Monday, February 8, 2016

कृष्ण चरित्र - बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय की पुस्तक


आज द्वादशी है, रंग पाशी का उत्सव, होली के आने में अब तीन-चार दिन रह गये हैं. आज दोपहर को कोई पढ़ने नहीं आया और उसे कहीं जाना भी नहीं है. कल डेंटिस्ट के पास पुनः जाना है. उसने सोचा क्यों न कुछ पंक्तियाँ उसी के लिए लिखे, उस दिन उसका व्यस्तम दिन था. मरीजों की कतार बढ़ती जा रही थी, हरेक के दातों का इतिहास उसकी डायरी में दर्ज था. कैसा लगता होगा लोगों के मुखों में झांकना, श्वेत मोती से, पान मसाला खाने से हुए काले, पीले, गंदे, टूटे-फूटे दातों को देखना और फिर दुरस्त करना, दातों का डाक्टर बनने का निर्णय कोई कैसे और क्यों लेता होगा या ईश्वर स्वयं ही उनके भीतर बैठ ऐसी बुद्धि देते होंगे, ईश्वर की दुनिया में सभी तरह के कार्यकर्ता मिलते हैं. वह स्वयं ही अनेक होकर बैठ गया है.

‘कृष्ण चरित्र’ अभी-अभी खत्म की है, बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित तथा ओमप्रकाश द्वारा अनुवादित इस पुस्तक में कृष्ण को ईश्वर को अवतार मानते हुए उनके मानवीय रूप को प्रकाशित किया गया है. ईश्वर जब मानव रूप लेकर अवतरित होते हैं तो वे मानवीय गुणों की सीमा का अतिक्रमण नहीं कर सकते, यदि उन्हें दैवीय शक्ति का ही उपयोग करना हो तो वे बिना मानवीय रूप लिए भी कर सकते हैं, हाँ, मानव होते हुए उनके गुण चरम सीमा तक पहुंच सकते हैं. वे सोलह कला सम्पूर्ण थे, जीवन के सभी क्षेत्रों में अग्रणी तथा कुशल, चाहे वह कला हो, धर्म हो अथवा राजनीति, ऐसे कृष्ण को जो आदर्श मानव थे प्रणाम करके कौन अपना उद्धार करना नहीं चाहेगा. आज सुबह ‘मृणाल ज्योति’ गयी, योग के बाद हास्य आसन भी कराया, लौटकर डाक्टर के पास जाना था. कल जो कविता लिखी थी, दंत चिकित्सक उसे दे दी. असमिया होने के बावजूद वह भी हिंदी में थोड़ा-बहुत लिख लेते हैं. आज मूसलाधार वर्षा हुई, गर्जना भी भी बड़े जोरों से की बादलों ने. इस समय रुकी हुई है. आज उसका विद्यार्थी मेघनाथ पढ़ने नहीं आया, जो मेघ का नाथ है वह मेघों से भयभीत होकर घर में छुपा बैठा है.

उत्सव मन में कैसा उल्लास जगा देता है. आज गुरूजी की बातें सुनीं और उसके बाद प्रेम का कैसा ज्वार चढ़ा भीतर, बड़े, मंझले, छोटे तीनों भाई-भाभी, दीदी-जीजाजी, पिताजी, चचेरी बहन सभी से बात की, फुफेरी बहन को कल फोन किया था. छोटी बहन का दुबई से फोन आया वे लोग सागर किनारे होली खेलेंगे, फिर स्नान तथा वहीं भोजन का भी प्रबंध होगा. ‘लेडीज असोसिएशन’ की तरफ से यह कार्यक्रम होली के उपलक्ष में आयोजित किया गया है. छोटा चचेरा भाई भी वहाँ पहुंच गया है, उसे टाइल्स फैक्ट्री में काम मिला है. आज भी मौसम भीगा है, प्रकृति भी होली खेल रही है.


प्रेम का जो ज्वार चढ़ा था उस दिन, उसी की परिणति है, आज उसने लाइन की सभी महिलाओं को आमंत्रित किया है, होली मिलन की दावत के लिए.. कल दोपहर डेढ़ बजे. गुझिया और गुलाब जामुन तो हैं ही, छोले और टिक्की और बनाएगी. आज सुबह सुना साधक को मनसा निराकारी रहना है, वाचा निरहंकारी रहना है तथा कर्मणा निर्विकारी अवस्था में रहना है. देह भान में आते ही मन कमियों को देखने लगता है, वाणी में अहंकार भी तभी आता है और ऐसे में कर्म भी पावन नहीं होते. मन आत्मा के जागृत होने पर बेबस हो जाता है, वह इधर-उधर जाना तो चाहता है पर एक क्षण की सजगता उसे वापस खींच लाती है, उसकी डोर आत्मा के हाथ में आ जाती है. अभी कुछ देर पूर्व वर्षा होने लगी थी, अब पुनः तेज धूप निकल आई है, ऐसे ही मन है एक पल में भूत में चला जाता है अगले ही पल भविष्य में छलांग देता है, आत्मा सदा वर्तमान में रहती है, वह पवित्र, शांतिमय, आनन्द से भरी, शक्तिशाली, ज्ञानयुक्त, सुख स्वरूप तथा प्रेमिल है. ऐसी आत्मा का ज्ञान उसे सद्गुरू की कृपा से हुआ है !   

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