आज सुबह ही वे नए घर आ गए थे. जून को दफ्तर का कुछ काम था, वह देर तक फोन पर ही रहे. नन्हा अपना दफ्तर का काम करता रहा, मजदूर अपना काम और वह योग वशिष्ठ पढ़ती रही और मोदी जी के पुराने भाषण सुने. उनका अति मोहक व्यक्तित्व था और अब भी है. उनका जैसा प्रतिभावान व्यक्ति कोई लाखों में एक होता है. शाम को वे पड़ोसी के यहाँ गए, बहुत मिलनसार हैं. जून को चाय पिलाई, उनके पुत्र ने आश्रम तक लिफ्ट दी. इस समय रात्रि के दस बजे हैं, वे एओल आश्रम में हैं. उसका कमरा नम्बर तीन सौ दो है और जून का एक सौ चौदह, पहले उन्हें कोई और कमरा मिला था, फिर बदला और अंत में अब यह खाली कमरा मिला है, शायद अब तक कोई आ गया हो. उसके कमरे में अभी तक और कोई नहीं है. उन्होंने सामूहिक भोजनालय में रात्रि भोजन किया, टमाटर सूप, दाल-चावल, रोटी तथा सब्जी, प्रसाद रूप में हजारों लोगों के लिए बना यह भोजन स्वादिष्ट होता है. सैकड़ों लोग इसे बनाने में अपनी सेवा देते होंगे. आश्रम में गुरूजी के जन्मदिन के उपलक्ष में कई कोर्स चल रहे हैं. बच्चों के लिए भी कोर्स है और सबके साथ वृद्धजनों के लिये भगवद गीता के प्रवचन का भी. प्लेट्स धोने का तरीका अच्छा नहीं लगा, लेकिन हजारों प्लेट्स को धोने का काम कितना कठिन होता होगा, अवश्य ही कोई साफ-सुथरा तरीका अपनाना होगा. पानी में हाथ डालकर प्लेट्स निकालते समय कैसा लगता होगा, सेवा भाव अपनी जगह है पर... जब वे अन्नपूर्णा जा रहे थे गुरूजी अपनी कार से रवाना हुए, लोगों ने उन्हें हाथ हिलाया, उन्होंने भी हाथ हिलाया. सत्संग के समय बड़े से स्क्रीन पर उनका निर्देशित ध्यान किया. कल सुबह दस बजे से कार्यक्रम है. अभी-अभी एक अन्य महिला इस कमरे में आ गयी हैं. हिंदी भाषी हैं. उनका नाम व हालचाल पूछा, उन्हें एसी उनतीस डिग्री पर रखना है पर पंखा फुल पर, पसन्द अपनी-अपनी... नन्हे से बात की वह घर पहुँच गया है.
रात्रि के सवा नौ बजे हैं, आश्रम के बसवा अतिथिगृह में उनका दूसरा दिन है. सुबह गुरूजी का प्रवचन सुना, गर्मी बहुत थी. टिन की छत वाला मण्टप काफी गर्म हो गया था. भगवद्गीता के पन्द्रहवें अध्याय का आधा भाग आज समाप्त हुआ, शेष भाग कल लिया जायेगा. कल प्रश्न भी पूछे जायेंगे. सुनकर कोई प्रश्न यदि सहज, स्वाभाविक रूप से उठता है मन में, तो उसका समाधान उसे भी पूछना चाहिए. शाम के सत्संग में भी उन्होंने भाग लिया. गुरूजी ने कई प्रश्नों के उत्तर सरल शब्दों में दिए. वे कुछ देर से पहुँचे सो बैठने के लिए कुर्सियां तब तक भर चुकी थीं. नीचे बैठना पड़ा, जून की पीठ में दर्द हो गया. उसे लगता है वह थोड़ी सी भी कठिनाई सहन करना नहीं चाहते, अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलना नहीं चाहते. खैर.. सबकी अपनी-अपनी क्षमता होती है. सत्संग आरम्भ होने से पूर्व आश्रम की कैंटीन में हॉट चॉकलेट पी सीढ़ियों पर बैठकर, जैसे प्रातः भ्रमण व प्राणायाम के बाद कॉफी पी थी. अभी तीसरी महिला कमरे में नहीं आयी हैं, वह पंजाब से आयी हैं पूरे पन्द्रह दिनों के लिए. दोपहर तीन बजे वे नए घर गए, जो कार से यहाँ से दस मिनट की दूरी पर है. आज काफी काम हो गया. पूजा कक्ष में एक लकड़ी का एक सुंदर वृक्ष लगवाया, उसके पीछे प्रकाश भी है. डाइनिंग रूम में छोटी बहन की दी कुकू घड़ी लगायी, जिसमें हर घण्टे पर चिड़िया बाहर आकर बोलती है. धीरे-धीरे घर सामानों से भरता जा रहा है.
उसने अतीत के पृष्ठ खंगाले, “ मिल गयी शांति ! वह सोचती है उसने अच्छा किया पर उसने बुरा किया, बहुत बुरा ! जो जिसमें खुश रहे उसे वैसे ही रहने देना है. किसी के जाने से वह खुश रहेगी या उदास यह उतना महत्वपूर्ण नहीं जितना यह कि उनके साथ वह कैसे रहती है. कोई कैसा भी हो उसके प्रति द्वेष भाव रखता हो या प्रेम का भाव, अपना ही तो है. फिर क्यों नहीं चुप रहती ! चुप रहना सबसे अच्छा है यदि उसके पास मधुर बोल नहीं हैं तो कड़वे बोल क्यों बिखेरती-फिरती है. ऐसे कड़वे बोल जो उसके होंठों से निकलते हैं जब उसका बदन काँप जाता है, उसके सिर में दर्द हो जाता है.
वह सिर्फ अपने लिए जीते हैं ! दूसरों की जिंदगी में दखल देना उन्हें पसन्द नहीं, पर वे दूसरे कौन हैं ? उनका अपना परिवार ही तो. कितनी आसानी से उन्होंने कहा कि वे तो घर में मेहमान की तरह रहते हैं. ओह ! ईश्वर ! क्या फिर रिश्ते-नाते स्नेह आदि सब असत्य हैं ?
नहीं ! नहीं ! नहीं ! यह यदि असत्य है तो जीवन क्या है ? जीवन एक खोखली अनुभूति नहीं है फिर !
उस वक्त उम्र कच्ची थी, सो मेहमान की तरह रहने का अर्थ समझ में नहीं आया था. जीवन की समझ नहीं थी, आज पढ़कर हँसी आ रही है, अज्ञान के हाथों किस तरह छला जाता है मानव.