Monday, March 31, 2014

मोती और सीपियाँ


नन्हे के छमाही इम्तहान समाप्त हो गये, कल से फिर पढ़ाई शुरू हो गयी है. कल उसके स्कूल में Founder”s Day मनाया जाएगा. जून सदा की तरह खुशदिल हैं, स्नेह से भरे हुए, नन्हे और उसके लिए हमेशा तत्पर. वर्षा बदस्तूर जारी है, जिससे  मौसम  ठंडा रहता है. इतवार को उन्हने एक मित्र परिवार को बुलाया था, उनके आने की प्रतीक्षा थी, पर किसी कारण से वे नहीं आ पाए, उसे बुरा लगा पर उनसे कह नहीं सकती, शिष्टता का यही तकाजा है. धीरे-धीरे मन खुद ही भूल जायेगा. समाचारों में सुना, तमिलनाडु की तरह पश्चिम बंगाल और बिहार में भी राज्य सरकार को बर्खास्त करने की मांग उठने लगी है. गुजरात में तूफान से तबाही मची है.

कल शाम वे Face off का cd लाये, फिल्म की कहानी कुछ अलग सी है, हीरो का चेहरा बदल कर विलेन का चेहरा लगा देते हैं और विलेन हीरो का चेहरा पा लेता है. आजकल वैसे भी तो यही हो रहा है, असली-नकली का भेद पाना बहुत मुश्किल है. उसे लगता है जीवन का एक-एक क्षण कीमती है जैसे माला का हर मोती, पूरे जोशोखरोश के साथ हर नये दिन का स्वागत करेगी जो उसके लिए कितने ही ख़ुशी के पल समेटे हो सकता है.

अभी-अभी आचार्य गोयनका जी का विपश्यना पर प्रवचन सुना, ‘विपश्यना’ साधना की पद्धति है जिसमें मानव अपने चित्त को गहराइयों तक शुद्ध व निर्मल बनता है, मानस में राग और द्वेष के संस्कार पत्थर पर पड़ी लकीरों की तरह गहरे हैं और मानव हर दिन उन्हें और गहरा बनाते जाते हैं. आचार्य कहते हैं साक्षी भाव से उन्हें देखना आ जाये तो जीने की कला आ गयी. लेकिन बुद्धि के स्तर पर इसे समझना एक बात है और अनुभति के स्तर पर उतारना बिलकुल दूसरी बात है. जिसमें ध्यान बहुत सहायक हो सकता है. किसी भी बात का असर मानस पर इतना गहरा न हो कि नींद ही उड़ जाये, कायस्थ होकर कोई इस बात को जितनी जल्दी समझ ले उतना ही अच्छा है.
कल शाम उन्होंने उस फिल्म का बाकी भाग देखा जो परसों शाम को लाये थे, साथ ही क्रीम, चॉकलेट और कोको पाउडर भी लाये थे, बिना सोचेसमझे खर्चा करने पर और यूँ ही दिशाहीन जीये चले जाने पर उस रात वह बहुत परेशान हो गयी थी, जून उसकी बात समझ गये थे और कल का दिन उन्होंने बहुत अच्छी तरह बिताया, शांति और समझदारी के साथ. नन्हे के अंक बहुत अच्छे नहीं आ रहे हैं, और उसे इस बात की फ़िक्र भी है यह अच्छी बात है. कल रात नूना ने वह स्पीच भी लिख ली जो कल की मीटिंग में उसे बोलनी है, कल उनके सत्र की अंतिम मीटिंग है. यकीनन वह सबको पसंद आनी चाहिए. कल भांजे-भांजी के लिए कम्प्यूटर पर बनाये कार्ड्स भेजे, भविष्य में वे कार्ड्स इसी पर बनाया करेंगे.

आज उसने टीवी पर उर्दू कवि कृष्ण अदीम का साक्षात्कार सुना, पहले उनका परिचय, फिर उस परिचय की पुष्टि स्वयं कवि के शब्दों में, फिर उनके संघर्ष का जिक्र किया गया, और आगे की बात कवि के शब्दों में. इसी तरह उनकी शायरी पर चर्चा हुई फिर उनके वर्तमान जीवन का विवरण भी दिया.
तू जो चाहे तो दर्द का मेरे दल्मा ? हो जाये
वरना मुश्किल है की मेरी मुश्किल आसां हो जाये
और
इक जरा सी दस्तक को खिड़कियाँ तरसती हैं
अब तुम्हारे कदमों को सीढ़ियाँ तरसती हैं

सल्तनत बहारों की इनको सौंप दीजे
महके-महके फूलों को तितलियाँ तरसती हैं

क्यों न हम दुआ माँगे दारें निसां ? से
कब से पहली बारिश को सीपियाँ तरसती हैं 

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