आज मौसम कुछ कह रहा है, खिड़की के पर्दे हटा दिए हैं,
ठंडी हवा भीतर तक आ रही है, तन व मन दोनों को सहलाती हुई सी. रात को भी ठंडक थी
वातावरण में, उसे नींद नहीं आ रही थी, पर इससे कोई असुविधा हो ऐसा भी नहीं था,
अँधेरे में कभी आँखें बंद किये कभी आँखें खोले वह सोचती रही, आने वाले दिनों के
बारे में और नवांगतुक के बारे में, कैसी होगी वह या कैसा होगा वह, कैसे रखेंगे वे
उसे, कैसे उसका स्वागत करेंगे, जून गहरी नींद सो रहा था, कल वह बेहद थक गया था.
डिब्रूगढ़ गया था सुबह और शाम को लौटा सात बजे के लगभग, फिर जिस कार्य के लिये गया
था वह पूरा नहीं हो पाया. पर आज सुबह खुश था हमेशा की तरह.
शाम को उसने ऑफिस से आकर पूछा, क्या वह उसे दो घंटे के लिये कहीं जाने की अनुमति दे सकती है, वह अपने एक मित्र के साथ अंग्रेजी फिल्म देखने जाना चाहता था, इसमें उसके मना करने का सवाल ही कहाँ था, फिर वह टिकट भी तो ले कर रखने के लिये कह कर आया था, डिब्रूगढ़ में भी उन्होंने एक फिल्म देखी थी, घर आकर उसने बताया कि फिल्म वैसी नहीं थी जैसी वे सोच रहे थे. उसके वापस आने के बाद वे शाम की चाय पीने बैठे ही थे कि कोई पुरानी परिचिता आ गयीं, जो पूरे ढाई घंटे बैठी रहीं. रात को उसकी नींद फिर भाग गयी, एक चुभता हुआ अहसास, बेचैनी और कंपा देने वाले स्वप्न. मौसम फिर गर्म हो गया है उन दिनों की तरह जब वे वर्षा का इंतजार बेसब्री से कर रहे थे. कल घर से पत्र आया था, माँ ने सभी के बारे में कुछ न कुछ लिखा है, पिता ने स्वामी रामतीर्थ के विचार लिखे हैं. उन्हें भी इंतजार होगा उस खत का जिसमें वह खबर होगी जो उनके आने वाले जीवन को बदल देगी, सचमुच बहुत बदल जायेगा जीने का ढंग और किसी हद तक सोचने का ढंग भी, अभी तक वे दोनों अपना सारा ध्यान, सारा स्नेह एक-दूसरे पर ही लुटाते आये हैं, फिर वह होगा उनकी भावनाओं का केन्द्र.
स्वामी रामतीर्थ को पढने का अवसर मिला है। आश्चर्य हुआ कि उस समय के भारत में भी इतने आधुनिक और स्पष्ट कहने वाले लोग होने के बावजूद भारत का हाल आज भी ऐसा है।
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