अगस्त माह का पहला सोमवार ! सुबह
पांच बजे ही कमरा कितना रोशन हो गया है, चमचमाती धूप से. आज तीज है, मेहँदी और
झूला याद आ रहा है, इस समय बाप-बेटा दोनों सो रहे हैं, वह पिछले दिनों नियमित नहीं
लिख पायी, जून से कहा पर उसकी अपनी विवशता है, वह हर काम में नूना की सहायता करना
चाहता हैं, उसकी सुविधा, उसके आराम का उसे हर क्षण ध्यान रहता है और इन्हीं सब कामों
में वह थक जाता है. रात को दोनों को ही नन्हें के कारण कई बार जागना पड़ता है, दिन
में कभी-कभी मन व शरीर दोनों थकान से बोझिल लगते हैं, बस चुपचाप सो जाने का मन
होता है. कितना बड़ा हो गया है वह, उसे पहचानने लगा है अच्छी तरह से. उसकी आवाज भी
वह पहचानने लगा है. रो रहा हो तो कुछ कहते ही चुप हो जाता है. सुबह उसकी मालिश
करके जब स्पंज करती है तो दूध पीते-पीते ही वह सो जाता है.
आज सुबह जून की नींद देर से खुली, कहने लगा आज देर हो गयी है आधी छुट्टी ले
लेते हैं, रात्रि जागरण का असर उसकी आँखों में साफ दिखाई दे रहा था. उसने कोई जवाब
नहीं दिया, जैसे उसे इस बात से कोई सरोकार नहीं था, पर बाद में उसी के कहने पर वह
जल्दी-जल्दी तैयार होकर ऑफिस गया. कल शाम को वह पहली बार क्लब गया था नन्हे के जन्म
के बाद. लौटकर चुप-चुप ही रहा, उसे समझ
नहीं आया, क्या यह नन्हें के कारण है, शायद यह स्वाभाविक ही है, सब कुछ बदल रहा
है. कल उन्होंने अपने विवाह का एल्बम देखा, लगा ही नहीं कि यह उनका अतीत है, लगा
जैसे किसी और का एल्बम देख रहे हैं. कितने सजे संवरे लग रहे थे उसमें और अब दिन भर
कितना असत-व्यस्त सा रहता है सब कुछ.
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