Wednesday, June 13, 2018

अच्छाई की कठिनाई



Just now she saw some documentary on solar system. It is amazing to see the Sun,  Moon , movement of earth and other planets. The universe is so vast and no one knows how vast it is! Only God knows but no one knows God! He only knows himself. Today she went to school, did some yoga exercices. Children love to laugh, elders also. Peace and happiness, they feel after each session is contagious. Yesterday Jun said she may go to Delhi for three-four days during world cultural festival of art of living. In the morning she saw once again the dream of nice food, she has food vasnaas, will get rid of them also with the grace of God! He is so powerful and so loving. While coming back from school, she went to see the company guest house garden. It is an amazingly beautiful garden with so many flowers at one place. Today she also saw the video of Anita Moorjani, who had cancer and went in coma, then she came back and got healed up. She experienced her true self.
अभी-अभी दीदी व बड़े भाई से बात की. ढेर सारे समाचार मिले. भाई बिटिया के घर पर रह रहे हैं, परसों नन्हे से मिलने जायेंगे. दीदी के घर छोटे बेटे की वधू तथा उसकी माँ आने वाले हैं. होली से पहले लंच पार्टी होगी. आजकल वह गुरूचरणदास की किताब पढ़ रही है ‘अच्छाई की कठिनाई’. जिसमें महाभारत के पात्रों को लेकर जीवन के मूलभूत प्रश्नों का विश्लेष्ण किया गया है. समाधि के बार में सुना, समाधि में वही जा सकता है जिसे मृत्यु का भय न हो. कल उन्हें मृणाल ज्योति जाना है. विशेष बच्चों को योग कराके ख़ुशी मिलती है. ख़ुशी बांटने से ही बढ़ती है, इसका तो पता चल चल गया है, और उनके पास है ही क्या बांटने को..वही तो एकमात्र अपनी संपदा है, ख़ुशी, प्रेम, शांति और आनन्द ...
पिछले दिनों एक स्वपन देखा, अथवा तो दृश्य देखा, पूरा होश था देखते समय कि किसी जन्म में उसका विवाह एक ऐसे परिवार में होता है जो चोरी के कर्म में लिप्त है. इसलिए भीतर चोरी के भय का संस्कार समा गया है, यदि कोई वस्तु निर्धारित स्थान पर नहीं मिलती है तो झट पहला ख्याल आता है चोरी न हो गयी हो. एक क्षण का शतांश भी नहीं लगता इस विचार को आने में पर अगले ही क्षण अपनी मूर्खता पर हँसी आती है. उनके संस्कार कितने दृढ़ होते हैं. इन्सान उनके हाथों का एक खिलौना ही तो है यदि सजग न रहे, यदि ज्ञान में स्थित न हो ! इसी तरह देह के प्रति आकर्षण का संस्कार जिसका जितना गहरा होता है, वह अन्यों को वस्तु रूप में ही देखता है, जड़ वस्तु के रूप में. चेतन का उसे बोध ही नहीं होता, मन ही मनुष्य के बंधन का कारण है ! योग वसिष्ठ में इसी बात को समझाया गया है.
पिछले तीन दिन कुछ नहीं लिखा. जून के आने पर दिनचर्या बदल जाती है, समय की सीमा का ध्यान रखना होता है. आज वह दिल्ली जा रही है. भाई लेने आयेंगे. कल वहीं से पिताजी से मिलने तीन दिनों के लिए घर जाएगी. बाद में दिल्ली में ‘विश्व सांस्कृतिक सम्मेलन’ का तीन दिन का कार्यक्रम है. आज महा शिवरात्रि है, हो सका तो रात को जागरण करेगी, कल दोपहर को फ्लाइट में सोया जा सकता है. उसकी अनुपस्थिति में भी घर में योग कक्षा चलती रहे इसका प्रबंध करके जाना है. आज एक परिचिता के यहाँ किसी काम से गयी तो उनका बगीचा देखा, बहुत सुंदर है. अभी-अभी बड़ी ननद का फोन आया, कुछ देर पहले उसने मंझली भाभी से बात की थी. जून ने भाई से बात की, शाम को एयरपोर्ट से वह मेट्रो से घर ले जायेंगे. उनके घर की सफाई भी करवानी है, कल करेंगे, भाभी की स्मृति में होने वाले हवन की तैयारी भी. जब जिस वक्त जहाँ जो जरूरत होती है. अस्तित्त्व उसकी तैयारी कर ही देता है, वे निमित्त मात्र ही बनते हैं.

2 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14.06.18 को चर्चा पंच पर चर्चा - 3001 में दिया जाएगा

    हार्दिक धन्यवाद

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  2. बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !

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