Sunday, May 1, 2016

झाऊ के वन


मुहब्बत का दिया मद्धम न होगा
उजालों का परचम कभी खम न होगा
अगर अश्कों से दामन नम न होगा
बिछड़ने का हमें क्या गम न होगा
तेरा जलवा यकीनन कम न होगा
मेरी आँखों में लेकिन दम न होगा

ये शेर उसके दिल की हालत की कितनी सही बयानी करते हैं. उसकी आंख्ने भले सूख गयी थीं पर भीतर तड़प थी, ‘उसका’ जलवा तो पहले सा कायम था, वह तो सृष्टि के अस्तित्त्व में आने से पहले भी था और बाद में भी रहेगा. उनकी आँखों में वह शक्ति नहीं होती कि वे उसे देख सकें. वह तो हर क्षण उन्हें संदेश भेजता रहता है. चौबीसों घंटे वह उसके पास ही रहता है. वह उसकी हाजिरी को नजर अंदाज कर जाती थी. आज सुबह अनोखा अनुभव हुआ, अनुभव होना कठिन नहीं पर उसमें टिकना कठिन है. कभी प्रमाद कभी प्रारब्ध उन्हें भटका देता है. साधक के भीतर प्रेम नदिया की धारा की तरह कभी-कभी गुफाओं में छिप जाता है.

आज क्रिसमस है, यानि बड़ा दिन. ईसामसीह का जन्मदिवस. दुनिया के लगभग सभी हिस्सों में लोग इस त्यौहार को मना रहे हैं. उनका भी मन उल्लास से भरा है. सुबह सभी को sms भेजे, कुछ ने जवाब भी दिए. जून का अवकाश है, वे शाम से थोड़ा पहले दिन रहते लम्बी ड्राइव पर जायेंगे. कल शाम क्लब में विशेष सज्जा की गयी थी. एक सखी के यहाँ विवाह की वर्षगांठ की पार्टी भी थी. आज वे अपने मित्रों, संबंधियों की सूची भी बनाने वाले हैं, जिन्हें नये वर्ष के शुभकामना संदेश व कार्ड्स भेजने वाले हैं. कल वे निकट ही स्थित पक्षी विहार जा रहे हैं. आजकल मौसम बहुत अच्छा है. धूप, नीला आकाश, फूल और सूखी हरी घास ! टीवी पर एक व्यक्ति पानी में बड़े, मोटे सर्प के साथ तैर रहा है, खेल रहा है, वे व्यर्थ ही डरते रहते हैं. डर उनके मन की उपज है. प्रकृति के निकट रहकर ही वे अपने सहज रूप में आ सकते हैं. मनुष्यों के निकट वे बनावटी व्यवहार करते हैं.


आज वे ‘डिब्रू सैखोवा नेशनल पार्क’ देखने गये. सुबह साढ़े आठ बजे वे निकले और साढ़े नौ बजे पहुंच गये. बनश्री नामका छोटा सा रिजोर्ट रंगीन वस्त्र की झंडियों से सजा हुआ था, आर्मी की एक यूनिट ने उसे शाम तक के लिए लिया हुआ था वे हीरक जयंती मना रहे थे, उन्होंने एक नाव किराये पर ली और डिब्रू नदी के नील स्वच्छ जल में निकल पड़े. हवा ठंडी थी और आकाश नीला था. नाविक एक बूढ़ा व्यक्ति था उसका सहायक एक छोटा बच्चा था. वे उन्हें नदी के दूसरे किनारे पर ले गये, जहाँ हरियाली के मध्य में जगह-जगह श्वेत रेत बिछी थी, जो सुबह की रौशनी में चमचमा रही थी. वे चलते रहे और काफी दूर चलने के बाद झाऊ वन आये, जिसे पार करने के बाद पुनः रेतीले स्थान, जिन्हें पार करने के बाद फिर से वन मिले जहाँ नीचे हरी घास उगी थी. वे कुछ देर के लिए वहाँ बैठ गये, साथ लायी लेमन टी, कॉफ़ी बिस्किट और नमकीन खाकर तरोताजा हो गये. गायों का एक झुण्ड और कुछ भैंसें वहाँ घास चर रही थीं और सफेद बगुले उनके साथी बने साथ साथ चल रहे थे. विशाल नीले गगन के नीचे और कोई मनुष्य उस समय वहाँ नहीं था. उन्होंने विभिन्न प्रकार के पक्षियों को भी आते व जाते समय देखा. वापसी में तिनसुकिया में दोपहर का भोजन करके वे तीन बजे घर लौट आये.

No comments:

Post a Comment