Thursday, November 12, 2015

अष्टावक्र गीता पर भाष्य


जून आज जोरहाट गये हैं, अभी-अभी उनका फोन आया, पहुंच गये हैं. कल दोपहर तक लौटेंगे सो आज किसी काम की जल्दी नहीं है. कल सत्संग है उनके यहाँ सो कुछ फोन करने हैं. आर्ट ऑफ़ लिविंग की टीचर से भी बात की, वे लोग नहीं आ पाएंगे, व्यस्त हैं. आजकल सत्संग में लोगों की उपस्थिति बहुत घट गयी है. सत्संग का एक घंटा संगीत और प्रभु के नाम में कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता. मोरारी बापू की कथा टीवी पर आ रही है. वे कहते हैं सत्य, प्रेम और करुणा यदि जीवन में हों तो इन्हें बांटना शुरू कर दें, क्योंकि ये कभी खत्म न होने वाला खजाना है. जितना- जितना कोई इसे लुटायेगा उतना-उतना यह भीतर से और स्रावित होता है. कोई यदि अध्यात्म की ऊँचाई पर पहुंचना चाहता है तो प्रेम, सेवा और करुणा के मार्ग के अलावा कोई मार्ग नहीं. सद्गुरु कहते हैं भीतर देखो, भीतर उजियारा है, पर लोग डरते हैं, आत्मविस्मृति में चले जाते हैं. सम्यक बोध के बाद साधक के हाथ में पारस पत्थर आ जाता है, तब वह जो छूता है सोना हो जाता है. मनोरंजन के सभी साधन आत्मा से दूर जाने के साधन हैं ! कल रात जब वह सोई तो जीव और आत्मा की बात करके, रात को अद्भुत स्वप्न देखा, वह अपने कमरे में बिलकुल मध्य में जैसे हवा में तैर रही है और साथ ही सारे कमरे में रखे सामान भी देख पा रही है, फिर स्वयं से स्वयं ही पूछ  रही है कि इस समय उसकी आँखें बंद हैं या खुली. एक छोटे से शिशु से बात भी की स्वप्न में जो अभी बोलना नहीं जानता, उसकी आधी जीभ पर छोटे-छोटे कंटक हैं. स्वप्न की दुनिया कितनी अनोखी होती है.

आज दोपहर दीदी का फोन आया, उन्होंने ‘अष्टावक्र गीता’ पर ओशो का भाष्य पढना आरम्भ किया है जो छह भागों में है. जीजाजी ने लाकर दिया है, उन दोनों की कहानी कितनी मिलती है. आज महीनों बाद पहले की तरह कमर के निचले भाग में दर्द हुआ है, शरीर के भीतर क्या चल रहा है वे कहाँ जान पाते हैं. कल रात सोने से पहले हल्का भय का अहसास हुआ, एक हल्की सी तरंग उठी और क्षण भर में ही पूरे बदन में फ़ैल गयी, कितनी तेजी से यह हुआ पर वह उसे महसूस कर पायी, जैसे शांत झील में एक छोटा सा कंकर फेंके तो सारे पानी में हलचल मच जाती है. रात एक स्वप्न भी देखा कोई उसे कुछ सुंघा कर बेहोश करना चाह रहा है, पर वह सफल नहीं होता, वह सामना करती है, पुलिस को बुलाती है शायद किसी जन्म में उसके साथ ऐसा घटा होगा तभी वह अनजान लोगों से एक भय सा महसूस करती है. डर की जड़ें उनके भीतर होती हैं. गोयनका जी कहते हैं जब तक जड़ों से नहीं निकालेंगे डर जायेगा नहीं !


धीरे-धीरे उन्हें सेवा में आनन्द आने लगा है, बच्चे उनसे कुछ सीख रहे हैं और वे उनसे ! आज भी सुबह नौ बजे वह एक सखी के साथ पहुंच गयी, सत्ताईस बच्चे आये थे. इस समय शाम के चार बजे हैं, जून दफ्तर गये हैं शायद उसकी किताब की पाण्डुलिपि बनाने, उनके भीतर भी कोई उथल-पुथल चल रही है, वह थोड़ा मौन हो गये हैं आजकल, न जाने किस सोच में डूबे रहते हैं, वह भीतर उतरने लगे हैं. मौन इन्सान को अपना पता जानने में मददगार है. आज सुबह भी सद्गुरु को सुना, अद्भुत है उनका सहज तरीका, कठिन से कठिन विषय को भी इतना सरल बना देते हैं. वह कहते हैं कि थोडा सा क्रोध, अहंकार अपने में दिखे तो उसे रहने दो, उससे लड़ने मत जाओ. वह नम्र बनाये रखेगा. यदि कोई गलती हो जाये तो बजाय आत्मग्लानि में जाने के उससे इतना ही सीख लो कि अभी और सीखना है, बस आगे बढ़ जाओ. अपनी कमियों पर साधक न तो शर्मिंदा हों न ही उनसे डरें बल्कि उन्हें सहजता से स्वीकारें तथा उनसे आगे बढ़ जाएँ ! नन्हे का फोन ठीक हो गया होगा. उसने अपने प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया है, वह अगले महीने घर आएगा !  

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