Monday, March 17, 2014

नीना गुप्ता का धारावाहिक - सांस


आज बीहू है, टीवी पर भारत-आस्ट्रेलिया क्रिकेट पेप्सी कप का फाइनल आ रहा है, भारत के जीतने के आसार कम ही नजर आ रहे हैं. छुट्टी के दिन सारी दिनचर्या अस्त-व्यस्त हो जाती है, देर से उठे, न व्यायाम हुआ न ध्यान... नाश्ते में खीर खायी, लंच में खिचड़ी. सुबह एक स्वप्न देख रही थी, उसका असर देर तक रहा यहाँ तक कि अब भी है, इन्सान कभी-कभी स्वयं के असली रूप को कितना स्पष्ट देख पाता है और अक्सर यह रूप कई परतों में छिपा रहता है. हो सकता है उसकी यह राय हारमोंस के कारण हो, या फिर यही वास्तविक वह है. कल जून एक कैसेट लाये थे “युग पुरुष” नाना पाटेकर और मनीषा कोइराला थे उसमें. फिल्म अच्छी थी मगर उसे लगा, चलेगी नहीं. कल शाम एक मित्र के यहाँ गये, वहाँ गृह स्वामिनी ने पनीर की पूड़ी खिलाई with grated carrot and coriander, स्वादिष्ट थी. वापस आकर ‘सांस’ देखा, नीना गुप्ता अपने ही क्रोध का शिकार बन गयी है, औरतों के साथ यही तो विडम्बना है, अन्याय का विरोध करे तो भी उसकी हार है और न करे तब तो है ही. कुछ देर पहले एक सखी का फोन आया, पर आजकल उसका मन बातें करने का नहीं होता, सम्भवतः आजकल वह स्नेह शून्य हो गयी है, अब हारमोंस को दोष देने का वक्त फिर आ गया है.

आज भी बीहू का अवकाश है, उसकी छात्रा ने तो बल्कि यह कहा कि आज ही बीहू है. बंगाल में आज से नया साल भी शुरू हो रहा है. आज वे जल्दी उठ गये थे, कल जून तिनसुकिया से कम्प्यूटर टेबल के लिए नया टॉप लाये थे, वह भी लगा दिया है. आज लंच में वे तरबूज खाने वाले हैं, इस मौसम का पहला तरबूज ! नन्हा सुबह से अंग्रेजी पढने में लगा है. अगले महीने से उसके यूनिट टेस्ट हैं. उसे home alone देखनी है पर पहले पढ़ाई, फिर फिल्म.. यह तय किया है, थोड़ा मुँह जरुर बनाया उसने पर बाद में समझ गया. नये स्कूल में किताबें भी ज्यादा हैं और पढ़ाई भी. उसकी कुछ किताबें उसे भी रोचक लगीं. कल उसका मन हिंदी लेखन की किताब पढ़ने में नहीं लग रहा था, बार-बार उन्हीं सिद्धांतों को दोहराने से शायद बोरियत महसूस होने लगी थी. कल शाम फिर वर्षा हुई थी पर आज धूप निकली है, मौसम का असर भी इंसानी फितरत पर पड़ता होगा, पड़ता ही है. आज सामान्य महसूस कर रही है. अभी एक घंटा रियाज करना है, किसी को बिना डिस्टर्ब किये घर में रियाज करना भी अपने आप में एक कला है.

जून को कल रात नींद नहीं आई, शायद उसकी वजह से. वह स्वयं तो उनके स्नेह की अधिकारिणी बने रहना चाहती है, प्रेम में हल्के से भी दुराव की पीड़ा क्या होती है उसे उसका मन पहले महसूस कर चुका है, पर कल वह क्यों नहीं समझ पायी. आज उसे संगीत की कक्षा में सुबह ही जाना है. वर्षों बाद अकेले बैठे गाते-गुनगुनाते समय इन अध्यापिका से सीखा संगीत बहुत याद आएगा. कल दूँ भर की कड़ी धूप के बाद शाम को हुई मूसलाधार वर्षा के कारण हवा में ठंडक है. नन्हा आज सुबह जल्दी से उठ गया, जैसे-जैसे बड़ा हो रहा है, जिम्मेदारी समझ रहा है. कल रात स्वप्न में दोनों ननदों को देखा, छोटी ननद दूसरे बच्चे के आने की तयारी कर रही है. एक स्वप्न में देखा एक लडकी उससे एक गीत सीखना चाहती है. जे कृष्णा मूर्ति की पुस्तक पढ़ ली है, उनके अनुसार सचेतन मन से वर्तमान में जीवन जीना चाहिए संवेदन शील मन हो जो पिटी-पिटाई लकीरों पर न चले बल्कि अपना रास्ता स्वयं खोजे.






2 comments:

  1. बहुत मनोरंजक पन्ने डायरी के....बढ़िया अनीता जी......धन्यवाद...

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  2. अदिति जी, स्वागत व आभार !

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