आज इतवार है। वे प्रातः भ्रमण के लिए गए तो हवा में ठंडक थी, तापमान १८ डिग्री रहा होगा। सुबह का टहलना अभी तक तो चल रहा है लेकिन कब रोकना पड़े, कह नहीं सकते, टहलते समय बार-बार ऐसा लग रहा था जैसे क़ानून का उल्लंघन कर रहे हैं। कल शाम ही एक नोटिस आया था कि टहलना आवश्यक कार्यों में नहीं आता, छह महीने की सजा हो सकती है। भगवान ही जानता है स्थिति कब सामान्य होगी। अभी लॉक डाउन ख़त्म होने में दो हफ़्ते शेष हैं। इसके बाद भी क्या होने वाला है यह भविष्य के गर्भ में छिपा है। आज एक पुरानी सखी से महीनों बाद बात हुई, सभी भाई-बहनों से भी फ़ोन पर बात हुई। आजकल सभी लोग घर में हैं और सभी के पास समय है। फुफेरे भाई ने पुरानी तस्वीरें भेजीं, चाची के परिवार में सबसे बात हो गयी। विपदा में सब जैसे किसी एक तल पर बहुत क़रीब आ गये हैं। वापस आकर समाचार सुने, कोरोना पीड़ितों की संख्या भारत में एक हज़ार हो गयी है। नौ बजे रामायण का तीसरा अंक देखा, अनेक बार देखने पर भी रामायण की कहानी नई जैसी लगती है। मोदी जी की “मन की बात’ सुनी। धीरे-धीरे दिल्ली में दिहाड़ी मज़दूरों व अशक्त लोगों के लिए जग-जगह रहने व खाने के इंतज़ाम हो रहे हैं। पहले वे लोग अपने-अपने गावों में जा रहे थे। पर वहाँ भी उनके लिए कौन स्वागत में बैठा होगा ? किसी भी तरह की विपदा हो उसका सबसे ज़्यादा और सबसे पहला असर मज़दूरों पर ही पड़ता है। जून ने पीएम केयर्स फंड में पैसे भेजे हैं। उन्होंने ग्रामीण लोगों की सहायता के लिए भी कुछ मदद की, दुकान तक भी गए। आर एसएस के कुछ लोग राशन ख़रीद कर निर्धन लोगों में बांट रहे हैं। इस समय सभी को सहायता के लिए आगे आना होगा। समाज के हर वर्ग को देश के लिए कुछ करने का अवसर मिला है। नन्हे से बात हुई, उसने कहा अभी काफ़ी समय लग जाएगा दुनिया को कोरोना से मुक्त होने में। न्यूयार्क में तीन से चार हज़ार लोग महामारी से पीड़ित हैं।
रात्रि के नौ बजे हैं। कुछ देर पूर्व छत पर टहलने गये तो अष्टमी का सुनहला पीला चाँद चमकीले सितारों के मध्य जगमगा रहा था। जैसे उसे कोई खबर ही नहीं है कि जिस धरती के वह चक्कर काट रहा है, उसे क्या हो रहा है? अर्थात उस पर रहने वाले मानव नाम के जीव पर क्या बीत रही है ? शाम को सूर्यास्त भी देखा था। प्रकृति अपने कर्म में कभी नहीं चूकती, न जाने कितने युगों से रोज़ यह क्रम चल रहा है। आज दोपहर को अचानक तेज अंधड़ चला, मुश्किल से दो-तीन मिनट के लिए, पर ढेर सारे सूखे पत्ते छत पर, लॉन में और गैराज में फैल गए। शाम को झाड़ू लगाया। आजकल सफ़ाई कर्मचारी भी नहीं आ रहे हैं।
आज रामनवमी है, गुरूजी ने राम ध्यान करवाया। सुबह क्रिया के दौरान सोहम का अर्थ स्पष्ट हुआ, अद्भुत थे वे क्षण ! प्रधान मंत्री ने अगले इतवार को देशवासियों को रात्रि नौ बजे नौ मिनट के लिए दीपक, टार्च या मोमबत्ती जलाकर घर के द्वार या बालकनी में खड़े होने को कहा है। घर की बत्तियाँ बंद कर देनी हैं ताकि दीपकों का प्रकाश ज़्यादा प्रज्ज्वलित हो सके। कोरोना के ख़िलाफ़ युद्ध के लिए सभी भारतवासियों को एकजुटता की शक्ति को महसूस करना है। सभी की चेतना जब एक होकर इस विपत्ति का सामना करने का निश्चय करेगी तभी उन्हें सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 4358 में दिया जाएगा | चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति चर्चाकारों की हौसला अफजाई करेगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग
बहुत बहुत आभार!
Deleteबहुत सुन्दर सृजन ।दो वर्ष पूर्व के हालात स्मृति पटल पर उभर
ReplyDeleteआए ।
बीते हुए दृश्य सामने आ गये,अब परिस्थितियां काफी हमारे अधिकार में हैं और भय प्रायः भाग चूका।
ReplyDeleteसुंदर संस्मरण।
स्वागत व आभार कुसुम जी!
Deleteबीते पलों के बेहतरीन लेखा जोखा । दूसरी लहर ने बहुत कुछ छीन लिया ।
ReplyDeleteसही कहा है आपने संगीता जी, स्वागत है!
Deleteबहुत कुछ सिखा गया है कोरोना
ReplyDeleteजी हाँ, कोरोना ने जीने का ढंग काफी बदल दिया है, स्वागत व आभार !
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