Monday, July 11, 2016

होली के रंग


मौसम भीगा-भीगा सा है, गरज रहा है मेघ और छम-छम बरस रही हैं बूँदें ! मन भी भीगा है किसी अनजाने प्रेम की मस्ती में ! सद्गुरु क्या आये उसकी आध्यात्मिक यात्रा को पंख लग गये हैं, कितनी असीम करुणा है उनकी, वह जानते हैं सब कोई तो उन तक पहुंच नहीं सकते, सो उन्हें खुद ही आना पड़ा. ईश्वरीय कृपा का कोई पार नहीं पा सकता, वह दिन-रात अखंड अनवरत उन पर बरस रही है. वे ही अनदेखा किये अपने क्षुद्र मन का शिकार होते रहते हैं और झूठे अहम को सजाते रहते हैं, एक बार जब आभास होता है कि परमात्मा उनके साथ है ओर उनसे नितांत एकान्तिक प्रेम करता है, वे कृत-कृत्य हो जाते हैं, भीतर हिलोरें उठती हैं, तन-मन हल्का हो जाता है, फूल सा हल्का और ऐसा लगता है जैसे जन्मों का भार सिर से उतर गया हो...मुक्ति इसी को कहते हैं न ? भक्ति की दासी है मुक्ति यह कभी सुना था, सच ही सुना था !

गुरू का आदेश यही है कि वे हुकुम में रहें, उसका संदेश है कि हुकुम में रहकर जो शांति, आनंद और सुख उन्हें मिला है वह सभी को बाँटें. आज सुबह स्नान के बाद अनुग्रह हुआ और भीतर ध्यान का सूत्र मिला. उन्हें कुछ नहीं करना है, कुछ नहीं पाना है और वे कुछ नहीं हैं. कितना आसान है ध्यान करना सद्गुरु की कृपा के बाद. परमात्मा ने उन्हें अपने जैसा बनाया है और वे हैं कि अपने होने से ही संतुष्ट नहीं हो पाते, वे अपने होने को भी जान नहीं पाते. सबमें उसी परमात्मा का नूर है, जो एक ओंकार, अकाल मूरत, निर्भव, निर्वैर, अजूनी है. वह सत्य स्वरूप परमात्मा उनका अपना आप होकर भीतर ही बैठा है. वह कितना निकट है उनके, वह प्रकाश रूप है, वह चिन्मय है ! वह उनके हर कार्य हर भाव को देखता है, वह द्रष्टा है ! टीवी पर मुरारीबापू राम कथा सुना रहे हैं. उन्होंने भी अपने भीतर उस परमात्मा को अनुभव किया है. वह कह रहे हैं, हरि उनका फैमिली डाक्टर है, वह सारे अस्तित्त्व को सम्भालने वाला है. यदि वे भी अस्तित्त्व का हिस्सा बन जाएँ तो उनका भी ध्यान अपने आप होने लगता है !


कल होली है और परसों दुलहण्डी, इस वर्ष वे होली नहीं मना रहे. न ही गुझिया बनाने का उत्साह है, न ही सबको बुलाकर रात्रिभोज करने का, न ही सबके लिए टाइटिल लिखने का. कुछ खल तो रहा है तभी तो बार-बार ख्याल इसी बात की ओर जा रहा है, पर हर अच्छी चीज भी आखिर कभी न कभी तो खत्म होती है. इस साल ऐसे कई कारण हैं. सबसे बड़ा तो माँ का गिरता हुआ स्वास्थ्य, पिताजी के दातों की समस्या है. एक सखी के बेटे के बारहवीं के इम्तहान हैं. दूसरी की सासूजी को हाथ में चोट लगी है. एक अन्य को लोहरी पर बुलाया था तो बहुत बुलाने पर आये थे, इन सब बातों से जैसे भीतर उत्साह नहीं है. नैनी का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है, काम बढ़ जायेगा तो वह भी परेशान हो जाएगी और इन सब बातों से बढकर जो कारण है वह है सद्गुरु का आना, उस पर कृपा करना और भीतर जागृति दिलाना कि समय बहुत कीमती है. व्यर्थ गंवाने की जरा भी गुंजाइश नहीं है. इस वर्ष वे ध्यान करते हुए ईश्वर के प्रेम के रंगों से भीगने की होली खेलने वाले हैं. बाहर की होली बहुत खेल ली, अब भीतर जाने का वक्त है. मैदे की वस्तुएं उन्हें रास नहीं आतीं, सो गुझिया कैंसिल, हाँ गुलाब जामुन बनायेंगे, जो भी मिलने आये, खुले दिल से उनका स्वागत किया और उन्हीं का रंग लगाकर खिला दिया गुलाब जामुन ! 

2 comments:

  1. ऐसा तो हम करते हैं उन्ही के रंग से रंग देते हैं.

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  2. स्वागत व आभार दीदी !

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