आज सुबह तेज वर्षा हुई। दोपहर को मॉडेम बदलने मकैनिक आया, लगभग एक महीने बाद इंटर्नेट काम करने लगा है। जून ने नन्हे से घर के वाई फ़ाई सिस्टम के बारे में बात की, मॉडेम ख़राब होने के कारण घर की बत्तियाँ और फ़ैन आदि गूगल होम से नहीं चल रहे थे।इस गूगल होम ने भी कितना आरम्पसंद बना दिया है लोगों को। आज दोपहर को नीतू सिंह के बचपन की ‘दो कलियाँ’ फ़िल्म देखी, वर्षों पूर्व इसके बारे में सुना था, पर कभी देखने का मौक़ा नहीं मिला। उत्तर रामायण में दिखाया गया कि लव-कुश का जन्म हो चुका है और राम भी राज-काज में रुचि दिखा रहे हैं। शाम को वर्षा थमी तो टहलने गये, सड़कें धुलीं हुई थीं और पेड़ कुछ ज़्यादा हरे लग रहे थे। प्रकृति का कुछ पलों का संग-साथ मन को सुकून से भर देता है, परमात्मा की पहली झलक साधक को कुदरत में ही मिलती है।
आज सुबह समाचार मिला कि ऋषिकपूर का देहांत हो गया है। उनके लिए श्रद्धांजलि स्वरूप कुछ लिखा। दो वर्ष पूर्व हुए मस्तिष्क के एक असामान्य रोग के कारण प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता इरफ़ान का भी कल ही देहांत हुआ था। दोनों कलाकारों को चाहने वाले लाखों की संख्या में होंगे, सभी उदास हैं।जीवन के साथ मरण भी जुड़ा है और हर किसी को एक न दिन विदा होना है, हर मृत्यु उसे इस बात को और गहराई से याद दिला जाती है। विश्व भर में कोरोना के मरीज़ भी बत्तीस लाख हो गए हैं। दो लाख से अधिक लोग अपनी जान गँवा बैठे हैं। मरने वालों में अधिकतर या तो वृद्ध हैं या रोगी। पूरे विश्व में करोड़ों लोग ऐसे हैं जो अनेक कष्टों का सामना करते हुए जीवन को किसी तरह बचा भर पा रहे हैं; जिनकी रोज़ी-रोटी छिन गयी है। यह प्रलय से कम विषम स्थिति नहीं है। आधुनिक काल की प्रलयंकारी स्थिति शायद वायरस ही ला सकते हैं। आज दो पुराने मित्र परिवारों से वीडियो कॉल पर देर तक बात हुई। ज़ाहिर है कोरोना की भी बातें हुईं, एक ने कहा बाहर से आने वाले किसी भी सामान के साथ वायरस घर में आ सकता है।अभी तक तो उनकी सोसाइटी में कोई केस नहीं आया है।
आज मज़दूर दिवस पर एक रचना ब्लॉग पर प्रकाशित की। टीवी पर ‘सारा आकाश’ देखी, इसके बारे में भी काफ़ी सुना था दशकों पूर्व।सरकार ने लॉक डाउन की अवधि बढ़ा दी है। अमेरिका में मरने वालों की संख्या बढ़ रही है। भारत में कुल अड़तीस हज़ार मरीज़ हैं। अब मरीज़ों की संख्या में वृद्धि शीघ्रता से हो रही है। जून ने नन्हे से कहा कि शाम को वह उसके यहाँ जाने वाले थे, तो वह चुप ही रहा। कोरोना का भय इतना ज़्यादा है कि वह नहीं चाहता वे कहीं बाहर निकलें, सभी लोग न कहीं आना चाहते हैं न किसी को बुलाना ही चाहते हैं। आज प्रातः काल भ्रमण के समय छोटा सा उलूक शावक दिखा, कल उसकी माँ या पिता यानि एक बड़ा उलूक देखा था। ढेर सारे बगुले भी देखे, आदमी सड़कों पर नहीं निकल रहे हैं तो पक्षी निर्भीक होकर घूम रहे हैं। आज महाभारत में कृष्ण का अर्जुन को गीता उपदेश आरम्भ हो गया है और रामायण में लव-कुश राम को अपना परिचय दे देते हैं। कल रामायण का अंतिम एपिसोड आएगा। उसके बाद श्रीकृष्ण धारावाहिक प्रसारित किया जाएगा। राम और कृष्ण जैसे भारत के कण-कण में बसे हैं, उन्हें याद किए बिना कोई दिन पूरा नहीं होता।
जून को भी आर्ट ऑफ़ लिविंग में एक सेवा का काम मिल गया है। वह कम्प्यूटर पर ज़ूम इंस्टाल कर रहे हैं। विभिन्न परियोजनाओं के लिए फ़ंडिंग करने वाले संयोजकों को ढूँढना है। उसके पहले प्रोजेक्ट योजना बनानी हैं, उन्होंने काम शुरू कर दिया है। उसका अनुवाद कार्य भी चल रहा है, सेवा का छोटा सा कार्य भी संतुष्टि की भावना को दृढ़ करता है। आज सुबह गाँव से नैनी ढेर सारे आँवले लेकर आयी, हरे, ताजे, बड़े आकार के, कुछ का अचार बनाया है। कल भुट्टे व कुम्हड़ा लायी थी, गाँव के निकट रहने से ताजी सब्ज़ियाँ मिल जाती हैं। आज इसी सोसाइटी में उगे तीन नारियल भी ख़रीदे।
रात्रि के नौ बजे हैं, आज शाम वे लगभग दो महीने बाद मुख्य गेट से बाहर निकले। दायीं ओर कुछ दूरी पर सब्ज़ी की दो नयी दुकानें देखीं। लोग सामान्य दिनों की तरह आ-जा रहे थे। सड़कों पर चहल-पहल थी, पर पता नहीं इसका परिणाम पता नहीं क्या होगा। दिल्ली में भी दुकानें खुल गयी हैं , कुछ विशेष दुकानों के आगे लोगों को लम्बी-लम्बी क़तारें लगी हैं। आज सुबह गाड़ी धोने वाले के साथ एक माली आया, गमलों में निराई कराके सूखा गोबर डलवाया, बड़ी ख़ुशी-ख़ुशी कह रहा था आज से दुकानें खुल गयी हैं। शायद वह भी वहीं जाएगा, लोग पैसा देकर विष ख़रीदते हैं, आदत ही तो है। आज शाम से थोड़ा पहले भुवन शोम फ़िल्म देखी कुछ देर, बहुत अच्छी लगी, प्रिंट पुराना है पर अभिनय अनोखा। आज से दूरदर्शन पर ‘उपनिषद गंगा’ भी दिखाया जा रहा है।