Monday, February 29, 2016

संधि बेला का सौन्दर्य


आज उसका जन्मदिन है, इतने वर्षों में कितने कड़वे बोल बोले, कितने टेढ़े बोल बोले, कितनों का दिल दुखाया होगा, जीवन कितना अर्थहीन लगता है कभी-कभी, आत्मा के स्तर पर जाते ही जो शांति भीतर महसूस होती है वह मन से देह के स्तर पर आते-आते जैसे वे स्वयं ही लुटाते जाते हैं, संस्कारों के वशीभूत होकर वे न चाहते हुए भी ऐसा कुछ कर जाते हैं, इच्छा शक्ति की कमी या प्रारब्ध. कृष्ण कहते हैं वह कामना ही मनुष्य को बलात पाप की ओर ले जाती है, जिससे उसका ज्ञान ढका है. उसे इस क्षण जगत से कुछ भी नहीं चाहिए, दाता बनना भाता है उसे याचक नहीं, फिर भी जब तक देह है जगत का दिया हुआ ही ग्रहण करना है और समाज में रहते हुए लेन-देन की रीत भी निभानी है. उसे एकांत भाता है. आज सुबह क्रिया के बाद भीतर सविकल्प तथा निर्विकल्प समाधि का भेद जैसे कोई स्पष्ट कर गया. हर रोज क्रिया के बाद एक नवीन भाव या विचार भीतर जगता है पर आज उसके जन्मदिन का उपहार मिला है, वह अनंत सत्ता, वह अव्यक्त जैसे उसके साथ हर वक्त है, वह भीतर ही है, पर दीखता नहीं, वह सदा सजग है, प्रेरित करता है, एक पल में मुस्कान ला देता है, कितना भी उदास हो मन, एक क्षण की स्मृति उसे प्रसन्न कर देती है और यह उदासी भी तो एक पल की विस्मृति से ही आई होती है. अब तो उसके बिना एक क्षण भी नहीं बीतता, शास्त्रों के सारे वाक्य जैसे सत्य प्रतीत होते लगते हैं !

कल दिन भर जून उसके जन्मदिन की ख़ुशी मनाते रहे. बच्चों के लिए बिस्किट लाये, मृणाल ज्योति के लिए फोटो फ्रेम करके लाये, मिठाई लाये और गाड़ी का इंतजाम भी किया. शाम को ब्रेड रोल तले, टेबल लगाया और ख़ुशी-ख़ुशी जन्मदिन मनाया, पर रात को उसने उन्हें न जाने क्यों नाराज कर दिया. उसका मन उड़ने को बेचैन था, आत्मा की ऊंचाइयों में उड़ने को और वह उसे नीचे ला जाना चाहते थे. वह प्रेम की बात करना चाहती थी और वह बात करना ही नहीं चाहते थे. सुबह भी उनका मूड ठीक नहीं था, वह छोटी सी बात को( उनके लिए बात छोटी नहीं रही होगी, बहुत बड़ी रही होगी) दिल से लगा लेते हैं. उनके मध्य दूरी का एक ही कारण है वह प्रेम के वास्तविक स्वरूप को जानना चाहती है और वह मात्र..लेकिन वे दोनों ही एकदूसरे से बेहद प्रेम करते हैं, प्रेम कैसा भी हो आत्मिक, मानसिक या..प्रेम ही होता है और प्रेम का अपमान स्वयं ईश्वर का अपमान है. प्रेम के हर रूप को स्वीकारना सीखना होगा, प्रेम हर रूप में पावन है, प्रेम भरे मन को ठेस पहुंचना पाप ही तो है. अब जून डिब्रूगढ़ से वापस आ रहे होंगे, थोड़ी ही देर में वह उसके सम्मुख होंगे और अब वह उन्हें नाराज नहीं करेगी, उनके प्रेम का प्रत्युतर प्रेम से ही देगी. उनके जीवन के कुछ ही बरस शेष हैं, वे दोनों ही युवावस्था को पार कर चुके हैं, एक-दूसरे की उन्हें आने वाले वर्षों में और भी आवश्यकता होगी. जिसने एक से प्रेम कर लिया उसने सब से प्रेम कर लिया. एक में सब और सब में वह एक ही तो समाया है.

आज सुबह संधि बेला में भगवान के सुंदर विग्रह का दर्शन हुआ, राम का रूप था या श्याम का, सुंदर मुखड़ा, आभूषण और सुंदर वस्त्र, एक चित्र की भांति क्षण भर के लिए सम्मुख आया और विलीन हो गया. इस बार बहुत दिनों, महीनों के बाद ऐसा दर्शन हुआ है, संधि बेला में तारे दीखते हैं, प्रकाश भी दिखता है और अद्भुत शांति का अनुभव भी होता है. परमात्मा हर पल उनके साथ है, वह यह बात कई तरह से उन्हें समझाना चाहता है, वह अकारण दयालु उनका सुहृद है, वह रस ही है, उसका नाम लेते ही कैसा खिल जाता है मन, वह उनकी आत्मा के रूप में भीतर भी है वही सारे जगत में अव्यक्त रूप से विद्यमान है. आज दीदी का जन्मदिन है, उसने उन्हें शुभकामनायें दीं. उस दिन जून को उसने मना लिया, वह पुनः सहज हो गये हैं. कल बुआजी का फोन आया, उन्होंने कहा, उसकी सभी कविताएँ पढ़ ली हैं, कई दिनों से उसने कोई नई कविता नहीं लिखी है. आधा जीवन बीत गया है, एक दिन मृत्यु सम्मुख होगी, उस क्षण कोई अफ़सोस न रहे इसका ध्यान तो रखना होगा, और अभी ही रखना होगा. आज शाम को एक सखी ने अपने घर बुलाया है, मौसम आज सुहावना है, शीतल पवन, आकाश में बादल तथा बगीचे से आती फूलों की सुगंध, पर इसी वक्त इस धरती पर न जाने कितने ही जन पीड़ा का अनुभव कर रहे होंगे. ईश्वर उन सबके भी साथ है. घर में आजकल चीटियाँ बहुत हो गयी हैं. कल एक अन्य सखी के यहाँ गयी, उसके पुत्र का रुझान धर्म की और है, दिल से वह भी तो कवि है.


3 comments:

  1. वह मात्र..लेकिन वे दोनों ही एकदूसरे से बेहद प्रेम करते हैं, प्रेम कैसा भी हो आत्मिक, मानसिक या..प्रेम ही होता है और प्रेम का अपमान स्वयं ईश्वर का अपमान है. प्रेम के हर रूप को स्वीकारना सीखना होगा, प्रेम हर रूप में पावन है, प्रेम भरे मन को ठेस पहुंचना पाप ही तो है.....
    बहुत बढ़िया चिंतनशील प्रस्तुति ..

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  2. स्वागत व आभार कविता जी

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  3. स्वागत व आभार कविता जी

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