Monday, July 13, 2015

सिलचर में कुछ दिन


मन जैसे खाली हो गया है, कुछ लिखने को नहीं है, कुछ कहने को भी नहीं है. वे घर में कुल मिलाकर दो ही प्राणी हैं, पर बात करने लायक कुछ भी नहीं है. उसके भीतर कोई विरोध नहीं है, न ही कोई अपेक्षा, एक उदासीनता है और शांति है. ऐसी शांति जिसे बाहर का कुछ भी खंडित नहीं कर पाता. सुबह पांच बजे नींद खुली, धूप तेज थी फिर भी सासुमाँ टहलने गयीं. हिम्मत की उन्होंने. आयीं तब तक उसकी ‘क्रिया’ खत्म नहीं हुई थी. चाय के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ा. धैर्य दिखाया. फिर सात बजे उसे योग साधना का कार्यक्रम देखकर आसन करने थे सो उन्हें नहाने के लिए भेजा, फिर धैर्य दिखाया उन्होंने. बाल बनाने के लिए कहा, सुनकर उठीं. आलस्य के कारण शाम को एक ही बार बाल बनाने से कम चल जायेगा वे सोच रही थीं. उन्हें शायद इस बात पर भी थोड़ा रोष हुआ हो जब कहा कि सब्जी में तेल अधिक है. अब वह बड़ी हैं, पूज्या हैं, ठीक है लेकिन हर नयी पीढ़ी स्वयं को पुरानी पीढ़ी से अधिक जागरूक मानती है. उसे उन्हें कुछ भी कहने में कोई संकोच नहीं होता क्योंकि उसके भीतर उनके लिए अथाह प्रेम है, इस जगत के हर एक प्राणी के लिए, हर जीव के लिए, उस परमात्मा के लिए और परमात्मा के नाते उसकी सृष्टि के लिए प्रेम के सिवाय कोई भाव आ भी कैसे सकता है. जो एक बार परमात्मा के प्रेम में पड़ जाता है, वह सदा के लिए उसमें डूब जाता है !

आज ध्यान में सद्गुरु को अपने मन के निकट पाया, ध्यान में मन साधारण मन नहीं रह जाता कुछ और ही हो जाता है. मन आश्रम पहुंच गया और ऐसा प्रतीत हुआ वह उसका चिर-परिचित स्थान है अपना घर ! सुबह नींद चार बजे ही खुल गयी. आज टीवी पर गुरूजी को देखा. मस्ती का आलम था, भजन चल रहे थे फिर प्रश्न पूछे गये, हर प्रश्न का संक्षेप में सटीक उतर देना कितनी गूढ़ कला है पर जितनी सहजता से वे उत्तर देते हैं लगता ही नहीं कि उन्हें कुछ करना पड़ रहा है, वे सभी कुछ सहज होकर करते हैं. आज सुबह वह योग साधना कर रही थी कि फोन की घंटी बज उठी, उठने का मन नहीं हुआ, तारतम्य टूट जाये तो आसन ठीक से नहीं हो पाते. जाने कौन होगा, जो भी हो उससे मन ही मन क्षमा मांगती है. आज आषाढ़ की अमावस्या है, फलाहार का दिन. नन्हा और जून सिलचर में हैं. कल दोपहर तक ज्ञात होगा कि नन्हे को अगले चार वर्ष कहाँ बिताने हैं. सासू माँ  कल पैर में दर्द की शिकायत कर रही थीं, उनके पैर में घाव हो गया है और घुटने में दर्द है. इलाज चल रहा है. उसे लगता है बुढ़ापे में उन्हें ही रोगों का सामना करना पड़ता है जो जीवन भर अपने शरीर की देखभाल नहीं करते. उसके दायीं तरफ के घर में अस्सी वर्ष की वृद्धा को सब कुछ भूल गया है, अपना नाम भी !

आज सत्संग पंजाबी सखी के यहाँ था. उसने कहा कि सुबह सिर में दर्द था. इतने वर्षों तक ‘क्रिया’ करने की बाद भी वह इससे छुटकारा नहीं पा सकी, आश्चर्य होता है. अपने स्वास्थ्य के प्रति लोग जागरूक क्यों नहीं रहते ? जून ने फोन किया कि नन्हा रात को देर तक होटल में भी जगता है, टीवी देखता है जिससे उनकी नींद खराब होती है. एक बच्चा अपने पिता की अवज्ञा कर मनमानी करता है और मोह-माया में डूबा पिता कठोर नहीं हो पाता. लोग जीवन में जो भी दुःख उठाते हैं उसके जिम्मेदार स्वयं होते हैं. बचपन में ज्यादा लाड-प्यार के कारण माता-पिता बच्चों की हर इच्छा पूरी करते हैं, वह उसी का आदी हो जाता है. यहाँ घर में चाहकर भी वह माँ से घुलमिल कर बातें नहीं कर पाती है, ज्यादा बातें करना उसे पसंद भी नहीं  और दूसरे वह ऊंचा सुनने लगी हैं, तीसरे वह किसी न किसी की बारे में बात करने लगती हैं, चौथे उसके पास खाली वक्त भी नहीं होता. वह स्वयं भी देख रही हैं और इस तरह चुपचाप अपना-अपना काम किये जाने की अभ्यस्त होती जा रही हैं. कम बोलने से उनकी भी ऊर्जा बचेगी. उसे व्यर्थ ही स्वयं को दोषी नहीं ठहराना चाहिए. बस वाणी की मधुरता का ध्यान अवश्य रखना चाहिए !

बाहर भी शांति है और भीतर भी, आजकल उसे जरूरत से ज्यादा एक शब्द भी बोलना अच्छा नहीं लगता. जून और नन्हा आज कोलकाता जा रहे हैं. अभी सफर में कई दिन रहना है, ईश्वर उनकी सेहत ठीक रखे. वे स्वयं ही अपना ख्याल रखेंगे. ईश्वर उन्हें सद्प्रेरणा देगा. वह तो सदा ही देता है. उसने सोचा वे स्वयं ही अनसुनी कर देते हैं. वह सद्मार्ग पर चलने को कहता है पर वे स्वभाव वश उसी रास्ते पर चलते हैं जिसपर गड्ढा है, वे बार-बार गड्ढे में गिरते हैं, फिर उठकर सोचते हैं कि अब नहीं, पर स्वभाव, आदत हावी हो जाती है. होश में नहीं रहते न, होशपूर्वक जीना ही जीने कि कला है. सद्गुरु भी यही कहते हैं कि सजग रहो. वह निर्भयता का अनुभव करती है, सही बात कहने से डरती नहीं तथा अपने भीतर अनोखे आनंद का अनुभव करती है. सद्गुरु कि कृपा उस पर हो रही है. उसकी सबसे बड़ी कमी है वाणी का दोष, क्रोध तथा अहं. हर दिन की दिनचर्या लिखते समय इस बात का जिक्र सबसे पहले करना चाहिए कि पूरे दिन में कितनी बार वाणी का दोष हुआ और कितनी बार क्रोध तथा अहंकार का शिकार हुई !


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