Thursday, June 14, 2018

रिश्तों का इन्द्रधनुष



साढ़े दस बजे हैं सुबह के, कुछ देर पहले ही वह बड़े भाई के साथ एक पार्क में टहल कर आई है. दिल्ली की हर कालोनी में पार्कों की सुंदर व्यवस्था है, बढ़ते हुए प्रदूषण से राहत पाने का एकमात्र सरल उपाय. ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ के पैंतीस वर्ष पूरे होने पर दिल्ली में होने वाले कार्यक्रम में सम्मिलित होने वह कल ही असम से एक सप्ताह के लिए यहाँ आई है. वे घर में प्रवेश कर ही रहे थे कि जून का फोन भी आया, वह ठीक हैं, आए दिन के टूर के कारण अब उन्हें भी अकेले रहने की आदत हो गयी है, स्वयं पर निर्भर हो गये हैं. यहाँ घर में काफी अस्त-व्यस्तता है, लगभग एक वर्ष पूर्व भाभी के चले जाने के बाद यह स्वाभाविक भी है, उनकी छाप घर के हर कोने में है, सामने ही उनकी मुस्कुराती हुई तस्वीर रखी है लगता है अभी बोल पड़ेंगी. सोच रही है सफाई का काम कहाँ से शुरू करे, या महरी के आने के बाद ही उचित रहेगा. भाई नित्य की साधना कर रहे हैं. कल रात छोटी भाभी ने डिनर के लिए बुला लिया था, वहाँ से लौटे तो कुछ देर ठंडी हवा में टहलते रहे. भाई सोने चले गये, पर उसे देर रात तक नींद नहीं आ रही थी, ‘शिवरात्रि’ को जागरण करना चाहिए यह लिखा ही है शास्त्रों में. सो देर तक ध्यान करती रही. अभी उत्सव में तीन दिन शेष हैं, परिवार के अन्य जनों से मिलने आज दोपहर को ‘घर’ के लिए निकलना है.

सुबह पांच बजे ही नींद खुल गयी. चालीस मिनट तक खुली हवा में भ्रमण किया, प्राणायाम भी, तन व मन दोनों हल्के हो गये हैं. सदा की तरह पिताजी ने सुबह ही रेडियो पर ‘विविध भारती’ लगा दिया है. कल शाम सात बजे वे यहाँ पहुँच गये थे. पिताजी, छोटी भाभी व उनके माता-पिता सभी ने स्वागत किया. ‘एओएल’ के कार्यक्रम के बारे में बातचीत हुई. आज कोर्ट में सुनवाई है. पर्यावरण को इस कार्यक्रम से खतरा है, इस बात के आधार पर जन याचिका दायर की गयी है. शाम को छोटा भाई भी आ गया, उसने पिताजी को ‘किन्डल’ दिया, भाई ने उसमें कई किताबें डाउनलोडन कर दी हैं. कल देहरादून जाना है, जहाँ दीदी व बड़ी बुआ जी रहती हैं. आज कुछ उपहार लेने बाजार जाना है.

आज सुबह भी जल्दी उठे वे. पौने आठ बजे वे घर से चल दिए. चौक तक जाने के लिए सीधी सड़क मिलेट्री की भर्ती की कारण बंद थी सो काफी घूम कर जाना पड़ा. गन्तव्य तक पहुंचने में ढाई घंटे लग गये. बुआजी के पैर का कुछ महीने पहले आपरेशन हुआ था, वॉकर के सहारे चल रही थीं. उन्होंने सुंदर वस्त्र पहने थे तथा एक शांत व सुंदर वृद्धा लग रही थीं. उनका पोता व पोती, दोनों बच्चे भी बहुत सुंदर व स्मार्ट लग रहे थे. गली भी साफ-सुथरी थी. देश में चली विकास की लहर का असर हो सकता है. वहाँ से फिर वे दीदी के यहाँ गये. छोटी व बड़ी भांजियाँ उनके दोनों पुत्र व पुत्री, बड़ी की सास तथा पति, दीदी व जीजाजी सभी ने स्वागत किया. उनके बगीचे से तोड़ा गन्ना व खट्टे-मीठे लुकाठ खाए तथा ढेर सारा पुदीना व कच्चे पपीते लेकर वे लौट आये. रास्ते में ममेरे, चचेरे व फुफेरे भाई-बहनों से फोन पर बात की. इस समय रात्रि के पौने दस बजे हैं. भाई पापाजी को ध्यान के सूत्र समझा रहे हैं. आज से कुछ वर्ष पहले वह इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि उन दोनों में आत्मीयता इतनी बढ़ सकती है. उसे अच्छा लग रहा है यह देखकर कि भाई बहुत शांत हो गये हैं तथा ध्यान करने लगे हैं. दीदी भी हर घटना के पीछे सकारात्मकता ही देखती हैं. कुल मिलाकर आज की यात्रा अच्छी रही, उसे स्वयं थोड़ा कम बोलना चाहिए, अभी भी वाणी पर संयम नहीं है. कल सुबह वापस दिल्ली जाना है.

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