Tuesday, March 25, 2014

बुद्ध पूर्णिमा का अवकाश


तीन दिन बाद नन्हे को कविता पाठ प्रतियोगिता में भाग लेना है, अभी तक उसने याद नहीं की है, लेकिन वह जानती है आधे घंटे में ही याद कर लेगा, उसकी स्मरण शक्ति अच्छी है. उसका एक मित्र कविता पाठ की तैयारी में नूना से सहयोग लेने आया है, हिंदी जानने वाली महिला के रूप में उसका नाम थोड़ा बहुत लोग जानने लगे हैं. आज वह कम्प्यूटर से सीखी रेसिपी के अनुसार कढ़ी बनाएगी, उन्हें एक सीडी निशुल्क मिला है, ‘कम्प्यूटर एट होम’ जिसमें कई भारतीय व्यंजन है. कल से जून ने उसे कम्प्यूटर पर काम करना सिखाना शुरू किया है. आज दोपहर लंच पर एक मित्र परिवार आ रहा है, वे लोग ट्रेन से दोपहर एक बजे तक पहुंचेंगे. आज सुबह वे छह बजे उठे, पहले ट्रांजिस्टर पर समाचार सुने फिर star पर निनाद  सुना और फिर ‘जी इंडिया’ पर सन्त वाणी सुनी. भारत के कण-कण में, जन-जन के मन में उपनिषदों की वाणी का प्रचार, प्रसार है. यह कोई रहस्य नहीं रह गया है, न ही कभी था, कि मानव का शरीर प्रतिक्षण बदलता रहता है, किन्तु भीतर कुछ है जो कभी नहीं बदलता, वही आत्मा है, और वही परमात्मा का अंश है.

नौ बजने को हैं, पिछले दो दिनों की हलचल के बाद आज घर शांत है, कल ‘बुद्ध पूर्णिमा’ के कारण नन्हा और जून दोनों की छुट्टी थी. शाम को वे क्लब गये extempore speech में नन्हे ने भाग लिया पर कविता पाठ में नहीं ले पाया. बहुत देर हो चुकी थी, और उन दोनों को नींद आने लगी थी. सुबह स्कूल भी जाना है यह कहकर जून थोड़ा नाराज होकर उन सबको घर ले आये, वह भी ठीक से सो नहीं पायी, नन्हे ने तैयारी की थी पर भाग नहीं ले पाया इसी बात का दुःख अलग-अलग तरीके से तीनों ही महसूस कर रहे थे. पर सुबह वे सामान्य थे. उस दिन क्लब से ‘अनिता देसाई’ की एक किताब लायी थी, आधी पढ़ ली है, अच्छी है पर कड़वी सच्चाईयों से भरी हुई, इस दुनिया में हरेक को अपना बोझ स्वयं उठाना पड़ता है. सभी को सहारा नहीं मिलता.

कल बहुत दिनों बाद चचेरे भाई-बहन का पत्र मिला, अच्छा लगा, आजकल पत्र आना एक दुर्लभ घटना हो गयी है. अभी कुछ देर पहले फिर से पढ़ा कि मानव अपने शुद्ध रूप में आत्मा है और सर्वशक्तिमान परमात्मा से अलग नहीं है किन्तु अहम् का पर्दा होने से वह इस संबंध को पहचान नहीं पाता, ध्यान का अभ्यास भी किया पर गहराई तक नहीं पहुंच सकी. अच्छी बातें जो सुनने और पढ़ने में अच्छी लगती है उनका चित्रण साहित्य में किस तरह कर सकती है. जीवन के शाश्वत मूल्यों का चित्रण बिना किसी आडम्बर और शब्दजाल के, स्वाभाविक रूप से. देसाई की किताब के दो पात्रों तारा और विमला में से वह स्वयं को तारा के निकट क्यों पाती है, जबकि वह  किसी भी तरह से आगे नहीं है, कमजोर, डरी-डरी, लाचार, किसी न किसी पर आश्रित अपनी इस छवि से उसे बाहर निकलना ही होगा.


कल से उसे जुकाम ने जकड़ा हुआ है, बदन में हरारत सी महसूस हो रही है, नाक लाल हो गयी है, आँखें भारी सी हैं पर इन सबके बावजूद उसकी जीवनी शक्ति ज्यों की त्यों बरकरार है, यानि अपने रोजमर्रा के कार्यों को करने का उत्साह भी है और इच्छा भी. यह बात अलग है कि थोड़ा धीरे-धीरे ही कर पा रही है. अपनी छात्रा को कम्प्यूटर पर science encyclopedia दिखाया, नये स्वीपर से बाहर का नाला साफ करवाया, वह काम करना ही नहीं चाहता, दीनदास नाम है और शरीर भी मजबूत है पर थोड़ा आलसी है, सभी उतना ही काम करना चाहते हैं जितना करने भर से काम चल जाये. आज सुबह समाचार नहीं सुन पायी. परमाणु विस्फोटों के खिलाफ किस देश ने क्या कहा और कितने प्रतिबन्ध लगाये, आजकल यही तो होता है. कल शाम वे एक मित्र के यहाँ गये वहाँ उनकी अमीर दीदी के किस्से सुनकर (हजारों रूपये के गहने-कपड़े) कैसा तो लगा, वह  कल यूँ ही जुकाम से परेशान थी, फिर बाल भी धुले नहीं थे, साड़ी भी पुरानी पहनी थी. खैर कपड़ों से ही कोई अमीर नहीं बन जाता है, उसे अपनी अच्छी साड़ियाँ संभाल कर रखने के बजाय  पहननी चाहियें इतनी सीख तो मिली. आज मौसम यूँ तो गर्म है पर उसे पंखे की आवश्यकता महसूस नहीं हो रही है शायद हरारत की वजह से. उनके पेड़ में छोटी छोटी अम्बियाँ लगी हैं, एक दो तोड़कर शाम को चटनी बनाएगी, पुदीना भी अभी हरा है और हरी मिर्च के पौधे भी भरे हुए हैं. यानि सभी कुछ ताजा और शुद्ध...

No comments:

Post a Comment