तो आभास हुआ. पूरा घर ही एक बार सफाई मांगता है, सफेदी भी होनी चाहिए अब.
कुर्सियों के कवर भी धोने चाहिए, पिछले दो महीनों से इस ओर नजर ही नहीं गयी. अब
अगले महीने पूजा की छुट्टियाँ है, तभी यह काम होंगे उसने मन ही मन निश्चय किया. तब नन्हा भी तीन माह का हो जायेगा. पाकशाला में भोजन बनाते हुए वह ट्रांजिस्टर पर भारत-आस्ट्रेलिया
क्रिकेट मैच का आँखों देखा हाल सुन रही थी कि उसके कुनमुनाने की आवाज आयी, वह सब
काम छोड़ कर कमरे में गयी.
मन में कितनी ही बातें आती हैं पर उसकी समझ में नहीं आता कैसे कहे और किससे ?
पता ही नहीं चलता, दिन कैसे बीत जाता है, समय जैसे पंख लगाकर उड़ रहा है हर रोज वही
दिनचर्या, सुबह, शाम, रात. आज सुबह जून की बस छूट ही जाती उसकी बातों में, पता
नहीं क्यों वह बार-बार उसे उन दिनों की याद दिलाती है जब वे मुक्त होकर शाम को दूर
तक घूमने जाया करते थे, कभी मन होने पर कोई फिल्म ही देख आते थे, या यूँही आराम से
लेटे रहते थे घंटों...क्यों नहीं वह समझ लेती कि वह कल था और आज, आज है, इस
परिवर्तन को स्वीकार करना ही होगा, और बदलाव ही तो जीवन में रंग भरता है. यूँ ऊपर
से देखा जाये तो ये कोई आवश्यक कार्य नहीं, जिनके पूरे न होने से कोई शिकायत होनी
चाहिए. पर मन तो मन है कुछ भी सोचता है. उसे परेशान किए बिना कहीं नहीं लगता है, बेचैनी
का दूसरा नाम ही मन है. एक चिंता और है मन में अगले सप्ताह डॉक्टर के पास जाना है
जिसके निवारण के लिये.
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