Wednesday, July 15, 2015

कर्नाटक की ओर


पिछले तीन दिन डायरी नहीं खोली. पहले की तरह लिखना अब नियमित नहीं रह गया है. जून के आने के बाद सम्भवतः नियमित हो सके. सुबह के काम के बाद सीधे ही ध्यान के लिए बैठ जाती है. टीवी पर योग कार्यक्रम देखकर आसन करने में भी थोड़ा अधिक समय जाता है, पर उसका प्रभाव भी साफ़ देखने में  आ रहा है. आजकल वह काफी स्वस्थ अनुभव कर रही है. नन्हा और जून इस समय कर्नाटक जाने वाली गाड़ी में बैठे हैं. वे काफी दिनों से सफर में हैं. नन्हे का सफर तो कल समाप्त हो जायेगा जब उसका दाखिला हो जायेगा. पर जून अभी एक हफ्ते बाद घर आएंगे. माँ को सर्दी लगी है, जुकाम हो गया है एसी में सोने के कारण. उस दिन नैनी ने कहा था कि बूढ़े लोग बच्चे की तरह हो जाते हैं, उन्हें अपने भले-बुरे का भी ज्ञान नहीं रहता. वे कभी-कभी ऐसी ही बातें भी करती हैं, बिलकुल बच्चों की तरह. लेकिन आमतौर पर वे स्वस्थ रहती हैं, उनकी दिनचर्या भी यहाँ रहके नियमित रहती है. उनके कारण किसी को कोई असुविधा नहीं होती, इस जगत में सभी को यदि ऐसे जीना आ जाये तो कोई शिकायत कभी भी न हो साथ-साथ रहते हुए भी अलग-अलग रहना ! नूना के लिए तो सारी स्थितियां समान हैं. वह अपने साथ रहती है अपने मन के साथ सो जगत के परिवर्तन का उस पर कोई असर नहीं पड़ता. उनके प्रति उसका व्यवहार और कोमल होना चाहिए कभी-कभी ऐसा उसे लगता है, शायद उन्हें भी लगता हो. वह उन्हें आत्मननिर्भर बनते हुए देखना चाहती है. हर समय दूसरों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता. वैसे वह खुश रहती हैं पर थोड़ी सी अस्वस्थ होते ही घबरा जाती हैं. उसकी डायरी पुनः कुछ वर्षों जैसे होती जा रही है, क्या यह पतन की निशानी है ? जिन पन्नों पर ईश्वर चर्चा के अतिरिक्त और कुछ लिख ही नहीं पाती थी, वह अब सांसारिक बातों से भरे जाने लगे हैं. सम्भवतः इसका कारण यह हो कि अब उसे सभी के भीतर उसी आत्मा के दर्शन होते हैं. सभी उसे भगवान के मेहमान लगते हैं, जो भीतर है वही बाहर है. वही इस सृष्टि का कारण है, वह स्वयं ही सृष्टि हो गया है तो भौतिक और आध्यात्मिक के बीच का भेद भी अब समाप्त हो गया है. ईश्वर करे यही कारण हो क्योंकि पुनः गड्ढे में गिरने का तो उसका इरादा है नहीं !


आज ध्यान में अद्भुत अनुभव हुआ. सभी के भीतर एक ही चेतना है यह बुद्धि के स्तर पर तो जानते हैं वे पर जब तक यह अनुभूति के स्तर पर न जाना जाये तब तक इसका फल नहीं मिलता. ध्यान में उसे जड़-चेतन सभी के भीतर एक चेतना का अनुभव हुआ. वह ही पानी की लहर बन गयी वह ही हवा का झोंका ! वह ही नाव बन गयी और वह ही नाविक..जिस वस्तु या व्यक्ति की कल्पना वह करती उसके भीतर स्वयं को ही पाती. उनकी चेतना कितनी असीम है, दूर गगन के पार अनंत ब्रह्मांडों में भी व्याप्त है उनकी चेतना. वे सदा थे सदा हैं सदा रहेंगे, यह चेतना अजर है, अमर है,  नित्य है, शाश्वत है, यह असीम है ! सद्गुरु की कृपा उस पर बरस रही है. मन ध्यानस्थ रहता है. ईश्वर से जुड़ने के बाद जगत से थोड़ा ही प्रयोजन रहता है. इससे शरीर चलता है. शरीर के बिना आत्मा कैसे स्वयं को व्यक्त कर सकती है ?  

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