Thursday, July 31, 2014

खिलौनों की दुनिया


She read -Even if you are on right track, you’ll get run over if you just sit there, by  Will Rogers
 So man has but to move, move forward, towards great heights, great ideas, towards God !
मानव का सतत प्रयास यही होता है कि वह उन्नति करे, आगे ही आगे बढ़े अनंत की ओर. उसका प्रस्थान उसी ऊँचाई की तलाश है जहाँ वह पहुंचना चाहता है. अपने आस-पास के समाज को यदि वह गहराई से देखे तो उन्नति के स्पष्ट चिह्न दिखाई पड़ते हैं, भौतिक उन्नति के साथ साथ एक और क्षेत्र भी है जहाँ मानव ने अपने कदम बढाये हैं आत्मिक उन्नति, जहाँ आगे बढने के लिए उसे ईश्वरीय प्रेरणा सहायक होती है. ईश्वर को मानव ने अपने ही आदर्शों का मूर्त रूप बनाकर स्थापित किया है ऐसा कहते हुए वह मानवीय चेतना को चरम स्थिति पर पहुंचा रही है. वह ऐसी स्थिति है जहाँ मानव और ईश्वर के बीच कोई भेद ही नहीं रहता, सो किसने किसको बनाया यह प्रश्न स्वयं ही बेमानी हो जाता है, कोई वहाँ पहुंच चुका है यह बात अन्यों को प्रेरणा देती है. जितने भी मानवीय मूल्य समाज में विद्यमान हैं सभी को कभी न कभी तो प्रथम बार व्यवहार में लाया गया होगा, वक्त की कसौटी पर खरे उतरते हुए वे आज उनके सम्मुख हैं, यदि वे उनका आदर करते हैं तो अपने लक्ष्य की ओर शीघ्र पहुंचेंगे अन्यथा न जाने कितने-कितने रूप उन्हें और मिलेंगे. पानी का स्वभाव है सदा ऊपर से नीचे की ओर बहना लेकिन मानवता का स्वभाव है सदा ऊपर की ओर बढना ! 

She is sitting in their bedroom on a bedside chair, weather is cool due to rain which has stopped now. There is a double bed, two steel almiras and one wooden inbuilt almira. Television is kept on one show case, this show case has many books also some toys and games. Nanha has decorated them, these days he plays only computer games but GIGOE and other planes etc are still dear to him. There is one dressing table also and one small table for keeping two telephones. Yesterday they talked to mother, she has recovered soon, looking fresh on phone. She is very happy for her. Life is precious and one should respect it, live it justly and should follow the laws of nature. She was describing their bedroom, colour on walls is light green and on roof is white, curtains are old but in good condition and match with the room. One small table and a stool  are also part of this room which is used by Nanha as dining table. When her  parents  came three years back, father suggested to write about the house, its dimensions its location and other things, then she could not appreciate him even she was angry with him for suggesting this to her ie a poetess but now she thinks he was right. In this way she will remember always her dear house.

मन की चादर मैली है लेकिन ईश्वर की कृपा से यह स्वच्छ भी हो सकती है, ईश्वर की कृपा पाने के लिए किन्तु मन को पवित्र करना होता है, तो तात्पर्य यह हुआ कि मन की चादर मैली ही न होने दो ! आज सुबह उसने जून को चिढ़ाया, पर इसी तरह वह छोटी-छोटी बातों पर झुंझलाना छोड़ेंगे. नन्हे ने कल रात गणित में मदद मांगी अच्छा लगा पर पहले जो सर में हल्का दर्द था पौन घंटा बैठने के बाद बढ़ गया, डिस्प्रीन लेकर ही सो पायी. कल माँ-पिता का पत्र भी आया, उनके घर से आने के बाद का पहला पत्र. आज सुबह पांच बजने से पूर्व ही उठ गयी थी, हवा ठंडी थी, नभ पर काले बादल अभी भी छाये हैं, कल उसने दुसरे सूट की कमीज भी सिली, थोड़ा सा हाथ का काम शेष है. अब बाबा जी टीवी पर आ गये हैं. कल उन्होंने कहा, ईश्वर दूर नहीं है, उसको खोजना भर है और वह इतना निकट है कि दिखाई नहीं देता.






Wednesday, July 30, 2014

हवाई जहाज की दुर्घटना


Still she has to go far, very far ! she has so many shortcomings, some of them she is not even aware of. Today in the morning she scolded Nanha and after years badly. Jun and she both do not like his bad habit of late rising. He does not look fresh even after getting up these days, it means he sleeps very late also. उसकी लिखाई से स्पष्ट है कि मन शांत नहीं है, भावनाओं से युक्त है.

आज का कोटेशन भी अच्छा है – The future belongs to those who believe in the beauty of their dreams- Eleaner Roosevelt
And what are her dreams ? Are they still alive and beautiful also? Years ago she dream t to be a writer or poet, but it is still a dream buried in the  heart of her heart. उसके मन के किसी कोने में दबा-छिपा बैठा है यह स्वप्न, जो कभी सच होने को आतुर था. कई  बार तो उसने उसे अपना मानने से भी इंकार कर दिया लेकिन Anne Frank के शब्दों ने, उसके साहस और प्रसन्नता ने, उसके आत्मविश्वास ने उसे अंदर तक छू लिया है और वह स्वप्न धूल झाड़ता हुआ, डगमगाता हुआ फिर से खड़ा हो गया है. उसका विश्वास उसमें फिर से जागृत हो रहा है. लेकिन अभी भी मन में कहीं न कहीं आशंका का बादल मंडरा रहा है. कल रात पूसी फिर लौट आई, इस निरीह प्राणी ने अपना नाता उनसे किस मजबूती से जोड़ लिया है, मनुष्य भी इतने निरादर और उदासीनता के बाद सम्बन्ध नहीं रख पाते पर जानवर होकर वह कितनी जुड़ गयी है अपने परिवेश से, पिछले चार-पांच वर्षों से वह उनके साथ है, कई बार बिछड़ी पर हर बार लौट आई है. आज नये हफ्ते का प्रथम दिन है. गोयनका जी चित्त की प्रधानता पर बल दे रहे थे. वाणी का अथवा शरीर का कर्म तो बाद में होता है पहले चित्त का कर्म होता है. वहाँ बीज बोया जाता है, जिसका परिणाम बाद में मिलता है, जैसा बीज होगा फल वैसा ही होगा. Anne का चिन्तन कितना मौलिक था, उसकी सोच उसके अनुभव के साथ-साथ परिपक्व होती चली गयी. she loves her !

All is well with her today but deep down heart is heavy with the burden of one more plane crash. Which  took place yesterday near Patna aerodrome’s runway, 54 persons were killed in this, only few lucky survived . These days TV covers not only cause and consequence of accident bur takes viewers  to the homes of dead persons. So every tragedy which earlier was only an news item now becomes  a personal loss. The grim faces of kith and kin of passengers, there tears and anguish… all this they can feel. But how long will  these  occur due to negligence. Babaji today scolded her and he was right, when he says things that she likes, she adore him and when someday he does not use the language of her choice she does not listen him but he is above all this worldly good or bad, there is nothing evil or ill for him. He knows the ultimate truth from which they ( at least she) is very very far away. But she tries to reach there by using awareness and keeping  an eye on her ever restless mind.





Monday, July 28, 2014

अमलतास के फूल


आज नन्हे का जन्मदिन है, सुबह उठा तो खुश था, उसके दादाजी का फोन आया. जून उसके लिए एक किताब और एक पेन्सिल बॉक्स लाये हैं. मित्रों के लिए और क्लास टीचर के लिए चाकलेट्स ले गया है. कल शाम को उसने मित्रों को घर पर बुलाया है. कल उन्होंने गुलाबजामुन भी बनाये और आज बाकी खरीदारी की. कल उन्होंने ‘रिफ्यूजी’ फिल्म भी देखी, उसे अच्छी लगी. आज ‘जागरण’ में गोयनका जी ने बुद्ध के जीवन प्रसंग सुनाये. उनके अनुसार कोई स्वयं ही अपना मित्र है और स्वयं ही अपना शत्रु. जैसा बीज बोयेगा फल वैसा ही होगा. हर क्षण सचेत रहकर भीतर और बाहर जो घट रहा है उसे ध्यानपूर्वक देखने पर वास्तविक ज्ञान होता है. कल रात कुछ देर ध्यान करके सोयी, रात को आने वाले स्वप्न अन्य दिनों से भिन्न थे.

कल उन्होंने नन्हे के जन्मदिन की पार्टी का आयोजन किया, सुबह से व्यस्त थी सो लिख नहीं सकी, न ही रोज के कुछ कार्य भी. कल गर्मी भी बहुत थी और दोपहर भर गैस सप्लाई बंद थी. रात को साढ़े नौ बजे वे सोने गये तो बेहद थके थे. थकान शारीरिक से ज्यादा मानसिक थी नन्हे के सभी मित्र अब बड़े हो गये हैं, लगभग युवा, घर में इतनी भीड़-भाड़ हो गयी, बच्चे  इस कमरे से उस कमरे में शोर मचाते हुए दौड़ रहे थे, भटूरे तलते-तलते उसके चेहरे से पसीने की धाराएँ बह रही थीं, लेकिन उसे यकीन है नन्हे और उसके मित्रों के लिए अवश्य ही आनंददायक अनुभव रहा होगा. जून भी थोड़ा परेशान हो गये थे, सो उन्होंने सोचा है एक वर्ष छोड़कर अगली पार्टी का आयोजन करंगे. कल जून नन्हे के लिए एक सुंदर शर्ट लाये और भी कुछ उपहार जो उसके स्कूल में भी काम आ सकते हैं. आज भी गर्मी बहुत है, सुबह के उसके कार्य सम्पन्न हो गये हैं, दोपहर को पत्र लिखने हैं. Anne frank की पुस्तक दोबारा पढ़ रही है कितनी अपनी सी लगती है Anne.
जून आज शिवसागर गये हैं, बहुत दिनों से एक सखी के आने की बात थी, सो उसने पूछा पर आज उसके पास समय नहीं है. नन्हा आज बारिश में भीग कर (छाते के नीचे भी छींटे तो पड़ते हैं इसका आभास उसे सोमवार को म्यूजिक क्लास में जाकर हुआ) बस स्टैंड तक पैदल गया, बारिश के कारण बस देर से आई सो उसे मिल गयी. आज उसकी छात्रा भी पढ़ने नहीं आ सकी, कारण कल की गर्मी के बाद मौसम में अचानक आया बदलाव और रात से हो रही मूसलाधार वर्षा. बाबाजी के प्रवचन में आज रस नहीं आ रहा, कारण कई हो सकते हैं पर अहम् भाव की प्रधानता है. कल रात स्वप्न में ‘सीक्रेट एनेक्सी’ देखा, वे स्वयं भी उसमें रह रहे थे. यहाँ खिड़की के पास बैठकर हल्की ठंडक महसूस हो रही है. जून और नन्हा दोनों सफर में होंगे, ईश्वर उनकी व सभी की सहायता करेगा. ऐसे में ईश्वर खूब याद आता है वरना तो वे उसके अस्तित्व को भी नकारने में नहीं चूकते, मानव मन भी पूरा अहमक है.
She read the Yiddish proverb, written in the diary , “he who can’t endure the bad will not live to see the good”. Then wrote, so they should endure the bad willingly and with patience. At this moment of her life she has all the good and nothing bad, this beautiful house in a beautiful place on earth with her beloved jun and their darling son. Her heart is full of gratitude towards God, he has given so much. Wealth, prosperity and happiness. When she thinks of people of Kashmir or orrisa, those who are homeless, in pain and are starving and people of those countries where there is no freedom, like in their dear India. They are very lucky to be born in India, the country of gods and truth. Due to recent rain all is looking clean and fresh through her window. There house has a big lawn and a patch for kitchen garden, there is greenery all around and across the road there is a vast tea garden, of course it has a boundary wall but they can see the bigger trees. Just outside their gate on both sides are two trees , one summer tree Amaltas which is blooming these days and other is winter tree with white scented flowers  in February.




Sunday, July 27, 2014

मिठाई की अमिठास


सुबह वे उठे तो धूप बहुत तेज थी, कल शाम को बादल आसमान पर छाये पर हवा के साथ उड़ गये. उनके कमरे का एसी भी काम नहीं कर रहा था, नन्हे ने अपने कमरे में उनका बेड लगा दिया, पर इस वक्त धूप चली गयी है, बादलों से कुछ ठंडक सी हो गयी है. आज उसने एक पड़ोसिन और एक सखी को फोन किया, दोनों के पेरेंटस् आये हैं, पड़ोसिन से उनसे मिलने जाने का समय लिया, सखी को निमन्त्रण दिया पर उसने कोई वक्त तय नहीं दिया है. आज विपासना के टीचर गोयनका जी फिर आये थे, बाबाजी भी आए. दोनों के विचारों में कितनी भिन्नता है दोनों को यदि एक-दूसरे के सामने बैठा कर  विवाद करने दिया जाये तो बहुत दिलचस्प होगा, एक स्वयं सब कुछ करने पर जोर देता है तो दूसरा ईश्वर के सहारे, लेकिन गहराई से देखें तो दोनों एक ही बात कहते हैं. राग और द्वेष से मुक्ति पानी है दोनों का लक्ष्य एक ही है, साधना अलग-अलग है.आज उसे संगीत की क्लास में जाना हिया, जून अभी-अभी अपने साथ एसी मकैनिक को लाये हैं.

आज उसने सुना मनुष्य के जीवन में तीन चीजें होती हैं, इच्छा, प्रीति और जिज्ञासा, यदि इनका सदुपयोग करें तो चित्त शांत होता है. इच्छा यदि सत्वगुण से प्रेरित होगी तभी जीवन से द्वंद्व मिटेगा. प्रीति यदि अच्छाई से होगी और जिज्ञासा जीवित रहेगी तो एक न एक दिन लक्ष्य मिलेगा अथवा तो इसकी सम्भावना रहेगी, लेकिन यदि खोजने की इच्छा नहीं है, जानने की उत्सुकता नहीं है और कोई अपने एहिक कार्यों में ही जीवन बिता देता है, अपने छोटे-छोटे सुखों-दुखों से ऊपर उठने की उसके पास न तो सामर्थ्य है न ही आवश्यकता, तो उसका जीवन भी तुच्छ ही रह जायेगा. आजकल उसका जीवन भी उच्च भावनाओं से प्रेरित नहीं है, तभी जून के प्रति उसका व्यवहार असहिष्णुता से भरा था, वह जो मिठाई डिब्रूगढ़ से लाये थे उसे पसंद नहीं पर हो सकता है उन्हें पसंद हो. एक सखी के यहाँ पूजा है उसने प्रसाद के लिए बुलाया है, थोड़ी देर के लिए हो सकता है जाये, यानि अभी तय नहीं किया है, यह अनिश्चतता की स्थिति दुर्बल मन की निशानी ही तो है. अगले हफ्ते नन्हे का जन्मदिन है.

Last evening she went to library and got issued three books which she already has read, which once inspired her a lot and these days she is lacking that inspiration, that sweet joy of heart, that burning spirit of creativity. She hoped these books will help her to get out of despair. Yesterday  jun and she made a b’day card for Nanha. He appeared for his computer exam( c-language) yesterday so was out for one and half hour, they took the opportunity and it is a very very beautiful card, just now Assamese friend called, her little daughter also talks every time and she could not talk in right Assamese, she should revise her lessons . अभी-अभी बाबा जी ने बहुत अच्छी बात कही, मन को शुद्ध रखने के लिए अनावश्यक इच्छाओं का पोषण नहीं करना चाहिए. जून ने सुबह सीख दी तो फौरन प्रतिकार करने की इच्छा हुई, जो अनावश्यक थी, चुप रह जाने की इच्छा बोलने की इच्छा से ज्यादा श्रेष्ठ है.

शनिवार की शाम अक्सर मित्रों के साथ व्यतीत होती है पर आज वे सांध्य भ्रमण के बाद घर पर हैं. जून आउटलुक पढ़ रहे हैं, सोमवार को नन्हे का टेस्ट है, वह पढ़ाई में व्यस्त है. उसी दिन उसका जन्मदिन भी है पर उसके टेस्ट के कारण वे मंगल को मनाएंगे. दोपहर को टीवी पर एक पुरानी फिल्म देखी, “बाजार” स्मिता पाटिल और सुप्रिया पाठक दोनों का अभिनय लाजवाब है, दोनों बहुत सुंदर लग रही थीं. उसने अपनी अन्य कविताओं को कम्प्यूटर पर टाइप करना शुरू कर दिया है.


Friday, July 25, 2014

सेवेन हैबिट्स ऑफ हाइली इफेक्टिव पीपुल- स्टीफन रिचड्र्स कोवे



Today again she has to go for second sitting of rct but now she is prepared to ask the doctor for putting less medicine. Today again it is raining like yesterday and  day before yesterday. Nanha is reading a novel “Frankenstein” these days and she is reading “seven habits” they are accounts of the turmoil and struggle of ordinary people against themselves, society and illness. They give an insight to hearts of those persons. She thinks , she should also  write her mission statement and should live more meaningfully on this earth, in their small family.

Today is the fourth sitting of rct now she does not mind that horrible taste of medicine which dentist puts in her tooth cavity. It is dry today so weather is somewhat hot and humid. Talked to father in the morning, mother is doing well. Babaji said,  “each one of us can get the ultimate truth if we  do sadhna, but ultimate truth can be understood by self not by body or mind, self is the seer, if we pay our whole attention to body and mental whims and not to our self, we can not reach there” didi called in the morning, she liked her letter. All others also must have received them also. Nanha went to school today after summer vacations.

जून ने अभी तक फोन नहीं किया, शायद वह अब तक नाराज हैं. उसने फोन किया तो मिले नहीं. इस वक्त सुबह की घटना पर विचार करें तो आश्चर्य होता है, कितनी छोटी सी बात कितना बड़ा रूप ले लेती है. उन्होंने guided meditation किया सात बजने ही वाले थे पर जून ने पिता को फोन करने को कहा, उसने उन्हें मना भी किया पर उसे फोन पकड़ा कर वह पीछे कमरे में ही टहलने लगे उसकी हर एक बात व हरकत पर नजर रखते हुए, अब जैसा कि उसके साथ होता है फोन पर बात करते वक्त उसका सारा ध्यान उधर ही होता है अपने आस-पास तक की खबर नहीं रहती, जब उसने माँ से कहा अच्छा रखते हैं तो उनके फोन रखने का इंतजार करने लगी जब उन्होंने रखा, ऐसा उसे लगा तो उसने भी फोन रख दिया लेकिन तब तक भी उसका सारा ध्यान उनके साथ हुई बातचीत पर ही केन्द्रित था तभी बीच में जून की क्रोध से भरी छि सुनाई दी तो वह वास्तविकता में आयी, सचेत हुई उन्होंने पूछने पर बताया कि ‘फोन रखते हैं’ कहने और रखने के मध्य आधा मिनट लगा, सो पहले ही फोन काट देना चाहिए था, पर उस वक्त जो वह महसूस कर रही थी, जो सोच रही थी उसमें इन दुनियावी छोटी-छोटी बातों के लिए जगह ही कहाँ थी. हाथ अपना काम कर रहे थे पर मन अब भी वहीं था. कई बातें आँखों से देखने की नहीं होतीं मन से महसूस करने की होती हैं.

आजकल उसकी मनोस्थिति उतनी शांत नहीं है जैसे घर जाने से पूर्व थी. शायद अस्पताल के चक्कर लगाने के कारण, आज सुबह उठी तो neck भी stiff थी. मन में कई संकल्प-विकल्प उठ रहे हैं. बगीचे में भी काम पेंडिंग हो गया है, माली रेगुलर नहीं आ रहा है और नैनी से कार्य करवाने में उसने ही आलस्य दिखाया, घर की सफाई भी जो आने के बाद ८० प्रतिशत हुई थी उतनी ही है. गुलदाउदी के गमले तैयार करने हैं. कल जून लंच पर आये तो सामान्य थे जैसे कुछ हुआ ही न हो, वह व्यर्थ ही सोचती रही. कल life में कई अच्छे लेख पढ़े मन की डगमगाती नाव को कुछ ठौर मिला. सुबह दायें तरफ की पड़ोसिन को बाएं तरफ की पड़ोसिन से किसी दिन मिलने जाने के लिए बात की.  

Wednesday, July 23, 2014

डेंटिस्ट से मुलाकात


उसके दांत में कैविटी है, कल एक्सरे कराया था, डाक्टर आज आगे का इलाज बतायेंग. कल से ही दर्द भी है, यह सब उसकी ही असावधानी के कारण है. खैर इलाज करने पर ठीक हो जायेगा. आज भी वर्षा हो रही है. सुबह के आवश्यक कार्य हो चुके हैं, अब नन्हे को मदद करनी है व जून के आने से दस मिनट पहले फुल्के सेंकने हैं. उन्हें भी सर्दी-जुकाम ने परेशान किया है. कल घर से आने के बाद पहली बार लाइब्रेरी गयी, दो किताबें लीं जो दस दिनों में वापस करनी होंगी वरना फाइन देना पड़ेगा. कल उस सखी में यहाँ भी गयी, उसका छोटा-बेटा बिलकुल माँ पर गया है, छोटे-छोटे हाथ-पैर और लम्बी-लम्बी उँगलियाँ बहुत अच्छी लग रही थीं. उसकी सास से भी पहली बार मिली. बड़ा बेटा बहुत एक्टिव हो गया है. कल अंततः वह संगीत के लिए नहीं जा सकी, अब अगले सोमवार को जा पायेगी या उससे भी अगले सोमवार को. आज सबह व्रत की महत्ता पर सुना, तो उसे लगा, पन्द्रह दिन में एक बार उन्हें व्रत करना चाहिए, या फिर शुरुआत वे महीने में एक दिन पूर्णिमा के व्रत से करते हैं. उसे अपने साथ जून को भी व्रत करवाने का ख्याल तो ऐसे आ रहा है जैसे वह भी फौरन मान जायेंगे, क्योंकि उन्होंने सुख में, दुःख में, स्वास्थ्य में, अस्वास्थ्य में, मृत्यु में, जीवन में यानि जीवन के हर क्षण में साथ निभाने की कसम जो खायी है.

आज बहुत दिनों के बाद उसने ‘योगासन’ किये, फिर देह का नाप लिया और अपने वस्त्रों को अपने अनुसार ठीक करने के बारे में निर्णय लिया. गर्मी के मौसम में कुरते की बाहें यदि कोहनी से ऊपर हों तो सुविधा रहती है और सलवार का पायंचा अगर पैरों में न फंसे तो चला कितना आसान. आज सुबह जून थोड़ा देर से उठे, पर समय पर ही दफ्तर जा पाए. उसकी नासिका में हल्की सी सुरसुरी लग रही है, कहीं यह आने वाले दिनों में होने वाले उपद्रव की शुरुआत के संकेत तो नहीं. कल एक मित्र परिवार को लंच पर बुलाया था, वे कल ही घर से आये थे, सो सारी सुबह उसी में व्यस्त रही, दोपहर नन्हे को पढ़ाने में, पढ़ता तो वह खुद ही है बस उसे उस पर नजर रखनी पडती है, शाम जून के साथ. कल स्पीकिंग ट्री में sub-conscious mind पर कई बातें पढ़ीं. किसी के सोचने का नजरिया ही उसके आने वाले कल को निर्धारित करता है. यदि उनके विचार अच्छे होंगे तो कल भी अच्छा होगा. अभी एक सखी का फोन आया उसने बताया केन्द्रीय विद्यालय में कल ‘वाक इन इंटरव्यू’ है, उसका पिछला अनुभव देखते हुए इस विषय में बात करना या सोचना भी भूल होगी.   

कल जून ने डेंटिस्ट से बात की, वह उसके दांत का rct करने को राजी हो गये. वे दोपहर साढ़े बारह बजे अस्पताल गये और पौने एक बजे डाक्टर आये, उसे लोकल anesthesia के तीन इंजेक्शन दिए. थोड़ी ही देर में दायाँ गाल सुन्न हो गया लगा जैसे गाल फूल गया हो. जून उसे छोड़कर चले गये. पन्द्रह-बीस मिनट बाद ही इलाज शुरू हुआ जो आधा घंटा चला होगा. डाक्टर बार-बार उसे मुँह खोलने के लिए कहते रहे, जितना हो सकता था उतना उसने खोला पर पीछे का दांत होने के कारण शायद उन्हें देखने में परेशानी हो रही थी. न उसे वहाँ दर्द का अहसास हुआ न घर आकर ही, लेकिन मुँह में उस दवा का स्वाद लगातार बना हुआ है जो कैविटी में भरकर उस पर रुई लगा दी है. जून कहते हैं उन्हें दवा के कारण कोई परेशानी नहीं हुई बल्कि दर्द बहुत हुआ था. उन्हें बहुत अजीब लग रहा था कि वह दवा के कारण कुछ कहा खा नहीं रही है पर बाद में वह उसकी हालत समझ गये. आज सुबह ससुराल से फोन आया उन्होंने माँ के स्वास्थ्य के बारे में नूना के पिता को फोन किया था. कल एक परिचित का फोन आया उनकी कक्षा नौ में पढने वाली बेटी हिंदी व्याकरण पढ़ना चाहती है, उसने मंगलवार से आने के लिये कह दिया है. व्यस्त रहकर शायद वह rct का ज्यादा असर नहीं ले, जून ने आज कहा यह तो छोटी सी समस्या है, कइयों को तो इससे कहीं ज्यादा तकलीफ होती है. Living 7 Habits में ही कल पढ़ा कैंसर के बावजूद कुछ लोग जिंदगी से मुंह नहीं मोड़ते सो अगर उसके मुंह में दवा का टेस्ट है तो यह कोई चिंता की बात नहीं !


भुट्टे के फायदे



उन्हें यहाँ आये अर्थात घर वापस आये तीन दिन हो गये हैं, कल दो पत्र लिखे, अभी स्मृतियाँ सजीव हैं. यहाँ भी वर्षा ने उनका स्वागत किया. जून, वह और नन्हा तीनों बहुत खुश हैं, यात्रा और कुछ दिन घर से दूर रहने के कारण घर की हर वस्तु उन्हें अच्छी लग रही है. माँ का ख्याल हमेशा बना रहता है, उनकी तबियत सुधर रही होगी या नहीं, इतनी दूर बैठे वे जान नहीं सकते, जानकर भी कुछ नहीं कर सकते, ईश्वर से मात्र प्रार्थना जरूर कर सकते हैं. प्रार्थना के आगे मात्र लगाकर उसके सत्य को कम करने का उसका इरादा नहीं है बल्कि अपनी क्षुद्रता पर पर्दा डाल रही है कि उसकी प्रार्थना में कोई असर होगा भी या नहीं. इतने दिनों भगवान से दूर जो रही, अपनी व्यस्तता में उसे भुला बैठी. सभी सखियों से फोन पर या मिलकर बात हुई, अच्छा लगा, वह बातूनी सखी दूसरी बार माँ बनी है बेटे की, कुछ दिन बाद देखने जाएगी. एक मित्र परिवार मिठाई खाने नहीं आ सका जो वे उनके लिए लाये थे, सम्भवतः आज आयें, कल शाम उन्होंने बगीचे में भी काम किया, भुट्टे बहुत हो रहे हैं, जिन्हें वे शाम को नाश्ते में खाते हैं. उसने भुने हुए भुट्टों के फायदे के बारे में कहीं पढ़ा था.

कर्म ही पूजा है, यह विचार इस समय उसके मन में प्रधान है. भक्ति की अपेक्षा कर्म का मार्ग उसे अधिक रुचता है, कर्म के द्वारा ही कोई अपने तथा अपने आस-पास के वातावरण, परिस्थितयों तथा स्तर में सुधार ला सकता है, कर्मयुक्त जीवन उहापोहों से भी दूर रहता है क्योंकि उसके पास विचार करने को अन्य कुछ नहीं रहता. कर्म, सद्कर्म हो यह लेकिन पहली शर्त है, ऐसा कर्म जो नैतिकता, धार्मिकता तथा आध्यात्मिकता के दायरे के अंदर ही हो, जो स्वार्थ युक्त न हो, ऐसा कर्म अपने आप ही भक्ति बन जायेगा. कल शाम को वह माँ के स्वास्थ्य के बारे में सोचती रही, मन कहीं और लग ही नहीं रहा था, आज सुबह फोन किया पर मिला नहीं, ईश्वर से प्रार्थना की तो चैन मिला. ईश्वर पर विश्वास किये बिना मानव का काम चल ही नहीं सकता. उसी का बनाया हुआ यह माया जाल है सो सब कुछ उसी पर छोड़कर चिंतामुक्त रहने में ही भलाई है.

आज उसे संगीत क्लास में जाना है, अभ्यास तो पिछले एक महीने में दो-चार बार ही हुआ फिर भी टीचर के साथ अभ्यास करने से उत्साह बढ़ेगा ही. आज उसे उस नये शिशु से मिलने भी जाना था पर वर्षा की झड़ी जो जून के दफ्तर जाने से पहले लगी थी रुकने का नाम ही नहीं ले रही है. अभी उसे भोजन बनाना है और नन्हे को पढ़ाई में मदद करनी है, वह आजकल रोज रात को देर से सोता है सो सुबह देर से उठता है, पर जब से घर से वे आये हैं साधारणतया खुश रहता है, उसके मित्र भी पढ़ाई में व्यस्त हैं सो फोन से ज्यादा डिस्टर्ब भी नहीं करते. आज बहुत दिनों बाद ‘जागरण’ सुना, बाबाजी आज भक्तिभाव में विभोर होकर नृत्य करने लगे थे, उसे लगता है हजारों लोग जो घंटों वहाँ बैठते हैं यदि कार्य करें तो देश का कितना कल्याण हो. लोगों का खुद कल्याण हो, हो सकता है वे श्रमदान के लिए शिविर भी लगते हों.  कल माँ-पिता से फोन पर बात हुई, माँ ने दवाएं न लेने या कम करने का फैसला किया है, दवाइयाँ खाना तो किसी को भी पसंद नहीं पर जब दवा जीने की शर्त ही बन जाये तो कोई कैसे छोड़ सकता है.





Tuesday, July 22, 2014

नेहरु माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट


आज उनकी गंगोत्री यात्रा का अंतिम दिन है, शाम तक वे घर पहुंच जायेंगे. इस समय प्रातः काल है, नन्हा अभी सोया है, जून तैयार हो रहे हैं. सामने के पर्वत शिखरों पर धूप पड़ने से चमक है, हवा में हल्की ठंडक है. उनका ड्राइवर जो रात को अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ चला गया था आ गया है, वह थोड़ा अक्खड़ जरुर है पर कुशल ड्राइवर है. आज वे NIM नेहरु माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट का संग्रहालय देखने जायेंगे, फिर ऋषिकेश होते हुए घर.

आज विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है. जून ने कल ‘टाइम्स ऑफ़ इण्डिया’ के संपादक को एक पत्र लिखा. जिसमें गंगोत्री यात्रा के दौरान हुए पर्यावरण प्रदूषण के अनुभव का जिक्र किया है. इस समय ग्यारह बजने वाले हैं, धूप काफी तेज है पर सुबह से बिजली नहीं गयी है सो पंखा व कूलर दोनों चल रहे हैं. कमरा काफी ठंडा है. कल शाम से माँ यहाँ आ गयी हैं. भाई के यहाँ उनकी अच्छी देखभाल हुई सो अब काफी ठीक हैं. कल वे अपने पैतृक घर में भी गये, मंझले चाचा के बिन माँ के बच्चे अपनी दुनिया में खुश हैं, पिता का होना भी न के बराबर है. छोटी चाची ने भी अपना सिलाई-कढ़ाई का काम काफी बढ़ा लिया है, उसे एक कढ़ाई वाला सूट का कपड़ा उन्होंने दिया, स्लेटी रंग पर लाल व हरे रंग की कश्मीरी कढ़ाई है. उससे पहले छोटी ननद की ससुराल भी गये जहाँ उसके छोटे देवर-देवरानी से मिलकर अच्छा लगा. जून उसके साथ हर जगह जाते हैं, यहाँ पर भी सभी से बहुत सहयोग व सत्कार की भावना से मिलते-जुलते हैं, कभी-कभी उनकी ओर देखकर लगता है उन्हें रुच नहीं रहा पर उसकी खातिर वह खुश रहते हैं, कल उसकी एक बात से थोड़ा सा नाराज हुए पर यह स्वाभाविक है.

आज सुबह से वर्षा हो रही है, हवा ठंडी है और पौधे ज्यादा हरे हो गये हैं. पौने नौ बजे हैं. सबका स्नान व नाश्ता हो चुका है. कौशल (यहाँ काम करने वाली औरत)  बर्तन धोते समय बहुत शोर कर रही है. माँ सो रही हैं और पिता छोटी बुआ और उनके बच्चों से बात कर रहे हैं जो कल दोपहर की ट्रेन से ही माँ से मिलने आयी हैं.

वर्षा की झड़ी आज भी सुबह से लगी है, ठंड भी बढ़ गयी है. परसों उन्हें जाना है. सुबह से फोन भी खराब है वरना दीदी से बात हो सकती थी. कल वह उनसे मिलने आ रही हैं. कल छोटी बहन का फोन आया था, हिमाचल में भी ठंड बढ़ गयी है, उसके घर के सामने के पहाड़ जब बादलों से ढक जाते हैं तब सब ओर सफेदी छा जाती है और हवा से जब बादल उड़ते हैं तो पहाड़ दिखने लगते हैं और दृश्य बहुत सुंदर लगता है. मंझला भाई परिवार के साथ देहरादून गया है. छोटी भाभी सदा किसी न किसी काम में व्यस्त रहती है.

कल सुबह साढ़े आठ बजे वे घर से चले थे, भाई अपने कार में स्टेशन लाया, दीदी भी साथ छोड़ने आयीं, नन्हे के लिए उन्होंने एक पत्रिका लेकर दी. घर से जब वे निकले  सभी घर से बाहर तक उन्हें छोड़ने आये, उसका हृदय इस स्नेह और प्रेम के आगे कृतज्ञता से भर जाता है. माँ अब ठीक हैं, पर प्रसन्न और संतुष्ट नहीं. पिता सदा की तरह थे, सबसे ज्यादा संतुष्ट व सक्रिय दीदी लगीं. अगले कुछ दिनों तक वे सब भी उन्हें याद करेंगे जैसे वे इस यात्रा को भुला नहीं पाएंगे. उनकी ट्रेन बरौनी स्टेशन पर पिछले आधे घंटे से खड़ी है. जून और नूना घूमने गये, लीची खरीदी, यह फल पहले उसे पसंद नहीं था, पर अब खाने लगी है. कल वे घर पहुंच जायेंगे ठीक चौबीस घंटे बाद. यदि ट्रेन समय पर चलती रही. घर जाकर बहुत से काम करने हैं. नये उत्साह और नये जोश के साथ, हर बार कुछ दिन घर से दूर रहने के बाद घर आना अच्छा लगता है. उस दिन जब यात्रा की शुरुआत की थी वर्षा हो रही थी, कल भी देहली स्टेशन पर उतरते ही वर्षा ने उनका स्वागत किया. असम का एक परिवार स्टेशन पर मिला, मित्र के पिता की मृत्यु हो गई है, सिर के बाल नदारद थे, अकेले ही वापस जा रहे हैं.




Monday, July 21, 2014

भागीरथी के दर्शन


उन्हें यहाँ आये ग्यारह दिन हो गये हैं और अब घर की याद आने लगी है, सभी से मिलना भी हो गया, कुछ से बिछड़ना भी हो गया. जून का भी मन अब यहाँ नहीं लग रहा है. जमीन खरीदने की जो योजना थी वह पूरी होती नजर नहीं आ रही. गर्मी के कारण व बार-बार बिजली चले जाने के कारण भी तथा थोड़ा सा भी एकांत न होने के कारण भी यहाँ अब और रहना रुच नहीं रहा है. माँ की तबियत अब काफी संभल गयी है, वह थोड़ी ही दूर पर स्थित भाई के घर रह रही हैं, पिता को इस घर से उस घर कई बार चक्कर लगाने पड़ते हैं, उम्र भी हो गयी है, थकान के कारण या अपने स्वभाव के कारण कभी-कभी परेशान हो जाते हैं. जून ने कल उसके जन्मदिन पर सभी को ‘मेरीडियन होटल कम ढाबा’ में डिनर पार्टी दी बाद में मिठाई भी खिलाई. कल वर्षों बाद वह उस स्थान पर भी गयी जहाँ पिता रिटायर्मेंट से पहले रहा करते थे, अपना पुराना घर व लाइब्रेरी देखकर बहुत अच्छा लगा, वे पेड़-पौधे और रास्ते सभी कितने जाने-पहचाने थे. आज सुबह दोनों बहनों से फोन पर बात की. इस समय सुबह के साढ़े नौ बजे हैं, कल रात भयंकर आंधी-तूफान में तो बिजली चली गयी थी पर इस वक्त आ गयी है. नन्हा नहाने गया है, जून बड़े भाई को स्टेशन छोड़ने गये हैं. वापसी में ऋषिकेश जाने वाली बस या टैक्सी के समय आदि का जायजा लेने भी, वे पहाड़ों पर घूमने जाने का कार्यक्रम बना रहे हैं. पिता जी आज पेंशन लेने डाकघर गये हैं.

उत्तर काशी, सुबह के पांच बजे हैं, वे गंगोत्री जाने के लिए तैयार हैं. जो यहाँ से लगभग सौ किमी दूर है. कल सुबह साढ़े छह बजे वे घर से निकले और शाम चार बजे यहाँ पहुंच गये. यात्रा आरामदेह थी सिवाय उन ढाई घंटो के इंतजार में, जो उन्हें ऋषिकेश में ड्राइवर को यात्रा परमिट दिलवाने में बिताने पड़े. शाम को वे “नेहरु इंस्टीट्यूट ऑफ़ माउंटेनियरिंग” देखने गये जो इस टूरिस्ट रेस्ट हाउस से पांच किमी की दूरी पर है. उसके बाद वे काशी विश्वनाथ मन्दिर तथा भागीरथी नदी देखने गये, जो उत्तरकाशी की जीवन रेखा है. नदी का पाट चौड़ा है और तीव्र गति से बड़ी-बड़ी चट्टानों व् पत्थरों को लांघती हुई बहती है. उनका ड्राइवर जिसका नाम मुहम्मद जाकिर हुसैन है एक खुशदिल इन्सान है. पिछली रात उन्होंने इसी रेस्ट हाउस के रेस्तरां में भोजन किया, ठीकठाक सा था, नन्हे को पसंद आया. कल यात्रा के दौरान वह ज्यादातर समय सो रहा था, पर आज वे तीनों पहाड़ी दृश्यों का आनन्द लेंगे. जून ने पिता को फोन करके उनका हालचाल लिया और बताया कि वे ठीक हैं. कल शाम ही वे घर पहुंच जायेंगे.


‘होटल एकांत’ ! अपने नाम के अनुसार यह होटल एकांत में ही स्थित है. उत्तरकाशी शहर की भीड़भाड़ से दूर, शहर से दस किमी पहले ही गंगोत्री मार्ग पर स्थित यह होटल देखकर वे रुक गये और यहाँ एक कमरा भी ले लिया है, कमरा खुला-खुला है, सामने की दीवार पर शीशे की खिड़की है जिसमें सामने विशाल हिमालय की पर्वत श्रृंखला दृष्टि गोचर हो रही है. जिसपर सीढ़ी नुमा खेत बने हैं तथा घाटी में भागरथी शोर मचाती हुई बह रही है. सड़क के इस ओर उनका यह कमरा है और सडक के उस ओर नदी व पहाड़, कुछ दूर पहले ही नन्हा नदी तक जाने का रास्ता देख कर आया है. वे सभी स्नान करके वहाँ जाने वाले हैं. गंगोत्री होकर वे वापस लौट आये हैं, उन्हें आश्चर्य हुआ जब बसों की लम्बी कतारें वहाँ देखीं, लोगों का एक हुजूम वहाँ आया हुआ था, जैसे कोई सामान्य धार्मिक स्थल हो, लेकिन नदी का बर्फ सा शीतल जल और एक निशब्द कर देने वाली निस्तब्धता भी थी, कुछ लोग उसी बर्फीले पानी में नहा रहे थे, उन्हें तो पानी छूते ही कंपकंपी होने लगी. मन्दिर में भी बहुत भीड़ थी, उन्होंने कुछ समय आसपास भ्रमण करते हुए बिताया फिर उत्तरकाशी के लिए लौट पड़े. वर्षों बाद गढवाल आने का सुअवसर उसे मिला है, इसके ऊंचे पर्वतों, गहरी घाटियों और तेज तूफानी नदियों ने पहले भी मोहा था आज भी मोह लिया है. पहाड़ की छोटी पर सरों, देवदारों (या अन्य कोई उसी आकार के ) वृक्षों की कतारें हैं तथा डूबते सूरज की रोशनी से बादलों के पीछे सुनहरी चमक अभी शेष है, कुछ देर पूर्व अचानक बौछार पड़ने लगी थी पर अब थम गयी है. वे चाय पीने नीचे गये, चाय गुजराती तरीके से बनी थी, मसालेदार और गाढ़ी भी. रह रहकर उसे घर का ख्याल आता है, वहाँ सभी ठीक होंगे. जून का मन वहाँ नहीं लग रहा था, सो तीन दिनों के लिए वे घर से दूर आ गये, पर अब बाकी के दिन वह माँ के साथ ही बिताएगी.

Saturday, July 19, 2014

हिमाचल की वादियाँ



कल शाम दीदी चली गयीं, माँ की अस्वस्थता के कारण वे नहीं गये, आज सुबह उसने फोन पर उन्हें माँ के स्वास्थ्य के बारे में बताया, छोटी बहन भी यहाँ आने के लिए तैयार है पर पिता ने उसी की असुविधा को देखते हुए मना कर दिया. इस समय भाई के साथ जून भी माँ को डाक्टर के पास ले गये हैं. बच्चे यहीं पढ़ाई में लगे हैं, पिता उन्हें फल व खाखरा आदि खिला रहे हैं. आज कई दिनों बाद उसने पिता के हारमोनियम पर रियाज किया, सुबह ‘ओशो’ की एक पुस्तक में से चंद लाइनें पढ़ीं, सभी धर्मगुरू सभी धर्म एक सी बातें कहते हैं. कल रात वह काफी देर तक सो नहीं सकी, उसके बिस्तर से माँ का बिस्तर दिख रहा था वह हर पांच-दस लेटने के बाद उठ जाती थीं, उठ कर बैठतीं फिर बैठ-बैठे ही सोने लगतीं, उन्हें देखकर लगा कि उनकी तबियत काफी खराब है पर दिन में जाहिर नहीं होने देती हैं, उनकी हिम्मत देखकर रश्क होता है.

दो ही दिन हुए हैं पर लग रहा है बहुत दिनों के बाद लिख रही है. उस दिन सुबह वे हिमाचल प्रदेश के सुंदर शहर सोलन जाने के लिए रवाना हुए तो माँ का स्वास्थ्य पहले जैसा ही था. छोटी बहन वहाँ प्रतीक्षा कर रही थी सो वे चल पड़े, रास्ता आराम से कट गया. तीन बजे वे गंतव्य स्थल पर पहुंच गये. सोलन एक खुबसूरत पहाड़ी जगह है, बहन उन्हें लेने आई थी, उसने बताया, भाई का फोन आया था, माँ को अस्पताल ले जाना पड़ा है. कल ही वह भी उनके साथ घर जाएगी, वह उन्हें घर के पास की पहाड़ी पर ले गयी, दो घंटे वे पहाड़ों पर घूमते रहे, वापस आकर खाना बनाया और सुबह की वापसी की तैयारी करके सो गये.

उनके पूर्व कार्यक्रम के अनुसार आज उनका यात्रा का दिन था, पर इन्सान जो सोचता है वही तो नहीं होता. उन्हें यहाँ आये आज आठवां दिन है. कल मामी जी भी माँ को देखने आयीं, आज वापस चली गयीं. माँ अब काफी ठीक हैं पर पूरी तरह से नहीं, उन्हें अभी बहुत देखभाल की जरूरत है. जून छोटी बहन के साथ अस्पताल गये हैं, जो डाक्टर है सो उसका यहाँ होना लाभदायक है. जून और वह एक बार भी साथ-साथ नहीं गये, शायद यह इस कारण हो कि वह यहाँ आकर अपने पुराने दिनों में लौट आयी है. अपनी उम्र का भी अहसास नहीं होता. नन्हा दीदी के यहाँ गया हुआ है, उसे लेने उन्हें जाना है. शायद आज या कल. मौसम यहाँ बेहद गर्म हो गया है और बिजली चली जाने पर घुटन हो जाती है. रात को वे सोये तो छोटी बहन और उसकी बेटियां भी उनके कमरे में थीं, देर रात तक बातें कीं फिर भांजी सोये-सोये कोई स्वप्न देखने लगी या गर्मी से परेशान होकर रोने लगी. बहन को उसने कहा उसे थोड़ा स्वालम्बी बनाये पर उसने कई और बातें कहीं, जिससे यही सिद्ध हुआ कि वह वैसे ही खुश है, उसे बच्चों के रोने या जिद करने पर खीझ नहीं होती, न झुंझलाहट. वह हिम्मती तो है ही और किसी को judge करने या सलाह देने की भूल करने की सजा तो भुगतनी ही पडती है.

आज उसका जन्मदिन है, किन्तु हर वर्ष जैसी उमंग जो इस दिन स्वतः ही होती थी आज नहीं है, पिछले वर्ष वह असम में थी, सुबह-सुबह सभी ने फोन से मुबारकबाद दी थी, आज यहाँ घर पर है, छोटी बहन, भाभी, पिता और जून बधाई दे चुके हैं, ससुराल से भी फोन आ चुका है. असम में भी उसकी सखियों ने याद किया होगा. कितने दिनों से बाबाजी को सुना नहीं, यहाँ सुबह ही बिजली चली जाती है. माँ कल घर वापस आ गयी हैं, अभी कुछ दिन मंझले भाई के यहाँ रहेंगी. आज बड़े भैया-भाभी वापस जा रहे हैं. पिछले दिनों सभी ने मिलजुल कर माँ-पिता को सहयोग दिया, सभी भाई-बहन एक सूत्र में बंधे हैं. चौबीस घंटों के लिए दीदी के घर भी गयी, उनका घर बहुत बड़ा है, सामान भी तरह-तरह के हैं. दीदी को भी क्रॉस वर्ड भरने का शौक है, अभी भी बच्चों की तरह उत्साह से भर जाती हैं छोटी-छोटी बातों पर, उम्र का कोई असर उनके मन पर नहीं हुआ है. छोटी बहन भी वैसी ही है, उसको डाक्टरी ज्ञान, लेकिन बहुत है, पिछले दस-बारह वर्षों का अनुभव ! जून से उसकी बातचीत बहुत सीमित ही हो पाती है, कल वे मार्केट गये, घरके लिए व स्वयं के लिए कई छोटे-मोटे सामान खरीदे. अभी एक हफ्ता उन्हें यहाँ और रहना है.



माँ का स्वास्थ्य



अंततः वह दिन आ गया, आज उन्हें यात्रा पर निकलना है, मन में उत्साह है और जोश भी, यात्रा अपने आप में सम्पूर्ण जीवन है, तरह-तरह की परिस्थितयों से गुजरना, लोगों से मिलना और यात्रा का आरम्भ व अंत, जैसे कि जीवन में होता है. सुबह वर्षा के कारण नींद जल्दी खुल गयी. बादल गरज भी रहे थे और बरस भी रहे थे, नन्हे ने आज सुबह से सभी कार्यों में सहयोग दिया है जिससे कि बाकी बचे समय में वह कम्प्यूटर गेम खेल सके. जैन मुनि ने आज बताया, जिस सुख को लोग बाहर खोजते हैं वह उन्हें अन्तर्मुखी होकर अपने भावों, संवेदनाओं और विचारों को समझ कर ही मिल सकता है. बाबाजी ने सहज स्वभाव की बात की तो नानक की यह बात उसे याद आई, ‘थापिया न जाई, कीता न होई, आपे आप सुरंजन सोई’ ! जैसे फूल अपने आप खिलता है, अंतर से ख़ुशी स्वयंमेव निकलनी चाहिए, वह ख़ुशी जो अंतर्मन को तो प्रकाशित करे ही बल्कि अपने बाहर, इर्द-गिर्द भी खुशबू फैला दे. जैसे तुलसी दास ने कहा है, रामनाम का दीया अधरों पर रखने से अंतर्मन के साथ-साथ बाहर भी उजाला फैलता है. देहरी पर रखे दीपक की भांति. मौसम उनका पूरा साथ दे रहा है. अप्रत्यक्ष रूप से ईश्वर उनके साथ है. वह तो हमेशा ही उनके सिरों पर अपना हाथ रखे हुए है.

It is a pleasant morning. They reached  Guwahati at 4.15 am in the morning, she was dreaming then but got up around five fifteen due to continuous flow of passengers in and out both. They are in first coupe so every next moment some one comes or goes. Nanha is still in bed on upper berth. She went for a stroll with jun and they bought a newspaper, which he is reading now. Yesterday when they left home it was raining, reached station before time, waited for some time and train came on right time. Mrs singh their co passenger is a well educated soft spoken garwali lady, they talked about her favourite subject hills of Garwal for one hour in empty coupe,  drinking tea and viewing the greenery of Assam till they reached  first stop. Then she read the book, Meditation, till soup and dinner was served. It was nice, soup and dinner both but article in the book was superb, it gave inner peace, inspiration and insight to her mind and she came to know once again that all things, relationships and possessions are subject to change and  decay.

रात को वे सोये तो उनकी ट्रेन बरौनी में थी और सुबह उठे तो इलाहबाद आ गया था, रात भर वह आराम से सोयी जैसा कि सदा रेल यात्रा में उसके साथ होता है. नन्हा अभी भी सो रहा है, जून और वह चाय ले चुके हैं, उनके अन्य सहयात्री भी सुबह उठने वालों में से हैं, पर मिसेज सिंह अभी भी सो रही हैं, शायद उनकी तबियत ठीक नहीं है क्योंकि ज्यादातर समय वह सोती रही हैं. घर पर सभी को उनकी प्रतीक्षा होगी, शाम तक वे घर पहुंच जायेंगे और जैसा कि उसने सोचा है उनका हर दिन एक खास दिन हो इस तरह से रहेंगे. ईश्वर हर क्षण उनके साथ है, सभी जाने-अनजाने उस परम सत्ता की ओर खिंचे चले जा रहे हैं पर उसने सचेत होकर उसका मार्ग चुना है, इस विशाल ब्रह्मांड में हर ओर उसी की सत्ता का प्रसार है, उनका अल्प जीवन, अल्प बुद्धि, अल्प समझ उसे मात्र प्रेम के द्वारा ही समझ सकती है, प्रेम का प्रतिदान प्रेम ही होता है.

कल शाम छह बजे उनकी ट्रेन गन्तव्य पर पहुँची, देहली से मंझली भाभी व भतीजी भी उनके साथ हो ली थीं, उन्हीं से पता चला कि माँ का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, पिता के साथ जून अभी उन्हें heart checkup कैंप में ECG के लिए ले गये हैं, उसके पहले एक डाक्टर से मिलने उनके घर गये थे. यहाँ सभी बच्चे अपनी दुनिया में मस्त हैं, बड़ों के पास उनके लिए वक्त नहीं है. गर्मी अभी उतनी नहीं है. कल शाम वर्षा हो गयी थी, रात को हवा काफी ठंडी थी. उसकी आँखों में धूप व धूल की वजह से हल्का सा दर्द है. छोटे भाई व दीदी से आध्यात्मिक विषय पर थोड़ी चर्चा हुई, उसके शब्दों में कहीं अहंकार झलका था ऐसा उसे बाद में लगा. नम्रता, जबकि पहली जरूरत है. आज सुबह छोटी बहन से भी बात हुई, आज शाम को उन्हें दीदी के साथ जाना है, कल शाम लौटेंगे, परसों छोटी बहन के पास हिमाचल प्रदेश जायेंगे. जैसे कहानी से कहानी का जन्म होता है, वैसे ही उनकी यात्रा से कई यात्राओं का होना था. यहाँ आस-पास कई मकान बन गये हैं, लोग बढ़ गये हैं, सो पहले की सी बात नहीं है लेकिन परिवर्तन तो जीवन का सबसे बड़ा सत्य है.


Friday, July 18, 2014

तुलसी और सूर



आज कितने सुंदर वचन उसने सुने, “बुद्धि रूपी मछली जब आत्मा रूपी सागर से बिछड़ कर मन व इन्द्रियों के सीमित जल में आ जाती है तो छटपटाने लगती है” सागर की मछली को सागर के बिना चैन आ ही नहीं सकता. जीव का सम्बन्ध ईश्वर से वैसा ही है जैसा बूंद का सागर से, उसे याद आया बचपन में एक कविता पढ़ी थी, एक बूंद निकल पड़ती है यात्रा पर और मरुथल में गिर कर खो जाती है, कभी कोई बूंद नदी में गिर जाये तो पुनः सागर से मिल सकती है. आज भी धूप बहुत तेज है, सुबह के आठ बजे ही दोपहर का भास हो रहा है. कल जून ने उन दिनों को याद किया जब वे यहाँ नये-नये आये थे, वे कुछ देर के लिए पुराने वक्तों में लौट गये और अच्छा लगा सारी बातों को मन के पट पर फिर से घटित होते हुए देखना. कल एक सखी परिवार सहित यात्रा पर जा रही थी पर ‘भारत बंद’ के कारण ट्रेन  नहीं चली सो स्टेशन से वापस लौट आयी, शाम को उन्हें भोजन के लिए बुलाया, इस बंद से सबका नुकसान ही नुकसान होता है कोई लाभ तो नजर नहीं आता. अगले हफ्ते उन्हें भी जाना है, यात्रा से पहले जो आशंका पहले होती थी अब बिलकुल नहीं होती. कल उसके पैर में दर्द हुआ था, पर उसने स्वयं से कहा, दुःख-दर्द तो शरीर को है, वह तो इससे अलग है, और मुस्करा दी. थोड़ी ही देर में दर्द महसूस होना ही बंद हो गया. भगवद् कथा का असर लगता है, हो रहा है, ईश्वर हर क्षण उसके साथ है. जून को आज फील्ड जाना है, उसे लंच अकेले ही करना पड़ेगा.   

परसों सुबह ‘जागरण’ नहीं सुन पायी, ‘केबल’ नहीं आ रहा था, कल सुना पर इतवार की सुबह बेहद व्यस्त होती है, डायरी लिखने का समय नहीं मिलता. आज भी धूप तेज है, मौसम का ताप प्रकृति कैसे चुपचाप सह लेती है, मानव ही हैं जो शिकायत करते रहते हैं. गीता में सुख-दुःख, मान-अपमान के साथ-साथ ग्रीष्म-शीत का जिक्र भी किया गया है. मौसम भी आया है तो जायेगा ही. आज गोयनका जी ने धर्म की परिभाषा बताते हुए कहा, “जिसे धारण किया जा सके, जो कर्म से जाना जाये न कि कर्मकांडों से, वही धर्म है”. बाबाजी ने भागवद की कई कहानियाँ सुनायीं, सुनकर भागवद् का अध्ययन करने की प्रेरणा होती है. नन्हे का स्कूल गर्मी के अवकाश के लिए बंद हो चुका है. वह केक बनाने के लिए कह रहा है, बच्चों की फरमाइश भी बच्चों जैसी ही होती हैं.
“नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है इससे ज्यादा चिंता की बात यह है कि नैतिकता के प्रति आस्था ही खत्म हो रही है. यदि चेतना का स्तर ऊंचा हो जाये तो मूल्यों की स्थापन अपने आप हो जाएगी.” आज किन्हीं जैन मुनि ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा. आज साढ़े सात बजे बिजली गुल हो गयी, सो बाबाजी से आज भेंट नहीं हुई. कल रात भी तीन बजे के लगभग बिजली गायब हुई थी कुछ देर के लिए. काफी देर तक नींद नहीं आयी, फिर आयी भी तो स्वप्नों भरी. गहरी शांत नींद उसे एसी में सोने से अक्सर नहीं आती, एक तो शोर दूसरे ताजी हवा नहीं आती, आज इस क्षण कैसी शीतल मंद बयार बह रही है.

आज भी कल सुबह की तरह मौसम शीतल है, पवन चेहरे को छूकर जाती है तो ठंडक का अहसास होता है. कल तक यदि ऐसा ही रहे तो उनकी यात्रा की सुखद शुरुआत होगी वरना तो...झुलसा देने वाली धूप में पसीना पोंछते वे रेलवे स्टेशन पहुंचेंगे. अभी बाबाजी आने वाले हैं, अब संभवतः उनसे जून के दूसरे सप्ताह में ही मिलना हो, सो आज की पूरी बात वह ध्यान से सुनेगी. आज उन्होंने नारद की वह कथा सुनाई जिसमें उनका अहंकार तोड़ने के लिए भगवान विष्णु ने उन्हें वानर का चेहरा प्रदान किया था. साथ ही उन्होंने मन, बुद्धि आदि के विकारों को अपना न मानकर उन्हें दूर करने की बात कही, जब कोई उनसे एकाकार हो जाता है तो इलाज मुश्किल हो जाता है जैसे कोई डाक्टर या वकील अपना केस खुद नहीं देखते. ईश्वर से आग्रह करते हुए कि हृदय तो तुम्हारा घर है और तुम्हारे रहते हुए इसमें विकार रूपी चोर घुस जाएँ तो इसमें तुम्हारा भी अपयश होगा. तुलसी और सूर की भांति, “अब लौं नसानी अब न नसैहों”, अपने को शुद्ध करते जाना है. ईश्वर का नाम स्मरण आते ही मन कैसी करुणा से भर जाता है.

Thursday, July 17, 2014

मुकेश के गीत


आज बाबाजी ने भारत के मनीषियों के मनोविज्ञान की चर्चा करते हुए कहा, मन की यह विशेषता है कि वह एक साथ दो स्थितियों में नहीं रह सकता, जिस क्षण वह संतुष्ट है, दुखी नहीं है और जिस क्षण वह तृप्ति का अनुभव नहीं कर रहा, सुखी नहीं है. इस विशेषता का लाभ उठाते हुए यदि कोई दुःख में एक क्षण के लिए भी मुस्कुरा दे तो सुख बरस जायेगा, और मुस्कुराना बेवजह मुस्कुराना उसकी आदत में शामिल हो गया है. आज सुबह ऐसा लगा कि उसकी वाणी में रुक्षता आ गयी है पर सचेत थी सो संभल गयी. जून भी कल रात को थोड़ा सा उद्ग्विन दिखे, यात्रा से आने के बाद पहली बार, शायद गर्मी के कारण या नन्हे के देर तक क्लब में रह जाने के कारण. आज सुबह नन्हे के पेट में दर्द था, वह ठीक से नाश्ता भी खाकर नहीं गया, लेकिन वह जानती थी, बहादुर लड़का है, इस बात से छुट्टी नहीं लेगा. जून के साथ कल माँ के लिए साड़ी और कुछ अन्य उपहार खरीदे.

सुबह पांच बजे उठ कर बाहर आयी तो पूसी अकेली दिखी, उसने बच्चों को शायद कहीं शिफ्ट कर दिया है. आज भी विद्वान् वक्ता ने अच्छी बातें कहीं, वह भाषाएँ भी कई जानते हैं. क्लब में children meet होने वाली है, उसकी संगीत अध्यापिका बच्चों के साथ व्यस्त हैं. सो आज क्लास नहीं होगी. अस्पताल जाने के लिए उसने जून को फोन किया, कई दिनों से ऊपरी अधर के पास छोटा सा दाना उभर आया है, जो कितने उपाय करने से भी ठीक नहीं हुआ, अब डाक्टर की राय लेना ही ठीक रहेगा. संभल-संभल के चलना है, व्यर्थ ही कल्पनाओं में भ्रमित रहेंगे तो वर्तमान को कटु बना लेंगे. बीमारी का आगमन तभी होता है जब स्वास्थ्य के नियमों का पालन नहीं करते.

आज सुबह नन्हा उठ नहीं रहा था पर क्रोध नहीं आया, अच्छा लगा कि सहज शब्दों में उसे समझा सकी. जून का हृदय भी उसके प्रति स्नेह से भरा है, उसकी हर छोटी-बड़ी आवश्यकता का ध्यान रखते हैं, ऐसे ही ईश्वर भी उनकी हर तरह से सहायता करता है, उन्हें इतना कुछ दिया है, उसकी हर छोटी-बड़ी मुश्किल में साथ देता है. और तब भी कृतज्ञता स्वरूप वह उसे अपना एकनिष्ठ प्रेम नहीं दे पाती.

आज बाबाजी ने फटकार लगायी, बारह साल कोल्हू के बैल की तरह एक ही जगह चक्कर लगाते रहें ऐसे भक्त उन्हें नहीं चाहिए, जो सातत्य भक्ति कर सकें, यात्रा पूरी करने का सामर्थ्य रखते हों वही इस क्षेत्र में आयें. कल रात को वह बेचैन थी, मन को एकाग्र रखने का प्रयास व्यर्थ हुआ, शायद उसमें श्रद्धा की कमी है, या वह कई मार्गों पर एक साथ चलने का प्रयास करती है तभी भटक जाती है. आज से वह निश्चित कर लेती है, ‘भगवद् गीता’ उसका इष्ट ग्रन्थ है, इसके अतिरिक्त वह किसी ग्रन्थ का अध्ययन फ़िलहाल अभी नहीं करेगी. कृष्ण ही उसके प्रेम का केंद्र होंगे. रास्ता एक हो उसका ज्ञान हो तो मंजिल शीघ्र मिल सकती है. गीता में भगवान ने स्वयं कहा है, एकनिष्ठ व संशय रहित होकर जो उन्हें भजता है उनके कुशल क्षेम का ध्यान वह स्वयं रखते हैं. प्रभु  जिसके राखनहार हों उसे अन्य किसी से प्रयोजन भी क्या हो सकता है. कल क्लब में छोटे-छोटे बच्चों को इतनी मधुरता से गाते देखकर अच्छा लगा, संगीत में जादू है और फिर संगीत से कोई आराधना भी कर सकता है. कल अध्यापिका ने ‘तीसरी कसम’ फिल्म का एक गीत सिखाया. सजन रे झूठ मत बोलो...मुकेश का गाया यह गीत उसने बचपन में कई बार सुना था.

आज ‘भारत बंद’ के कारण नन्हे का स्कूल बंद है, नूना ने उसे गृह कार्य करने को कहा, पर वह दूसरे-दूसरे कार्यों में व्यस्त है. कभी कभी बच्चे माता-पिता के धैर्य की परीक्षा लेने के लिए ही जैसे उनका कहा नहीं सुनते.




Wednesday, July 16, 2014

नुक्ते का फेर


नुक्ते की फेर में जुदा हुआ, नुक्ता ऊपर रखा तो खुदा हुआ” उसने जब यह सुना तो जोर से हँसे बिना न रह सकी, उर्दू भाषा भी कमाल की है, एक नुक्ते से कितना फर्क पड़ जाता है. वह भी अपने मन रूपी नुक्ते को सही जगह नहीं लगाती और ईश्वर से विमुख हो जाती है. ‘जागरण’ में आज फिर सुना, सुख-दुःख आदि अवस्थाओं से परे जो ‘आत्मा’ रूपी चैतन्य सभी में है, यदि उसका भान नहीं हुआ तो मस्तिष्क को ज्ञान की हजारों बातों से भर लेने से भी कोई लाभ नहीं, विवेकानन्द ने भी कहा है, कि मात्र धार्मिक पुस्तकें पढने और प्रवचन सुनने भर से वह बौद्धिक विकास बन कर रह जाता है, यदि वास्तव में उसे अनुभव की वस्तु न बनाया तो धर्म भी नशे की तरह है. किन्तु उसे अपने भीतर आये बदलाव की भनक है, धीरे-धीरे ही सही किन्तु यात्रा जारी है. अब इस संसार को स्वप्न की भांति देखने की समझ आई है. दूसरों की दृष्टिकोण को समझने की समझ, हरेक में उसी अन्तर्यामी के प्रकाश को देखने की समझ, अपनी गलतियों का अहसास फौरन हो जाता है. और उसे स्वीकारने की हिम्मत भी वः अपने भीतर पा रही है. इससे मानसिक ऊर्जा का व्यय नहीं होता सो मन हमेशा शांत रहता है, कमल के फूल पर पड़ी ओस की बूंदों की भांति. जून भी आजकल खुश हैं, नन्हा भी एकाग्रता से पढ़ाई में व्यस्त है. वह अभी से धीर-गम्भीर है, उसने प्रार्थना की, ईश्वर उसे सन्मार्ग पर ले जाये. इसी महीने उन्हें घर जाना है, जून ने सुबह कहा, उपहार खरीदने भी शुरू करने चाहिए. उसे याद आया, दो सखियों के माता-पिता आए हुए हैं, उन सभी को भोजन पर बुलाना है. वर्षा फिर हो रही है.

“जो टिकता नहीं वह अवस्था है जो मिटता नहीं वह परम सत्य है”. बस इतनी सी बात समझ में आ जाये तो जीवन सहज हो जायेगा. आज ‘जागरण’ पर प्रवचन दिल को छूने वाला था, कितनी सरलता से सन्त कितनी गूढ़ बातें कह जाते हैं, लोगों की भाषा बोलते हैं, उनके हित के लिए उनकी अपनी ही शब्दावली से शब्द लेते हैं, उसे उनमें श्रद्धा होती है, पर कुछ बातों के प्रति अविश्वास भी होता है, शायद उसकी रूचि नहीं उन बातों में सो उनके प्रति उदासीनता बनी रहती है. आज ध्यान में बैठी ही थी कि फोन की घंटी बजी सो पूरा नहीं सका. इस वक्त साढ़े नौ हुए हैं, सुबह से अब तक का वक्त ईश्वर के प्रति कृतज्ञता के भाव के कारण अच्छा रहा है, किन्तु यह भी एक अवस्था है. सुखद स्थिति में प्रीति होने से वह सुखकर लगती है, दुखद स्थिति में प्रीति न होने से वह दुखकर लगती है, उसे इन दोनों से ही परे जाना है. यह जग कई पाठ पढ़ाता है, ठोंक पीटकर इस काबिल बनता है कि सत्य को समझने लायक हो सकें. जग में विभिन्न लोगों से व्यवहार करते समय, तरह-तरह की परिस्थितियों में मन का संतुलन बनाये रखते समय, अनुकूल हो या प्रतिकूल दोनों वक्तों में, ईश्वर का स्मरण करते समय वह कितना कुछ सीखती है अथवा तो उस सीख का उपयोग करती है जो सदा से उसके अंतर्मन में सुप्तावस्था में थी. मानव मन असीम सम्भावनाओं का भंडार है, इसमें कई खजाने छुपे पड़े हैं आवश्यकता है तो मंथन की, अमृत भी यहीं है और विष भी यही हैं !

कल पिता का पत्र मिला, पढकर अच्छा लगा, उन्हें उसका घर-परिवार, समाज तथा राष्ट्र के बारे में सोचना, लिखना अच्छा लगा. यदि मन जागरूक हो कोई हर पल सचेत हो तभी ऐसा हो सकता है, बहुत पहले पिता ने एक बार कहा था जब वह घर पर थी, “अपने मन पर नजर रखो, कहीं वही तम्हारे खिलाफ न हो जाये” और अब टीवी पर जागरण शुरू हो गया है. मन के स्वभाव को बदलना होगा जो सदा बाहर की ओर जाता है, ऊर्जा नष्ट होती है. अपने दोष दबाने के लिए दूसरों के दोष देखता है. यदि दूसरों के गुण देखने की आदत आ जाये तो साधक जल्दी सफल हो जाता है. किन्तु अपने दोष देखकर दुःख या पीड़ा न हो बल्कि यह बाहर से आया हुआ है इसे निकालना है, ऐसा संकल्प जगे. तभी कोई निर्दोष जीवन जी सकेगा और ऐसा निर्दोष जीवन ही ईश्वर के प्रेम का अधिकारी है. वक्ता अपने दोषों को दूर करने की बात कहते-कहते भावुक हो गये और श्रोताओं पर भी असर हुआ, कइयों की आँखें भीग गयीं और कई तो रोने भी लगे, लेकिन उसका मन शांत है, ईश्वर कभी नहीं चाहता कि वे दुखी हों अशांत हों या निराश हों ! वह जानती है हृदय में संकल्प के साथ प्रार्थना भी हो तो लक्ष्य मिल सकता है, प्रयत्न केवल अपने बलबूते पर किया तो अहंकार या विषाद दोनों में से एक होगा, और यदि प्रयत्न नहीं केवल प्रार्थना ही की तो निष्क्रियता घेर लेगी.