Monday, May 23, 2016

द सीक्रेट - रोंडा बर्न की किताब

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मई का महीना आरम्भ हुए दो हफ्ते होने को हैं. आज पहली बार डायरी खोली है. कितना कुछ हुआ, हो रहा है और होने वाला है, भीतर भी और बाहर भी ! परहेज न करने के कारण सर्दी-जुकाम हो गया. सेहत बनाने के चक्कर में एक बार पुनः सेहत का बिगाड़ कर लिया. दो बार मृणाल ज्योति जाना हुआ, उनकी समस्याओं से रूबरू हुई. उन्हें आर्थिक संकट से जूझना पड़ रहा है, उनका सेंटर जहाँ पर है वह स्थान बहुत नीची जगह पर है. मैदान बनवाने के लिए अथवा निर्माण कार्य करने से पहले जमीन को मिट्टी से भरवाना पड़ता है, जिसमें बहुत खर्च आता है. उनके पास बच्चों को लाने व छोड़ने के लिए एक वैन है जो पुरानी हो गयी है और उसके रख-रखाव पर काफी खर्चा आ रहा है, कोई बाऊँड्री वाल नहीं है, जिसे बनवाने के लिए फंड चाहिए. बूंद –बूंद से सागर बनता है, अगर वह क्लब में सहायता के लिए अपील करे तो कुछ लोग मदद करने के लिए आगे आ सकते हैं.

संतजन कहते हैं सभी मंजिल पर पहुंच सकें, इसलिए देह रूपी वाहन मिला है, जीवन की लालसा उन्हें इस वाहन में बैठे रहने पर विवश करती है. क्योंकि वे मंजिल तक पहुंच नहीं पाते, मृत्यु से भय लगता है. जिसे मंजिल का पता चल गया वह मृत्यु से नहीं डरता, असली जीवन इस ज्ञान के बाद ही शुरू होता है ! भय मुक्त मन ही अस्तित्त्व के प्रति प्रेम से भर जाता है और ऐसा मन ही परमात्मा के प्रति समर्पित हो सकता है ! लेकिन मानव इस सत्य से अनभिज्ञ रहता है और सारा जीवन गुजार देता है ! मृत्यु उसे डराती है और वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है. अविद्या, अशिक्षा व अज्ञान सबसे बड़े रोग हैं, स्कूली व कालेज की शिक्षा नहीं बल्कि जीवन की शिक्षा ! जो सद्गुरु देते हैं, लेकिन वे सद्गुरु के द्वार तक ही नहीं पहुंच पाते. गुरु परमशान्ति का द्वार है लेकिन उस शांति का अनुभव बिरले ही कर पाते हैं.

पिछले हफ्ते सास-ससुर यहाँ आये तब उन्हें माँ की बीमारी के बारे में ठीक से पता चला. वृद्धावस्था की कारण वह भूलने की बीमारी से ग्रसित हो गयी हैं. उन्हें दिन का, समय का, महीने का कोई बोध नहीं रह गया है. जब से यहाँ आई थीं, शारीरिक रूप से वह स्वस्थ हो रही हैं पर मानसिक रूप से अस्वस्थ ही हैं, वृद्धावस्था अपने आप में एक रोग है. वह स्वयं भी तो उसी की ओर कदम बढ़ा रही है, आँखों की शक्ति घट रही है, मन सदा विचारों से भरा रहता है. पिछले कई दिनों से कुछ नया लिखा भी नहीं. जून बाहर गये हैं, अभी तीन दिन और हैं उन्हें लौटने में, समय की कमी नहीं है. कल लाइब्रेरी से दो किताबें लायी. पहली The Secret  दूसरी पुस्तक बराक ओबामा पर है. इस बार कई अच्छी पुस्तकें आई हैं. 

एक दिन और बीत गया, माँ की बीमारी घटती नजर नहीं आती. सम्भवतः उन्हें मतिभ्रम हो गया है. हर बात में शिकायत करना स्वभाव बन गया है, सहन शक्ति बिलकुल खत्म हो गयी है. पिताजी कितने उपाय करके उन्हें समझाते हैं पर कोई असर होता नजर नहीं आता. इस समय रात के साढ़े नौ बजे हैं. परसों दोपहर जून आ रहे हैं, सबके लिए कुछ न कुछ ला रहे हैं.

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