Friday, February 8, 2013

लहराती अलकें



मौसम में बदलाव आने लगा है, कितनी ठंडी हवा बह रही है, गर्मी का नामोनिशान नहीं. शायद यह सुबह हुई तेज वर्षा का ही असर है. आज दोपहर जून के साथ दो सहकर्मी भी आए थे. वह व्यस्त सुबह की बजाय इस खाली अपराह्न में डायरी लेकर बैठी है. बातें बहुत सी हैं, दिमाग में स्फुलिंगों की तरह आती हैं एक क्षण के लिए चमक दिखाकर चली जाती हैं. यह तो सच है कि आज वह अपने अच्छे मूड्स में से एक में है. ऐसे में कोई कविता भी बन सकती है या...इस हफ्ते अभी तक कोई पत्र नहीं आया. छोटी बहन का स्वास्थ्य अब ठीक होगा, पिछले पत्र में उसने लिखा था. ननद की शादी में शामिल होने उन्हें घर जाने में कुछ ही दिन ही रह गए हैं, उसे कोलकाता से एक साड़ी खरीदनी है और कुछ उपहार भी.
   सर्वोत्तम में एक पंक्ति अच्छी लगी कि लोग लेखक होने का स्वप्न तो रखते हैं पर अकेले घंटों टाइपराइटर पर बैठने की कल्पना नहीं कर पाते, लिखना एकांतिक, वैयक्तिक कर्म है जो समय मांगता है. समय की तो उसके पास कमी नहीं है, लेकिन इतनी अधिकता भी नहीं है. लिखने के लिए कुछ तो मन में होना चाहिए, कुछ कहने के लायक. वह कहाँ से आता है, वह कहीं रखा तो नहीं रहता कि उठाया और लिख दिया, वह तो अंदर से आता है अपने आप, जब कोई विषय लेखक चुनता है तो अब तक का सारा ज्ञान उस विषय के बारे में याद आने लगता है. धीरे धीरे पर्दे हटने लगते हैं और पर्त दर पर्त उधड़ती चली जाती है. जैसे सबसे सामान्य विषय है प्रेम, जितना सामान्य उतना ही असामान्य - लाखों प्रेम कहानियाँ लिखी जा चुकी हैं फिर भी हर कहानी  नई लगती है. जब किसी को बिना मांगे अपने आप ही सबका प्रेम मिलता रहता है, तो उसका महत्व पता नहीं चलता, फिर एक दिन जब कुछ अधूरेपन का अहसास होता है तब कीमत पता चलती है अनमोल प्रेम की. सर्वोत्तम के साथ एक उपहार आया है, “सर्वोत्तम मुशायरा” जिसमें कई गजलें बहुत उम्दा हैं. एक शेर उसे काफी पसंद आया जिसका भाव कुछ ऐसा था कि अब दुखी होने से क्या फायदा, राहे इश्क में ऐसा ही होता है. जगजीतसिंह, चित्र सिंह व लता के स्वरों में गायीं गजलें सुनती रही दोपहर बाद.. ऑंखें बंद करके चुपचप लेटकर..बहुत अच्छा लगा उसे.

जीवन में दुःख है, दुःख का कारण है, कारण दूर किया जा सकता है. कारण है इच्छापूर्ति में बाधा, बाधा तभी न रहेगी जब इच्छा ही न हो, इच्छाओं से परे एक मुक्त जीवन की कल्पना ही कितनी सुखद लगती है. उस दिन बुद्ध के ये वचन सुने थे तो अच्छा लगा था, अच्छी बातें किसे अच्छी नहीं लगतीं, पर उन पर अमल... करने का प्रयत्न तो किया जा सकता है न..आज उन्हें सोनू के स्कूल जाना है, छुट्टी के लिए प्रार्थनापत्र देना है और प्रोजेक्ट वर्क के बारे में बात करनी है. रवीन्द्रनाथ टैगोर का एक लेख पढ़ा, creation vs construction, शुरू में अच्छा लगा पर बाद में भाषा दुरूह होने के कारण समझ नहीं आ रहा था. कल वे एक परिचित के यहाँ बरसों बाद गए, अच्छा लगा, लोगों से मिलते-जुलते रहो तभी उनके बारे में पता चलता है.

पूरा अक्टूबर और आधे से ज्यादा नवम्बर बीत गया आज जाकर डायरी खोलने का सुअवसर आया है. इतने सारे दिनों में कई अच्छी बातें और कई बुरी बातें हुईं, लेकिन कुछ लिखे ऐसा मन नहीं हुआ. कोलकाता में ट्रैफिक जाम में जब फंसे थे तो एक कविता की कुछ पंक्तियाँ याद आयी थीं लेकिन घर लाकर इतने सारे लोगों से मिलकर..तरह-तरह की व्यवस्ताओं में याद नहीं रही. उसने फेमिना से जून के लिए कुछ बातें नोट कीं, बालों की देखभाल के लिए, कह रहे थे, उनके बाल झड़ने शुरू हो गए हैं.  
  

No comments:

Post a Comment