Sunday, June 17, 2012

हँसता शिशु


सुबह के साढ़े सात बजे हैं, नन्हे को अभी कुछ देर पूर्व ही सुलाया था पर दादी ने उसे उठा दिया है. बस अब दो ही दिन तो रह गए हैं उन्हें वापस जाने में, चाहते हैं कि वह अधिक से अधिक जगता रहे.  रात से ही वर्षा हो रही है. कल रात सोने से पूर्व उसने जून से कहा था कि रात को वह न जगा करे, शिशु के उठने पर वह खुद ही सम्भाल लेगी, उसकी नींद पूरी नहीं हो पाती, वह तो दिन में किसी भी समय सो जाती है. कल बड़ी बुआ का एक अच्छा सा पत्र मिला. यह पेन जिससे वह लिख रही है जून ने उसे उपहार में दिया था उनके विवाह के अवसर पर, कुछ दिन खराब रहकर यह पुनः लिखने लगा है अपने आप.
कल सुबह से ही उसकी मनःस्थिति ठीक नहीं थी जिसका असर शायद अब तक है, अक्तूबर से ही उन्होंने पैसे इकठ्ठे करने आरम्भ किये थे, वह चाहती थी कि उसके खुद के नाम से एक पासबुक हो, माना कि वह अभी तक सब आवश्यक वस्तुएं ले आया है पर उसे स्वयं के आत्मनिर्भर न होने का दंश तो चुभ ही रहा है. पिछले कई महीनों से वह जून को नए कपड़े लेने के लिये कह रही है पर वह उसे टाल जाता है. उसे आश्चर्य भी होता है कि धन के बारे में उसके विचार ऐसे थे उसे खुद भी पता नहीं था.
सब लोग चले गए हैं, घर पर वे तीनों रह गए हैं. नन्हें को ठंड लग गयी लगती है, उसके गले से खर-खर आवाज आ रही थी, और उसके पेट से भी आवाज आ रही थी, छोटा सा तो है वह और इतनी सारी मुसीबतें. हँसता है तो बहुत प्यारा लगता है. अगस्त के दूसरे हफ्ते में जून के इम्तहान  हैं, ऑफिस से आकर उसका ज्यादातर समय बच्चे के साथ ही बीतता है. आज से उसे पढ़ाई में ज्यादा समय देना है, वह तो सम्भाल ही सकती है उनके बेटे को.

  

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